Zee-Mail Express - 28 in Hindi Fiction Stories by Alka Sinha books and stories PDF | जी-मेल एक्सप्रेस - 28

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जी-मेल एक्सप्रेस - 28

जी-मेल एक्सप्रेस

अलका सिन्हा

28. ‘आरबीएस’ का खुलासा

अपनी सीट पर पहुंचने के बाद मैंने डॉक्टर का दिया हुआ विजिटिंग कार्ड निकालकर देखा-- ‘डॉ. मधुकर’ उस पर लिखा था और मेरा अंदाजा सही था, वह एम्स में मनोचिकित्सक था। तभी उसका व्यवहार दूसरों से इतना अलग था। मैं ईश्वर का धन्यवाद कर रहा था कि किस प्रकार डॉक्टर मधुकर ने बीच में आकर मेरी बात सुनी थी। यह भी कितना बड़ा संयोग था कि मेरी तफतीश कभी भी नौजवान लड़कों के साथ नहीं हुई और मैं उनके सामने ज़लील होने से बच गया, वरना वे तो यही समझते कि मैं भी उन्हीं में से एक हूं और उम्र के इस दौर में पहुंचकर भी ऐसी लालसाओं में लिप्त हूं।

‘गीतिका को देखने चलना है, त्रिपाठी?’’ मैंने देखा, धमेजा मेरी बगल में खड़ा था।

उसका इस तरह मेरी सीट के पास आकर खड़े होना मुझे ठीक नहीं लगा। मैं समझ रहा था कि बातचीत के बहाने अब यह मेरी दुर्गति की जानकारी लेगा और फिर दफ्तर में बांचेगा। दो रोज पहले चपरासी आकर खड़ा था, अभी धमेजा। आखिर मैं भी किस-किस से बचूंगा, सामना तो करना ही पड़ेगा। डॉक्टर का कार्ड वापस जेब में डालते हुए खुद को तैयार किया।

‘‘क्या हुआ गीतिका को?’’ सीधे-सीधे मना करने के बदले मैंने सवाल किया।

धमेजा ने बताया कि पिछली रात गीतिका ने नींद की दस गोलियां एक साथ खा लीं। उसकी हालत काफी खराब है, वह हॉस्पिटल में भरती है। डॉक्टर उसे ‘अंडर एक्यूट स्ट्रेस’ बता रहे हैं। दफ्तर के कुछ लोग उसे देखने जाने वाले हैं।

यह खबर सुनकर मैं तटस्थ नहीं रह पाया, मगर साथ चलने का साहस फिर भी नहीं जुटा पाया।

धमेजा ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया, ‘‘ये स्थितियां तो आती-जाती रहेंगी, हमें एक-दूसरे पर भरोसा करना चाहिए और ऐसे समय साथ खड़ा होना चाहिए।’’

पता नहीं, वह किसके संदर्भ में कह रहा था, मगर मेरा मन हलका हो आया। धमेजा के हाथ का स्पर्श भला लगा। एक पल को लगा, उसके सीने से लगकर फफक पड़ूं। भरोसा कितनी बड़ी चीज होती है। रात विनीता ने मुझ पर भरोसा जताकर मुझमें स्थितियों से सामना करने का जज्बा जगाया था तो आज धमेजा ने आंख मिलाकर बात करने की ताकत लौटाई थी। मैं सीधा उसकी आंखों में देख रहा था। वहां मेरे प्रति अविश्वास या अपमान का कोई चिह्न नहीं था।

मैं आश्वस्त भाव से उनके साथ चल पड़ा।

जब हम गीतिका के पास पहुंचे तब वह नींद की हालत में थी। जहन में गीतिका का रोज का चेहरा घूम गया। मैंने महसूस किया, गीतिका में एक खास तरह की सुंदरता थी। उसकी सादगी, उसकी खामोशी और काम के प्रति उसकी निष्ठा उसे और भी खूबसूरत बनाती थी। वह इस भीड़ से अलग थी। इस नीम बेहोशी में भी वह कितनी भली लग रही थी। दुनिया ने उसे ठीक से पहचाना ही नहीं, उसकी सच्चाई, उसकी शालीनता को जाना ही नहीं।

