रात का सूरजमुखी
अध्याय 3
स्वर्गम कॉटेज।
पेड़ों के बीच में छोटे-छोटे झोपड़ी नुमा कॉटेज दिखे। उससे थोड़ी दूरी पर नीला समुद्र था।
कार जाकर खड़ी हुई।
"राघव----"
"अप्पा !"
"मैं और कल्पना कार में ही बैठते हैं। तुम, बापू और उस लड़की को लेकर अंदर जाकर पूछताछ करके आ जाओ।"
राघवन ने सिर हिलाया।
राघवन कॉटेज के स्वागत कक्ष की तरफ जाने लगा तो बापू और शांता उसके पीछे-पीछे चले। कुछ कदम चलते ही स्वागत कक्ष आ गया।
स्वागत कक्ष में टेलीफोन पर बात कर रहा युवक टाई पहने हुए था। वे उसके पास गए। उसने जल्दी बात खत्म कर पूछा
"यस---" |
"एक बात का पता करना है।" राघवन ने अंग्रेजी में बोला।
"कहिए !"
राघवन अपने पीछे खड़े बापू और शांता को दिखाते हुए बोला "आपने इन दोनों को इसके पहले इस कॉटेज में देखा क्या?"
स्वागत कक्ष में जो युवक था वह बापू और शांता को कुछ क्षण घूर कर देखता रहा फिर सिर हिला दिया।
"क्षमा करें पता नहीं।"
"तीन महीने पहले ये लोग इस कॉटेज में आए थे ऐसी खबर है। इसे कंफर्म करना है। 16 तारीख को उस समय इस रिसेप्शन काउंटर पर कौन था बता सकते हैं ?'
"एक मिनट---" कहकर वह युवक एक दराज खोल कर एक बड़ी डायरी को निकालकर मुस्कुराया।
"उस तारीख को मैं ही था साहब।"
"इनको आपने देखा याद नहीं----- ?"
"माफ करना साहब---- एक दिन में कितने ही लोग आते हैं-----कॉटेज लेते हैं। एक दिन एक रात ठहरते हैं----फिर चले जाते हैं। सब पर ध्यान देना संभव नहीं।"
राघवन मेज पर अपनी दोनों कोहनियां को रखकर बोला"एक और मदद!
"क्या?"
"सितंबर 16 तारीख को कोई दिवाकर-रेवती के नाम से कॉटेज लेकर यहां ठहरे थे क्या ? रजिस्टर देख कर बता सकते हैं क्या?"
"यह सब आप क्यों पूछ रहे हैं बताइए ?"
"परिवार में कुछ असमंजस है ,एक सच मालूम करने के लिए !"
रिसेप्शनिस्ट और कुछ पूछे बिना रजिस्टर को देखने लगा सितंबर 16 तारीख पर नामों को देखने लगा, फिर बोला "हां ! ठहरे थे।"
"उस कमरे का नंबर क्या है ?"
"79"
"उस कमरे को साफ करने वाला रूम बॉय हो तो उसे बुलवाईयेगा ?"
रिसेप्शनिस्ट ने टेबल पररखे इंटरकॉम से किसी से बात की अगले 5 मिनट के अंदर एक लडका जिसके चेहरे पर मूछें उगनीं शुरू होने लगी थीं नीले रंग के कपड़े पहने आकर खड़ा हुआ।
राघवन ने उस लड़के को अपने पास बुलाया "भैया इधर आ।" वह आया।
"तुम्हारा नाम क्या है ?"
"वासु साहब !"
"79 कमरे में सर्विस तुम ही करते हो ?"
"हां साहब।"
बापू और शांता की ओर इशारा कर राघवन ने दिखाया । "तुमने इन्हें इसके पहले कभी देखा है क्या ?"
वासु ने दोनों को ध्यान से निहारा। माथे पर बल डाल कर कुछ क्षण ध्यान से देख कर फिर राघवन की तरफ घुमा।
"देखा है साहब।"
"क्या----देखा है ? कहां देखा ?"
