The Author आयुषी सिंह Follow Current Read मुझे याद रखना - 5 By आयुषी सिंह Hindi Horror Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books ભાગવત રહસ્ય - 107 ભાગવત રહસ્ય-૧૦૭ જ્ઞાની પુરુષો –પરમાત્માના રૂપમાં એવા મળી જ... ખજાનો - 74 " તારી વાત પરથી એવું લાગી રહ્યું છે કે તમે લોકો મિચાસુને ઓળખ... મૂર્તિનું રૂપાંતર મૂર્તિનું રૂપાંતર ગામની બહાર, એક પથ્થરોની ખાણ હતી. વર્ષો સુધ... ભીતરમન - 53 મેં ખૂબ જ ઉત્સાહ સાથે કાગળ ખોલી વાંચવાનું શરૂ કર્યું,"પ્રિય... ગામડાં ની ગરિમા ગામના પાદરે ઉભો એક વયોવૃદ્ધ વડલો તેના સાથી મિત્ર લીમડા સાથે... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by आयुषी सिंह in Hindi Horror Stories Total Episodes : 6 Share मुझे याद रखना - 5 (12) 3.2k 9.7k अचानक से मेरेे फोन पर कॉल आया.....पुजारी जी का फोन था..... मैंने रिसीव किया तो वो बोले " बेटा मैंने महात्मा जी से तुम्हारे बारे में बात कर ली है उन्होने कहा है कि जितने भी लोगों को उस चुड़ैल ने देखा है, सब जल्द से जल्द आ जाओ। " " ठीक है पुजारी जी मैं सबके साथ आता हूँ। "मैंने फोन रखा और सबको बता दिया कि " हम सबको आज ही देहरादून के लिए निकलना होगा। "मैंने इतना कहा ही था कि मेरे हाथ में बहुत तेज दर्द हुआ और खून निकलने लगा जैसे किसी ने कील चुभा दी हो। सब मुझे ऐसे देखकर डर गए और भैया मेरे पास हनुमान जी की एक तस्वीर लेकर बैठे रहे और बाकी सभी लोग चलने की तैयारी करने लगे।हम सब रात के आठ बजे तक मेरे क्वार्टर पर पहुंच गए सुबह से अब तक हम मैं इतने परेशान हो गया कि सोचा बस पाँच मिनट आराम कर लूँ फिर महात्मा जी के पास जाउंगा। पर मुझे नींद आ गई और जब मैं जागा तो हर तरफ अंधेरा था, चिता जलने की बदबू आ रही थी और जैसे ही अपने बायी तरफ देखा, होश उड़ गए, वह चुड़ैल पुजारी जी का सिर पकड़े हुए थी और उसके चेहरे पर खून लगा हुआ था। उसने वह कटा हुआ सिर मेरे ऊपर फेंक दिया और बोली " हम मंदिर के अंदर नहीं जा सकते तो क्या हुआ हम उस पुजारी को छल से बाहर तो बुला सकते हैं न...... देख तेरी मदद करने वाला मर चुका है......तू महात्मा के पास जाना चाहता है न, हम तुझे इतनी आसानी से नहीं जाने देंगे, तू हमारा गुनाहगार है, तूने हमारा खून किया है...... हम अपने कातिल को ऐसे ही नहीं छोड़ देंगे..... हम तुझे तड़पा तड़पा कर मारेंगे "आज मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई, यह क्या कह रही है, मैंने तो कभी किसी भी एन्काउंटर में किसी औरत को नहीं मारा है तो मैंने इसे कब मार दिया। मैं अभी सोच ही रहा था कि उसने उस काले पुतले का हाथ मोड़ दिया और मुझे लगा जैसे किसी ने मेरा हाथ मोड़ दिया है। वो अब उस पुतले का गला पकड़कर मोड़ने ही वाली थी कि तभी भैया कमरे में आए और मुट्ठी भर मंदिर की रोली उसके ऊपर फेंक दी और