Jini ka rahashymay janm - 5 in Hindi Fiction Stories by Sohail Saifi books and stories PDF | जीनी का रहस्यमय जन्म - 5 - अहंकार

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जीनी का रहस्यमय जन्म - 5 - अहंकार


इस घटना ने लोगों के प्रति बालक की सद्विचार भावना को दुर्विचार भावना में परिवर्तित कर दिया। और वो वापिस गुफा में आ गया

किशोर अवस्था मे मानव मन दहकते लोहे समान होता हैँ | जिसमे जीवन भर की सबसे अधिक तपिश होती हैँ पर आकार नहीं,


उसका आकार आस पास के लोगों के व्यवहार पर निर्भर करता हैँ | और यही बात उसके व्यक्तित्व को बनाती हैँ,



इस जहरिली घटना ने बालक का मन लोगो के प्रति घृणा से भर दिया, अपनी किशोर अवस्था से ले कर अधेड उम्र तक उस ने कई क्रूर हिंसक डाके डाल कर लोगो के मन मे स्वम का भयंकर भय उत्पन्न कर दिया,


उसने अपना एक मजबूत खुंखार और दरिंदो से भरा एक विशाल समूह बनाकर चारों ओर दहशत और आतंक का राज स्थापित किया,



साधारण लोगो के बिच वो चालीस डाकू या चालीस चोरो के नाम से प्रसिद्ध हुए और आगे चल कर वो पूरा समूह एक अली बाबा नाम के लकड़हारे के हाथों मारा गया लेकिन उनका मरना हमारी कहाँनी का अंत नहीं था बल्कि एक नई कहानी का जन्म था


अहंकार


एक छोटे से गॉव मे एक छोटा सा कबिला था | जादूगरो का कबिला,


किसी जमाने मे कुछ लोग अद्धभुत शक्तियों के स्वामी जादूगर हुआ करते थे जिनका दूर दूर तक लोग सम्मान करते थे,


उनके पास असीम शक्तियां होती थी जिसका उन लोंगो ने कभी भी दूर उपयोग नहीं किया, वो तो केवल लोगो के मनोरंजन तक ही सिमित रहते थे,


धीरे धीरे उनकी नई नस्ले पैदा हुई लेकिन प्रत्येक पीढ़ी की शक्ति अपने पिता की तुलना मे कम होती गई,


और एक समय ऐसा आया के एक ऐसी पीढ़ी का जन्म हुआ जो साधारण मानव शक्ति रखती थी और वर्तमान मे दो पीढ़ियों से अधिक हो चुके थे उस कबिले के लोगो को अपनी शक्तियां खोए हुए,



उनके बिच कुछ ज्ञानियों ने एक भविष्य वाणी कर रखी थी के एक दिन उनके पूर्वजो की सम्पूर्ण शक्तियों वाला बालक इस कबीले मे जन्म लेगा,



सदियों से प्रत्येक मानव सभ्यताओं मे ऊंच नीच का चलन चलता आया हैँ।

इस प्रकार की व्यवस्था से ये कबीला भी अछूता नहीं रह सका।



इस कबीले मे पांच मुखिया थे, पांचो मुखिया का मानना था के पुरे कबीले मे केवल यही पांच परिवार हैँ जिनके भीतर उनके पूर्वजो का सबसे अधिक शुद्ध रक्त हैँ, यदि इस कबीले मे भविष्य मे अद्भुत शक्तियों के साथ किसी का जन्म हो सकता हैँ तो केवल इन पांच परिवार मे से एक मे मगर उसके लिए इन सभी परिवार को सावधानी बऱतनी होंगी के इनका रक्त शुद्ध रहे इसके लिए पांचो परिवारों मे तय हुआ के पांचो एक दूसरे के अतिरिक्त किसी और से विवहा नहीं करेंगे


खेर आज भी कबीले मे जादू द्वारा लोगो का मनोरंजन होता है बस अंतर इतना है| के जादू की जगह हाथ की सफाई ने ले ली थी



