बिखरते सपने
(5)
‘‘ओ के, बाय मम्मी, बाय पापा...’’ दोनों ने एक साथ कहा।
‘‘बाय बेटा, बेटा ठीक से जाना...और हां, स्नेहा भईया का ध्यान रखना...बस में ठीक से चढ़ाना और ठीक से उतारना।’’
‘‘ठीक है पापा।’’
कहकर दोनों चले जाते हैं। मिस्टर गुप्ता ध्यान से उन्हें जाता हुआ देखते हैं तो सपना कहती है, ‘‘क्या हुआ, इतने ध्यान से क्या देख रहे हैं...?
‘‘तुम्हें क्या लगता है सपना, बड़े होकर हमारा मुन्ना बैडमिन्टन का बड़ा खिलाड़ी बनेगा न...?’’
‘‘मुन्ना जब बड़ा होगा, तब-की-तब देखी जायेगी। अभी उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।’’
‘‘तुम नहीं समझोगी सपना, मुन्ना को एक सफल बैडमिन्टन खिलाड़ी के रूप में देखने के लिए मेरी आँखें कितनी बेचैन रहती हैं। तुम तो जानती हो सपना कि मुन्ना ही की तरह कभी यह सपना मैं देखा करता था, कि मैं भी एक अच्छा खिलाड़ी बनूं, लेकिन हमारी पारिवारिक और आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण मेरे सारे सपने, सारे अरमान मन में ही घुटकर मर गये। इसीलिए मैं मुन्ना के लिए ऐसी कोई बाधा नहीं आने दूंगा जिससे इसका कोई सपना टूटे। देख लेना सपना, मैं अपने मुन्ना को बैडमिन्टन का चैम्पियन बनवा कर ही रहूंगा। इसके लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े।’’
‘‘मैं भगवान् से यह प्रार्थना करूंगी कि भगवान् तुम्हारा यह सपना जरूर पूरा करे।’’
स्नेहा मुन्ना के साथ स्कूल चली तो गयी, लेकिन रास्ते भर वह चुपचाप रही, मुन्ना से उसने एक शब्द भी नहीं बोला। इन्टरबल में भी वह किसी बच्चे के साथ नहीं खेली। चुपचाप अपनी क्लास में अकेली बैठी अपने पापा के बारे में ही सोचती रही कि उसके पापा उससे इतना चिढ़ते क्यों हैं? उसे खामोश देखकर उसकी सहेलियों ने उससे उसकी खामोशी का कारण पूछा भी लेकिन उसने किसी को कुछ नहीं बताया।
दोपहर को छुट्टी के बाद स्नेहा चुपचाप मुन्ना के साथ बस में आकर बैठ गयी। उसे इस तरह खामोश और उदास देखकर मुन्ना से रहा नहीं गया, तो मुन्ना ने कहा, ‘‘क्या हुआ दीदी...? तुम इतनी खामोश क्यों हो...? ...लगता है तुम मुझसे नाराज हो...?;;
‘‘मैं तुमसे नाराज ही नहीं, बहुत नाराज हूं, क्योंकि तुम्हारी बजह से पापा मुझे डांटते रहते हैं। तुम्हारी बजह से पापा मुझे मेरी मर्जी का खाने-पीने को भी नहीं देते हैं। तुम कुछ मांगते हो, तो फौरन तुम्हें लाकर दे देते हैं, और मेरे नाम से उनके पास पैसे नहीं होते हैं।’’
‘‘दीदी, पापा तुम्हें डांटते हैं, तो इसमें मेरी क्या गलती है...?’’
‘‘क्यों, कल अगर मैंने तुम्हारा रैकिट ले लिया था तो तुम्हें इतना शोर-शराबा करने की क्या जरूरत थी...? ...मैं तुम्हारा रैकिट खा तो नहीं जाती...? ...और फिर पापा ने मुझे डांटा, तो तुम मेरा मुँह चिढ़ा रहे थे...?’’
‘‘साॅरी दीदी, गलती हो गयी। माफ कर दो।’’
‘‘चुपचाप बैठे रहो, ज्यादा दिमाग खराब मत करो।’’ कहकर स्नेहा पुनः चुप हो गयी। उसकी झिड़की खाकर मुन्ना भी खामोश हो गया और दूसरी तरफ देखने लगा।
समय शाम का। सपना ड्राइंगरूम में अकेली बैठी रात के खाने के लिए सब्जी काट रही है। साथ ही टीवी भी देख रही है। उसी समय मिस्टर गुप्ता आॅफिस आते हैं। वह अपना आॅफिशियली ब्रीफकेस एक तरफ रखकर सपना से कहते हैं, ‘‘सपना...।
‘‘हाँ क्या बात है?’’
