Risate Ghaav - 12 in Hindi Fiction Stories by Ashish Dalal books and stories PDF | रिसते घाव - (भाग-१२)

Featured Books
  • चाळीतले दिवस - भाग 6

    चाळीतले दिवस भाग 6   पुण्यात शिकायला येण्यापूर्वी गावाकडून म...

  • रहस्य - 2

    सकाळ होताच हरी त्याच्या सासू च्या घरी निघून गेला सोनू कडे, न...

  • नियती - भाग 27

    भाग 27️मोहित म्हणाला..."पण मालक....."त्याला बोलण्याच्या अगोद...

  • बॅडकमांड

    बॅड कमाण्ड

    कमांड-डॉसमध्ये काम करताना गोपूची नजर फिरून फिरून...

  • मुक्त व्हायचंय मला - भाग ११

    मुक्त व्हायचंय मला भाग ११वामागील भागावरून पुढे…मालतीचं बोलणं...

Categories
Share

रिसते घाव - (भाग-१२)


श्वेता की बात सुनकर राजीव गुस्से से तिलमिला उठा । उसने क्रोधभरी नजर श्वेता पर डाली । घर में मेहमान बनकर आये अमन की उपस्थिति का ख्याल कर राजीव अपना गुस्सा अन्दर ही निगल गया ।
‘कहना क्या चाहती है ?’
‘जो कदम उठाकर मम्मी ने गलती की थी वह मैं नहीं दोहराना चाहती इसी से खुलेआम कह रही हूँ कि मैं अमन से प्यार करती हूँ । आप चाहें तो जैसे मम्मी का आपने तिरस्कार किया था मेरा भी कर सकते है ।’ श्वेता ने अपनी बात आगे कही ।
‘मैं पहले भी कह चुका हूँ कि अगर पात्र अच्छा हो तो मैं प्रेम विवाह के खिलाफ नहीं हूँ ।’ राजीव ने रुक्ष स्वर में जवाब दिया ।
इस वार्तालाप के बीच अमन चुपचाप बैठा अपने को अजनबी और अपराधी की तरह महसूस कर रहा था । श्वेता और राजीव की इस बहस के बीच बातों का केंद्र वही था इसी से वह चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था ।
‘क्या कमी है मेरे अमन में ?’ श्वेता ने अमन की तरफ नजर डालकर राजीव को घूरा ।
‘उसके बारें में मुझसे अधिक तू जानती है और सब जानकार भी नासमझ बन रही है तो यह तेरी सबसे बड़ी भूल है श्वेता । विवाह सम्बन्धों में पारिवारिक पृष्ठभूमि भी देखी जाती है ।’ राजीव ने अपने आपको संयत कर जवाब दिया ।
‘हम दोनों ही एक बिखरे हुए परिवार का हिस्सा रहे है तो हमारे इस सम्बन्ध में आप किस पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात कर रहे है मामाजी ? मेरी मम्मी की जिन्दगी के बारें में आपसे ज्यादा मैं जानती हूँ ।’
‘मेरी बात समझने का प्रयास कर बेटी । तुम्हारी जिद के आगे झुक भी सकता हूँ लेकिन तुम लोग शादी का फैसला कर साथ रहो तो । ये लिव इन रिलेशन बेकार की बातें है । जिन्दगी में हर बात आजमाकर नहीं देखी जाती ।’ राजीव ने बात को सुलझाने का यत्न करते हुए श्वेता को समझाया और फिर अमन की तरफ देखा ।
‘मामाजी, शादी हो जाने से इस बात की गारण्टी थोड़े ही मिल जाती है कि सम्बन्ध कभी टूटेगा नहीं । स्त्री पुरूष के सहभागिता वाले सारे सम्बन्धों में कहीं न कहीं खोना स्त्री को ही पड़ता है । मुझे अमन पर विश्वास है और अमन को मुझ पर विश्वास है तो जब तक यह विश्वास बना रहेगा हम साथ रहेंगे और साथ रहने के लिए हमें अपने विश्वास को हर समय मजबूत बनायें रखना होगा । यही हमारे सहजीवन की कसौटी होगी ।’
‘अंग्रेजी फिल्में देखकर तेरा दिमाग खराब हो गया है । मैं ऐसे सम्बन्धों का पक्षधर नहीं हूँ । शादी कर साथ रहना चाहते हो तो आगे बात की जा सकती है ।’ राजीव ने जवाब देते हुए अमन को देखा ।
अमन राजीव के कहने का इशारा समझकर अपनी जगह से खड़ा हो गया । उसने एक नजर श्वेता पर डाली ।
‘अंकल, मैं बेहद ही सुलझा हुआ इन्सान हूँ और खुलकर बात करने में ही विश्वास करता हूँ । मैं अपने फैसले पर अडिग हूँ ।’ कहकर अमन ने नमस्ते की मुद्रा में अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और वहाँ से बाहर निकल गया ।
श्वेता अमन को न रोक पाई । अमन के जाते ही रागिनी ने अपना मुँह खोला ।