वह चीखती चिल्लाती पुतला लेकर गायब हो गई और भैया और सभी लोग मुझे लेकर मंदिर चल दिए जहाँ महात्मा जी हमारा इंतजार कर रहे थे। भैया ड्राइव कर रहे थे और मैं उनके साथ आगे बैठा हुआ था और माँ पापा और भाभी पीछे बैठे हुए थे, तभी फिर से चिता जलने जैसी बदबू आने लगी और मैंने सबसे पहले भाभी को देखा पर उनके हाथ पर तो हनुमान जी का पवित्र धागा बंधा हुआ था यह देखकर मुझे कुछ शांति आई कि चलो सब सेफ हैं, पर मैं गलत था जैसे ही मेरा ध्यान माँ पर गया मुझे बहुत बड़ा झटका लगा माँ की आँखें लाल हो गई थी और उन्होने पीछे से मेरा गला पकड़ लिया और बोली " मैं तुझे नहीं छोडूँगी तूने मेरी जान ली है " मैंने बहुत हिम्मत जुटाकर कहा " मैंने तुम्हें नहीं मारा तुम्हें जानना तो दूर मैं तो तुम्हारा नाम तक नहीं जानता तो मैं तुम्हें कैसे मार सकता हूँ? " तभी वह चिल्लाकर बोली " तेरा आज नहीं तेरा कल जुड़ा है हमसे, यह राज है अतीत का, तूने ही हमारी जान ली है हम तुझे नहीं छोडेंगे " तभी भैया का ध्यान भटक गया और हम बाल बाल बचे, भाभी ने अपने हाथ का धागा माँ के हाथ में बाँध दिया, माँ बेहोश हो गई और वह चुड़ैल चीखते हुए गायब हो गई। कुछ देर बाद भैया से स्टीयरिंग छूट गया और उनकी आँखें लाल होने लगी, गाड़ी में चिता जलने की बदबू भर गई, पर इस बार भाभी ने एक पल की भी देरी किए बिना वह अभिमंत्रित धागा भैया के हाथ पर बाँध दिया और एक बार फिर हम सभी बाल बाल बचे पर शुक्र है कि अनन्या और उसकी फैमिली जिस कार में आ रही थी उसमें चुड़ैल ने कुछ नहीं किया, इसी तरह हम लोगों ने क्वार्टर से मंदिर तक का पंद्रह मिनट का सफर एक घंटे में तय किया और आखिर हम मंदिर पहुंच गये। महात्मा जी मेरा ही इंतजार कर रहे थे। उन्होने कहा " आओ हर्षद हम तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे। "हम सभी ने उन्हें प्रणाम किया। महात्मा जी - उससे छुटकारा पाना चाहते हैं आप सब, पर उसके बारे में क्या जानते हैं आप? मैं - कुछ भी नहीं बाबा वह बस इतना ही कहती है मुझे याद रखना और फिर गायब हो जाती है। आज उसने मुझसे कहा कि मैंने उसकी जान ली है और जब मैंने उससे कहा कि मैंने उसे नहीं मारा तो वह बोली मेरा कल उससे जुड़ा हुआ है । महात्मा जी - उससे छुटकारा पाने के लिए पहले हमें उसके बारे में सब कुछ पता करना होगा तुम्हारे अतीत में जाकर। मैं - पर बाबा अगर मैंने उसकी जान ली है तो मेरा मर जाना ही ठीक है क्योंकि जब मेरी वजह से उसकी जान गयी है तो मुझे भी जीने का कोई हक नहीं है। मैंने कहा ही था कि अनन्या चिल्ला पड़ी " तुम पागल हो गए हो हर्षद? "माहत्मा जी - शांत हो जाओ बेटी हम कुछ भी अनिष्ट नहीं होने देंगे। अगर इससे सच में किसी की जान लेने का महापाप हुआ है तो महाकाल स्वयं इसका काल बन जाएंगे और यदि वह चुड़ैल झूठ बोल रही है तो वह ईश्वर के तेज मात्र से ही