Bikharte Sapne - 2 in Hindi Children Stories by Goodwin Masih books and stories PDF | बिखरते सपने - 2

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बिखरते सपने - 2

बिखरते सपने

(2)

मुन्ना को उसके पापा ने प्यार से समझाया तो मुन्ना डेªेस चेंज करने चला गया और सपना उसके लिए खाना परोसने लगी। खाना परोसते समय सपना ने मिस्टर गुप्ता से कहा, ‘‘तुम्हारे लिये भी निकाल दूं...?’’

‘‘नहीं, मुन्ना को खा लेने दो, हम लोग स्नेहा के साथ खा लेंगे।’’ मिस्टर गुप्ता ने कहा।

‘‘ठीक है, स्नेहा डेªस चेंज करके आ जायेगी तो हम लोग उसी के साथ खा लेंगे। कहकर वह और मिस्टर गुप्ता स्नेहा के आने का इन्तजार करने लगे।

मुन्ना को बहुत तेज भूख लगी थी, इसलिए वह हमेशा की तरह खाना खाने बैठ गया। स्नेहा के मम्मी-पापा स्नेहा का इंतजार करने लगे कि वह अपनी ड्रेस चेंज करके आयेगी तो उसी के साथ वो लोग भी लंच ले लेंगे।

टी.वी. आॅन होते ही स्नेहा ने सबसे पहले स्कोर बोर्ड पर नजर डाली, तो उसका चेहरा ताजे फूल की तरह खुशी से खिल गया, क्योंकि साइना अपनी प्रतिद्वंदी खिलाड़ी से दो अंकों की बढ़त बनाये हुए थी।

जीत की ओर बढ़ते साइना के कदमों को देखकर स्नेहा बहुत खुश हुई। कुछ देर पहले दिल-ओ-दिमाग में जो निराशा और चिढ़चिढ़ापन छाया हुआ था, वह दूर हो गया था। वह खुद को तरो-ताजा महसूस कर रही थी।

इधर स्नेहा टीवी पर चल रहे बैडमिन्टन टूर्नामेंट में खोई हुई थी, उधर उसकी मम्मी और पापा उसका इंतजार कर रहे थे कि स्नेहा जल्दी से स्कूल ड्रेस चेंज करके आये, तो वो लोग उसके साथ लंच करें।

जीत के साथ साइना ने खेल का आखिरी स्टाॅक लगाया तो इनडोर स्टेडियम में बैठे बैडमिन्टन प्रेमी खड़े हो गये और पूरा स्टेडियम उनकी तालियों की गड़गड़हाट से गूंज उठा।

साइना की उस शानदार जीत को देखकर स्नेहा को इतनी खुशी हुई कि वह खुद को साइना में देखने लगी और ख्वाब में खोती चली गयी।

उसने देखा कि वह किसी दूसरे देश के बहुत बड़े जाने-माने इनडोर स्टेडियम में है। आज उसका बैडमिन्टन टूर्नामेंट होने वाला है। दर्शकों की भीड़ से स्टेडियम खचा-खच भरा हुआ है। चारों तरफ से लोगों का एक ही स्वर सुनाई दे रहा है....स्नेहा.....स्नेहा....स्नेहा...। अपने लिए लोगों के इस प्रेम और स्नेह को देख व सुनकर स्नेहा भावुक हो उठती है। भगवान् से कहती है, भगवान्! आज मैं पहली बार अपने देश के लिए खेलने जा रही हूं, मेरी इज्जत रखना। मेरे इन प्रशंसकों को मुझसे जो जीतने की उम्मीद है, उसे बरकरार रखना। मुझे इतनी शक्ति और समझ देना कि मैं अपने प्रशंसकों की कसौटी पर खरी उतरूं।’’

भगवान् से प्रार्थना करने के बाद वह स्टेडियम में से आती लोगों की आवाजें और बार-बार अनाउंस होते अपने नाम को सुनकर बहुत खुश होती है, और मन में कहती है, ‘‘इसी दिन का तो इंतजार था मुझे...आज मेरा इंतजार खत्म हो गया। हजारों की संख्या में मेरे प्रशंसक और बैडमिन्टन खेल प्रेमी मेरे खेल का आनन्द लेने आये हैं। मैं इन्हें निराश नहीं होने दूंगी और अपने खेल का अच्छे-से-अच्छा प्रदर्शन कर अपने देश वासियों को खुश कर दूंगी।’’