आज के माहौल में योग्य व्यक्तियों को नींद या नशे की गोलियां खाकर ही जीना पड़ता है। अपने ही महकमे के ऐसे कई चेहरे निगाहों में तैर गए जो किसी न किसी कारण विक्षिप्त अवस्था में जा पहुंचे थे। मुझे वह दिन भी याद आ गया जब मैं यहां नया-नया भर्ती हुआ था, तब किसी व्यक्ति को पागलों की तरह हरकतें करते देखकर हंस पड़ा था। इस पर राकेश दीवान ने मुझे बताया था कि प्रमोशन के लिए कितनी ही बार विभागीय लिखित परीक्षाएं पास करने के बावजूद जब इसे इन्टरव्यू में फेल किया जाता रहा तो यह फ्रस्टेट हो गया। बाद में ऐसे कई चेहरों से मेरी मुलाकात होती रही। एक रोज मैंने महसूस किया कि मेरा भी चेहरा इन चेहरों से मिलने लगा है तो मैंने तुरंत खुद को संभाला। विनीता ने भी मेरी मदद की और मैं अस्पताल पहुंचने से बच गया।

मैं गीतिका से कुछ बात करना चाहता था, मगर डॉक्टर ने हमें गीतिका को बस देखने भर की इजाजत दी थी, लिहाजा हम चुपचाप लौट आए।

सोनिया बता रही थी कि गीतिका पिछले कुछ दिनों से रात में नींद न आने के कारण परेशान थी। जबकि मिसेज विश्वास का मानना था कि गीतिका की शादी की बात कहीं फिक्स होकर टूट गई जिससे वह आहत थी।

‘‘शादी टूटी नहीं, उसने खुद तोड़ दी।’’ सोनिया ने खुलासा किया।

‘‘क्यों तोड़ दी, सोनिया?’’

पता नहीं मिसेज विश्वास की जिज्ञासा में कितनी चिंता थी और कितनी उत्सुकता, मगर सोनिया बहुत कुछ जानते हुए भी शायद गीतिका की व्यक्तिगत बातों को सरेआम करने से रुक गई।

मिसेज विश्वास मासूमियत से सोनिया की ओर देख रही थी।

मैं बहुत असहज महसूस कर रहा था। आजकल मैं किसी की प्रतिक्रिया को सामान्य भाव से नहीं ले पा रहा। हर किसी पर उपहास करने का शक होने लगा है।

धमेजा ने गीतिका के बारे में जानने का दावा कर एक चौंकाने वाली जानकारी दी। उसने बताया कि पिछले रोज जब वह किसी को फोन पर बता रहा था कि पुलिस को जीएम मैडम के साथ अमनदीप की कुछ आपत्तिजनक क्लिपिंग्स मिली हैं, उस वक्त गीतिका वहीं थी।

धमेजा ने तभी महसूस कर लिया था कि उसे गीतिका के सामने यह बात नहीं कहनी चाहिए थी। बल्कि वह तो ऐसी किसी स्थिति के प्रति तभी से आशंकित था।

‘‘तो क्या अमनदीप भी जिगोल...ओ...?’’ सोनिया की आवाज गले में अटककर रह गई।

सोनिया संभवतः अमनदीप के प्रति गीतिका के झुकाव के बारे में अनजान नहीं थी, बल्कि वह यह भी जानती थी कि गीतिका ने इसी कारण एक सीनियर ऑफिसर से तय हुआ अपने विवाह का रिश्ता ठुकरा दिया था, मगर इस तरह की क्लिपिंग्स से संबंधित कोई जानकारी गीतिका ने उससे साझा नहीं की थी।

धमेजा ने बताया कि अमनदीप के नाम का समन ऑफिस में आया था, मगर वह उस दिन ऑफिस नहीं आया था। दफ्तर ने समन उसके घर के पते पर भिजवा दिया, मगर उसके घर पर ताला मिला।

पता चला है, अमनदीप पुलिस की नजर से बचता फिर रहा है।

दफ्तर पहुंच जाने के बाद भी चर्चा का माहौल बना रहा। धमेजा बता रहा था कि विदेशों में तो खूब प्रचलित है जिगोलोज का धंधा। वहां तो स्त्री-पुरुष पूरी सजगता के साथ खुद को इसके लिए बाकायदा तैयार करते हैं। वे नियमित तौर पर अपनी मेडिकल जांच कराते रहते हैं और एड्स जैसी बीमारियों के प्रति पर्याप्त सावधानी बरतते हैं। वे अपने स्वास्थ्य ही नहीं, शारीरिक जरूरतों के प्रति भी लापरवाही नहीं बरतते। रतजगे करते हैं तो दिन में नींद पूरी करते हैं, समय-समय पर मसाज और बॉडी-पॉलिशिंग के साथ-साथ नियम से जिम वगैरह भी जाते हैं।

मैं हैरान था कि स्त्री-पुरुष के अंतरंग संबंधों पर हो रही इस परिचर्चा में मिसेज विश्वास ही नहीं सोनिया भी खुलकर हिस्सा ले रही थी। धमेजा द्वारा उद्घाटित इस तथ्य का तो मिसेज विश्वास ने भी समर्थन किया कि एक समय के बाद पति-पत्नी के संबंध नीरस और उबाऊ होने लगते हैं।

“वाय शुड ब्वायज़ हैव ऑल द फन?” मिसेज विश्वास ने कंधे उचकाते हुए कहा, “नीरसता तो दोनों के ही जीवन में आई है न?”

सोनिया ने मिसेज विश्वास की आधुनिक सोच का सिर हिलाकर समर्थन किया।

मुझे ध्यान आ रहा था कि अभी दो साल पहले ही तो विनीता के माता-पिता ने अपनी शादी की पचासवीं सालगिरह मनाई थी। विनीता के भाई-बहनों ने मिलकर शादी का सारा इंतजाम इस तरह किया था जैसे पहली बार की शादी के लिए किया जाता है। मेंहदी की रस्म से लेकर विदाई तक की सभी रस्में अदा की गई थीं। और विनीता के घर ही क्यों, आजकल तो बड़े उत्साह से ऐसी शादियां दोहराई जा रही हैं। क्या इसलिए कि इससे एक तरह का नयापन आ जाता है? उत्साह, उत्तेजना आ जाती है? यानी नयेपन की तलाश तो सभी कर रहे हैं, हां, तरीके अलग-अलग हो सकते हैं।

अभी पिछले दिनों की ही बात ले लो, जब हम ट्रेनिंग प्रोग्राम में चेन्नै गए थे। वहां तो विनीता का रूप ही बदल गया था, वह किसी टीनएजर-सी उत्साहित थी। यानी समस्या तो बड़ी है मगर समाधान आसान से हैं। बस हमें एक-दूसरे को थोड़ा समय देना चाहिए, नए-नए तरीकों से अपने प्रेम का इजहार करना चाहिए।

मुझे वह दिन भी याद आया, जब एक रोज सुबह की चाय के लिए विनीता को जगाने के बदले मैं खुद ही चाय बना लाया। मेरी इस जरा-सी कोशिश से विनीता कैसी खिल उठी थी। उसने कहा था, बात चाय बनाने की नहीं, साझेदारी की है।

मगर उनकी बहस साझेदारी पर नहीं, स्थूल शारीरिक सुख की तरफ मुड़ गई थी और वे समाधान नहीं ढूंढ़ रहे थे बल्कि इस उन्मुक्तता को सही ठहराने के तर्क खोज रहे थे।

धमेजा की आधुनिक सोच से सोनिया भी कम उत्साहित नहीं थी। उसने बताया कि कॉलेज छात्रों को कॉर्पोरेट जगत की ट्रेनिंग देने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने पिछले सत्र के लिए जिन छात्रों का चुनाव किया, उनमें वह भी शामिल थी। तीन-चार राउंड की ग्रुप डिस्कशन और ग्रुप टास्क जैसी गतिविधियों के आधार पर प्रतिष्ठित कॉलेजों के चुने गए छात्रों से मिक्सअप होने की चर्चा में सबसे अहम सवाल था कि वे अपने ‘आरबीएस’ के संबंध में बताएं।

सोनिया ने ‘आरबीएस’ का खुलासा इस प्रकार किया, ‘आर’ मतलब रिलेशनशिप, यानी अब तक कितने लड़के अथवा लड़कियों के संपर्क में आए हैं?

