रात का सूरजमुखी
अध्याय 8
"ड्राइवर ! कार को इस तरफ खड़ी कर दो। उस गली में कार नहीं जा पाएगी।"
राघवन के कहते ही ड्राइवर ने अंबेसडर कार को गली के पास खड़ी कर दिया ।
राघवन और कल्पना दोनों उतरे। गली में सुबह के समय बहुत भीड़-भाड़ थी। नल के नीचे लड़कियां पानी भर रही थीं।
एक लड़की से कल्पना ने पूछा-"शांता का घर कहां है?"
उस लड़की के मुंह में जो पान सुपारी थी उसे थूंक कर हाथ के इशारे से बताया।
"वह जो नीम के पेड़ वाला घर है वही है।"
दोनों उस नीम के पेड़ के घर की तरफ चले। बीच-बीच में जो नालियां थी उसे पार करते गए। राघवन बोला "कल्पना--"
"हां"
"तुम उस लड़की कल्पना के बारे में क्या सोचती हो ?"
"मेरे मन में जो है मैं बताऊं ?"
"हां बोलो।"
"बापू और उस लड़की शांता का संबंध है ऐसा ही मुझे लगता है।"
"ऐसा कैसे बोल सकती हो ?"
"इसका सबूत है। कारण और कार्य सब ठीक ही तो है।"
"हमारे अप्पा एक फैसला करें तो वह हमेशा ठीक ही रहता है।"
वे नीम के पेड़ के पास वाले मकान में पहुंच गए।
"यही घर है ना ?"
"ऐसा ही बोला।"
राघवन ने एक-दो सीढ़ी चढ़कर घंटी बजाई। वह बजकर बंद हुई। वे रुके रहे । जब थोड़ी देर ठहरे जब दरवाजा नहीं खुला तो राघवन ने दोबारा घंटी बजाई।
आवाज के साथ दरवाजा खुला। दरवाजे के पीछे सिर पर गीला तौलिया लपेटे हुए नए उत्साह से शांता दिखी। कल्पना और राघवन को देख उसका चेहरा खिल गया।
"आइए !" हाथों को जोड़ा।
"अंदर नहा रही थी। इसीलिए दरवाजा खोलने में देर हुई-------क्षमा कीजिएगा !" शांता के बोलते ही कल्पना मुस्कुराई।
"अभी हम क्यों आए हैं पता है तुम्हें ?"
"मेरे बारे में पड़ोस में पूछताछ करने !"
"नहीं----हम तुम्हें घर लेकर जाने आए हैं।"
"घर ?"
"हां तुम्हें अपने घर----और मामा जी ने बापू की शादी तुमसे करने के लिए मान गए।"
"सच में ?"
"हां।"
शांता के आंखों में खुशी के आंसू छलके।
"मैंने तो इसकी अपेक्षा भी नहीं थी। बापू सच में मान गए ?"
"मामा तुम पर विश्वास करते हैं। शादी की तारीख और मुहूर्त भी तय हो गया। अब तुम्हें नौकरी पर जाने की जरूरत नहीं। इस घर को भी खाली करके अपने घर में आ जाओ।"
"यह सुनकर बहुत खुशी हो रही है।"
"घर आकर खुश होना अभी तो रवाना हो---"
"घर तो मैं दोपहर बाद आऊंगी।"
"क्यों अभी क्या है ?"
"मैं जहां काम कर रही हूं उस कंपनी में आज बड़े उद्योगपति आ रहे हैं। उनके आते समय सबको वहां रहना चाहिए।"
"यह देखो शांता----आज ही तुम्हारा कंपनी जाने का आखिरी दिन होना चाहिए। दोपहर को आते समय रेजिग्नेशन का पत्र देकर आ जाओ।"
"ठीक है।"
"दोपहर को कितने बजे घर आओगी ?"
"1:00 बजे से 2:00 बजे के अंदर।"
दोपहर के 2:30 बजे।
सामने के कमरे में सोफे पर बैठे हुए सुबानायकम् ने दीवार घड़ी को देखकर सामने खड़े राघव और कल्पना को देखा।
"शांता ने कितने बजे आने को बोला था ?"
