Nai chetna - 11 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | नई चेतना - 11

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नई चेतना - 11



धनिया अमर के कदमों से लिपटी बस रोये जा रही थी और अमर ! अमर की अवस्था तो उसे देखते ही पागलों सी हो गयी थी । उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह धनिया के मिल जाने की ख़ुशी मनाये या उसकी इस हालत पर आँसू बहाए ।

अमर की मनोदशा से अंजान धनिया बस रोये जा रही थी । दोनों के लब खामोश पर निगाहें बोल रही थीं और पता नहीं दोनों कब तक ऐसे ही रहते कि बाबू की कड़क दार आवाज ने अमर को चौंकने पर मजबूर कर दिया ।

अमर जो अभी भी बेसुध सी अवस्था में था उसे इतना भी होश नहीं था की धनिया को कम से कम चुप कराता , उसे ढाढस बंधाता उसे सहारा देकर उठाता ऐसा कुछ भी न करके अमर पुतले की मानिंद सुध बुध बिसराए इंसान सा जैसे था वैसे ही खड़ा रहा ।

बाबू की तेज आवाज ने अमर को चैतन्य बना दिया ।
उसकी चीख को अनसुना कर अमर ने धनिया के दोनों बाजु पकड़ कर उसे सहारा देकर खड़ा किया । अमर का सहारा पाते ही धनिया किसी लता की मानिंद अमर से लिपट गयी ।

सरजू के तो तनबदन में आग लग गयी थी यह दृश्य देखकर । भला अपनी होनवाली बीवी को दुसरे की बाँहों में कोई कैसे देख सकता है ? सरजू भी इन्सान ही था । गांववालों के सामने हो रही बेइज्जती उसे नामंजूर थी । बाबू की ओर देखते हुए चीख पड़ा ” बाबू काका ! क्या हो रहा है ये ? और ये आदमी कौन है ? यहाँ क्यों आया है ? ”

बिना कुछ जवाब दिए बाबू उठा और धनिया का हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर खिंच लिया । धनिया कसमसा कर रह गयी । बाबू सरजू की तरफ देखते हुए बोला ” ले सरजू ! सँभाल अपनी अमानत को ! शादी की तैयारी जारी रखो । इनसे मैं समझ लूँगा ।”कहते हुए बाबू ने धनिया को सरजू की तरफ धकेल दिया ।

अब बारी अमर की थी । वह भला धनिया को अपने से दूर कैसे होने देता ? झपट पड़ा धनिया की तरफ और उसकी कलाई पकड़ कर खिंच लिया अपनी ओर ।

बाबू की दखलंदाजी ने सरजू की हिम्मत बढ़ा दी थी । तुरंत ही टूट पड़ा अमर पर और पीछे से दोनों हाथों का भरपूर वार अमर की पीठ पर कर दिया । अचानक हुए इस हमले से असावधान अमर लडखडा गया और गिरने ही वाला था कि उसने खुद को संभाल लिया और अपने चारों तरफ की स्थिति को भांपने का प्रयास करने लगा ।

अब तक सरजू के घर पर जमा लोग जिनमे युवक और अधेड़ भी शामिल थे अमर को घेर कर खड़े हो गए थे । अब अमर ने खुद को संभाल लिया था और किसी भी हमले का सामना करने केे लिए पूरी तरह तैयार था ।

सरजू भी जला भुना था ही । अमर को संभलने देना नहीं चाहता था । चौकन्ने खड़े अमर से गूँथ गया । अमर मजबूत जिस्म का मालिक था । सरजू के भिड़ते ही अमर ने पीछे पैर मार कर सरजू को जमीं पर गिऱा दिया और उसके सीने पर सवार हो गया ।

सरजू के नीचे गिरते ही उसके पडोसी अमर पर टूट पड़े । उसके जिस्म पर लातों और घूंसों की बौछार होने लगी ।लेकिन अमर को कोई फ़िक्र नहीं थी । इन्हीं घूंसों की बौछार के बीच अचानक अमर ने सरजू को गिरेबान पकड़ कर उठाकर खड़ा कर दिया और बोला ” देख सरजूआ ! मैं यहाँ मारपीट करने नहीं आया हूँ । लड़ाई झगडा मुझे बिलकुल भी पसन्द नहीं है । बस मैं अपनी धनिया और बाबू काका को लेकर यहाँ से चला जाऊँगा । ”

” ऐसे कैसे ले के चला जायेगा ? मैंने कोई चूड़ियाँ नहीं पहन रखी हैं ।” सरजू ने भी दांत पिसते हुए बातों में मशगुल अमर के दोनों पैरों के बीच एक जोरदार लात का प्रहार कर दिया । एक जोरदार चीत्कार के साथ अमर दोनों हाथ अपनी टांगों के बीच दबाये जमीन पर गिर पड़ा और तड़पने लगा । उसके गिरते ही सरजू और उसके साथियों ने अमर पर लात घूंसों की बौछार शुरू कर दी ।

