Raat ka Surajmukhi - 4 in Hindi Moral Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | रात का सूरजमुखी - 4

Featured Books
Categories
Share

रात का सूरजमुखी - 4

रात का सूरजमुखी

अध्याय 4

डॉक्टर कामिनी अगले रोगी का इंतजार कर रही थी। कल्पना उस दरवाजे को धकेल कर अंदर आई।

"नमस्ते डॉक्टर !"

"नमस्कार ! बैठिएगा-"---कुर्सी को दिखाते हुए बोली। कल्पना बैठकर फिर बोली "डॉक्टर! मेरा नाम कल्पना है। अभी मैं आपके पास रोगी बनकर नहीं आई-------आपसे एक बात जानकर कनफर्म करने आई हूं।"

"क्या बात है ?'

"मैं एक लड़की को लेकर आई हूं। उसका नाम शांता है । दो महीने से पहले उसने आपसे अबॉर्शन करवाया बताया ! क्या यह सच है यह मुझे मालूम करना है। यही नहीं----वह लड़की यहां एडमिट हुई तो उसे देखने कौन-कौन यहां आए थे वह भी मुझे मालूम करना है!"

"क्यों क्या कोई समस्या है ?"

"बहुत बड़ी समस्या है डॉक्टर----आपके जवाब में ही हमारे परिवार की मान- मर्यादा, इज्जत सब सुरक्षित रहेगी।"

"उस लड़की को बुलाओ देखें !"

कल्पना ने उठकर जाकर दरवाजे को खोलकर बाहर झांका बेंच पर बैठी शांता को हाथ से इशारे से बुलाया। शांता अंदर आई।

उसे देख डॉक्टर कामिनी मुस्कुराई।

"यह तुम--- ?"

"अरे ! वाह डॉक्टर-----आपने मुझे याद रखा है!"

"तुम्हें मैं भूल सकती हूं क्या ? अबॉर्शन के समय तुम्हारे शरीर से बहुत ज्यादा खून बहा------उसे बंद करने में मुझे बहुत परेशानी उठानी पड़ी। बड़ी तकलीफ से रोका---अरे बाप रे---उसे मैं भूल सकती हूं क्या? हंसते हुए बोलती हुई डॉक्टर कल्पना की तरफ मुड़ी।

"इसमें संदेह ही नहीं इस लड़की का अबॉर्शन हुआ यह सच है। इसका अबॉर्शन मैंने स्वयं किया।"

कल्पना ने शांता को देखा।

"ठीक है, तुम जाकर बाहर बैठो !"

शांता के बाहर जाते ही कल्पना डॉक्टर की तरफ मुड़ कर पूछी "शांता इस अस्पताल में कितने दिन रही?"

"दो दिन।"

"इन दो दिनों में उसे देखने कोई आया था क्या ?"

"कोई आया था कि नहीं मुझे नहीं पता। ऐसा कोई आया भी हो तो वार्ड की नर्सों को पता होगा।"

"उन नर्सों से मैं बात कर सकती हूं ?"

"क्या बात है आपने बताया नहीं ?"

"आखिर में बताऊंगी डॉक्टर----पहले उन नर्सों को बुलवाईयेगा"

डॉक्टर ने घंटी बजाई तो एक नर्स ने झांक कर देखा।

"विमला और भामा को बुलाओ।"

नर्स के जाने के दो मिनट के अंदर ही विमला और भामा किवाड़ खोल कर अंदर आए।

कल्पना ने पूछा "बाहर बेंच पर जो लड़की बैठी है शांता उसे तुम जानती हो ना!"

"हां मैं जानती हूं।"

"दो महीने पहले वह यहां अबॉर्शन करवाने आई थी ?"

"हां ।"

"अबॉर्शन करवा कर शांता यहां दो दिन रही-----उस बीच उसे कोई देखने आया था क्या ?"

"दोनों ने सिर हिला दिया बोली "कोई आया जैसे नहीं लगा।"

"अच्छी तरह सोच कर बोलिएगा। क्योंकि इस पर एक परिवार का गौरव समाया हुआ है।"

कुछ क्षण सोचने के बाद एक ने कहा-"उस लड़की से मिलने कोई नहीं आया। परंतु एक टेलीफोन आया। मैंने ही जाकर उसे बताया।"

"शांता ने फोन पर उससे बात की ?"

