अध्याय 1
पेज 3 डांसर और विक्षिप्त हत्यारा
नई दिल्ली स्थित जर्मन दूतावास क्रिसमस ट्री की मानिंद जगमगा रहा था। आज इस जगह सितारों से सजी रात ‘बॉलीवुड-नाइट’ का आयोजन था, जिसने दिसंबर की सर्द रात की नीरसता को गायब कर दिया था। आज रात का मुख्य आकर्षण, बॉलीवुड की एक खूबसूरत रूपसी और उसके साथी विख्यात कुरियोग्राफर रुडॉल्फ स्चानहर का नृत्य-प्रदर्शन था। इस जोड़े ने अपने कामुक और लयबद्ध ताल से मंच पर मानो आग लगा दी. जिसने वहां मौजूद नई दिल्ली और मुंबई से आये बड़े-बड़े राजनेताओं, उद्योगपतियों, नौकरशाहों और फ़िल्मी सितारों को चमत्कृत कर दिया।
जर्मन प्रवासी रुडॉल्फ स्चानहर और उसके करीबी मित्र जर्मन कल्चरल अताशे (सांस्कृतिक सलाहकार) एरिक जॉलेनबेक ने मिलकर झुग्गी-झोपड़ी के दलित बच्चों के हित के लिए ‘गाला चैरिटी इवेंट’ के आयोजन किया था। बॉलीवुड की धड़कन माने जाने वाली दीवा (तरिका) के शानदार प्रदर्शन पर पूरा हाल दर्शकों के तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा था। अतिथियों के आवाभगत में ‘वीनर वर्चेन’, ‘स्प्रिट्जकुकन एल्बॉन्डिगॉज मीटबॉल’, ‘पेपर क्रीम’, बर्लिन के डोनर कबाब और होलग्रेन ब्रेड सहित कोरिजो तथा मशरूम टैपस जैसे पकवानों के साथ प्रसिद्ध जर्मन शराब ‘वाइनस्टीफानर हेफे वाइस्बियर’ भी परोसी गयी थी। सभी अतिथि जर्मन मेहमाननवाजी का लुफ्त उठाते हुए दूतावास के संरक्षित वातावरण में एक-दूसरे से घुल-मिल रहे थे।
इस रात का सबसे चमकता सितारा रुडॉल्फ स्चानहर एक गठीले जिस्म, चौड़े मस्तक, तीक्ष्ण नीली आँखों और पीछे की ओर कढ़े हुए बालों वाला लम्बा व्यक्ति था। उसकी नाक सुतवा, चेहरा चौकोर, भुजाएं शक्तिशाली और उंगलियाँ लम्बी थीं। करिश्माई व्यक्तित्व वाला रुडॉल्फ नेसल टोन (नाक से) में बोलता था। वह अक्सर लम्बी यात्राओं पर रहता था। उसकी ‘अपॉइन्मेंट-बुक’ पूरे साल के दौरान अंतर्राष्ट्रीय नृत्य प्रतियोगिता में प्रदर्शन, शीर्ष स्तर के गायकों के साथ वर्ल्ड टूर या फिर बॉलीवुड के कार्यक्रमों की तारीखों से भरी होती थी। मंच पर प्रदर्शन करने के बाद उसने ‘एडिओस नैपोलि’ सूट पहन लिया था और ‘एक्वा डी जिओ प्रोफ्युमो-जिओर्जियो अरमानी (एव डे परफ्यूम)’ लगा ली थी। उसकी ‘टैग हुएर’ रिस्टवाच और मगरमच्छ के चमड़े के जूते की भांति उसका बेल्ट भी काफी महँगी था। उसका व्यक्तित्व किसी यूरोपीय राजकुमार जैसा था। उसके स्टाइल और बोलचाल के तरीके को देखते हुए उसे सहज ही जेम्स बांड का यूरोपियन संस्करण माना जा सकता था। उसके व्यक्तित्व की एकमात्र खटकने वाली बात ये थी कि उसने अपने बायें कान के लो में हीरे का एक महंगा ईयर-स्टड (मर्दो की बाली) पहना हुआ था और अपनी गर्दन पर आधा दिखाई पड़ने वाला एक टैटू गुदवाया हुआ था।
“मैंने हट्टे-कट्टे और मरदाना जिस्म वाले किसी आदमी को इतने बढ़िया ढंग से नाचते हुए कभी नहीं देखा है।” अधेड़ उम्र की एक महिला ने रुडॉल्फ स्चानहर के पास आते हुए कहा। उसके नवीनतम ढंग से कटे हुए बालो की कुछ लट सुनहरी थी और उसने गहरे कट वाले तीन-चौथाई उरोज़-प्रदर्शक जालीदार ब्लाउज के साथ हरे रंग की शिफॉन की साड़ी पहनी हुई थी। “मैंने तो यह देखा है की ज्यादातर डांसर और कुरियोग्राफर मंच से नीचे उतरने का बाद लचक भरी औरतो की तरह लगते हैं।”