निर्धारित समय पर स्नेहा खेलने के लिए अपने कमरे से बाहर निकली, तो दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों ने खड़े होकर और तालियां बजाकर स्नेहा का स्वागत किया, तो स्नेहा और अधिक भाव-विभोर हो उठी। बैडमिन्टन ड्रेस और हाथ में पकड़े रैकिट के साथ स्नेहा बेहद खूबसूरत दिखायी दे रही थी।

थोड़ी देर में स्नेहा अपनी प्रतिद्वंदी खिलाड़ी के सामने खड़ी दिखायी दे रही थी। खेल रैफरी ने दोनों खिलाड़ियों का हाथ मिलवाया और औपचारिका के तौर पर दोनों को खेल के कुछ नियम बताये और खेल शुरू हो गया।

स्नेहा अपना एक-एक स्ट्रोक बहुत ही सोच-समझकर और नाप-तोलकर लगा रही थी। उसके एक-एक शाॅट पर पूरा स्टेडियम दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा था।

जल्दी ही स्नेहा ने अपनी जीत का एक अंक बनाने के साथ अपनी प्रति़द्वंदी खिलाड़ी के छक्के छुड़ा दिए।

‘‘क्या हुआ सपना...? ...मेरा तो भूख के मारे बुरा हाल हो रहा है और स्नेहा ने अभी तक अपनी डेªस ही चेंज नहीं की है...? ....जाओ, जाकर देखो, वह क्या कर रही है, उसे भूख नहीं लग रही है...?’’

स्नेहा के पापा ने उसका इंतजार करते हुए झल्लाकर कहा तो सपना ने कहा, ‘‘मैं हम सब के लिए खाना परोस रही हूं, तुम जाकर स्नेहा को बुला लाओ।’’

‘‘ठीक है, मैं ही चला जाता हूं।’’

कहकर वह वहां से उठकर स्नेहा के कमरे में जाते हैं। स्नेहा अपने कमरे में नहीं होती है, तो वह मन में कहते हैं, अरे! ये स्नेहा कहां चली गयी...? तभी उनके कानों से टीवी की आवाज टकरायी। टीवी की आवाज सुनकर उनका माथा ठनका। उन्होंने मन में कहा, ‘‘ओह, स्नेहा कहीं टी.वी. तो नहीं देख रही है...?’’ कहकर वह ड्राइंगरूम की तरफ चले गये।

ड्राइंगरूम में आते ही गुस्से से उनका पारा चैथे आसमान पर चढ़ गया, क्योंकि उन्होंने देखा कि टी.वी. पर साइना की जीत का जश्न मानाया जा रहा था। उसे टूर्नामेंट जीतने की खुशी में ट्राॅफी दी जा रही थी और स्नेहा अपनी आंखें बंद किये सोफे से टेक लगाकर बैठी अपने हाथ-पैर इधर-उधर चला रही थी और मुंह-ही-मुंह में कुछ बुदबुदा रही थी।

‘‘स्नेहा....।’’

स्नेहा के पापा ने जोर से कहा, तो स्नेहा चैंक कर उठ बैठी। सपनों की दुनिया से निकल कर स्नेहा हकीकत के धरातल पर आ खड़ी हुई। उसने टी.वी. रिमोट उठाया और टी.वी. बन्द कर दिया।

‘‘यह क्या, मैं और तुम्हारी मम्मी खाने के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, और तुम यहां बैठकर टी.वी. पर खेल देख रही हो। ...तुमने अभी तक अपनी ड्रेस भी नहीं बदली और तुम्हारा बस्ता भी यहीं पड़ा है, यह कैसी लापरवाही है...हयं ....चलो फटाफट उठो और अपनी ड्रेस बदलकर जल्दी से खाना खाने के लिए आ जाओ।’’

पापा की फटकार लगते ही स्नेहा सहम गयी। वह चुपचाप सोफे से उठी और अपना बस्ता उठाकर अपने कमरे में चली गयी। इस समय स्नेहा को अपने पापा पर बहुत खीज हो रही थी, क्योंकि उन्होंने उसका सपना तोड़ दिया, जबकि वह नहीं चाहती थी कि उसका इतना सुन्दर और सुनहरा सपना टूटे। बेमन से सपना ने अपनी डेªस चेंज करके हाथ-मुंह धोया।

‘‘क्या हुआ...?’’ क्यों डांट रहे थे स्नेहा को ?’’ सपना ने मिस्टर गुप्ता के आते ही पूछा।

‘‘डांटता नहीं तो क्या उसे प्यार करता....यहां हम लोगों का भूख से बुरा हाल हो रहा हैै, और वह आराम से सोफे पर बैठी खेल देख रही है। उसने अपनी ड्रेस भी अभी तक नहीं बदली है।’’ मिस्टर गुप्ता ने कहा।