‘‘मुझे एक गिलास पानी पिला दो।’’
‘‘अभी लायी।’’ कहकर सपना पानी लाने चली जाती है और मिस्टर गुप्ता वहीं सोफे पे बैठकर अपने जूते उतारने लगते हैं। सपना पानी लेकर आती है। पानी पीकर मिस्टर गुप्ता सपना से कहते हैं, ‘‘बच्चे दिखायी नहीं दे रहे हैं...? ...घर में नहीं हैं क्या...?’’
प्रत्युत्तर में सपना कुछ कहने ही वाली थी कि मुन्ना आ जाता है तो सपना कहती है, ‘‘लो, बच्चों का नाम लिया और बच्चे हाजिर हो गये। अच्छा ठीक है तुम मुन्ना से बात करो, मैं सबके लिए चाय बनाती हूं।’’ कहकर वह किचिन की तरफ चली जाती है।
‘‘गुडइवनिंग पापा!
‘‘गुड इवनिंग बेटा, कहां से आ रहे हों?’’
‘‘जी बैडमिन्टन खेलने गया था।’’
‘‘वैरी गुड, कैसी चल रही है तुम्हारी प्रैक्टिस...?
‘‘बहुत बढ़िया। ...पापा, रोहन अंकल कह रहे थे कि अब मैं जूनियर बैडमिन्टन टूर्नामेंट में खेल सकता हूं।’’
‘‘गुड, वैरी गुड...बस बेटा, मुझे भी उसी दिन का इंतजार है। बेटा, चाहे तुम्हें रातदिन प्रैक्टिस क्यों न करनी पड़े...पर मेरी यह हार्दिक इच्छा है कि इस वर्ष जूनियर बैडमिन्टन टूर्नामेंट के चैम्पियन तुम ही बनो।’’
मिस्टर गुप्ता की बात पर मुन्ना गर्व से फूलकर कहता है, ‘‘तो समझ लीजिए पापा, आपकी यह इच्छा जरूर पूरी होगी।’’
‘‘बस बेटा मैं भी यही चाहता हूं, कि बैडमिन्टन की दुनिया में तुम्हारा नाम सबसे ऊपर हो।’’
‘‘अच्छा, अब अपनी ये बातें बन्द करो। चाय तैयार है, चलकर चाय पी लो।’’सपना ने कमरे में आकर कहा।
‘‘चलो बेटा, चाय पीते हैं।’’ कहकर वह मुन्ना के साथ डायनिंग रूम में चले जाते हैं। स्नेहा को चाय की मेज पर न देखकर वह कहते हैं, ‘‘ स्नेहा कहां है, उसे चाय नहीं पीनी है क्या...?’’
‘‘वह अपने कमरे में है।’’ सपना ने कहा।
‘‘कमरे में...? कमरे में क्या कर रही है?’’
‘‘अच्छा, पहले तो उसे डांटते हो फिर पूछते हो कि वह कमरे में क्या कर रही है। दस बार मना किया है कि वह अब इतनी छोटी नहीं रही, इसलिए उसे इस तरह मत डाटा करो, लेकिन आप...।’’
‘‘यह तुम क्या कह रही हो सपना, मैंने अगर स्नेहा को बैडमिन्टन खेलने के लिए मना कर दिया तो इसमें बुरा क्या कर दिया? लड़कियों को यह सब करना शोभा देता है? वैसे भी कुछ बनना उसके वश की बात नहीं है।’’
‘‘ये बात नहीं है मिस्टर गुप्ता। अभी उसको अच्छाई-बुराई की समझ नहीं है। उसके मन में एक बात बैठ गयी है कि तुम मुन्ना को प्यार करते हो, उसे नहीं।’’
‘‘तो इसमें गलत क्या है। सपना कहीं तुम्हारा ये तो मतलब नहीं है कि मैं स्नेहा को मनाकर लाऊ...? नहीं सपना, अभी से उसका दिल इतना बड़ा मत करो, कि हमें बाद में पछताना पड़े।’’
‘‘ठीक है, तुम मत जाओ, मैं ही उसे बुला लाती हूं।’’
तुम्हारे जो जी में आये, तुम करो, पर मुझसे उसके बारे में कुछ मत कहा करो।’’
कहकर सपना स्नेहा के कमरे में जाती है। स्नेहा चुपचाप बिस्तर पर लेटी है। अपनी मम्मी को कमरे में आते देख स्नेहा दूसरी तरफ करबट ले लेती है। उसे ऐसा करते देख सपना मुस्कुराती है और उसके पास बैठते हुए कहती है, ‘‘स्नेहा, चलो, चलकर चाय पी लो। स्नेहा चुप रहती है तो सपना उससे लाड़ जताते हुए कहती है, ‘‘लगता है मेरी गुड़िया रानी हमसे रूठी हुई है...? फिर उसे मनाते हुए कहती है, अगर ऐसी बात है, तो गुस्सा थूक दो, क्योंकि तुम अच्छी बच्ची हो, और अच्छे बच्चे अपने मम्मी-पापा से नाराज नहीं होते हैं। ...अब इसी बात पर उठ जाओ, और चलकर चाय पी लो।’’
‘‘नहीं, मुझे नहीं पीनी है चाय-वाय।’’ स्नेहा ने ना-नुकर करते हुए कहा।
‘‘क्यों नहीं पीनी है...हयं...?’’