अमर को मार खाते देख धनिया जो अब तक रुआंसी सी खड़ी तमाशा देख रही थी अचानक हुंकार भर कर समीप ही पड़े एक मोटे डंडे को लेकर उस भीड़ पर टूट पड़ी । उसका रौद्र रूप देख सरजू के दोस्तों के हौसले पस्त हो गए । जिसे धनिया के हाथों के डंडे की प्रसादी मिल गयी उसने फिर पलट कर नहीं देखा । जिसे जहां जगह मिली भाग लिया । सरजू भी धनिया की बहादुरी देख कर हतप्रभ रह गया । क्रोध के आवेग से कांपती धनिया अब सरजू की तरफ बढ़ रही थी । धनिया को पहली बार इस चंडी अवतार में देख बाबू भी सहम गया था । धनिया का पूरा ध्यान सरजू पर ही केन्द्रित था । और हो भी क्यों नहीं ? वही तो था वह खलनायक जिसने उसके अमर बाबू को मार मार कर अधमरा कर दिया था । धनिया ने पूरी शक्ति से अपने हाथ का डंडा सरजू के सिर पर दे मारा । लेकिन यह क्या ? डंडा सरजू को स्पर्श कर पाए उससे पहले ही धनिया के हाथों से डंडा छुट कर उसके पैरों के समीप गिर पड़ा और वह दोनों हाथों से अपना सिर थामे नीचे बैठ गयी ।

दरअसल सरजू की तरफ पूरी ध्यान केन्द्रित किये धनिया ने बाबू की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया था और इसी मौके का फायदा उठाते हुए बाबू ने नजदीक ही पड़ी एक मोटी सी लकड़ी से धनिया के सिर पर दे मारा । धनिया के सिर से रक्त की मोटी धार बह निकली । रक्त उसकी कनपटियों से होता हुआ उसके गले को सूर्ख कर रहा था । उसका चेहरा सूर्ख हो चुका था और अगले ही पल वह वहीँ निश्चल पड़े अमर के जिस्म पर गिर कर बेहोश हो गयी ।

अमर बेसुध पड़ा हुआ था । धनिया की गर्म साँसे और सिर से बहते खून की गर्मी अमर अवचेतन अवस्था में भी महसूस कर रहा था ।

इधर बाबू अपने ही हाथों से अपने सिर के बाल नोच रहा था । उसकी अंतरात्मा ने धिक्कारा ” धिक्कार है तुझ जैसे नालायक बाप पर ! वो बेटी जिसने हर तरह से तेरी सेवा की ,तेरे कहने भर से अपने खुशियों का गला घोंट कर यहाँ इस अनजान जगह पर अनजान व्यक्ति से शादी तक करने के लिए तैयार हो गयी थी और ऐसी लड़की के साथ तूने ऐसा सलूक किया ? तेरे लिए जान छिड़कने वाली लड़की का तूने खून ही निकाल लिया ? तेरे हाथ जरा भी नहीं काँपे उस मासूम पर हमला करते वक्त ? क्या गलत किया था उसने ? उसने कब कहा की वह सरजू से शादी नहीं करेगी ? वह अमर को सिर्फ बचाने का ही तो प्रयास कर रही थी । क्या गलत कर रही थी ? क्या किसी पीटते हुए निहत्थे को बचाना जुर्म है ? अगर धनिया को कुछ हो गया तो ? क्या करेगा ? ‘
पल भर में ही सैकड़ों सवाल उसके मस्तिष्क में कौंध गए ।

इधर धनिया की गर्म साँसों ने अमर के लिए संजीवनी का काम कर दिया था । उसकी लुप्त चेतना सक्रीय हो गयी । अपने ऊपर किसी भारी वजन का अहसास लिए अमर ने धीरे से अपनी पलकें खोलीं और धनिया के बेहोश जिस्म को अपने ऊपर पड़ा देखकर कुछ याद करने की कोशिश करने लगा । दिमाग पर जोर डालने से कुछ ही देर पहले अपनी हो रही पिटाई का दृश्य उसकी आँखों के सामने घूम गया । कई लोगों के बीच गेंद की मानिंद मार खाते अमर ने धनिया को दौड़ कर आते देखा था और फिर अगले ही पल उसकी चेतना लुप्त हो गयी थी ।धनिया के बेहोश जिस्म को अहिस्ते से अमर ने अपने ऊपर से हटाकर नीचे सुला दिया । धनिया की साँसें तो चल रही थी लेकिन जिस्म बेजान सा था कहीं कोई हलचल नहीं । उसके सिर से खून लगातार बह रहा था । अमर की कमीज भी धनिया के खून से रंग उठी थी । धनिया की अवस्था देखकर अमर का गुस्सा भी जाता रहा । धनिया से लिपट कर रो पड़ा । उसका सर अपनी गोदी में रखकर अमर उसके गालों पर थपकी देते हुए उसे पुकारते हुए जगाने की कोशिश करने लगा ।

अमर की अवस्था देखकर बाबू भी रो पड़ा था । सरजू किंकर्तव्यविमूढ़ सा अब तक खड़ा रहा था । लेकिन अब तक उसके मन से नफ़रत की आग बुझी नहीं थी । धनिया की चाहत ने उसे अँधा बना दिया था । दीनदुनिया से बेखबर अमर धनिया के बेहोश जिस्म को संभाले रुदन कर रहा था कि तभी अचानक उसके सिर पर भी डंडे का एक जोरदार प्रहार हुआ और उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया ।

क्रमश: