Fir milenge kahaani - 2 in Hindi Moral Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | फिर मिलेंगे... कहानी - एक महामारी से लॉक डाउन तक - 2

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फिर मिलेंगे... कहानी - एक महामारी से लॉक डाउन तक - 2

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मांजेश, मोहित, अर्पित और आफताब अच्छे दोस्त हैं और सारे कल रात मिलने का प्लान बनाते हैं |


अब आगे....



“अरे बेटा मोहित... नाश्ता तो करता जा, दो मिनट लगेंगे” कांपते हाथों से मोहित की मां ने मेज पर नाश्ता रखा |

मोहित - “अरे मां पहले से ही देर हो गई है” |

“अरे इतनी देर तक सोता रहेगा तो देर तो होगी ही.. अरे एक हम लोग थे सुबह के चार बजे जग जाते थे” | यह कहकर बाबूजी फिर अखबार की सुर्खियां पढ़ने लगे |

मोहित ने एक सेब उठाया और खाते हुये बोला, “बाय मां ..बाय बाबा...” |

यह कहकर मोहित बैंक आ गया और अपना काम करने लगा |



“ओए. चल अब उठ ले ताऊ, और कितना सोएगा ..उठ जल्दी” |

यह कहकर अर्पित के एक पुलिस दोस्त ने उसकी चारपाई कसके खिसका दी |

अर्पित अपनी आंखें मसलते हुए, “अरे भूतनी के.. रात भर ड्यूटी करके अब सो रहा हूं, सोने दे ना...” |
दोस्त - “अरे रात को सो जाइओ, आज तो छुट्टी है तेरी” |

अर्पित - “अबे जाता है या नहीं” |

यह कहकर अर्पित ने अपनी तकिया उस दोस्त के मारी और वह भी हंसता हुआ बाहर आ गया, पुलिस लाइन में सब दोस्त ऐसे ही एक दूसरे को छेड़ते और मस्ती करते रहते थे |




आफताब - “अरे जेबा.. दुकान की चाबियां कहां रखी हैं ” ?
जेबा (आफताब की पत्नी )- “अरे वहीं दरवाजे के पास खूंटी पर टंगी होंगी, सही से देखो” |

आफताब - “नहीं है... यहां जरा देखो आके” |

जेबा - “ओहो.. क्या करें इन शौहरों का या खुदा...” |

यह कहकर जेबा रसोई घर से बाहर आती है कि तभी आफताब का बड़ा बेटा सलमान बोला, “अरे अब्बू कल रात में चाबियां राबिया और सेखू के पास थी, दोनों खेल रहे थे” |

यह सुनते ही जेबा फिर रसोईघर में चली गई |

आफताब गुस्से में - “अरे कोई बताएगा कि चाबियां कहां है”? आफताब की अम्मी - “अरे क्यों सुबह-सुबह चिल्ला रहा है तू संभाल के रखता क्यों नहीं अपनी चाबियां, अरे जेबा तू क्या रसोई में बैठी है, चाबियां क्यों नहीं ढूंढती” |

जेबा गुस्से में पैर पटकती हुई आती है तभी अयान बोलता है, “अब्बू पांच रुपये दो तो मैं चाबी ढूंढ कर देता हूं” |

आसिम - “नहीं अब्बू इसे नही... मुझे पांच रुपये दो मैं चाबी ढूंढ कर देता हूं” |

आफताब - “अरे कम्बख्तों.. बस करो.. बाप को लूट लो” |

बच्चों के शोर से मुन्नी जग जाती है और जोर जोर से रोने लगती है तभी सलमान चाबियां ढूंढ कर आफताब को दे देता है और आफताब बढ़ बढ़ाते हुए दुकान चला जाता है |

शाम के चार बजे अर्पित का फोन बजता है |
मोहित - “शाम को आ रहा है ना” |

अर्पित - “अरे यार यह भी कोई पूछने की बात है, मैं तो इंतजार कर रहा हूं, कब रात हो और कब हम लोग मिले, मै आफताब के साथ टाइम से आ जाउंगा” |


रात की पार्टी के लिए चारों दोस्त बहुत एक्साइटेड होकर रात का इंतजार करते हैं |

आगे की कहानी अगले भाग में....