‘बी’ यानी आपका ‘बेस लेवल’ क्या है? अपने साथी को चूमने से लेकर संभोग करने तक की प्रक्रिया को अगर फाइव प्वाइंट स्केल में देखें, तो आप खुद को कहां रखते हैं?

और ‘एस’ का मतलब हुआ ‘स्टेटस’, आपकी वर्तमान स्थिति, फिलहाल कितनों से आपका रिश्ता बना हुआ है?

धमेजा तक तो मैं फिर भी कुछ सुन-समझ पा रहा था मगर सोनिया की जानकारी तो इन सबको पीछे छोड़ चुकी थी। सोनिया बता रही थी कि जिन स्टूडेंट्स का बेस लेवल जीरो था, उनका तो खूब मजाक बनाया गया। इस चक्कर में उसकी कई सहेलियों ने तो झूठ में ही तीन-चार का प्वाइंट बना डाला।

यानी अब प्यार छुपाने के लिए झूठ नहीं बोला जाता, बल्कि प्यार की झूठी घोषणा कर प्रमाणित किया जाता है कि वे नपुंसक नहीं है, वे नॉर्मल हैं और अपडेटेड हैं।

विदेशों की तरह हमारे देश में भी प्रचलित हो रहे ‘प्रॉम नाइट’ और ‘स्कलर्स नाइट’ का जिक्र करते हुए सोनिया बेतरह उत्साहित थी कि उसके पास भी इस ग्रुप में शेयर करने लायक जानकारी है। उसने बताया, इसमें लॉटरी की तरह पर्चियां डालकर एक-दूसरे के पार्टनर तय किए जाते हैं। सोनिया का मानना था कि इस तरह की पार्टनरशिप में एक खास तरह की एक्साइटमेंट रहती है।

धमेजा ने सोनिया का उत्साह बढ़ाते हुए खुलेपन से कबूल किया कि अब औरत-मर्द वाली बात नहीं रही, दोनों को मौज-मस्ती करने का बराबर का अधिकार है।

धमेजा ने दावा किया कि बाजार में स्कूल जाने वाले लड़कों की सबसे अधिक मांग है। एक तो उनकी बहुत अपेक्षाएं नहीं होतीं, दूसरा उत्सुकता से भरा उनका अनाड़ीपन महिलाओं को ज्यादा ही उत्तेजित करता है। पत्नी की देह के प्रति पति की उदासीनता के बदले नए लड़कों का कौतुक, उन्हें अतिरिक्त संतुष्ट करता है। महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोन की चर्चित वीडियो का हवाला देते हुए धमेजा ने सवाल किया,“क्या कहा था दीपिका ने, मैं किसी लड़की के साथ सेक्स करूं या लड़के के साथ, शादी से पहले करूं या शादी के बाद किसी दूसरे के साथ करूं, ये किसकी पसंद है? किसका फैसला है?”

“मेरी पसंद, माइ च्वाइस।” धमेजा के तर्क को समर्थन देते हुए मिसेज विश्वास का उत्साह देखने लायक था।

मैं महसूस कर रहा था, लोग कितनी आसानी से अपने मुताबिक स्त्री स्वतंत्रता की व्याख्याएं गढ़ लेते हैं। कभी वे उसे अबला और देवी बना कर छलते हैं तो कभी 'बोल्ड' और ‘सुपर पावर’ बनाने का भ्रम देकर। भीतर ही भीतर कसमसा रहा हूं कि स्त्रियां पुरुषों की इस चालाकी को समझ क्यों नहीं पातीं? उलटे, उनके भीतर बोल्ड होने की ऐसी महत्वाकांक्षा पनप आई है कि वे खुद ही खुद को बेपर्दा कर पुरुषों की भोग्या बनने के लिए छटपटाने लगी हैं। मैं पूछना चाहता हूं कि गीतिका जैसी शालीन लड़कियों के अनाम संबंध क्या इसी तरह आधुनिकता के यज्ञ में समिधा बनते रहेंगे?

मगर मेरे पास न तो धमेजा जैसी तार्किकता थी, न ही सोनिया जैसी ताजा जानकारी। मैं खामोशी से बैठा रहा, कुछ अधिक कहने-सुनने की स्थिति में मैं अभी भी नहीं आ पाया था।

(अगले अंक में जारी....)