भस्म हो जाएगी। बेटा तुम बातों की गहराई समझ नहीं रहे हो यदि उस चुड़ैल को तुमसे कोई बैर होगा तब वह तुम्हें झूठ बोलकर भी तो मार सकती है, हमें धैर्य से काम लेना होगा वरना यह गुत्थी सुलझने की जगह और उलझ जाएगी। बाबा ने बहुत धीरज से सबको समझा दिया। मैं - जी बाबा जैसा आप कहें। महात्मा जी ने एक कागज पर कुछ लिखा और अपने शिष्य राघव को देते हुए कहा " यह सामान जल्द से जल्द लेकर आओ। "महात्मा जी - हर्षद तुम मुझे उस चुड़ैल से मिलने से लेकर आज तक की हर बात बताओ। मैंने बाबा को शुरू से अब तक की एक एक बात बता दी। महात्मा जी - बेटा पहले हमें एक यज्ञ करना होगा जिसमें तुम आहूति दोगे और उसी से उस चुड़ैल का सच पता चल पाएगा।मैं - ठीक है बाबा आप जो कहेंगे मैं सब करने के लिए तैयार हूँ बस हम सबका उस चुड़ैल से पीछा छुड़वा दीजिए।महात्मा जी - हमें यह यज्ञ रात के तीसरे पहर में करना होगा, तब तक आप सभी यहीं मंदिर में बैठकर आराम कर लीजिए, ध्यान रहे चाहे कुछ भी हो जाए कोई मंदिर से बाहर नहीं निकलेगा।हम सभी मंदिर में ही आराम करने लगे और मैं तो सो ही गया इतने वक्त से चिंता ने घेर रखा था, नींद तो आती ही। कुछ घंटों बाद हम सब जाग गए और यज्ञ के लिए तैयार होकर बाबा के पास पहुंचे। वहाँ बाबा पहले से ही मौजूद थे, वे एक बड़े से हवन कुंड के सामने बैठे थे और राघव उनके पीछे कुछ नारियल, हवन सामग्री, कपूर, घी, पेन और कागज आदि लेकर बैठा हुआ था। महात्मा जी - आप सभी लोग दाँई तरफ बैठ जाइये क्योंकि इस यज्ञ में सिर्फ हर्षद ही आहूति देगा और इस हवन के दौरान किसी को कुछ भी नहीं बोलना है, अन्यथा हमें यही यज्ञ दोबारा से करना होगा। बाबा ने सबको समझाते हुए कहा। बाबा ने आँखें बंद करके हवन करना शुरू किया और मैं आहूति देने लगा, पूरे मंदिर में हवन की आवाज गूँजने लगी। कुछ देर बाद बाबा ने राघव की तरफ हाथ बढ़ाया तो उसने उन्हें नारियल पकड़ा दिया, उस नारियल को पहले उन्होने मेरे सिर से लगाया, फिर अपने सिर से लगाने के बाद हवन की अग्नि में डाल दिया। उन्होने फिर से राघव की तरफ हाथ बढ़ाया तो उसने उन्हें कागज और पेन दिया और वे आँखें बंद करे हुए ही कागज पर कुछ लिखने लगे। लिखने के बाद उन्होने आँखें खोल दीं।महात्मा जी - हर्षद तुम्हारा इस पन्ने पर लिखे हर एक शब्द से एक नाता है पर पहले तुम हमे बताओ क्या तुम इनमें से किसी भी शब्द से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हो। बाबा ने मुझे वह कागज देते हुए कहा। मैंने देखा उस काजग पर 10 शब्द लिखे हुए थे। पंद्रहवीं शताब्दी हारांगुलकाला जादूडायनविश्वास राव धारा आग बदलाचुड़ैल आत्मायह सब पढ़कर मैं कुछ असमंजस में पड़ गया क्योंकि यह शब्द तो लगभग सभी लोग अपनी जिंदगी में एक दो बार तो सुन ही चुके होते हैं। मैं - बाबा यह शब्द तो लगभग सभी अपनी जिंदगी में एक बार तो सुन ही चुके