my career journey in Hindi Travel stories by Singh Srishti books and stories PDF | कहानी मेरी कामयाबी की...

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कहानी मेरी कामयाबी की...

कामयाबी के सपने बुनते हुए मैं नए सफर की ओर बढ़ रही थी। बाहर के दृश्य को रोचकता से देखते हुए मैं बस में खिड़की किनारे से टिकाए बैठी थी। ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए मैं अपना शहर छोड़ दूसरे शहर जा रही थी। एक अनजान शहर, जहां इससे पहले मैं कभी नहीं गई थी , नए लोग और भी तमाम नई चीजें। बस चल ही रही थी कि तभी अचानक से अनचाहे हवा के झोंके ने मेरी रूह को छू गई और मुझे मेरे बचपन में ले कर खड़ा कर दिया ।जहां मैं बेफिक्र रहती थी। ना तो कोई चिंता थी ना ही कोई जिम्मेदारी ,थी तो बस मस्तियां और शरारतें पर आज मै इन सब से अलग एक बड़ी जिम्मेदारी और अपने ही नहीं अपनो के भी सपनों को लेकर जा रही थी , अब वो हसी मज़ाक के दिन छोड़ मै अपने भविष्य को लेकर बेहद जिम्मेदारी के साथ घर से दूर भेजी जा रही थी और आख़िर हो भी क्यों न , आख़िर मेरी बहन की आज जो हालत है उसे देखकर सभी को अब हमारी चिंता जो हो रही थी। अब सिर्फ मैं ही नहीं मेरे घर वाले भी मुझे अपने पैरों पर खड़ा होता देखना चाहते थे। मैं बार बार अपने आप को जिम्मेदारियों से रूबरू करवाती पर ना जाने क्यूं मैं अपने बचपन में आज खोती सी चली जा रही थी और ये सोचती कि आज ही मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? यह मैंने जानने की ना जाने कितनी बार कोशिशें की, पर हर बार मै नाकाम रही। और फ़िर एक बच्चे का हस्ता चेहरा देख मैं एक बार फ़िर से अपने बचपन में चली गई। मैं सोचने लगी कि बचपन के वो बचपन पल कितने मासूम थे ,जिंदगी कितनी हसीन थी।मां का प्यार , पापा का दुलार, भैया के साथ की गई बदमाशिया। वह तेज की भूख लगने पर ना खाना मिलने पर चाय के साथ रोटी भी आज के पिज्जा से कम लगने वाली थी, वो मां की मार खाकर पढ़ने बैठने कि याद आज कहां जाने वाली थी। वो दोस्तों के साथ गली में सुबह से ही नए नए खेल खेलना, वह साल भर की पढ़ाई के बाद एक महीने की गरमी की छुट्टियों का इंतज़ार फ़िर गांव की मस्तियां, जहां पूरी दोपहर बस मस्तियां वो गुडे गुड़ियों के खेल, वो शाम को तांगड़ी के खेल। आम के बगीचों में जाकर अपने हाथ से आप तोड़ना, वो रात को छत पर सबके साथ सोना और फ़िर ढ़ेर सारी कहानियां सुनना । गांव की यादों से बाहर ही अाई थी कि वास्तविकता से रूबरू होकर घर की याद सताने लगी थी। मां का वह मुस्कुराता चेहरा मेरे रूसे हुए मन को शीतल कर ही रहा था कि तभी अचानक से एक ब्रेक ने मेरी यादों पर तेज़ी से ब्रेक लगाते हुए मुझे वर्तमान में लाकर खड़ा कर दिया। जैसे-जैसे बस आगे बढ़ रही थी मेरे मन में डर और बेचैनी का सैलाब उमड़ रहा था फिर मैं बचपन की हसीन यादों की किताब को बंद कर अपने सफर की ओर बढ़ते हुए नयी चुनौतियों के लिए ख़ुद को आख़िर तैयार कर ही लिया।