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Subject - सूपर हैप्पी का फ्रेंड "ललित" बन गया तोता 🐦!ओ
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एक दिन जब मैं और मेरे दोस्त स्कूल के बाद अपने घर जा रहे थे, तभी सामने से एक साधु आ रहे थे। उन्हें देखकर लग रहा था जैसे कि उन्होंने पिछले तीन चार दिनों से कुछ नहीं खाया हो। उनकी हालत कुछ ऐसी हो रही थी कि वो ठीक से सड़क पर चल भी नहीं पा रहे थे। लेकिन हम चारो अपने आप में ही मग्न थे। ललित ने स्कूल से निकलते वक्त कुछ केले 🍌 लिए थे। और रास्ते में हम चारों वही केले 🍌 खाते हुए जा रहे थे। मैं, नीलम और राजा तो अपने केलों के छिलके कूड़ादान में डाल रहे थे लेकिन ललित अपने छिलके सड़क पर ऐसे ही फेंक रहा था। नीलम इसी बात के लिए ललित को समझा रही थी कि तुम्हें छिलके रास्ते पर ऐसे ही नहीं फेंकने चाहिए इनकी वजह से कोई फिसलकर गिर भी सकता है, इसलिए छिलकों को कूड़ेदान में डालो। इसपर ललित हसकर बोला "कौन बार-बार कूड़ेदान के पास जाकर उसमें छिलके डाले? मैं तो यहीं सड़क पर ही डालुंगा और जो भी आएगा वो खुद देखकर बचेगा, मैने क्या किसी का ठेका लिया है?" फिर भी नीलम ने ललित को समझाने की कोशिश लेकिन ललित तो समझना ही नहीं चाहता था। वो अपने छिलके सड़क पर ही फेेंकता रहा। तो नीलम ललित से अपनी बात ना माननेे पर नाराज होकर हम चारो से आगेे चली गई। मैं और राजा उसे मनाने के लिए उसके साथ चलेे गए लेकिन ललित हम-तीनों सेे पीछे रह गया। मैने और राजा ने नीलम को घर तक पहुंते-पहुंंते मना ही लिया। और फिर हम अपने-अपने घर चले गए। जब मैं अपने घर 🏡 पहुंचा तो मेरी मम्मी ने बताया बेेटा ललित के घर से फोन 📱 आया था। मैं तुरंत समझ गया कि उसने नीलम के बारे में पूछने के लिए ही फोन 📱 किया होगा। मैने मम्मी से कहा कि ठीक है, मैं खाना खाने के बाद काँल कर लूंगा फिर मैं फ्रैस होने के लिए चला गया। लेेकिन जैसेे ही मैं फ्रैस होकर वापस आया तो तुरंंत नीलम का फोन 📱 आ-गया।
मैं - हैलो!
नीलम -हैलो , हरीश ललित तुुुुम्हारे साथ हैै क्या?
मैं - नहीं तो! वो तो हम तीनों से पीछे ही रह गया था ना।
नीलम - हां, लेकिन अभी उसके घर से उसकी मम्मी का फोन आया था वो बोल रहीं थीं कि ललित अभी तक घर नहीं पहुंचा है तो मैने सोचा सायद वो तुम्हारे साथ होगा। मैैैने तो इसलिए तुुुम्हें फोन किया था।
मैं - कोई बात नहीं। लेकिन मैं अभी उसके घर फोन करता हूं।
नीलम - ओके! फोन करके जैसी भी बात हो तो मुझे भी बता देता।
मैं - ओके बता दूूंगा बाऐ।
नीलम - ओके बाऐ।
नीलम और ललित एक-दूसरे को पसंद करते हैं लेकिन कभी उन दोनों ने आपस में एक-दूसरे को नहीं बताया।
फिर मैने तुरंत ललित के घर फोन लगाया तो फोन पर ललित की मम्मी बोलीं थी।
ललित की मम्मी (मिस चौधरी) - हैलो!
मैं - हैलो! आंटी नमस्ते!
मिस चौधरी- नमस्ते बेटा!
