"जय श्री राम! मिनिस्टर साहब! हमारे आदमियो ने उस आदमी तक हमे जो पहुंचा सके उस आदमी को ढूंढ निकाला है, वो हमे शैलेश मज़मुदार से मिलवा सकता है, लेकिन एक दिक्कत है।" आदित्यनाथ ने फ़ोन पर बात करते हुवे रामदास को बताया।
"क्या दिक्कत है?" रामदास ने सीधे मुद्दे की बात करते हुवे पूछा।
"शैलेश मज़मुदार दीव की कलेक्टर अलका नंदा का बहुत ही करीबी है, उसे डरा, धमका कर बात करना मुनासिब नही होगा।" अपनी डेस्क पर बैठे बैठे अपनी कुहनियों को डेस्क पर टिकाये हुवे बताया।
"ठीक है, तो फिर उस आदमी के साथ तुम जाओ और उनको जो घटना घटी है वो विस्तार से बताओ और पता लगाओ की इस सब कांड के पीछे कौन है, और हो सके तो यह मुरली सिवाल कौन है यह भी पता लगाओ।" रामदास ने भैयाजी के कोई भी जवाब की प्रतीक्षा किये बग़ैर ही फ़ोन कट कर दिया।
"सुनो, उस आदमी के साथ मीटिंग फिक्स करो, बुलाओ उसको क्या नाम है उसका? फ़ारूक़ अली!" आदित्य ने नाम याद करते हुवे अपने पी.ए. को आदेश देते हुवे कहा।
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"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" जय ने पीछे से माहेरा के कंधे पर हाथ रखते हुवे पूछा।
अचानक से आई हुई आवाज़ और अपने कंधे पर किसी अजनबी द्वारा छुए जाने से माहेरा चौंकती हुई पीछे की ओर मुड़ी और जय को देखा।
"ओह! जय तुम यहाँ? व्हाट अ को-इंसिडेंस!" माहेरा के चेहरे पर मुस्कान थोड़ी ज़्यादा बढ़ गयी थी।
"आई एम अ गाइड हियर, तुम अकेली हो या फिर कोई गाइड है तुम्हारे साथ?" बात आगे बढ़ाते हुवे जय ने पूछा।
"वैसे देखा जाये तो मै अकेली ही हूँ।" माहेरा ने बताया।
"धेन, व्हाई डोंट यू जॉइन अस?" जय चाहता था कि वो माहेरा के साथ कुछ और वक़्त बिता सके इसी लिए जय ने माहेरा को आफर किया।
"बट यू नॉ आई हेव नो मनी।" उदासी चेहरा बनाते हुवे माहेरा ने कहा।
"अरे यार तुमसे मांग भी कौन रहा है पैसे?" माहेरा का हाथ पकड़ते जय ओकले दंपति की ओर चलने लगा, जो काफी वक्त से वहां खड़े जय के वापिस आने का इंतेज़ार कर रहे थे।
"ओह, आई एम सॉरी!" जब जय को यह एहसास हुआ कि उसे माहेरा का हाथ नही पकड़ना चाहिए था, तभी माहेरा का हाथ छोड़ते हुवे उसने माहेरा से कहा।
"नो, इट्स ओके!" माहेरा ने कोई आपत्ति नही जताई।
"मिस्टर एंड मिसेज़ ओकले, मीट माय फ्रेंड माहेरा, एंड माहेरा, धिस आर माय क्लायंट्स मिस्टर एन्ड मिसेज़ ओकले।" जय ने एक दूसरे को परिचय करवाते हुवे कहा।
"यह जो आप कबरे देख रहे है, यह मुग़ल शासक शाहजहाँ और उनकी बेग़म मुमताज़ महल की है। लेकिन, यह नकली कबरे है, असली कबरे तकरीबन सात मंजिला निचले स्तर पर है।" जय ने और एक उपयोगी जानकारी देते हुवे कहा।
"नो वन केन लव इन टुडेस इरा लाइक धेम" यह कहते हुवे अमांडा ने दोनों कब्र के फोटो खींचे।