“क्या मैं आपको जानता हूँ?” रुडॉल्फ स्चानहर ने, जो उस क्षण नार्वे की महिला राजदूत से बातें कर रहा था, पूछा।
“जान जाओगे...अगर चाहो तो।” महिला ने बेबाकी से उसकी आँखों में झांकते हुए कहा।
“लगता है की आपकी ड्रिंक कुछ ज्यादा ही तगड़ी है ।” रुडॉल्फ ने भूरा स्कर्ट और बैंगनी टॉप पहनी हुई महिला राजदूत की ओर घूमते हुए कहा- “क्षमा कीजियेगा मैडम एम्बेसडर। मैं आपसे थोड़ी देर बाद मिलता हूँ।”
“रुको। जाने से पहले मुझे अपना नंबर तो दे जाओ....भाड़ में जाओ।। ऐसा लगता है जैसे तुम विदेशी लोग जब यंहा आते हो तो तुम भी हिंदुस्तानी मर्दो की तरह फिस्सडी बन जाते हो ।” वह महिला रुडॉल्फ को कोसते हुए अपने पास खड़ी गोरी महिला की ओर पलटी और बोली, “बहन, पुरुषों के साथ तुम्हारा अनुभव कैसा है?”
“अहा। आओ मेरे प्यारे रुडॉल्फ। मैं महामहिम राजदूत और उनकी पत्नी से तुम्हारा परिचय कराता हूँ।” एरिक ने कोरियोग्राफ़र को देखते ही कहा।
“हम आपके चैरिटी के कामों की क़द्र करते हैं मि. स्चानहर।” जर्मन राजदूत ने कहा जब एरिक ने अपने मित्र की औपचारिक मुलाक़ात उन से करवाई।
“ये बहुत थोड़ा ही है श्रीमान राजदूत, जो मैं उन अभागे बच्चों के लिए कर पा रहा हूँ। दूतावास की इमारत प्रयोग करने की अनुमति देने के लिए मैं आपको और एरिक को धन्यवाद। यदि आप अनुमति दें तो मैं आपसे आग्रह करूँगा कि आपकी प्यारी पत्नी अगले महीने एक अनाथालय को बुनियादी सुविधायें मुहैया कराने के दौरान मेरा साथ देकर मुझे सम्मानित करे।”
“आपके दिमाग में क्या चल रहा है मि. स्चानहर?” राजदूत की पत्नी ने पूछा, जो तेज़ आँखों वाली एक गोरी महिला थी।
“हमारी योजना अनाथालय के जरूरतमंद बच्चों को ‘जोधपुर पैर’ देने की है। हम आज इकट्ठी हुई राशि का चेक भी प्रस्तुत करेंगे, जो अगले कुछ महीनों के लिए कम से कम 500 बच्चों की शिक्षा और रहन-सहन का खर्च वहन करने में मदद करेगा।”
“ये तो आपकी बहुत ही अच्छी पहल है हेर्र (जर्मन में मिस्टर) रुडॉल्फ स्चानहर। मैं अपने सेक्रेटरी से कहूंगी कि वह उस दौरे से संबंधित जानकारियों के लिए आपके संपर्क में रहे। अब हमें इजाज़त दीजिये, इस खुशनुमा शाम का आनंद लीजिये।” उसने कहा।
“जी बिल्कुल महोदया।” उसने हल्के से सिर को जुम्बिश देते हुए कहा और वह राजनयिक जोड़ा बाकी मेहमानों से मिलने के लिए आगे बढ़ गया।
रुडॉल्फ ने अगले कुछ घंटे बॉलीवुड की मशहूर हस्तियों से संपर्क बनाने और अपने उच्चवर्गीय मित्रों तथा जान-पहचान के लोगों की औपचारिक दुआ-सलाम करने में बीते। महिलाएं खुलेआम उस पर न्योछावर हुई जा रही थीं, लेकिन रुडॉल्फ अपने व्यवहार में गरिमापूर्ण और संयमित था। इतना ज्यादा कि कुछ महिलाएं कानाफूसी करती थीं कि वह नस्लवादी है और वह कामुक भारतीय सुंदरियों की अपेक्षा गोरों की संगत को अधिक प्राथमिकता देता है या फिर वे अनुमान लगाती थीं कि या तो वह समलैंगिक है या नपुंसक।