"जी बात की।"

"किससे ?"

"आदमी कौन है पता नहीं, परंतु बातों के बीच में दो तीन बार बापू-बापू करके बोली।"

कल्पना को सदमा लगा।

"क्या ! बापू बोला?"

"हां मैंने अच्छी तरह सुना।"

कल्पना स्तब्ध रह गई और उठ गई।

सुबानायकम् अपने को घेर कर खड़े कल्पना, बापू, राघवन तीनों को अच्छी तरह देखने के बाद धीमी आवाज में बोले "मैं एक फैसले पर आ गया हूं।"

बापू बीच में बोला-"क्या फैसला? पुलिस में जाने का?"

"नहीं-----उस लड़की शांता और तेरी शादी अगले मुहूर्त में करने की।"

"अप्पा--'' बापू हड़बड़ा गया। सुबानायकम् आगे बोलने लगे-"उस लड़की को देखकर मुझे नहीं लगता कि वह झूठ बोल रही है। तुम कॉटेज में गए वह रूम बॉय से पक्का हो गया। अबॉर्शन के लिए अस्पताल में गई लड़की से तुमने फोन पर बातें की उस नर्स के द्वारा कंफर्म हो गया। अब तुम कुछ भी कह कर हमें धोखा नहीं दे सकते!"

"अप्पा!" जोर से चिल्लाया बापू।

"क्यों चिल्ला रहा है ?"

"अप्पा----कोई षड्यंत्र रच कर उस खराब हुई लड़की को मुझ पर थोपना चाहता है------कॉटेज के लड़के को और अस्पताल के नर्स को पैसा देकर उन्हें मेरे विरुद्ध बोलने को कहा है।"

"पर मुझे ऐसा नहीं लग रहा। तुम उस लड़की को धोखा देना चाह रहे हो।"

"अप्पा----नासमझ जैसे मत बोलिएगा---एक लड़की से प्रेम कर उसे धोखा दूं मैं ऐसा खराब आदमी नहीं हूं। उस चरित्रहीन लड़की को कोई मेरे पल्ले बांधना चाहता है। उसे पुलिस को दे दें तो----उसके बारे में सब सच्चाई बाहर आ जाएगी!"

सुबानायकम् ने हाथ के इशारे से उसे रोका। "तुम सोच रहे हो वह ऐसी लड़की खराब नहीं है। अपने परिवार के वकील को इस बारे में उसके कार्य स्थल और जहां पर रहती है वहां भेज कर मालूम किया। सब लोगों ने उस लड़की की तारीफ की किसी ने उसकी बुराई नहीं की!"

"अप्पा-----उसके बारे में बाहर किसी को नहीं मालूम होगा।" बापू के बोलने के बीच में राघवन बोला-"यह जल्द फैसला करने का विषय है। वह लड़की पुलिस में चली जाए तो-----समस्या उलझ सकती है।"

बापू चिल्लाया "अप्पा---मैंने कोई गलती नहीं करी। एक अबॉर्शन केस को मेरे सिर पर लादना कौन सा न्याय है?"

"तुमने गलती नहीं करी इसका तुम्हारे पास कोई सबूत है ? परंतु उस लड़की के पास कॉटेज का सबूत है------डॉक्टर का सबूत है। यह केस कोर्ट में जाएं तो भी जीतेगी वह लड़की।"

"कोर्ट में जाकर तो देखें !"

"किसी भी कारण से कोर्ट के दरवाजे पर पैर नहीं रखना है यह मेरा विश्वास है।"

कल्पना धीमी आवाज में बीच में बोली-"मामा मैं एक योजना बोलूं क्या?"

"बोलो !"

"उस लड़की को एक अच्छी राशि देकर बापू का और उसका कोई संबंध नहीं है ऐसा लिखवालें तो ?"

सुबानायकम् ने अपने जबड़े पर हाथ फेरा।

"वह लड़की मानेगी क्या ?"

"मुझे लगता है मानेगी ऐसा सोचती हूं।"

"भाभी यह बात मुझे पसंद नहीं यह मेरा अपमान है।"

"बापू----तुम चुप रहो। इस समस्या का कोई हल तो करना ही है। कुछ रुपए खर्चा हो जाएं कोई बात नहीं।"

………………………