‘‘कह दिया न कि नहीं पीनी है तो नहीं पीनी है। मुन्ना को पिलाइये, वही आपका बेटा है। आप लोग उसी को प्यार करते हो। मैं लड़की हूं, इसलिए मुझे कोई प्यार नहीं करता है।’’
‘‘ओह तो यह बात है। अब समझ में आया कि हमारी बिटिया रानी हमसे क्यों नाराज है। लेकिन यह बात तुमने कैसे कह दी कि तुम्हें कोई प्यार नहीं करता है...?’’
‘‘मैं, सब जानती हूं। पापा मुन्ना को प्यार करते हैं। वह उनसे जो मांगता है, वह उसको वही लाकर देते हैं। मुझे उन्होंने कभी कुछ लाकर नहीं दिया...ऊपर से हर वक्त मुझे डांटते रहते हैं।’’ स्नेहा ने शिकायती अंदाज में कहा।
‘‘अच्छा, अगर ऐसी बात है, तो आज के बाद तुम्हें कोई नहीं डांटेगा...न मैं, और न तुम्हारे पापा...और तुम्हें जिस चीज की भी जरूरत हो, तो तुम मुझे बताना, मैं तुम्हें मंगवाकर दूंगी...बस, अब तो उठ जाओ।’’
‘‘प्रोमिस।’’
‘‘प्रोमिस।’’
मम्मी के प्रोमिस करने के बाद स्नेहा मुस्कुराने लगती है और उनके साथ चाय पीने चली जाती है।
शाम का समय। सपना अपनी किचिन में काम कर रही है। स्नेहा और मुन्ना अपने कमरे में स्टेडी कर रहे हैं। स्नेहा मुन्ना से कहती है, ‘‘मुन्ना, आज तुम्हारी मेम ने तुम्हे सजा क्यों दी थी...?’’
‘‘दीदी, मेरा मेथ का काम कम्पलीट नहीं था, इसीलिए मेम ने मुझे सजा दी थी।’’
‘‘तो तुमने मेथ का काम कम्पलीट क्यों नहीं किया था...?’’
‘‘मुझे वो सवाल समझ में नहीं आ रहे थे, इसलिए मैंने नहीं किये।’’
‘‘...तो, तुमने मुझसे क्यों नहीं पूछा...?’’
‘‘आप तो मुझसे नाराज थीं। इसीलिए मैंने डर के मारे आपसे नहीं पूछा।’’
‘‘चल ठीक है, अब तो तेरा कोई काम अधूरा नहीं है...?’’
‘‘नहीं, आज तो मैंने अपना सारा होम वर्क कम्पलीट कर लिया है।’’ मुन्ना ने कहा।
उसी समय डोरबेल बजती है।
ट्रिन.........ट्रिन......ट्रिन....
‘‘ऐसा कौन हो सकता है, जो बार-बार डोर बेल बजा रहा है....?’’ सपना अपने मन में कहती है फिर स्नेहा को आवाज लगाकर कहती है, ‘‘ स्नेहा.....।’’
‘‘जी मम्मी....।’’
‘‘देखना तो दरवाजे पर कौन है...?’’
‘‘मम्मी प्लीज, आप देख लीजिए...मैं अपने स्कूल का काम कर रही हू...।’’
स्नेहा ने स्कूल का काम करते हुए वहीं से कहा तो सपना ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, मैं ही देख लेती हूं..।’’
कहती हुयी वह दरवाजा खोलने जाती है। डोरबेल पुनः बजती है।
क्रमशः .......
बाल उपन्यास : गुडविन मसीह
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