Murga in Hindi Comedy stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | मुर्गा

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मुर्गा

"कूकडू --कू--------?
सरदार तारासिंह यात्रियों के टिकट चेक कर रहा था,तभी उसे मुर्गे कीआवाज सुनाई पडी। आवाज सुनकर तारासिंह समझ गया, कोई यात्री मुर्गा साथ लेकर ट्रेन मे सफर कर रहा है।
"मुर्गा किसके पास है?"तारासिंह ने नजरें घुमाकर चारों तरफ देखा था, लेकिन कोई नहीं बोला।तब वह स्वयं मुर्गे की तलाश मे जुट गया।कुछ प्रयास के बाद उसने मुर्गा साथ लेकर चल रहे यात्री को खोज निकाला।तारासिंह यात्री के पास जाकर बोला,"कया नाम है तुम्हारा?"
"रहमान"।उस यात्री ने अपना नाम बताया था।
"मुर्गे को अपने साथ लेकर यात्रा नही कर सकते।"
"बाबूजी रिश्तेदारी मे आगरा आया था।मुर्गा पसंद आ गया, तो बलि के लिये खरीद लिया।"
"यह तो तुमने बहुत अच्छा किया, लेकिन मुर्गा साथ लेकर यात्रा नहीं कर सकते।ब्रेक मे बुक कराकर ही मुर्गा अपने साथ ले जा सकते हो।"तारासिंह उसे समझाते हुए बोला।
"बाबूजी एक ही मुर्गा है।इसे ब्रेक मे कया बुक कराता।छोटा सा जीव है।इसकी वजह से किसी भी यात्री को कोई परेशानी नहीं होगी।मेरे साथ डिब्बे मे चला जायेगा।"
"नियमानुसार मुर्गा अपने साथ नहीं ले जा सकते",सरदार तारासिंह ने रसीद बुक और भाडा सूची निकाली और हिसाब लगाकर बोला,"डेढ़ हजार रुपये दो।"
"डेढ़ हजार रूपये?"सरदार तारासिंह की बात सुनकर रहमान चौका था,"मुर्गा केवल तीन सौ रूपये का है और किराया डेढ़ हजार?"
"मूर्गा चाहे पैसों का हो या फ्री का।अपने साथ बिना बुक कराये ले जा रहे हों।अब तुम्हें छ गुणा किराया देना होगा।"
"बाबूजी डेढ़ हजार रुपये बहुत है।सौ दोसौ रुपये ले लो।"रहमान हाथ जोडते हुए बोला।
"डेढ हजार से एक पैसा कम नहीं लूगाँ,"सरदार तारासिंह बोला,"जितने पैसे लूगाँ उतने की रसीद दूगां।"
"बाबूजी, मुझे रसीद का कया करना है?"
रहमान एक ही रट लगाए था।वह मुर्गा बलि के लिए ले जा रहा है।वह दौ तीन सौ रूपये देने को तैयार था, लेकिन डेढ़ हजार रुपये की रसीद कटाने के लिए तैयार नहीं था।उसे पैसे देने मे आनाकानी करते देखकर तारासिंह बोला,"या तो तुम चुपचाप डेढ़ हजार रुपए निकाल लो नही तो मुझे पुलिस को बुलाना पडेगा।"

तारासिंह की बात सुनकर रहमान अजीब धर्म संकट मे फस गया।टी टी ई डेढ़ हजार रुपए मॉग रहा था।तीन सौ रुपए के मुर्गे के डेढ हजार रुपए मॉग रहा था।अगर मुर्गा ले जाना है,तो डेढ़ हजार रुपए देने होंगे।अगर उसने पैसे नहीं दिए, तो टी टी ई पुलिस को बुला लेगा।
कया करे वह?वह मुर्गा बलि लेने के लिए हैदराबाद ले जा रहा था।उसने सोचा भी नही था।मुर्गा साथ ले जाने पर ऐसी परेशानी आयेगी।जब मुर्गे की बलि ही देनी है,तो कया वहां, कया यहां।रहमान के दिमाग मे उथल पुथल मची थी।रहमान ने मन ही मन मे निर्णय किया।फिर मुर्गा हाथ मे उठाया और खिडकी से बाहर उछाल दिया।तेज रफतार से दौड़ रही ट्रेन की खिडकी से बाहर उछलते ही मुर्गा न जाने कहां ऑखो से ओझल हो गया।
"लाओ डेढ़ हजार रुपए दो।"सरदार तारासिंह रसीद बनाकर बोला।
"डेढ़ हजार रुपए",रहमान बोला,"काहे के पैसे आप मॉग रहे है?"
"मुर्गे का किराया।"
"लेकिन बाबूजी मेरे पास मुर्गा है कहां।जब मुर्गा है ही नही, तो किराया काहे का?
डिब्बे मे यात्रा कर रहे अन्य यात्री,जो अभी तक मूक दर्शक बने बैठे थे।वे भी बोले,"जब सरदार जी जब इसके पास मुर्गा है ही नही, तो किराया कयो देगा?"
तारासिंह मन मसोस कर रह गया।हाथ मे आया केस निकल जो गया था