Looking for the right friend - 7 in Hindi Children Stories by r k lal books and stories PDF | बच्चों को सुनाएँ - 7 सही दोस्त की तलाश

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बच्चों को सुनाएँ - 7 सही दोस्त की तलाश

बच्चों को सुनाएँ – 7-

सही दोस्त की तलाश

आर ० के ० लाल

रमेश के पिता का गांव में बहुत बड़ा मकान और कई फार्म हाउस थे जिसके शानो-शौकत में पल कर रमेश ने वहीं से ही इंटर पास कर लिया था। उसके पिता चाहते थे कि रमेश पढ़कर एक बड़ा प्रशासनिक अफसर बन जाए तो उनकी गांव में इज्जत बढ़ जाएगी इसलिए उन्होंने शहर के एक बड़े डिग्री कॉलेज में उसका प्रवेश करा दिया था। रमेश वैसे तो पढ़ने में तेज था परंतु रईस बाप का इकलौता लड़का होने के कारण उसकी कुछ आदतें बिगड़ गईं थी। अक्सर लोग रमेश की शिकायत करते कि वह आवारागर्दी करता है।

रमेश के पिता ने सोचा कि शहर जाने से रमेश गांव के छिछोरे दोस्तों से दूर हो जाएगा। उसके पिता जब उसको शहर छोड़ कर लौटने लगे तो उन्होंने रमेश को प्यार से समझाया, “ बेटा ! मैं जानता हूं कि तुम किन गंदी आदतों के शिकार हो चुके हो जिसकी वजह से तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं लगता, मगर तुम्हें नादान समझकर और यह मानते हुए कि भला – बुरा कहने से तुम्हारे अहम को धक्का लगेगा, तुम अपने दोस्तों के सामने अपनी बेइज्जती महसूस करोगे, मैंने कभी तुम्हें डांटा और मारा-पीटा नहीं । गांव में तुम्हारे सभी दोस्त मौकापरस्त थे जिससे तुम्हारी आदतें और खराब हो रहीं थी। आज तुम उनसे दूर हो इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम स्वयं इन बातों को रियलाइज करो और उन्हें छोड़ दो। तुम्हारे पास मात्र तीन साल हैं जिसमे तुम या तो कुछ बन जाओगे अथवा गंदी आदतों के कारण कहीं के नहीं रहोगे। तुम्हें स्वयं निर्णय लेगा होगा कि तुम्हारी तमन्ना क्या है”?

उसके पिता ने उसे आगे समझाया, “नयी जगह तुम्हें नए दोस्त बनाने पड़ेंगे । तुम अपने दोस्तों का चयन सावधानी से करना क्योंकि अगर तुम्हारे पास अच्छे दोस्त होंगे तो जीवन अधिक सकारात्मक बन सकता है। दोस्त ऐसे हों जो तुम्हारी सहायता करें। जब भी तुम भावनात्मक रूप से कमज़ोर महसूस करो तो उस समय वे तुम्हारा मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हों। मुश्किल में सच्चे दोस्त ही साथ देते हैं बाकी सब तो भाग खड़े होते हैं”।

उस रात रमेश को नींद नहीं आई । अपने पिताजी के वाक्य उसे तीर की तरह चुभ रहे थे। उसने सोचा सब कुछ जानते हुये पिताजी ने मुझे प्यार ही दिया । इस बात ने तो उसकी दुनिया ही बदल दी । उसने पक्का इरादा कर लिया कि वह अपने पिता की नसीहत से कुछ करके दिखयेगा। सबसे पहले वह एक सच्चा दोस्त बनाएगा ।

रमेश चाहता था कि कोई उसकी गंदी आदतों से छुटकारा दिला दे परंतु वह अपनी बात किससे कहे? सभी उस पर हँसेंगे। बेइज्जती भी तो होगी। उसने सोचा कौन मेरा सच्चा मित्र बनेगा? इन्हीं बातों पर आत्मचिंतन से उसके मन में आया कि वह अपनी बहुत सी गलत आदतों के बारे में खुद ही जानता है परंतु नहीं जानता कि इन आदतों से छुटकारा कैसे मिले।

रमेश बड़े घर का था इसलिए बहुत तरह के लड़के-लड़कियां उसके दोस्त बनना चाहते थे। संतोष भी उन्हीं में से एक था जो रमेश के साथ एक दोस्त की तरह रोज मेट्रो से कालेज आता जाता। रमेश ने एक दिन देखा कि मेट्रो की भीड़ में एक लड़की चढ़ी तो संतोष उसके साथ पीछे से छेड़खानी करने लगा। उस लड़की ने बचने की बहुत कोशिश की लेकिन वह भीड़ में इस तरह फंसी हुई थी कि कुछ नहीं कर सकी। उसकी आंखों में आंसू आ गए थे। बाद में रमेश ने संतोष पूछ लिया, “तुम उस लड़की के साथ क्या बदतमीजी कर रहे थे। मेरे गाँव में ऐसा करते तो लोग तुम्हें मार ही डालते। तुम्हें डर नहीं लगता”? वह बोला, “यहाँ तो ऐसे वाकये हर रोज, हर गली, सड़क में होते ही रहते हैं। लड़कियों को भी तो मजा आता होगा। तुम भी मौके का फायदा उठा लिया करो”। रमेश ने समझा कि संतोष गंदे संस्कारों वाला है उसमें नैतिक शिक्षा’ का बहुत अभाव है इसलिए रमेश ने उससे दोस्ती खत्म कर ली।