महिलाओं की आलोचना और पुरुषों की ईर्ष्या की अनदेखी करते हुए रुडॉल्फ ने उस शाम का बचा हुआ समय अपने मित्रों और प्रशंसकों का दायरा बढ़ाने तथा आगामी महीनों में आयोजित किये गए चैरिटेबल समारोहों में सक्रिय भागीदारी की योजना बनाने में व्यतीत किया। साथ ही साथ उसने एक लोकप्रिय ऍफ़एम शो के आगामी एपिसोड में अपनी उपस्थिति की तैयारियों को अंतिम रूप दिया, एक फेसबुक लाइव इवेंट को अंतिम रूप दिया, दो अखबारों को इंटरव्यू दिया तथा एक एनजीओ की गतिविधियों पर आधारित छोटे से न्यूज़ रिपोर्ट के निर्माण में सहयोग किया, जो उसकी सहायता प्राप्त दलित बच्चों से जुड़ा हुआ था। इसके बाद वह दूतावास से मेहमानों को अलविदा कहते हुए ‘वसंत-विहार’ स्थित अपने बंगले को रवाना हो गया।
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जिस वक्त रुडॉल्फ स्चानहर ‘टोयोटा लैंड क्रूजर प्रैडो’ से अपने बंगले की ओर जा रहा था, ठीक उसी वक्त तुगलकाबाद पुलिस स्टेशन के एक साधारण से कमरे में इंस्पेक्टर उदय ठाकुर अपने सहायक ए.एस.आई. बिश्नोई के साथ नाइट शिफ्ट की ड्यूटी निभा रहा था। इंस्पेक्टर ठाकुर घनी मूछों और पहलवानो जैसे गठीले बदन वाला 41 वर्षीय व्यक्ति था, जिसने अपने प्रभावी व्यक्तित्व, तेज, सुलझे हुए और तार्किक मस्तिष्क के बल पर महकमे में बहुत सारा सम्मान और कई पुरस्कार अर्जित किये थे। उसने दिल्ली पुलिस की क्राइम-ब्रांच में अपने चौदह साल की नौकरी के दौरान वाह-वाही लूटने के उतावलेपन की बजाय उपलब्ध तथ्यों का धैर्य-पूर्वक विश्लेषण करते हुए कई जटिल केसों को सुलझाया था। ‘पायलट ऑफिसर एक्सचेंज प्रोग्राम’ के तहत स्कॉटलैंड यार्ड में दो साल काम करने के बाद से उसे क्राइम ब्रांच का ‘शरलॉक होम्स’ कहा जाने लगा था।
इंग्लैंड से लौटने के बाद उसने ब्रिटिश पद्धति को आत्मसात कर लिया था और एंग्लो कार्यशैली का सच्चा अनुयायी बन चुका था। वह इस बात का कायल हो चुका था कि अंग्रेज़ अत्यधिक गरिमापूर्ण, मेहनती, कार्यों के प्रति समर्पित, निपुण और अच्छे लोग थे। कोई भी उनके कार्य करने के ढंग को देख कर ये सहज ही समझ सकता था कि कैसे उन्होंने उस विस्तृत साम्राज्य का निर्माण किया था, जिसमें कभी सूर्यास्त नहीं होता था। अपने विदेशी कार्यकाल के बाद से उदय शहर की पुलिस की आँख का तारा बन चूका था। उसके बड़े अफसरों का मन्ना था की पुलिस फ़ोर्स को आधुनिक तथा तेजी से परिवर्तित होते माहौल के अनुकूल होने के लिए उदय ठाकुर की कार्यशैली के अनुकरण की आवश्यकता थी। अपनी 60 फीसदी से भी अधिक सफलता दर वाला इंस्पेक्टर उदय, साइबर अपराध से लेकर धनवान, प्रसिद्ध और प्रभावशाली लोगों की भूमिका वाले हाई-प्रोफाइल जटिल केसों को भी सुलझाने के लिए भी बड़े अफसरों का पसंदीदा विकल्प था।
“बिश्नोई। सुष्मिता मर्डर केस में हम कुछ ठोस हासिल नहीं कर पा रहे है। हमारे मुखबिर कोई सुराग पाने में हमारी मदद क्यों नहीं कर पा रहे है?”