मैं - सारी आंंटी जब आपने पहले फोन किया था तब मैं फ्रैस होने के लिए गया हुुुआ था। तो तब मैं आपकी कॉल अटेंड नहीं कर पाया।
मिस चौधरी - कोई बात नहीं बेेेटा। वैसे मैैैने तुम्हें इसलिए कॉल किया था कि कहीं ललित तुम्हारे साथ है क्या?
मैं - नहीं आंटी आज वो हमसे बाद में आया था तो वो आज हमारे साथ नहीं है।
लेकिन वो ललित को लेकर बहुत परेशान हो रहीं थीं। तो मैने नीलम और राजा को फोन करकेे बोला कि जल्दी से जल्दी मेरे घर आ जाओ फिर हम तीनों ललित को ढूंढना शुरू करेंगे।
वो दोनों थोडी ही देर में मेरे घर आ गए और फिर हमने शुरू किया "मिशन ललित सर्च" मैने नीलम से कहा कि सबसे पहले हम उसी जगह चलते हैं जहां हमने उसेे छोडा था। जब हम तीनों वहां पहुंचे तो हमेें वहां पर उसका स्कूल बैग गिरा हुआ मिला। इस बात सेे नीलम घबरा गई क्योंकि ऐसे पडे हुुुए स्कूल बैग को देखकर हम समझ चुुुके थे कि ललित के साथ कुछ तो हुआ है। नीलम को चिन्ता हो रही थी कि कहीं ललित किसी मुसीबत में तो नहीं है। लेकिन मैने और राजा ने मिलकर किसी तरह से नीलम को समझा-बुझाकर शांत किया । पर हमें समझ नहीं आ रहा था कि अब हम ललित को ढूूंढे तो ढूूंढे कैसे? तभी एक तोता आकर नीलम के पास बार-बार जोर-जोर से आवाज करने लगा। नीलम उसे बार-बार दूर भगा रही थी लेकिन वो तोता बार-बार नीलम के पास आकर शोर करने लगता था।
तभी
राजा - एक बात बोलूं?
नीलम - हां बोलो।
मैं - अगर हम ना कहें तो नहीं बोलेगा क्या?
राजा - अरे सुन तो लो।
मैं - अच्छा ठीक है बोल।
राजा - (हसते हुुुए हमसेे बोला) तुुुम्हें नहीं लगता कि इस तोतेे मेें और ललित में एक बात बिल्कुल सेम है।
नीलम - क्या?
राजा - ललित भी नीलम के चारो ओर पटर-पटर करता फिरता है और आज ये तोता भी नीलम के ही चारो ओर शोर कर रहा है।
मैं - हां ये बात तो बिल्कुल ठीक बोली हैै तूने।
तभी तोता(ललित) गुस्से भरी आवाज़ में बोला "अबे कमीनो मैं ही ललित हूं। तोते को बोलता हुआ देखकर मानो हम तीनों तो मूूूूूर्ति ही बन गए।
मैं - ओए राजा क्या हम कोई सपना देख रहे हैं?
राजा - मुझे भी ऐसा ही लगता है।
हमारी बातें सुनकर तोते(ललित) को गुुस्सा आ गया। उसने अपने पंख हमारे सर पर मारने शुरू कर दिए। बडी मुश्किल से हमने उसे शांत किया और फिर हमनेे उसकी इस हालत में होने का कारण पूंछा। तो उसने बताया कि जब नीलम उससे नाराज़ होकर आगे चली गई थी और हम दोनों(मैं और ललित) भी नीलम केे साथ आगे चले गए थे तभी वहां सेे गुजरते वक्त एक साधु मेरे फेंके हुए केलेे 🍌 के छिलके के कारण फिसलकर नीचे गिर गए। और गुस्से में आकर उन्होने मुझे तोता बनने का श्राप दे दिया। मैैैने उनसेे आपनी गलती के लिए बहुत माफी मांगी लेकिन तब तक साधु महात्मा मुझे श्राप दे चुके थे। लेकिन उन्हें बाद में मुझपर दया आ गई तो उन्होने मुुझे कहा कहा कि अगर तुम दो गरीबों की भूख मिटा सके तो तुम ठीक हो जाओगे। तब मैंने उन्हें अपने बैग में रखें खाने और सारे पैसों के बारे में बता दिया ताकि वह अपनी भूख शांत कर सकें। फिर उन्होंने मेरे