होते हैं फर इन सब से मेरा क्या नाता? महात्मा जी - इन शब्दों से अपना नाता जानने के लिए पहले तुम्हें इन शब्दों के पूर्ण अर्थ को जानना होगा। तो बताओ क्या जानते हो तुम इन शब्दों के बारे में? मैं - बाबा, पंद्रहवीं शताब्दी, विश्वास राव, धारा और हारांगुल के बारे में मैं कुछ नहीं जानता। काले जादू के बारे में भी मैं कुछ नहीं जानता बस इतना जानता हूँ कि यह बहुत खतरनाक होता है। डायन, चुड़ैल, आत्मा यह सब तो भूत होते हैं बस और इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं जानता। मेरा जवाब सुनकर बाबा हँसने लगे और बोले " बेटा तुम इस सब के बारे में कुछ नहीं जानते, हम समझाते हैं । "हम सभी उनकी बात ध्यान से सुनने लगे। महात्मा जी - बेटा सबसे पहले हम तुम्हें काले जादू के बारे में बताते हैं। वैसे देखा जाए तो इसे काला जादू कहना भी गलत है, यह तो तंत्र की एक विद्या है, भगवान शिव का अपने भक्तों को दिया हुआ एक वरदान है। तंत्र विज्ञान के नजरिए से देखा जाए तो यह एक बहुत ही दुर्लभ प्रक्रिया है जिसे विशेष परिस्थितियों में ही अंजाम दिया जाता है। इसे करने के लिए बहुत ही ऊँचे स्तर की विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। प्राचीन काल में इसे सिर्फ अच्छे कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इसमें गेहूँ, उड़द और बेसन जैसी खाने की वस्तुओं से बनी मूर्ती को व्यक्ति के बाल लगाकर जागृत किया जाता था और उस रोगी के शरीर के प्रभावित हिस्से में सुइयां गड़ाकर सकारात्मक ऊर्जा भेजी जाती थी और रोगी ठीक हो जाता था। यही कारण है कि इसे रेकी और एक्यूप्रेशर का मिश्रण भी कहा जाता है। इस विद्या में अपनी आध्यात्मिक शक्ति से किसी को जीवन भी दिया जा सकता है। मैं - तो फिर लोग इसे अपने स्वार्थ के लिए, गलत कामों के लिए इस्तेमाल कैसे कर लेते हैं? महात्मा जी - कुछ स्वार्थी लोगों ने इस प्राचीन विद्या को समाज के सामने गलत रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया। जिस तरह से तंत्र की इस विद्या से सकारात्मक ऊर्जा से दूर बैठे व्यक्ति को ठीक किया जाता है उसी तरह इस विद्या से नकारात्मक ऊर्जा से किसी को हानि भी पहुंचाई जा सकती है, जिस तरह इस विद्या से किसी को जीवन दिया जा सकता है उसी तरह इस विद्या से किसी का जीवन लिया भी जा सकता है। काला जादू ऊर्जा का एक समूह या झुंड है।इसे हम विज्ञान के लॉ आॅफ कंज़र्वेशन आॅफ ऐनर्जी से समझ सकते हैं मतलब कि ऊर्जा को न ही बनाया जा सकता है और न ही मिटाया जा सकता है, बस इसके स्वरूप को एक से दूसरे में बदला जा सकता है। सनातन धर्म का अथर्ववेद सिर्फ सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के लिए ऊर्जाओं के इस्तेमाल को समर्पित है। कुछ बुरे लोगों ने इस अच्छी विद्या का दुरुपयोग किया और तभी से इस विद्या को काला जादू कहने कहने लगे। मैं - इसे वुडू भी कहते हैं न शायद? मुझे लगा यह मेरे ऐसा कहने से शायद बाबा समझें कि मुझे भी थोड़ी समझ है। महात्मा जी - नहीं काले जादू और वुडू में बहुत सी समानताएं हैं परन्तु यह एक नहीं है। काला जादू तो कई सदियों से इस पृथ्वी पर है पहले एक अच्छी तंत्र विद्या के रूप में फिर काले जादू के रूप में। वुडू तो अफ्रीका में सन् 1847 में अस्तित्व में आया। माना जाता है कि एरजूली डेंटर नाम की वुडू देवी एक पेड़ पर अवतरित हुई थी जिसे सुंदरता और प्रेम की देवी मानते हैं। उसने अपने जादू यानि कि वुडू से वहाँ के काफी सारे लोगों की बीमारियां दूर की थी। एक कैथोलिक पादरी को यह सब पसंद नहीं आया तो उसने इस विद्या को बुरा साबित करके उस पेड़ को कटवा दिया, स्थानीय लोगों ने वहाँ देवी की मूर्ति बनाई और पूजा करने लगे पर जैसे काले जादू का गलत इस्तेमाल हुआ, उसी तरह वुडू का भी गलत इस्तेमाल हुआ और लोग इन दोनों तरह के जादुओं से डरने लगे। मैं - पर बाबा लोगों ने इसका गलत उपयोग कैसे कर लिया और जब यह दोनों जादू ही भगवान की देन हैं तब तो इसका गलत उपयोग असंभव था, फिर ऐसा कैसे हुआ? मैं चौंक गया था यह जानकार कि कोई भगवान की देन का भी दुरुपयोग कर सकता है। महात्मा जी ने राघव से तीन गिलास पानी के मंगाए और एक गिलास से पानी पिया।फिर उन्होने पास ही रखे काँच के टुकड़े एक गिलास के पानी में मिला दिए ।महात्मा जी - बताओ हर्षद तुम किस गिलास का पानी पी सकते हो? मैं - पहले वाले का। मुझे बाबा की बात पर कुछ गुस्सा आ गया क्योंकि मेरा सवाल कुछ और था और उन्होने जवाब देने की जगह एक नया सवाल दाग दिया था। महात्मा जी - नहीं बेटे, तुम पानी तो दोनों ही गिलास का पी सकते हो परन्तु इसका फल अलग अलग होगा। यदि तुम पहले गिलास का पानी पियोगे तो तुम्हारी प्यास बुझेगी और शांति मिलेगी पर यदि तुम दूसरे गिलास का पानी पियोगे तो इसमें पड़े काँच के टुकड़ों से तुम्हारे मुंह में घाव हो जाएंगे और तुम अधिक परेशान हो जाओगे। ठीक उसी तरह भगवान की अलग अलग तरह से आराधना करने के फल भी अलग अलग होते हैं। बाबा ने बहुत अच्छी तरह से अपनी बात हम सबको समझा दी। तभी भाभी बोलीं "बाबा मुझे किसी के रोने की आवाज आ रही है, कहीं कोई मुसीबत में तो नहीं " तब बाबा ने कहा " नहीं बेटी अब अगर प्रलय भी आ जाए तो भी हमें यहाँ से कहीं नहीं जाना है वरना वह चुड़ैल किसी को भी जीवित नहीं छोड़ेगी "मैं - बाबा इसमे ऐसा प्रयोग करते हैं जो यह इतना भयानक हो जाता है? महात्मा जी - इसमें कई तरह की चीजें प्रयोग की जाती हैं। काले जादू में बहुत चीजें काम आती हैं जैसे लोहे की आलपिन, लाल व हरी मिर्च, नीबू, सरसों, तिल, तेल, मुर्गे और गेहूँ, उड़द और बेसन जैसी खाने की वस्तुओं से बनी मूर्ती आदि।वहीं वुडू में काले कपड़े की गुड़िया या पुतला और तेंदुआ, मगरमच्छ, बंदर, ऊँट, लंगूर, बकरी आदि के अंग मुख्य रुप से काम में लिए जाते हैं। मैं - पर बाबा इस सब में मैं कैसे शामिल हुआ पंद्रहवीं शताब्दी में तो मेरा कोई नामोनिशान तक नहीं था फिर वह चुड़ैल मेरे पीछे क्यों पड़ी हुई है? महात्मा जी - काले जादू की सबसे क्लिष्ट प्रक्रिया है डायन बनना या बनाना। तुम हारांगुल के बारे में नहीं जानते न, हारांगुल लातूर जिले में एक छोटा सा गाँव है जहाँ पर पहली बार डायन प्रथा शुरू हुई थी।हारांगुल में ईरावती नाम की एक औरत थी जो हर रोज काला जादू करती, तंत्र क्रियाएं करती और रात को मुर्गे का खून पीती, पाँच सालों तक यही सब चलता रहा। एक दिन उसी गाँव का एक युवक रात को कहीं से लौटकर गाँव आ रहा था और तभी उसके सामने ईरावती आ गई और अपनी शक्तियों से उसे हवा में उछाल कर एक पेड़ पर लटका दिया फिर उसके सामने आकर उसके खून की एक एक बूँद पी गई और उसके शरीर से पूरा माँस खा लिया, अब उस युवक की सिर्फ हड्डियाँ ही बची थीं। उसके कंकाल को लेकर वह तीन दिनों तक कोई तंत्र क्रिया करती रही, न अपने झोंपड़े से बाहर निकलती न किसी को दिखती। जब तीन दिनों बाद वह अपनी झोंपड़ी से बाहर निकली तो वह पूरी तरह से एक डायन बन चुकी थी। डायनों की एक और बात होती है, वे जिस जिस को अपने माया जाल में फंसाती हैं उन सबकी उम्र खा लेती है और खुद जवान बनी रहती हैं। ईरावती ने भी गाँव के भोले भाले किशोरों को, युवकों को अपने माया जाल में फंसा लिया और उनकी उम्र खाने लगी।गाँव में हो रही इन रहस्यमय मौतों के कारण लोग हर वक्त गुट बनाकर रहने लगे। कोई भी कभी भी किसी भी काम के लिए अकेला नहीं जाता था । एक दिन ऐसे ही गाँव के कुछ लोग झुंड में एक मेले में खरीददारी करने जा रहे थे, पर उनकी बदकिस्मती और ईरावती की खुशकिस्मती, ईरावती उनके सामने आ गई और उन सबका खून पीकर, उनके माँस को खा कर उनकी उम्र भी खा गई । अब तक ईरावती को यह सब भयानक कार्य करते हुए दस साल हो गए थे और अब ईरावती के साथ साथ गाँव की अन्य औरतें भी ताकत, सुंदरता और जवान बने रहने की चाह में डायन बन गई। अब गाँव में पहले से भी बहुत ज्यादा मौतें होने लगी। डायनें अब दिन दहाड़े लोगों को अपने माया जाल में फंसाती उनका खून पीती, माँस खातीं और उनकी उम्र खा लेती यहाँ तक कि उन्होने अपने घरों को भी नहीं छोड़ा।जो गाँव वाले अब तक कुछ नहीं समझ पा रहे थे अब समझ गए कि गाँव में होने वली इन सब मौतों के पीछे कोई और नहीं बल्कि गाँव की औरतें ही हैं जो डायन बन चुकी हैं पर वे सीधे सादे गाँव वाले इसका कोई उपाय नहीं जानते थे। उन्हें लगा उनके पास न सही उनके महाराज विश्वास राव के पास इस समस्या का जरूर कोई समाधान होगा। वे जब अपने महाराज विश्वास राव के पास पहुंचे और उन्हें अपनी समस्या बताई कि महाराज हमारे गाँव में डायनें घूम रही हैं, किसी भी समय किसी न किसी को मार डालती हैं। तो उन्होने कहा कि वे जल्द से जल्द इस समस्या का निवारण ढूँढेंगे। विश्वास राव दिन रात महात्माओं की खोज करते रहे कि शायद कोई महात्मा मिल जाए जो इस समस्या का उपाय बताए परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। मैं - बाबा डायनों की तो चोटी काटकर भी बचा जा सकता है न? और विश्वास राव के बारे में इतिहास में कुछ क्यों नहीं है? मैं फिर बीच में बोल पड़ा। मेरे इतना बोलते ही बाबा जोर से हँसने लगे।महात्मा जी - बेटा लगता है तुम चलचित्र बहुत देखते हो। अरे यह सब तो चलचित्रों में दिखाते हैं असलियत इससे कहीं दूर है, खैर तुम आगे सुनो, सब समझ जाओगे। विश्वास राव के बारे में इतिहास इसलिए नहीं जानता क्योंकि उन्हे ऐसा कोई बड़ा कार्य करने का अवसर ही नहीं मिला। विश्वास राव की दो रानियाँ थीं धारा और आख्या। जहाँ आख्या घरेलू कार्य और पाक कला में महारथ हासिल थी वहीं धारा राजकाज को भी बखूबी जानती थी और इसीलिए विश्वास राव अपने सभी फैसलों में धारा की राय जरूर लेते थे। इस बार भी उन्होने धारा से डायनों से बचने के बारे में बात की तो धारा ने कहा कि उसे इस सब के बारे में कोई ज्ञान नहीं है।तब विश्वास राव ने अकेले ही महात्माओं को ढूँढने में दिन रात एक कर दिए और पंद्रह दिन के बाद उन्हें एक महात्मा मिले जिनसे उन्होने अपनी और अपने गाँव वालों की समस्या कही। तब उन महात्मा ने कहा कि डायनों को काले जादू में महारथ हासिल होती है इन्हें बल से कदापि नहीं मारा जा सकता है, इन्हें सिर्फ और सिर्फ जलाकर मारा जा सकता है और इतना ही नहीं, इनकी अस्थियों को, राख को तीन अलग अलग जगहों पर गाढ़ा जाना चाहिए और किन्हीं भी दो डायनों की अस्थियां और राख आस पास नहीं होनी चाहिए वरना यह वापस अपनी शक्तियां पा सकती हैं। महात्मा जी के आदेशानुसार सभी गाँव वालों ने डायनों को फंसाने का एक रास्ता निकाला। गाँव का एक युवक ईरावती के पास गया और उससे कहा मैं भी पिशाच बनना चाहता हूँ मुझे भी ताकतवर बनना है तब ईरावती और अन्य डायनें उसे लेकर जंगल में गयी और कहा सबसे पहले तुम्हें शिकार करके खून पीना होगा। इस तरह से वह युवक ईरावती और अन्य डायनों को एक जंगल की तरफ़ ले गया वहाँ मौजूद विश्वास राव और हारांगुल गाँव वालों ने उन डायनों को एक एक पेड़ से बाँधकर जिंदा ही जला दिया और उनकी अस्थियों और राख को तीन अलग अलग जगहों पर गाढ़ आए यहाँ तक कि एक दूसरे को भी नहीं बताया कि कौन किसकी अस्थियाँ कहाँ गाढ़ कर आया है।कुछ समय तक सब शांत रहा।अचानक एक दिन गाँव के कुछ लोग मारे गए और उनकी लाशें भी नहीं मिली। विश्वास राव को इस बारे में जैसे ही पता चला वो वापस उन महात्मा को ढूँढने चले गए और इस बार उन्हें साथ लेकर ही लौटे।