“ठाकुर साब। ये सुपारी देकर कराई गयी हत्या तो है नहीं, इसलिए उनके पास भी कोई सुराग नहीं है।” बिश्नोई ने उत्तर दिया।
“लेकिन इसमें कोई न कोई आपराधिक प्रवृत्ति का आदमी ज़रूर शामिल है। मक्तूला की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार हत्या से पहले उसके साथ कई बार निर्दयतापूर्वक बलात्कार किया गया था। कोई शातिर अपराधी या कोई गैंग ही ऐसा जघन्य अपराध कर सकता है।”
“साब जी। इन दिनों कॉलेज के छोकरे भी बुरे से बुरे काम करने में सक्षम हैं।” बिश्नोई ने अपना मत प्रकट किया- “हमें इस दृष्टि से भी पड़ताल करनी चाहिए।” उसने कांच के दो गिलासों में व्हिस्की उड़ेलते हुए कहा। उन दोनों के गिलास एक-दूसरे से टकराकर खनखनाए। इंसपेक्टर ठाकुर ने पीले द्रव की सतह पर तैर रहे किसी छोटे कण को निकालने के लिए उसमें उंगली डुबोई और फिर उंगली पर लगी बूँद को छिड़कने के बाद व्हिस्की का एक छोटा घूँट भरकर मेज पर रखे खुले पैकेट से मूंगफली का फक्का लगाया।
“मैंने चिकन लालीपॉप और तली हुई मछली का ऑर्डर दे दिया है। क्या ये आपके हिसाब से ठीक है?”
“हाँ बिश्नोई। मुझे हैरत है कि ये साधारण सा केस इतना जटिल कैसे हो गया कि इसे सुलझा पाना मुश्किल हो रहा है?”
बिश्नोई अपना गिलास दोबारा भरने में व्यस्त हो गया जबकि इंसपेक्टर ठाकुर ने अपनी बेल्ट को ढीला किया, कुर्सी पर पीछे की ओर झुका और आँखें बंद करते हुए केस से जुड़े सभी तथ्यों को एक बार फिर से याद करने लगा। दो महीने पहले एक कमसिन फैशन डिज़ाइनर की लाश महरौली इलाके में एक गहरे खड्डे में पड़ी हुई मिली थी। कई जगहों से आवारा कुत्तों और चूहों द्वारा काट खाये जाने के कारण उसका शरीर बुरी तरह क्षत-विक्षत हो गया था उसकी छाती नग्न थी और उसने बिना पैंटी के लाल पेटीकोट पहना हुआ था, जो आधे से अधिक फट चुका था। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ था कि वह लगभग 5-7 दिन पहले ही मर चुकी थी। उसकी टूटी हुई गर्दन की हड्डी पर पड़ी दरार और उस पर पड़े रस्सी के निशान ये इशारा कर रहे थे कि उसकी मौत दम घुटने से हुई थी। संभवत: उसे फांसी दी गयी थी या फिर एक लाल साड़ी की रस्सी से उसका गला घोटा गया था, जिसके निशान उसकी गर्दन पर केवल सूक्ष्मदर्शी के जरिये ही देखे जा सकते थे। आगे की तहकिकात में पता चला था कि 6 दिन पहले उसके घरवालों द्वारा उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गयी थी। उसका मोबाइल ग़ायब था और उसकी कार भी लावारिस अवस्था में महरौली के इलाके में पायी गई थी। स्विच ऑफ होने से पहले उसके मोबाइल का आख़िरी ज्ञात लोकेशन वही स्थान था, जहाँ से उसकी कार बरामद हुई थी। पिछले दो महीनों में, कॉल रिकॉर्ड और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से कुछ भी हासिल नहीं हुआ था और वह केस महरौली पुलिस स्टेशन से क्राइम ब्रांच के पास आ चुका था। मरने वाली लड़की के दर्जनों मित्रों, परिचितों, परिवार वालो, उस इलाके के तथा एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के छंटे हुए मुजरिमों के बयान तथा पुलिस द्वारा मुखबिरों पर डाले गए दबाव से भी कोई कारगर खुलासा नहीं हुआ था।