फिर रमेश के जिले का कमल उसके पास आने लगा । आईएएस बनने का सपना लिए वह तहजीब में वह बहुत बढ़िया लड़का था। कमल रमेश के घर आता , केरियर की बातें करता , खाता पीता और चला जाता। मगर कुछ दिनों बाद पता चला कि रमेश की चीजें पैसे, आदि गायब होने लगे । पता चला कि यह कमाल कमल ही करता था। रमेश ने उससे दोस्ती तोड़ ली और उसे अपने घर आने से मना कर दिया।

रमेश की एक सहपाठिनी शीला भी बड़ी भली थी। एक पुस्तक के लेन-देन में उनकी जान पहचान हुयी थी । रमेश ने सोचा किसी लड़की की दोस्ती अच्छी रहेगी। दोनों अब साथ रहने लगे। एक दिन रमेश ने देखा कि क्लास बँक करके शीला दिन में मॉल जाती, अन्य लड़के-लड़कियों के साथ मॉल की सीढ़ियों पर देर तक गप्प मारती , पी वी आर में मूवी देखती। उसे उसके चरित्र पर शक हुआ । रमेश अब शीला को भी नजर अंदाज़ करने लगा।

काफी प्रयासों के बावजूद भी रमेश को कोई सही दोस्त नहीं मिल पा रहा था क्योंकि किसी में नशे की लत थी तो कोई प्ले ब्याय, एवं ऑनलाइन अडल्ट मैगजीन तलाशता रहता। सब एक से बढ़ कर एक थे। निराश होकर रमेश अकेले ही कमरे में पड़ा रहता, सिगरेट पीता , व्हाटसएप्प – फेसबुक पर चेटिंग करता और इंटरनेट पर फिल्म क्लिपिंग आदि देख कर समय खराब करता ।

तभी एक दिन भावेश नाम का एक लड़का कुछ रुपए उधर मांगने आया। उसने कहा कि दो दिनों में पैसे वापस कर देगा। ठीक दो दिन बाद ही वह पैसे वापस करने रमेश के घर आया । रमेश ने उसे अपनी समस्या बतायी। भावेश ने कहा , “जो अपनी गलतियों को समझता है वह उन्हें सुधार भी सकता है। महत्वपूर्ण है कि तुम किसके साथ समय बिताते हो अर्थात तुम्हारा दोस्त कैसा है? यदि वह भी उन्हीं आदतों का गुलाम है तो फिर दोनों मिलकर सामूहिक रूप से वह गलत काम करने लग जाएंगे”।

भावेश ने रमेश की मदद करने का मन बना लिया था मगर परोक्ष रूप से उससे कुछ नहीं कहा। बस उसे ऑबजर्व करता रहा। उसने पाया कि रमेश देर तक सोता रहता है, आलसी है, सिगरेट पीता है, और अपने लैपटॉप को किसी देखने नहीं देता जिससे लगता कि वह इंटरनेट का दुरूपयोग करता है अथवा गलत साहित्य में रुचि रखता है , इसीलिए पढ़ाई से विमुख हो गया है।

एक दिन भावेश ने रमेश से कहा, “मेरे पास पैसे नहीं हैं इसलिए कुछ दिनों तक मैं तुम्हारे कमरे में रहूँगा । इसके बदले मैं तुम्हारा खाना बना दूंगा”। रमेश तैयार हो गया । भावेश उसे रोज चाय के बहाने जल्दी उठा देता फिर कुछ पढ़ाने को कहता । जान-बूझ कर वह कहता कि तुमने तो बहुत अच्छी तरह समझा दिया। इससे रमेश मोटिवेट होकर ज्यादा बताने के लिए उत्सुक हो जाता । भावेश कोशिस करता कि वह हमेशा रमेश के साथ ही रहे। इस प्रकार रमेश इंटरनेट पर गंदी साइट भी नहीं देख पाता। जब रमेश सिगरेट पीता तो भावेश अपनी नाक दबा लेता जिसे देख कर रमेश सिगरेट भी कम पीता । दो हफ्तों में रमेश को लगा जैसे उसकी समस्या तो आधी खत्म हो गयी थी । जल्दी उठने के कारण उसका आलस्य भी दूर हो गया था। भावेश ने कहा तुम अब सही राह पर हो। यहाँ मेरी अब जरूरत नहीं है, इसलिए मैं कल यहाँ से चला जाऊंगा ।

जाते हुये भावेश ने उसे बताया कि “ज़्यादातर बुरी आदतें तभी बढ़ती हैं जब हम समझते हैं कि ऐसा करते हुए हमें कोई देख नहीं रहा है, इसलिए चलो कुछ मजा ले लेते हैं। यदि अकेले रहना छोड़ दो तो इन आदतों में से अधिकांश से छुटकारा पाया जा सकता है। दूसरी बात हमेशा अपने को इंगेज रखने की है ताकि उन चीजों के लिए तुम्हारे पास समय ही न हो। तुम्हारा दोस्त ऐसा होना चाहिए जो इन बातों को समझता हो और तुम्हें उन आदतों से दूर ले जाने का प्रयास करे। अपने मन की गलत चाहतों से अगर तुम दूरी बना लोगे तो एक चमत्कार होगा और तुम गलत काम करने से बच जाओगे”।

रमेश ने भावेश को गले लगा लिया। उसे सही दोस्त मिल गया था।