उस बड़े से कबीले की जीविका का ये एक मुख्य आधार हैँ |

पंचो मे एक गरी पंच नाम का सबसे अधिक अहंकारी मुखिया था बाकियो की तुलना मे इसमें ऊंच नीच के भाव अधिक थे। इसी की तरह इसकी एक पुत्री और एक पुत्र था।


पुत्री बेहद रूपमती थी उसका सौंदर्य उसकी चंचलता पुरे कबीले मे प्रसिद्ध थी बाकि के चार मे से दो सरपंच ऐसे थे जो उस रूपमती को अपने अपने घर की बहु बनाना चाहते थे दोनों पंचो के पुत्र सौंदर्य और गुणों मे एक से बढकर एक थे इसलिए गरी के लिए चुनाव करना बड़ा कठिन हो रहा था



इसी कबीले मे सतु नाम का 18 वर्ष का एक युवक अपनी बूढ़ी माता के साथ रहता था,ये अपने माता पिता की वर्षो की मन्नतो के बाद जन्मा एक लोता लड़का था बहुत छोटी उम्र मे ही सतु ने अपने पिता को खो दिया था,


सतु की माता अपना और सतु का पालन पोषण करने के लिए गरी पंच के यहाँ झाड़ू करकट का काम करती थी जिसके चलते सतु का उस घर मे आना जाना बचपन से ही समान्य था


सतु बेहद ही शरारती मिजाज का युवक था वो अपने नटखट पन से सबको खूब हसाता, अनुपमा गरी की पुत्री का नाम था सतु अनुपमा के रूप पर देखते ही मुग्ध हो गया था वही अनुपमा पहले पेहल तो सतु को केवल मनोरंजन के योग्य मानती थी किन्तु युवा होने के बाद जब उसने अपना अनुपमा के घर आना जाना कम कर दिया, तो उसको सतु की कमी खलने लगी, और इस बात का आभास अनुपमा को होने लगा, वो सतु से प्यार करने लगी थी। सतु अनुपमा से कितना भी प्रेम करता हो मगर वो जानता था के उनका विवाह होना असंभव हैँ। तो उसकी नज़र मे दुरी बना लेना उचित था परन्तु अनुपमा के भरपूर विश्वास दिलाने पर उसको लगने लगा के उनका विवहा लोगो को स्वीकार हो जायेगा।



इसी बिच गरी को इन दोनों के बारे मे पता चल गया, इस बात ने गरी के अहंकार और स्वाभिमान को गहरी चोट पहुंचाई, गरी को ये कतई बर्दाश ना था के एक नौकरानी का बेटा उनकी लड़की से विवाह करे।


गरी की सबसे पहली गाज अनुपमा पर गिरी और थोड़ी ही मार ने उसको प्रेम सौंदर्य से मोड़ दिया और उसने सतु को छोड़ देने का वचन अपने पिता को दे दिया।



(किसी व्यक्ति से प्रेम करना या किसी व्यक्ति से आकर्षित हो जाना दोनों मे ज्यादा अंतर नहीं होता, मगर जो आत्मशक्ति और बलिदान की भावना मनुष्य के भीतर प्रेम द्वारा पैदा होती हैँ। वो आकर्षन नहीं कर सकता )



अनुपमा के भीतर सतु के लिए केवल आकर्षण था किन्तु सतु के भीतर सत्य प्रेम का वास,


इसलिए जब गरी ने सतु को बल द्वारा तोडना चाहा तो वो नहीं टुटा, सतु को गरी की इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ा के अनुपमा साफ इनकार कर चुकी हैँ वो सतु से प्रेम नहीं करती,


सतु को लगा के ये इनका झूठ हैँ। और अनुपमा 100 लोगो के बिच मे भी हमारे प्रेम को स्वीकार कर सकती
हैँ।


अंत मे गरी के पास पंचायत करने के अतिरिक्त ओर कोई चारा ना रह गया और पंचो मे उसका रुबाब अच्छा होने के कारण उसको ये तरीका अपने हक़ मे भी लगा अगले दिन पंचायत बैठी सभी पंचो की नज़र मे ये एक भयानक पाप था और अधिकतर कबीले वाले भी सतु को मन मे दोषी मान चुके थे