‘श्वेता, जो कुछ हो रहा है वह गलत है ।’
‘सिर्फ नजरिये का फर्क है मामी जी । आप लोग नहीं समझ पाएंगे ।’ कहते हुए श्वेता के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान छा गई ।
‘तेरे से ज्यादा अनुभवी है बेटी और आज तू ही हमारें अनुभवों को शंका के दायरें में रख रही है ?’ रागिनी ने श्वेता की बात सुनकर प्रश्न किया ।
‘अनुभवी अवश्य है लेकिन जानकार नहीं । मम्मी की जिन्दगी का पूरा सच पता होता या पता लगाने का थोड़ा सा भी प्रयत्न किया होता तो आज मेरे इस फैसले से आपको आश्चर्य नहीं होता ।’ श्वेता ने एक गहरी साँस ली ।
‘तू कब से सुरभि दीदी को लेकर पहेलियाँ बुझा रही रही है । ऐसी तो कौन सी बात है जो हमें नहीं पता है ।’ राजीव कब से श्वेता की बातों का मर्म समझने का यत्न कर रहा था ।
‘मम्मी ने जिन तकलीफों को सहन कर मुझे बढ़ा किया है उसे मैं ही समझ सकती हूँ । आपने तो हमारी खोज खबर तब ली जब जिन्दगी में सबकुछ सम्हल गया था । मम्मी ने जिस इन्सान पर विश्वास कर उसका हाथ थामा था वही दगाबाज निकला था । अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी हो जाने के बाद मम्मी का पति नामक वह प्राणी एक साल के अन्दर ही मम्मी को अकेला छोड़कर चला गया । मम्मी ने अपनी लड़ाई खुद ही लड़ी । मेरे जन्म के बाद खुद घर घर जाकर काम किया फिर नौकरी की । ऐसे में ही संघर्षों के उन दिनों में अगर मनीष अंकल साथ न देते तो मैं भी शायद आज में इस मुकाम पर न होती । मनीष अंकल की पत्नी उनके बेटे को जन्म देने के बाद ही चल बसी थी । मम्मी उनके यहाँ सुबह शाम खाना बनाने के लिए जाती थी । बाद में उन्होंने ही मम्मी की मदद कर उन्हें नौकरी दिलवाई और तब से संघर्ष के संग हमारी लड़ाई कम होने लगी । मेरी नौकरी लगने पर मेरे कहने पर मम्मी ने नौकरी तो छोड़ दी लेकिन फिर उदास भी रहने लगी थी । मम्मी के कहने पर ही इस्कोन आइकोन वाला फ्लैट किराये पर लिया था और वह मनीष अंकल ने ही सजेस्ट किया था ।’ कहते हुए श्वेता चुप हो गई ।
‘इन सबसे तेरा अमन के संग शादी न कर संग रहने का फैसला कैसे जुड़ा है ?’ राजीव को श्वेता द्वारा बताई गई कुछ बातें पता थी लेकिन मनीष वाले प्रकरण से वह अनजान था ।
‘मम्मी चाहती तो मनीष अंकल से शादी कर सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि उनका भरोसा शादी नामक संस्था से उठ चुका था लेकिन उनके और मनीष अंकल के बीच प्रेम के तन्तु स जुड़ा हुआ एक नाजुक रिश्ता था जो वे अब तक सभी से छिपाकर जी रही थी । व्यक्तिगत स्तर पर हर सम्बन्ध और घटना की अपनी एक सच्चाई होती है और किसी की नजरों वह गलत हो सकती और किसी की नजरों में सही लेकिन छिपाकर की गई कोई भी चेष्टा इन्सान को अन्दर ही अन्दर एक दिन खाने लगती है । वही मम्मी के साथ हुआ । उनके और मनीष अंकल के प्रेम सम्बन्ध के बारें में मुझे इस्कोन रेसीडेंसी में रहने जाने के बाद ही पता चला । मैं उस वक्त नहीं जानती थी कि मम्मी सही थी या गलत लेकिन उनकी निजी जिन्दगी सच जान लेने के बाद वह एक अपराधभाव में घिरकर जी रही थी । वह मेरी नासमझी ही थी कि उनके कमजोर क्षणों का फायदा उठाकर मैंने अमन के साथ अपनी जिन्दगी जीने का तरीका मनवाने का प्रयास किया और शायद उन्हें आगे जिन्दगी की अनिश्चतता के बीच अपने सवालों का जवाब न मिल पाया और उन्होंने हार मानना ही उचित समझा । आज मैं अमन के साथ अपने प्रेम को लेकर स्पष्ट हूँ और उसके संग चोरी छिपे नहीं खुलकर जीना चाहती हूँ – क्या फर्क पड़ता है वह लिव इन रिलेशन ही हो तो ।’
‘क्या बकवास कर रही है ।’ राजीव श्वेता की बात सुनकर उबल पड़ा । इस वक्त गुस्सा उसे अपने आप पर अपनी अनभिज्ञता पर भी आ रहा था ।