Raat ke teen baje in Hindi Horror Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | रात के तीन बजे

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रात के तीन बजे

रात के 12:00 बज चुके थे लेकिन डर के मारे राशि की आंखों से नींद कोसों दूर थी। यह मानव स्वभाव है कि जिस आदमी के साथ वह बरसों गुजारता हैं, अपने सुख दुख बांटता है। मृत्यु के बाद दिन में हम उसे याद कर आंसू बहाते हैं और रात में वही यादें हमें डराती है।
आज सुबह राशि की सास का देहांत हो गया था। दिनभर आस-पड़ोस रिश्तेदारों का जमावड़ा लगा रहा । क्रिया के बाद शाम होते होते सभी रिश्तेदार , पड़ोसी व जेठ जेठानी भी अपने घर चले गए। घर में सिर्फ राशि उसकी बड़ी ननद पति व बच्चे ही थे। रात को ननद उसके साथ ही लेट गई। लेकिन बार-बार उसकी 2 साल की बेटी के रोने से परेशान हो। वह भी दूसरे कमरे में चली गई।
अब कमरे में वह और उसकी बेटी ही थी। वह सोना चाहती थी लेकिन अनचाहा डर उसे सोने नहीं दे रहा था। बार-बार मन को समझाती कि वह अपनी थी। अपनों से कोई डरता है क्या। लेकिन सारे हौसले कुछ ही देर में पस्त हो जाते। उसे अपनी बेटी पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था कि और दिनों तो कैसे दूध पीते ही खराटे मार सोती थी और आज दुश्मन बन गई मेरी । सो जाती तो कम से कम दीदी तो यहीं रहती।
रात जैसे-जैसे गहरा रही थी। उसका डर बढ़ता ही जा रहा था। हवा की सरसराहट से खिड़की का परदों का हिलना राशि का खून सुखा रहा था। हल्की सी आहट भी उसमें खौफ भर जाती।

कह भी तो नहीं सकती थी किसी से कुछ। इसी ऊह पोह में उसकी आंख लग गई ।
"सोती रहेगी क्या! उठना नहीं है आज! 3:00 बज गए। पता है ना 4:00 बजे जाता है वह ड्यूटी पर। भूखा ही भेजेगी क्या मेरे बेटे को!"
कह किसी ने उसको बुरी तरह झिंझोड़ दिया। वह घबराकर उठ बैठी। उसने घड़ी पर नजर दौड़ाई, 3:00 ही बजे थे। हां रोज सुबह 3:00 बजे ही तो उठती थी वह। लेकिन आज!
अभी वह कुछ और सोचती। तभी उसे उस कोने से जहां उसकी सास की संदूक रखी थी, एक औरत की सिसकियों की आवाज सुनाई दी। डर के मारे राशि का गला सूख गया। चीखना चाहती थी लेकिन आवाज मुंह में ही घुट कर रह गई । वह पसीना पसीना हो अचानक बेहोश हो गई।
जब उसे होश आया तो उसकी ननद व पति पास बैठे उसकी ओर प्रश्न भरी नजरों से देख रहे थे।
"दीदी आप यहां कैसे!"
" अरे छुटकी बहुत देर से रोने लग रही थी। उसकी आवाज सुनकर ही हम यहां पहुंचे। देखा तो तुम नीचे बेहोश पड़ी थी। क्या हुआ क्या देख लिया तुमने !"
राशि ने उन्हें सारी बातें बताई। सुन उसका पति बोला "वहम है तुम्हारा। उल्टा सीधा सोचती रही होगी रात भर। वही तुम्हें सपने में दिख रहा होगा।"
तभी राशि ने घड़ी की ओर देखा उस समय 3:30 बज रहे थे।
वह बोली "चलो मेरा वहम ही सही। लेकिन समय तो देखो ।"

राशि की बात सुन उसकी ननद बोली "सच भी हो सकता है भाई। सुना है तेरहवीं तक आत्मा घर में ही रहती है। उसके बाद ही उसे मुक्ति मिलती है। सबको पता है तू सबसे छोटा और मां का प्यारा बेटा था। उसे हमेशा ही तेरी चिंता रहती थी। इसलिए आई होगी अपनी बहू को जगाने की मेरे बेटे को समय से ड्यूटी भेज दे। " कह वह हंसने लगी।
"और दीदी जो राशि कह रही है कि उसने संदूक पर किसी औरत की सिसकियों की आवाज सुनी । वह क्या था!"

"वह भी मां ही होगी। उसे अपनी संदूक बहुत प्यारी थी। किसी को भी इसे हाथ ना लगाने देती थी।"
"हां दीदी कह तो आप सही रहे हो। मैंने तो सासु मां को कभी इसे किसी के सामने खोलते भी नहीं देखा। क्या खजाना छुपा रखा था, उन्होंने इसमें।"
"अरे, कोई खजाना- वजाना नहीं था पगली! एक दिन जब मैंने ज्यादा जोर दिया। तब मां ने दिखाया था। इसमें उनकी शादी की साड़ी व पिताजी का कुर्ता पायजामा और हम सभी बहन भाइयों के छठी के कपड़े संजो कर रखे थे उन्होंने। पता नहीं हम औरतें कैसी होती है। जीते जी तो घर परिवार की मोह माया में फंसी रहती हैं और मरने के बाद भी हमारी आत्मा को चैन नहीं मिलता!"
सरोज ✍️