"इसी कॉटेज में दोनों आए हैं साहब ।"
बापू ने विरोध किया ।
बापू का पूरा शरीर सदमे में आ गया जैसे उस लड़के की ओर लपका और उस लड़के के गर्दन को पकड़ा।
"क्या बोला रे ? मुझे और इसे तूने इस कॉटेज में देखा?"
"हां हां साहब--"
"अरे झूठ मत बोल ! मेरे चेहरे को ठीक से देख कर बोल।"
लड़के ने अपनी गर्दन को छुड़ाकर आवाज में बोला "मुझे अच्छी तरह याद है! कमरे को खाली करके जाते समय आपने 10 रु. टिप दिया था!"
बापू राघवन की तरफ मुड़कर "अन्ना ! इस लड़के को किसी ने सिखाया है। यह कह रहा है मुझे इसने देखा ! यह सफेद झूठ है।"
राघवन ने लड़के वासु के कंधे पर हाथ रखकर अकेले ले जाकर बरामदे में एक तरफ उसे खड़ा करके पूछा "तुम्हें ऐसा बोलने के लिए किसी ने पैसे दिए हैं क्या?"
"नहीं साहब।"
"ऐसा है तो बोल दो ! उससे ज्यादा रुपए मैं दूंगा!"
"मैंने किसी से रुपए नहीं लिया। मुझे झूठ बोलने की जरूरत भी नहीं है। तीन महीने पहले यह दोनों लोग इस कॉटेज में आए थे और यहां रुके थे !"
"तुम जो कह रहे हो वह झूठ है बाद में पता चला तो मैं तुम्हें पुलिस में पकड़ कर दे दूंगा।'
लड़के के आंख में एक डर दिखाई दिया।
"पू---पुलिस ?"
"हां।"
"साहब मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं। यह दोनों इस कॉटेज में यहां आए थे यह सच है !"
"ठीक है तुम जाओ !" राघवन ने लड़के को भेज कर बापू को हाथ के इशारे से बुलाया। बापू जल्दी से आकर उसके पास खड़ा हुआ।
"क्या है अन्ना लड़का क्या बोल रहा है ?"
"इस लड़की को लेकर तुम इस कॉटेज में आए थे बोल रहा है-----"
"बापू से आंखों में आंसू चमकने लगे।
"अन्ना ! मैं क्या बोलूं मुझे समझ में नहीं आ रहा। वह लड़की कौन है? यही मुझे पता नहीं है। मैं आज ही पहली बार इस कॉटेज में आया हूं।"
"तुम्हें यहां देखा वह लड़का पक्का बोल रहा है।"
"अन्ना ! इस लड़के को पहले से ही सब कुछ सिखा पढ़ा दिया------! अभी स्वागत कक्ष में जो आदमी है वह 16 सितंबर को भी इसी जगह था। उसने तो बोला उस लड़की को और मुझे उसने नहीं देखा।"
पीछे खांसने की आवाज आई। दोनों ने मुड़कर देखा।
शांता होंठों पर जमी हुई मुस्कान के साथ खड़ी थी।
"अब भी पूछताछ बाकी है क्या ?"
बापू ने उसे घूर कर देखा।
"माफ करना मिस्टर बापू। सच जो है आग जैसे है उसे कोई शरण नहीं दे सकता।"
"यह देखो-----तुम्हारा नाटक सब नहीं चलेगा। वह लड़का वासु नहीं बोल रहा----उसको दिया रुपया बोल रहा है।"
"बापू----! तुम ऐसी सब बातें करके इस बात की दिशा को नहीं बदल सकते। मैं आपके पास न्याय की अपेक्षा कर इस लड़ाई में नहीं कूदी! आपके पिताजी शहर के एक बहुत बड़े आदमी हैं। उस जमाने के स्वतंत्रता सैनानी। उनसे मुझे न्याय मिलेगा इस विश्वास के साथ ही इस समस्या को छुआ है मैंने। मुझे न्याय मिले मेरे लिए यही बहुत है।"
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