“उसके टायरों के निशान फ्लैट(चपटे) थे बिश्नोई।” इंसपेक्टर ठाकुर ने अपनी ध्यान मुद्रा से बाहर आते हुए कहा- “मुझे लगता है कि आफत की शुरुआत यहीं से हुई। यदि उसकी गाड़ी पंक्चर नहीं हुई होती तो वह बाहर नहीं निकली होती और शायद अभी भी जीवित होती।”
“तो क्या आपको लगता है कि ये उसका दुर्भाग्य था कि वह गलत समय पर गलत जगह मौजूद थी?”
“मेरा अनुभव तो फिलहाल यही कहता है बिश्नोई। उस एरिया में किसी भी मैकेनिक की या पंक्चर की दुकान नहीं है और पांच किलोमीटर के दायरे में किसी भी मैकेनिक या पंक्चर वाले ने उसके या उसके कार के बारे में नहीं सुना।”
“सही कहा साब जी। मेरी टीम ने भी दो किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी फ़ार्महाउस को खंगाला था। वहां उपस्थित स्टाफ और मालियों से पूछताछ भी की थी। उन्होंने भी किसी किस्म की वारदात के बारे में नहीं देखा-सुना था।”
“यदि लड़की का गला घोटने की बजाय उसका सिर काटा गया होता तो मैं इस केस को भी ‘महरौली-हत्यारे’ के केस में शुमार कर लेता।”
“लेकिन उस पागल हत्यारे के काम करने का तरीका अलग है ठाकुर साब, जिसे सेंसशनबाज़ मीडिया ने वास्तविकता से कहीं ज्यादा बड़ा बना दिया है...।”
“वह केस भी हमारे अतिरिक्त सिरदर्द की वजह बना हुआ है। उस केस के बारे में तो अभी तक हमें ज्यादा कुछ मालूम भी नहीं है, सिवाय इसके कि लोग - जिनमें ज्यादातर महिलाएं, युवतियां और बच्चें हैं, गायब हो रहे हैं। इसके बाद उनके सिर अथवा शरीर के अन्य अंग महरौली में या उसके आस-पास पाए जाते हैं।”
“मुझे तो यह लगता है कि पुलिस स्टेशन का स्टाफ ही नकारा है। ये मुमकिन ही नहीं है कि इस तरह से हत्याएं करने वाला अभी तक पकड़ा न जा सके। यदि वे मुझसे पूछें तो मैं यही कहूंगा कि कातिल तक पहुँचने के लिए उन्हें दो-तीन दर्जन संदिग्धों को चिन्हित करके उनकी ढंग से पिटाई करनी चाहिए।”
“मुझे शक है बिश्नोई कि वे सभी हत्याएँ एक ही सीरियल किलर ने की है, जिसे मीडिया ने ‘महरौली हत्यारे’ के नाम से प्रचारित कर रखा है।”
“मुझसे पूछिए ठाकुर साब। मुझे तो लगता है की दूसरे राज्यों के काहिल पुलिस वाले ही अपनी इलाके की लाशों को लेकर महरौली में पटक देते हैं, दोष ‘महरौली हत्यारे’ पर लगता है और मुसीबत हमारी बढ़ जाती है।”
“मैं ऐसी कोई राय नहीं कायम करूँगा। मुझे एक कागज़ और कलम दो। हम उन तथ्यों की सूची बनाते हैं, जो हम जानते हैं:”
१. महरौली हत्यारे के केस में शरीर या शरीर के हिस्से महरौली में और उसके आस-पास बरामद होते हैं।
२. हत्प्राणों की आयु या लिंग में समानता जैसा कोई पैटर्न नहीं पाया गया है। महिलायें, लड़कियाँ और बच्चे; हर तरह के लोग मारे गये हैं।