"प्रोबबली! लेकिन क्या आप जानते है, मुमताज़ शाहज़हाँ की पहली बीवी नही थी, और तो और ऐसा कहा जाता है कि, शाहज़हाँ की ग्यारहवीं औलाद को जन्म देते हुवे मुमताज़ मर गयी थी।" जय ने बात आगे बढ़ाते हुवे कहा।
"हाऊ रेडिक्यूल्स? ग्यारह बच्चे?" माहेरा बीच में ही बोल पड़ी।
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"इस इट ट्रू धेट शाहज़हाँ हेड ऑर्डर्ड टू कट धी हैंड्स ऑफ ऑल ट्वेंटी थाउजेंड वर्कर्स?" सूरज अस्त होने को था, ओकले दंपति ने एक पूरा दिन ताज के नाम कर दिया था और फिर जब वे ताज से बाहिर की ओर निकल रहे थे उसी वक़्त मिस्टर ओकले ने जय से पूछा।
"सर, इस बारे में कई बातें बताई जाती है, लेकिन इतिहासकार इस बात से सहमत नही है, कहा जाता है कि, ताजमहल बनाने के पूर्व जितने कारीगर थे उनसे एक करारनामा लिया गया था कि वे इस प्रतिकृति का फिर कभी कही पर भी उपयोग नही करेंगे और इसके बदले में उन सभी को ताउम्र जिंदगी का निर्वाह हो सके इतनी धनराशि दी गयी थी। जय ने एक ऐसा पहलू ओकले दंपति के सामने रखा था, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते है।
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"हां, तो फ़ारूक़, तुम कब से जानते हो इस शैलेश मज़मुदार को?" रामदास से फोन पर बात करने के पश्चात ठीक उसी शाम को आदित्यनाथ ने फ़ारूक़ से मुलाकात कर ली।
"सर, आपको तो पता ही होगा कि वे अपने दीव की कलेक्टर अलका नंदा के करीबी है...
"करीबी या फिर रिश्तेदार?" बीचमें ही फ़ारूक़ की बात काटते हुवे आदित्यनाथ ने पूछा।
"सर रिश्ते का तो नही पता, लेकिन कोई कनेक्शन तो ज़रूर है और तो और पिछले १ महीने से वो एक कसाई के घर ज़्यादा आता जाता दिखता है।"
"तुम्हे उसके बारे में इतना सब कैसे पता है?" आदित्यनाथ ने फ़ारूक़ पर शक करते हुवे पूछा।
"मेरे ख्याल से आपको मुझसे ज़्यादा उस आदमी में दिलचस्पी होनी चहिए, जिसके बारे में आपने मुझे अभी बात करने के लिए बुलाया है।" फ़ारूक़ ने आदित्यनाथ के सवाल का जवाब देने की वजाय सीधे मुद्दे की बात पर आते हुवे कहा।
"कल शनिवार को शाम ७ बजे इस पते पर आपको शैलेश उस कसाई के घर मिल जायेगा।" फ़ारूक़ ने एक चिट्ठी आदित्यनाथ के डेस्क पर पास करते हुवे कहा।
"और एक बात मिस्टर आदित्यनाथ, आप अपनी भैयाजी वाली स्टाइल में शैलेश से पूछताछ कर सकते है।" इतना बोलते हुवे फ़ारूक़ वहां से चला गया।
"यह कौन हो सकता है जिसे मेरे अतीत के बारे में इतना पता है?" आदित्यनाथ ने मन ही मन सोचा। लेकिन फिलहाल उसके लिए शैलेश मज़मुदार का मुरली सिवाल से क्या ताल्लुक है वो पता करना ज़्यादा ज़रूरी था।
" फ़ारूक़ द्वारा दी गयी हुई चिठ्ठी पढ़ने के बाद आदित्यनाथ ने अपने पी.ए. को आर्डर देते हुवे कहा।
"मनीष को बोलो की इस फ़ारूक़ पर नज़र रखे।