पैसों से खाना खरीद कर खा लिया। लेकिन वह केवल एक ही गरीब थे और उन्होंने कहा था की मुझे दो गरीबों की भूख शांत करनी है। तो उनसे मैंने कहा की साधु महाराज मुझे तो केवल आप ही सुन सकते हो तो मैं अपनी बात दूसरों से कैसे कहूंगा? तब उन्होंने मुझसे कहा की अगर कोई भी व्यक्ति मेरे सामने मेरा नाम लेगा तो वह मुझे सुन पाएगा इसीलिए मैं सबसे पहले अपने घर गया तो मॉम ने मेरा नाम ही नहीं लिया बल्कि मुझे डांट कर घर से भगा दिया। फिर मैं हरीश तुम्हारे घर गया तो तब तुम वॉशरूम गए हुए थे जैसे ही मैं तुम्हारे रूम में घुसने वाला था तभी तुम्हारी मम्मी ने खिड़की बंद कर दी। और नीलम के घर मैैंइसलिए नहीं गया क्योंकि येे तो मुझसे पहले से ही नाराज़ है तो मैने सोचा कि वो तो मेरी कोई मदद नहीं करेगी।
नीलम - पहले एक बार तुम ठीक हो जा फिर मैं तुुम्हें देखूंगी। तुुुम्हें मुझ पर इतना भी विश्वास नहीं है क्या?
मैं - लड बाद में लेना अभी एक आदमी ढूूंढो जिसे हम खाना खिला सकें।
राजा - हां चलो अब।
हम चारों अब एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे जो भूखा हो। बहुत देर तक इधर-उधर भटकने के बाद एक बच्चा हमारे पास भीख मांगने के लिए आया। तो हम चारो को बहुत खुशी हुई कि आखिरकार हमें वो इंसान मिल ही गया जिसकी हमे तलाश थी। हम उस बच्चे को अपने साथ एक सानदार से होटल में लेकर गए और उसे पेट भरके खाना खिलाया। जब उसने खाना खा लिया तो हमने उसे कपडे दिलाऐ और कुछ रुपये भी दे दिए। फिर कुछ ही देर में ललित पहलेे जैसा बन गया। तब नीलम ने अपना गुस्सा बाहर निकाला। तब तो बेेेचारा वहां से बच भागा। लेकिन जैसे ही हम ललित के घर पहुंचे तो वहांं उसके मॉम डैड ने राजा से पूछा कि ये कहां था अब तक तो राजा ने झूूठ बोल दिया कि आज यह फिर से बंक मारने के लिए स्कूल से भाग गया था अभी ये हमेे सिटी सेंटर पार्क में मिला था। और हमे बता रहा था कि आज ये पिक्चर देेेेेखने सिनेमाघर भी गया था। फिर तो ललित के मॉम डैड का पारा हाई हो गया। और आगे तो आप जानते ही हो कि ललित के मॉम डैड ने उसका क्या हाल किया होगा। लेकिन तब कुछ भी हुआ हो पर उसके यूं सडक पर छिलके फेंकनेे बंद हो गए। जब ललित अगलेे दिन स्कूल गया तो हम तीनों ने मिलकर उसकी खूब खिंचाई की "कि क्या हाल हैं मॉम डैड ने ज्यादा पिटाई तो नहीं की।
ललित - यार इससे तो मैं तोता ही बना रहता तो ठीक रहता कम-से-कम बैंड तो ना बनता।
राजा - बैंड!
ललित - हां यार कल जो मॉम डैड नेे मेेेेरी पिटाई की है उससे तो अब मैं यही सोच रहा हूँ कि आज क्लास में मैैं बैठुंगा कैसे? आज बहुत दर्द हो रहाा है।
तभी स्कूल के दरवाजे से बाहर होकर वही साधु जा रहा था तो नीलम नेे कहा कि शायद साधु महात्मा ने तुम्हारी बात सुुन ली इसलिए तुुुम्हें वापस से तोता बनाने केे लिए आ गए हैं। ललित साधु महात्मा जी को देखकर तुरंत कमरे में भाग गया।
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तो चलिए आज के लिए नमस्कार। मिलते हैं सुपर हैप्पी के अगले चैप्टर में।