इस जमीन से इश्क था मुझे,
यह चहल-पहल की दुनिया लुभाती थी मुझे ।
हवा की पुरवइया के साथ आंचल उड़ाती थी मैं कभी ,
फिर अपने मुख से उसे ओढ़ मुस्कुराती थी मैं कभी ।
हर वक्त घर से बाहर रहना ,
सारे शहर की गलियां नापते रहना ।
नई नई जगहों की खोज करना ,
सहेलियों के साथ हंसना और गप्पे लड़ाना ।
आजाद पंछी जैसे नभ में पंख फैलाता है ,
उस तरह मन मेरा चंचल आसमान में उड़ता रहता है ।
कभी ना ठहरने वाला आज कुछ ठहर गया है
यह कैसा वक्त आया है ,कि सब कुछ थम गया है ।
कहां गई यह शहर की रौनक ,
कहां गई लोगों की आहट ।
आज सब चुपचाप पड़ी है यह गलियां ,
सब हैरान है कहां छुप गई है यहां की कलियां ।
आज आसमां के नीचे मैं भी चुपचाप बैठी हूं ,
कभी अपने बारे में कभी दूसरों के बारे में सोचते हूं ।
आज कहां गया वह कुदरत का करिश्मा ,
जिसे देखने के लिए हर इंसान आतुर हुआ है ।
एक मां की आंखों से देखो ,
तो यह दिल उस करिश्मे के लिए पागल हुआ है ।
करोना ने करुण अवस्था कर दी है , आज इंसान की ,
आज घर से बाहर निकलने को भी दिल डरता है ।
यह कहानी एक मां की है जो लोग डाउन के बीच अपनी नन्हीं परी को बचाने के लिए दर-दर भटक रही थी ।
लोग डाउन के अभी कुछ ही दिन हुए थे , सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था , हंसते गाते मुस्कुराते दिन बीत रहे थे , लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि सब कुछ थम सा गया ।
"मां आज अष्टमी है , मैं सामने के घर में जाकर धामा लेकर आऊं ।"देवांशी ने कहा
"नहीं बेटा लॉक डाउन चल रहा है आप बाहर नहीं जा सकते"
दीप्ति ने कहा
"मां नहीं सारे अड़ोस पड़ोस के बच्चे सामने वाली आंटी के यहां गए हैं सब कहते हैं और 500 का नोट दे रही है "
देवांशी ने कहा
"मैंने कहा ना बाहर खतरा है कोई जरूरत नहीं है जाने की ,
अभी कन्या पूजन के बाद मैं तुम्हें हजार का नोट दे दूंगी , पर कृपया करके आप घर से बाहर मत निकलो " दीप्ति ने कहा
दीप्ति अब घर के काम करने लगी , उसी बीच देवांशी घर से बाहर पड़ोसी के घर चली गई ।
थोड़ी देर बाद धामा लेकर वह आई , घर पर कन्या पूजन शुरू हुआ । सबको कन्या पूजन के बाद पैसे दिए गए ।
देवांशी सब को चकाते हुए कहती है " मेरे पास सबसे ज्यादा पैसे हैं देखो इतने सारे "
दीप्ति ने पूछा " बेटा इतने पैसे कहां से आए"।
देवांशी ने कहा " हां मैं पड़ोसियों के घर गई थी , और उन्होंने
दिए है ।
दीप्ति को पहले गुस्सा तो बहुत चढ़ा , फिर सारे घर वालों ने उसका मन शांत कर दिया । परंतु उसी शाम को देवांशी को तेज बुखार आ गया । दीप्ति घबरा गई उसने ,डॉक्टर को फोन किया । कोई भी डॉक्टर फोन नहीं उठा रहा था , दीप्ति ने सोचा क्या पता रात का वक्त है इसलिए नहीं कोई उठा रहा ।
जैसे तैसे दीप्ति ने सारी रात काटी देवांशी को अपनी गोद में लेकर और सुबह होते ही डॉक्टर के पास चली गई । यह लॉक डाउन का दसवां दिन था । शहर का कोई डॉक्टर की दुकान खुली नहीं थी । हर जगह पर कर्फ्यू लगा हुआ था । वह गलियों गलियों से निकलकर , हर डॉक्टर का दरवाजा खटखटा ती ।
अचानक उसके पिताजी का दूसरे शहर से फोन आया ।
वह कहते " दीप्ति घबराओ मत , एक मेरा दोस्त है उसके पास ले जा , परंतु मुझे भी नहीं लगता कि वह इन हालातों में हमारी कोई सहायता कर सकता है ।
दीदी ने गाड़ी उस जगह के लिए दोराई ।
डॉक्टर के घर सीधा गई क्योंकि उसका भी दवा खाना बंद था ।
दीप्ति ने जोर-जोर से डॉक्टर राकेश के घर का दरवाजा खरकाना शुरु कर दिया ।
डॉक्टर राकेश आए , बीपी ने डॉक्टर के पेड़ पर लिए
"डॉक्टर ाहब मेरी बेटी को देखो बहुत बीमार है "
डॉ राकेश कहते "बेटा मेरी दुकान बंद है 15 तारीख के बाद आना । जब लॉक डाउन खत्म हो जाएगा उसके बाद मेरी दुकान खुलेगी , हो सके तो तभी आना ।"
दीप्ति घबरा गई ," डॉक्टर साहब ऐसा मत कहिए ,आप ही मेरी आखरी उम्मीद है, मेरे पिताजी आपके बचपन के दोस्त है । उन्होंने मुझे आपका नाम और पता बताया है "।
डॉ राकेश चुप हो गए कहते यहीं खड़ी रहो मैं अभी मांसक और दस्ताने डाल कर आता हूं ।
थोड़ी देर बाद डॉक्टर राकेश आए , उन्होंने देवांशी का जांच पड़ताल की । कुछ टेक्स्ट लिखें और दवाइयां देकर घर भेज दिया ।
देवांशी थोड़े दिनों बाद ठीक तो हो गई , उसे बस मौसमी बुखार था । लेकिन इस घटना के बाद , वह यह सोचती रही कि उसने अपनी मां की बात क्यों नहीं मानी । ना वह घर से बाहर जाती , और ना दीप्ति को दर-दर भटकना पड़ता ।
घर पर रहिए सुरक्षित रहिए ,
जिंदगी मिलेगी तो यूं ही घूमते रहेंगे ।
फिर दोस्तों के साथ खेलेंगे ,
फिर एक दूसरे के घर जा महफिल जमाएंगे ।