अगर आप मिथकीय गाथाओं और उनके चरित्रों में गहन रुचि रखते हैं तो इस तरह की कहानियों से आपका लगाव स्वाभविक है। ये सही है कि इस तरह की कथाएँ हमें रोमांचित करती हैं मगर कई बार उनमें घट रही घटनाओं को जब हम अपने तर्क की कसौटी पर कस कर देखते हैं तो इस मंथन से निकले प्रतिफल को जान खुद को कहीं ना कहीं छला हुआ पाते हैं। तब हमारे मन में कहीं ना कहीं दुविधा अथवा शंका उत्पन्न होती है कि उन्हें सच कैसे और किस आधार पर माना जाए?
ऐसे ही दुविधा रामायण काल के अहल्या प्रसंग में दिखाई देती है कि बाल्मीकि कृत रामायण में राम और लक्ष्मण, अहल्या के चरण छूते हैं और तुलसीदास कृत रामचरित्र मानस में अहल्या, राम के चरण स्पर्श करती है और फिर अगर अहल्या देवताओं के राजा इंद्र के साथ व्यभिचार की दोषी थी तो श्रीराम उनके चरण छूने या अपने छुआने क्यों गए थे? पति द्वारा खुद को त्याग दिए जाने के बावजूद अहल्या के मन में अपने पति ऋषि गौतम के प्रति गुस्सा क्यों नहीं था अथवा ऋषि गौतम भी अपनी पत्नी को वापिस प्राप्त करने को उत्सुक क्यों दिखाई देते थे?
ऐसी ही तमाम दुविधाओं को दूर करने का प्रयास प्रसिद्ध कथाकार नरेंद्र कोहली जी ने अपने उपन्यास "अहल्या" के ज़रिए किया है। कल्पना मिश्रित इस कहानी में उन्होंने बुद्धिजीवी प्रवृति के ऋषि गौतम और अहल्या को एक पीड़ित पति-पत्नी के रूप में दर्शाया है जिन्हें अपने साथ हुए अन्याय का बदला उस समय के सबसे शक्तिशाली सत्तारूढ़ देवराज इंद्र से लेना है जो कि उनकी पत्नी अहल्या का जबरन शील भंग करने का अपराधी है। अगर वे अपनी पत्नी को, अपने लाख चाहने के बावजूद भी, अपनाते हैं तो आश्रम की सत्ता उनके हाथ से जाती है जिसके परिणामस्वरूप इंद्र को दिए जाने वाले उनके श्राप के कोई मायने नहीं रहेंगे।
इस उपन्यास के ज़रिए नरेन्द्र कोहली जी ने इंद्र की लोलुपता, ऋषि गौतम तथा अहल्या की पीड़ा, उनकी मानसिक अवस्था और उसमें भीतर चल रहे अंतर्द्वंद्व सहित विश्वामित्र के मंतव्यों का भी बहुत ही बढ़िया एवं रोचक तरीके से वर्णन किया है। किस तरह ऋषि गौतम अपनी पत्नी का त्याग करने को तैयार होते हैं? उनके पाँच वर्षीय पुत्र का क्या होता है? विश्वामित्र का राम और लक्ष्मण को अपने साथ अहल्या के पास ले जाने का मंतव्य क्या था? इसके अलावा और भी अनेक जिज्ञासाओं और उनके हलों को जानने के लिए आपको बहुत ही लुभावने अंदाज़ में लिखी गयी यह पुस्तक पढ़नी होगी। नरेन्द्र कोहली जी की लेखनशैली ऐसी है कि आप खुद को मंत्रमुग्ध होने से कतई नहीं बचा सकते। पढ़ने वालों से मेरा आग्रह कि इस उपन्यास में नरेन्द्र कोहली जी द्वारा लिखी गयी भूमिका को पहले नहीं मगर अंत में ज़रूर पढ़ें।
बढ़िया क्वालिटी एवं कंटैंट से सुसज्जित इस उपन्यास के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है हिन्द पॉकेट बुक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है ₹250/- जो कि इसकी संग्रहणीय विषेशता को देखते हुए बिल्कुल भी ज़्यादा प्रतीत नहीं होता। लेखक तथा प्रकाशक को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए अनेकों अनेक शुभकामनाएं।