"एक से 2:00 बजे के अंदर।"
"अभी तक नहीं आई वह जिस कंपनी में काम करती है उसका फोन नंबर है क्या ?"
"नहीं।"
"डायरेक्टरी में देखो।"
राघवन पास रखे डायरेक्टरी के पन्नों को पलट कर देखने लगा। शांता जहां काम करती थी उस कंपनी के नंबर को एक जगह लिखा।
फिर रिसीवर को उठाकर उस अंक को घुमाकर मिलाया तो रिंग जाने लगा। रिसीवर जैसे ही उठा "हेलो यह रेनबो गारमेंट कंपनी है?"
"हां।"
"शांता से बात करनी है थोड़ा बुला दोगे ?"
"शांता ?"
"हां।"
"शांता आज कंपनी में आई ही नहीं !"
"क्या ,वह नहीं आई ?"
"हां।"
"आप कौन बोल रहे हैं ?"
"इस कंपनी का मैनेजर।"
"आज सुबह मैं शांता के घर पर उससे मिला बात करते समय उसने कहा कंपनी में जाऊंगी ।"
"आप कौन हैं ?"
"मेरा नाम राघवन है।"
"शांता से आपका रिश्ता ?"
"शांता मेरी जानकार है।"
"आप अपना फोन नंबर दीजिएगा। शांता के आते ही उससे फोन करने को कहूंगा।"
"नोट करो 28257579"
राघवन ने बोलकर रिसीवर को रखा तो सुबानायकम् ने उसे देखा।
"क्या बात है राघवा ?"
"शांता आज कंपनी में गई नहीं ?"
"उसने तुमसे और कल्पना से कंपनी जाने की बात तो कही थी ना ?"
"हां."
"फिर कहां चली गई होगी---- ?"
बापू भी ऊपर से नीचे उतरकर आया।
"भाभी मुझे बहुत भूख लग रही है। खाना परोस दो।"
"ठहरो बापू-----शांता को आने दो !"
"भाभी ! उसके बारे में आपको सच मालूम नहीं है फिर इस परिवार के सब लोग उसे सिर पर उठाकर क्यों नाच रहे हो। वह एक----"
सुबानायकम् बीच में चिल्लाए। "अरे तू मत बोल! इस घर की शांता ही दूसरी बहू है यह फैसला हमने दो दिन पहले कर लिया। उससे शादी करके खुशी के साथ इस घर में रहना है तो रह----नहीं तो इस परिवार का और मेरा किसी प्रकार का संबंध नहीं है लिखकर देकर चला जा। एक लड़की को विश्वास दिला कर फिर उसे धोखा दे कर क्या नाटक कर रहा है?"
"अप्पा---मैं बोल रहा हूं उसे थोड़ा----"
"तेरी बात को मैं क्या सुनूं ? हमने फैसला कर लिया है। और शांता के गले में तुम्हें ताली (मंगलसूत्र) बांधना है।"
बापू ने गुस्से से कुछ बोलने का प्रयत्न किया तभी पोर्टिको के बाहर एक वाहन की आवाज आई। सभी लोगों मुड़ कर देखा।
पुलिस की जीप।
सब लोग आश्चर्य से देख रहे थे तभी उसमें से एक इंस्पेक्टर उतर कर अंदर आया। तीनों के ऊपर नजरें घुमाते हुए पूछा "यहां बापू नाम का कौन है?"
बापू एक कदम आगे होकर धीमी आवाज में बोला "मैं हूं।"
इंस्पेक्टर ने अपने हाथ में पकडी हथकड़ी को निकाल कर दिखाया"शांता की हत्या करने के अपराध में आपको कैद करना पड़ रहा है---"
सभी लोग घबराकर एक साथ चिल्लाए- "क्या-क्या शांता की हत्या!"
"हां।" उनके आश्चर्य की परवाह किए बिना हाथ के हथकड़ी को लेकर बापू के समीप गया।
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