सतु को अभी उपस्थित किसी भी व्यक्ति से कोई आशा ना थी उसको तो अपने प्रेम अनुपमा पर विश्वास था,


अनुपमा को लाया गया पंचो ने उससे सतु की ओर इशारा करके पूछा"


क्या तुम इससे प्यार करती हो या ये तुम्हारे नाम के साथ ये घिनोना अपराध जबरन थोप रहा है।


अनुपमा सर निचा किये खामोश खड़ी थी उसकी ख़ामोशी टूटने की प्रतीक्षा पंचो के साथ साथ पूरा कबीला चुप्पी साधे कर रहा था



अनुपमा की ख़ामोशी ने गरी को संदेह मे डाल कर बेचैन कर दिया इसलिए वो खस्ता हुआ अनुपमा को जल्दी बोलने का इशारा करता है।


जिसपर अनुपमा के मुँह से घबराहट भरे स्वर मे केवल ना निकला तो पंचो मे से एक बोला" ना से तुम्हारा मतलब क्या है। साफ साफ बोलो



अनुपमा " मैं सतु से प्रेम नहीं करती,



ये शब्द सुन कर सतु के पेरो तले ज़मीन निकल गई, उसको ऐसा लगा मानो हज़ारो साँपो ने उसको एक साथ डंक मारा हो, वो निरुत्तर मुख, आँसुओ और याचिका से भरी आँखों से केवल अनुपमा को देखता ही रह गया और अनुपमा एक बार भी देखे बिना जहाँ से आई थी वही लोट गई,



पंचो मे खुसर पुसर होने लगी लोगो मे भी आपसी काना फूसि हुई जो बचे कूचे लोग अभी तक सतु के विरोध मे नहीं थे अनुपमा के बयान ने अब उनको भी सतु के विरोधियों मे मिला दिया था



निर्णय लेकर पंचो द्वारा दंड सुनाया गया, इस कार्य मे सतु की माँ को भी दोषी ठेराया गया,


सतु की बूढ़ी माँ और सतु को पूरे कबीले के सामने वस्त्रहीन करके 20 20 कोड़ो की सजा दी, उसके बाद उनको गंजा कर कबीले से बहार फिकवा दिया गया,


इस दंड के विरोध मे सतु की माँ बहुत गिड़गिड़ाई बिलख बिलख के रोई मगर किसी ने उसकी गोहार ना सुनी और कबीले से बाहर जाते ही उस बूढ़ी अभागन की सदमे के कारण मृत्यु हो गई। भले ही सतु ने अपने जीवन मे भीषण दरिद्रता देखी, भूखे रहकर दिन भी काटे, पर इतना दुख इतना शोक उसको इन सब से नही हुआ जितना आज के अपमान के कारण माता की मृत्यु से हो रहा है।








प्रतिशोध





इस अपार वेदना और दुख के समय ने सतु के भीतर कुछ ऐसा दबा हुआ उभार दिया जिसकी आशा किसी को ना थी जिसकी कल्पना भी ना की जा सकती थी


वो दबी हुई चीज कुछ और नहीं वही उनके पूर्वजो की वही शक्तियां थी जिसकी प्रतीक्षा कबीला सदियों से कर रहा था सतु को अपने भीतर उन शक्तियों का एहसास हो गया, अब उसके प्रतिशोध के लिए उसको रोक देने वाला ना ही वर्तमान में था और ना ही भविष्य में हो सकता था



पहले दो चार दिन उसने आस पास मे छुपकर अपनी शक्ति के उपयोग का अभ्यास किया उसके बाद वो फकीरो के लम्बे लिबास को पहन अपना मुँह छुपा कर कबीले मे जा पहुंचा वहा पहुंच सतु ने देखा पूरा कबीला हर्ष और उल्लास मे डूबा हुआ था चारो और उत्सव का माहौल था ! सतु के पता लगाने पर पता चला ये सारी व्यवस्था अनुपमा के विवहा के लिए हो रही है | सतु के तन बदन मे मानो ज्वाला देहक उठी... उसकी आँखों मे खून उतर आया अब उसको खुद को छुपाने का भय ना था वो छाती तान कर मंडप मे घुस गया और दुल्हन के पास जा कर चलती रस्म से खींचते हुए बोला " क्या अब भी तुम यही कहोगी तुम मुझसे प्यार नहीं करती,