‘‘चलो कोई बात नहीं, खेल ही तो देख रही थी, कुछ और तो नहीं देख रही थी। अब उसे खेल देखने का शौक है तो क्या किया जाये। वैसे भी वह अभी छोटी, है, ऐसे मत डांटा करो।

‘‘सपना, तुम तो उसकी ही तरफदारी करोगी, कभी यह नहीं कहोगी कि हां मैं ठीक कह रहा हूं। बात-बात पर यही कहती हो कि वह अभी छोटी है। छोटी है, तो और कब सीखेगी? वैसे भी लड़कियों को ज्यादा आजादी नहीं देनी चाहिए, वरना.....।’’

‘‘अच्छा ठीक है, अब अपने गुस्से को थूक दो और खाना खाओ। ...स्नेहा हाथ-मुंह धोकर आ रही है, मैं उसके साथ खा लूंगी।’’ सपना ने हंसकर बात को टालते हुए कहा।

सपना के कहने पर मिस्टर गुप्ता खाना खाने बैठ गये। स्नेहा भी हाथ-मुंह धोकर आ गयी और चुपचाप खाना खाने लगी। खाना खाने के बाद मिस्टर गुप्ता ने स्नेहा से कहा,‘‘स्नेहा, तुम इतनी लापरवाह हो गयी हो, कि तुम्हें यह भी याद नहीं रहा कि तुम्हें अपनी डेªस चेंज करनी है...? ...बस आते ही टी.वी. खोलकर बैठ गयी।’’

‘‘पापा, वो क्या है कि साइना नेहवाल का टूर्नामेंट चल रहा है, आज सेमी फाइनल हो रहा था, इसलिए मैं देखने लगी थी।’’

स्नेहा ने डरते हुए कहा, तो उसके पापा एकदम भड़क उठे और बोले, ‘‘स्नेहा, मैं देख रहा हूं कि आजकल तुम्हारा ध्यान खेल की तरफ ज्यादा जा रहा है, तुमने पढ़ायी की तरफ ध्यान देना भी बंद कर दिया है। और तुम साइना नेहवाल की जबरदस्त प्रशंसक बनती जा रही हो। मैंने पहले भी तुमसे कहा है कि तुम लड़की हो, लड़की की तरह ही रहो। यह सब खेल-कूूद करना लड़कों का काम होता है। इसलिए खेल-कूद की तरफ से ध्यान हटाकर, पढ़ायी की तरफ ध्यान दो...और हां, खिलाड़ी बनने के सपने देखना छोड़ दो, क्योंकि तुम कभी साइना नेहवाल नहीं बन सकतीं।

उस दिन पापा के डांटने से स्नेहा सारा दिन गुमसुम-सी अपने कमरे में बैठी रही और सोचती रही कि उसके पापा उसको बात-बात पे लड़की होने का अहसास क्यों कराते रहते हैं...?’’ लड़की तो साइना नेहवाल भी है...? उसने भी तो खेलती है, वो भी अपने देश के लिए। वह भी कभी मेरी तरह छोटी रही होगी, उसको भी मेरी तरह खेलने का शौक रहा होगा। उसने भी मेरी तरह किसी खिलाड़ी से खेलने की प्रोरणा ली होगी। क्या उसके पापा भी उसे मेरे पापा की तरह डांटते होंगे...? ....शायद नहीं, तभी तो वह कामयावी के इस मुकाम पर है। काश! मैं भी साइना नेहवाल जैसे परिवार में जन्म लेती, जहां लड़कियों के ऊपर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं होती है, तो कितना अच्छा होता। मैं भी साइना की तरह दिन रात बस खेलती रहती। साइना की तरह मेरे भी इस देश में मेरे ढेरों प्रशंसक होते। लेकिन अब लगता है, मेरा खिलाड़ी बनने का सपना कभी पूरा नहीं हो पायेगा। यही सब सोचकर वह काफी उदास रहने लगी।

लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी स्नेहा अपने आपको बैडमिन्टन खेल से दूर नहीं कर पायी। उसे जब भी मौका मिलता, वह चुपचाप टी.वी. खोलकर बैडमिन्टन का खेल देखती। साइना नेहवाल की पत्र-पत्रिकाओं में छपी खबरों और तस्वीरों को सम्हाल कर रखती।

क्रमशः .......

बाल उपन्यास : गुडविन मसीह

E-mail : scriptwritergm8@gmail.com