The Author Abhinav Bajpai Follow Current Read उदना और उदनी - 1 By Abhinav Bajpai Hindi Children Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books જીવન એ કોઈ પરીકથા નથી - 4 "જીવન એ કોઈ પરીકથા નથી"( ભાગ -૪)બીજા દિવસથી મમ્મીએ કસરત શરૂ... તલાશ 3 - ભાગ 17 ડિસ્ક્લેમર: આ એક કાલ્પનિક વાર્તા છે. તથા તમામ પાત્રો અને તે... મારા કાવ્યો - ભાગ 18 ધારાવાહિક:- મારા કાવ્યોભાગ:- 18રચયિતા:- શ્રીમતી સ્નેહલ રાજન... પ્રેમ સમાધિ - પ્રકરણ-123 પ્રેમ સમાધિ પ્રકરણ-123 “દિકરી... મારી અત્યારે દવાખાનામાં વિવ... દામ્પત્ય જીવનની મીઠાસ દામ્પત્ય જીવનની મીઠાસ जायेदस्तं मधवन्त्सेदु योनिस्तदित्वा... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by Abhinav Bajpai in Hindi Children Stories Total Episodes : 2 Share उदना और उदनी - 1 (4) 2.4k 6.7k एक उदना था और एक उदनी थी। उदना प्रतिदिन खेत पर जाता था और उदनी उसके लिए दोपहर का खाना लेकर जाती थी। एक दिन उदनी जब उदना के लिए खेत पर खाना लेकर कर जा रही थी तो उसे रास्ते में बड़कू शेर मिलता है वो उससे पूछता है कि ' तू कहां जा रही है ' तो उदनी बोलती है कि ' मै अपने उदना के लिए खेत पर खाना लेकर कर जा रही हूं ' बड़कू शेर बोलता है कि ' खाने में क्या है ' उदनी कहती है कि ' खाने में गरमा - गरम घी डाल कर के खिचड़ी है ' बड़कू शेर बहुत जोर से गुर्राता है (गुर्र र र ...)। और कहता है कि ' यह खिचड़ी मै खाऊंगा ' बेचारी उदनी डर जाती है और खिचड़ी बड़कू शेर को दे देती है , और खुद कोने में खड़ी हो जाती है । बड़कू शेर जल्दी जल्दी खिचड़ी खाने लगता है। बड़कू शेर खिचड़ी खा लेने के बाद उदनी से कहता है कि ' कल फिर ऐसी ही खिचड़ी लेकर आना , मै तुमको यही मिलूंगा।' उधर उदना अपनी उदनी की प्रतीक्षा करता रहा लेकिन उसके ना आने पर सोचता है कि घर पर कोई जरुरी काम पड गया होगा। दूसरे दिन भी उदनी को बड़कू शेर मिल जाता है और उदनी जो उदना के लिए खिचड़ी बनाकर ले जा रही थी वो सब चट कर जाता है। इस प्रकार प्रतिदिन का यही क्रम बन जाता है। रोज उदना सोचता है कि आजकल मेरी उदनी दोपहर को भोजन लेकर क्यों नहीं आ रही है। एक रात को उदना अपनी उदनी से पूछता है कि ' तुम दोपहर को मेरे लिए कई दिन से भोजन क्यों नहीं ला रही हो ' यह सुनकर उदनी रोते हुए उदना को सारी बात बताती है। यह सुनकर उदना को बहुत गुस्सा आता है, और वह उदनी से कहता है कि ' कल तुम मेरे कपड़े पहन कर उदना बनकर खेत में काम करने जाना और मै तुम्हारे कपड़े पहन कर उदनी बनकर तुम्हारे लिए खेत में खिचड़ी बनाकर लाऊंगा अगले दिन योजना के अनुसार उदनी खेत पर काम करने जाती है, और उदना खूब अच्छी खिचड़ी बनाकर उसमे खूब घी डाल कर , उदनी के कपड़े पहनकर खूब बड़े से घूंघट में अपने मुंह को ढककर खिचड़ी लेकर खेत की ओर चल दिया रास्ते में उसे बड़कू शेर मिलता है। बड़कू शेर गरज कर पूछता है ' उदनी तू कहां जा रही है। ' उदना अपनी आवाज को उदनी की आवाज में बदल कर जवाब देता है कि ' मै तुम्हे ही ढूढ़ रही थी मै तुम्हारे लिए गरमा- गरम , गला गल खिचड़ी लाई हूं ' बड़कू शेर यह सुनकर खुश हो जाता है उसे खुश देखकर उदना आगे बोलता है कि ' जब तक तुम ये खिचड़ी खाओगे तब तक मै तुम्हारी सुंदर रोयेदार पूंछ को सहला देता हूं ' ऐसा कहकर उदनी बना उदना खिचड़ी के डब्बे को खोलकर बड़कू शेर के सामने रख देता है और पीछे जाकर उसकी पूछ सहला कर गाने लगता है कि तुम खाओ गला गल खिचड़ी मै सहलाऊ तेरी पूछड़ी यह सब देखकर बड़कऊ शेर को बहुत अच्छा लगता है और वो मज़े से खिचड़ी खाने लगता है और वो भी गाने लगता है कि मै खाऊ गला गल खिचड़ी तुम सहलाओ मेरी पूछड़ी जब बड़कऊ शेर गाना गाते हुए खिचड़ी काने में मस्त हो जाता है तो उदनी बना हुआ उदना अपनी साड़ी में छुपाई हुई हसिया धीरे - धीरे निकालता है और अचानक से बड़कऊ शेर की पूंछ काट देता है। शेर अचानक हुए इस हमले से तिलमिला जाता है और जोर जोर से चिल्लाते हुए जंगल की ओर भाग जाता है। उदना खेत आकर उदनी को सारी बात बताता है और कहता है कि ' वह शेर अब हमे परेशान करने कि हिम्मत नहीं करेगा ' इस तरह से उदना और उदनी सुख से रहने लगते है (इस लोककथा का अगला व अंतिम भाग समय मिलते ही जल्दी लिखूंगा तब तक आप इस भाग पर अपनी समीक्षा लिखिए जिसका मै बहुत आभारी रहूंगा धन्यवाद।) › Next Chapter उदना और उदनी - 2 Download Our App