PARAYIVESI in Hindi Classic Stories by हरिराम भार्गव हिन्दी जुड़वाँ books and stories PDF | प्राइवेसी

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प्राइवेसी

रोमित के ऑटो बुलाने पर कानों को चीर देने वाला हॉर्न देते हुए ऑटो रुका l पर ऑटो की आवाज सुनकर गली में आज कोई बच्चा नहीं आय़ा l बीसों साल पहले किसी गाड़ी की आवाज सुनते ही बच्चे दौड़ पड़ते थे l आज का युग नीरस का युग है, लोग मतलबी हो गए हैं l अपनेआप से ही मतलब रखते हैं छतों पर खड़ी कुछ पड़ौसने खड़ी एक टूक यही l आज देवी कहाँ जा रही है?, क्यों जा रही है? किसी को कोई मतलब नहीं l एकांत में खुशियाँ ढूंढने वाली देवी अब 45 वर्ष की हो चुकी थी l करीब 20 साल पहले बुआ के भतीजे सारा दिन देवी को घेर कर रखते, बुआ ऑफिस से लौटते वक्त कुछ न कुछ अवश्य अपने चूजों के लिए चॉकलेट बगैर ले आती थी l '' बुआ! बुआ! क्या कर रही हो l मुझे आपके साथ सोना हैं, मम्मी ने मुझे आज डाँटा था l अब लाड लडाने, प्यार करने वाले बुआ के बच्चे बड़े हो गए थे l ज्यों-ज्यों बचपन खत्म होता है त्यों-त्यों हम मतलबी हो जाते हैं l रोमित जो रोज बुआ के साथ सोया करता था l वही छोटे-छोटे बच्चे जो सारे दिन बुआ की गोद में बैठे रहते थे l आज उसी रोमित को बुआ फूटी आँख न सुहाती l ये घर तो बुआ का ही था पर अब आधिपत्य इन भतीजों का हो गया, बुआ परायी लगने लगी l जब ये पैदा हुए थे तब इसी बुआ का बड़ा मान सम्मान करते थे l भाभी भी बड़ा प्यार करती थी, जो अब देवी की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करती है l देवी की माँ, जो अब ईश्वर के पास चली गयी, उसने कई बार देवी को समझाया कि बेटी, प्रकृति बिना पुरुष के अधूरी है, विवाह कर लो l...... तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी l देवी अपने अतीत के चलचित्र से बाहर आयी l और दरवाजा खोला l

दरवाजे पर बुआ-बुआ कहने वाला रोमित अपनी माँ के साथ था l '' देखो देवी इसी हफ्ते घर खाली कर देना, रोमित को देखने लड़की वाले आयेंगे l वे पूछेंगे कि ये अधेड़ कौन है ? कहीं यूनिवर्सिटी के पीछे वाली कालोनी में किराये पर रह लेना'' रोमित की माँ तपाक से बोल गयी l देवी को कुछ कहने का मौका मिलता, उससे पहले रोमित दरवाज़े पर जोर से मुक्का मारकर अपनी मां का हाथ पकड़ कर, तपाक से दोनों मुड़ गए l


आज एकांत में खुशियाँ ढूंढने वाली स्वाभिमानी देवी की प्राइवेसी काँच के गिलास की तरह टूट गई, जिससे जोड़ना मुश्किल था l आज वह सुबह हो गयी l आज यहां से देवी अपनी यादों को समेटकर हमेशा के लिए जा रही थी, घर को आखिरी बार भरी नजर से देखना चाहा, पर भरी आँखों से सब धुँधला कर दिया, आँसू झरते रहे l घर, गलियाँ, बचपन, साथी सब आंसुओं में धुंधले हो गए l ऑटो चल दिया और कहीं गली में खो गया l आज रानी के आँसू देखने वाला, उसे रोकने वाला कोई नहीं था l न निश्चल प्रेम करने वाला हरि था, न बहन पूजा और न ही मनीषा थी और न दिवंगत माँ थी l

हरिराम हेतराम भार्गव "हिन्दी जुड़वाँ"©