सतु की हालत बिलकुल किसी भिकारी की तरह हो रखी थी जगह जगह गन्दगी और कीचड़ लगा हुआ था वही दूल्हा बना युवक सुन्दर था सजा धजा था साफ सूतरा था जिसको देख कर अनुपमा का जवाब ना निकल पड़ा,


तब तक कई लोगो ने सतु को घेर लिया और उसको लाठियों से मारने के लिए उसपर टूट पड़े प्रत्येक लाठी सतु के ऊपर चलाई तो जाती पर उसको छूने भी ना पाती उससे पहले ही पहले राख़ बन कर वही ढेर हो जाती लोगो को इस अद्धभुत नज़ारे पर बड़ा आश्चर्य होता और देखते ही देखते पूरा कबीला सतु के इर्द गिर्द खड़ा हो गया,


इस शक्ति को देख कबीले के साधारण सदस्य सतु से भय खा कर उसपर वार ना करते तो एक साथ सभी पंच अपनी अपनी तलवार लेकर सतु पर हमला करते है तो एक और अविश्वासनिय घटना घटी जो कोई भी सतु को तलवार घोपता तो तलवार घुसती तो सतु के शरीर मे, पर निकलती वार करने वाले के शरीर से,



जैसे गरी के पुत्र ने सतु की पीठ पर तलवार घोंपी पर दूसरी तरफ सतु के पेट से ना निकल कर गरी के पुत्र के पेट से बहार निकली और जब उसने तलवार खींची तो सतु के शरीर पर कोई घाव ना था बल्कि गरी के पुत्र घायल हो कर गिर पड़ा और वही तड़प कर मर गया



ये एक समय पर अकेली तलवार नहीं थी जिस से सतु पर वार हुआ था इसके साथ साथ चार अन्य लोगो ने भी वार किया था एक ने पेट मे दूसरे ने गर्दन मे तीसरे ने सीने मे और चौथे ने मुँह मे तलवार को घोपा पर उन सभी के वार ने उन सभी का वही हाल किया जो गरी पुत्र का हुआ और सतु के आस पास की धरती लहू से लतपत हो गई,



वहां उपस्थित सभी का भय से बुरा हाल हो गया था मगर गरी अभी भी सतु से ना डरा वो अब भी क्रोध से भरी साँसो को तेजी से अंदर बाहर छोड़ रहा था सतु जैसे जैसे उसके करीब आता गरी की क्रोध अग्नि और भी त्रिव होती जाती,


सतु ने जैसे ही गरी के कंधे पर हाथ रखा गरी जल कर भस्म हो गया, ये भयानक दृश्य देख कर मंडप मे उपस्थित सभी लोग यहाँ तक की दूल्हा और दुल्हन भी सतु के आगे झुक कर सजदा करने लगे,


वही सतु अहंकारी मुस्कान लिए मंडप से निकल गया और उसके निकलते ही मंडप मे हा हा कार मच गया लोग एक दूसरे को अपने नाख़ूनो से नोच नोच कर खाने लगे और मंडप से निकलती चीखे बहार खड़े सतु को परम आनंद देने लगी, देखते ही देखते पूरा मंडप शमशान मे परिवर्तित हो गया, ख़ुशी से फुला सतु जब मंडप मे दोबारा घुसा तो सब मृत पड़े थे किसी के पैरों की मास पेशी गायब थी केवल हड्डी शेष थी तो किसी का पूरा शरीर ही नोच कर कंकाल कर डाला गया था केवल एक ही व्यक्ति शेष रह गया था वो थी दुल्हन बनी अनुपमा जो अपने ही मांस को नोच कर खा रही थी ये सब देख आनंद से भर सतु वहां से चल दिया