महात्मा जी ने दो अभिमंत्रित लाल मिर्चें निकाली और विश्वास राव से कहा कि महाराज रात बारह बजे के बाद आप अकेले इन मिर्चों को पकड़कर पूरे गाँव में प्रत्येक घर के आगे कुछ क्षण रुकिएगा और जहाँ मिर्चें काली हो जाएं समझ लीजिए वहीं डायन का वास है। विश्वास राव ने अकेले पूरे हारांगुल गाँव का चक्कर लगा लिया पर कहीं भी मिर्चें काली नहीं हुई। विश्वास राव आकर मिर्चें महात्मा जी को देने ही वाले थे कि तभी मिर्चें काली हो गई। महात्मा ने कहा क्षमा करें महाराज डायन राजमहल में है, आप जल्द से जल्द उसे खोजिए। विश्वास राव ने पूरा महल देखा और अंत के कक्ष में गए तो देखा एक औरत काले कपड़े पहने हुए जमीन पर बैठी है, उसकी पीठ महाराज की तरफ थी, उसके आस पास काफी सारे कंकाल पड़े हुए थे, कहीं कहीं कटे हुए मुर्गे पड़े हुए थे, आस पास खून ही खून था, कुछ छोटी छोटी मूर्तियां इधर उधर पड़ी हुई थी। विश्वास राव महात्मा जी को बुलाने गए और जब तक वो दोनों वहाँ पहुंचे वहाँ कोई नहीं था। बस वहाँ पर किसी औरत के गहने पड़े हुए थे। जब विश्वास राव ने उन गहनों को देखा तो वे उन गहनों को पहचान गए और बोले यह गहने मेरी पत्नी के हैं, तो क्या आख्या डायन है?तब महात्मा जी ने कहा महाराज हमें देर नहीं करनी चाहिए वरना हारांगुल में कोई भी जीवित नहीं बचेगा। विश्वास राव ने न चाहते हुए भी अगली सुबह सभी गाँव वालों को बुलाकर आख्या को एक पेड़ से बाँधकर जिंदा जला दिया और उसकी अस्थियों और राख को तीन अलग अलग जगहों पर गाढ़ आए। परन्तु गाँव में मौतें होना बंद नहीं हुआ तब फिर विश्वास राव ने महात्मा जी को बुलाया और पूरे गाँव और अपने महल में देखा तो उन्हें अपने महल में उसी कमरे में मुर्गे को खाती हुई एक औरत दिखी, जब विश्वास राव सामने गए तो देखा कि वह कोई और नहीं बल्कि धारा थी, उसके मुँह पर खून लगा हुआ था। विश्वास राव ने उसे पकड़ लिया और उससे पूछा कि उसने यह सब क्यों किया क्या आख्या का आघात कम था जो उसने भी डायन बनना स्वीकार कर लिया। तब धारा बोली अरे मूर्ख राजा तू क्या प्रजा को चलाएगा जब तू अपनी पत्नियों को ही नहीं पहचान पाया, आख्या तो कभी इस प्रकिया में शामिल थी ही नहीं। उसके गहने हमने वहाँ रखे थे ताकि हम तुम सब का ध्यान भटका सकें और डायन बन सकें पर अफसोस तुम्हें सब पहले ही पता चल गया। विश्वास राव ने सुबह पूरे गाँव के लोगों को इकट्ठा करके धारा को एक पेड़ से बाँध दिया और कहा तुमने हमारे हाथों एक मासूम की जान ली है, इस गाँव के न जाने कितने मासूमों को मार दिया, अब तुम्हें भी मरना होगा और इतना कहकर विश्वास राव ने धारा की ओर मशाल फेंक दी। धारा जलने लगी।मैं - पर बाबा इस सब में मैं कैसे फंस गया मैं अभी तक नहीं समझ पा रहा हूँ। धारा, आख्या और विश्वास राव इन सब से मेरा क्या नाता?महात्मा जी - बेटा तुम इतने अधीर क्यों हो रहे हो? सब्र रखो सब सच जान जाओगे। ‹ Previous Chapterमुझे याद रखना - 4 › Next Chapter मुझे याद रखना - 6 Download Our App