३. उनके सिर धड़ से अलग किये गए होते हैं।
४.पूरे जिस्म पर सिन्दूर, नींबू, लोबान और दाल के दाने बरामद होते हैं, जो अजीबोगरीब और समझ से परे है।
५. सुष्मिता की हत्या और महरौली हत्यारे में कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं।
“ठाकुर साब। इस लिस्ट में आपने उन चार लड़कियों की गुमशुदगी के केस को क्यों नहीं जोड़ा, जिनका पिछले दो सालों से कोई पता नहीं चल पाया है? वह केस भी तो आपका ही है। यह खाना लाने वाला कहाँ मर गया? मैं जाकर देखता हूँ।” उसने उठते हुए कहा।
उसके जाने के बाद इंसपेक्टर ठाकुर ने शीशे के कपाट वाली जंग लगी आलमारी को खोला और सीरियल किलर की फाइल को बाहर निकाला। उसने बरामद लाशों की तस्वीरें गौर से देखी देखीं। अपने सहायक के लौटने के बाद उसने कहा- “शायद तुमने इसे मज़ाक में कहा होगा, लेकिन हो सकता है की उन गुमशुदा लड़कियों का भी इस केस से वाकई कोई संबंध हो।”
“ये तो अब बहुत ज्यादा हो रहा है ठाकुर साब। हर अनसुलझा केस तो इससे जुड़ा हुआ नहीं हो सकता है।”
“वह लड़कियाँ महरौली से दस किलोमीटर के दायरे के अंदर ही ग़ायब हुई थीं।”
“ये कैसा तर्क है?” बिश्नोई ने पूछा- “इस तरह से तो हमें दस किलोमीटर के दायरे में हुए सारे केसो का ठीकरा उस विक्षिप्त हत्यारे के सिर पर फोड़ देना चाहिए।”
“उनकी फाइलों को निकालो बिश्नोई और देखो कि उनके मोबाइल की आख़िरी लोकेशन क्या थी?”
“इसके लिए तो फाइलों का एक बड़ा ढेर खंगालना होगा ठाकुर साब।”
“जब तुम्हें समय मिले तब देख लेना। फिलहाल के लिए इस लिस्ट को देखो, जो मैंने बनाई है और बताओ कि तुम क्या सोचते हो?”
“तो क्या आप सोचते हैं कि सुष्मिता की हत्या के लिए ‘महरौली हत्यारा’ जिम्मेदार है?”
“हाँ।” इंसपेक्टर ठाकुर ने कहा- “क्योंकि जब उसका मोबाइल स्विच ऑफ़ हुआ तो वह उसी इलाके में थी।”
“मुझसे पूछिए साब। ये सब-कुछ किसी तांत्रिक का किया धरा है। वरना कौन है, जो सिन्दूर और नींबू का प्रयोग करता है? मैं तो कहता हूँ, हमें महरौली और दिल्ली से लगती हरियाणा के सीमा-छेत्र के सभी तांत्रिकों को पूछताछ के लिए धर लेना चाहिए।”
“हो सकता है कि वह यह सब हमें गुमराह करने के लिए कर रहा हो। सभी तांत्रिकों को चेक करो, लेकिन मैं इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं हूँ कि वह इतनी आसानी से पकड़ा जाएगा। मेरा अनुभव कहता है कि इस बार हमारा पाला भारत के इतिहास के सबसे शातिर, क्रूर और धूर्त सीरियल किलर से पड़ा है, जो लोगों की कल्पना से भी अधिक ख़ूँख़ार और भयानक है। मुझे यह भी लगता है की या तो यह केस हमारे सर्विस को बर्बाद करके हमारी इज़्ज़त का जनाज़ा निकलेगा। या फिर यह केस इस देश की पुलिस के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा।"
क्रमशः
फिर क्या हुआ? जानने के लिए अगली कड़ी का इंतज़ार करे.
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