Pariyo Ka ped - 20 in Hindi Children Stories by Arvind Kumar Sahu books and stories PDF | परियों का पेड़ - 20

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परियों का पेड़ - 20

परियों का पेड़

(20)

यम-यम खाना, सोने जाना

आखिरकार, प्रकट में राजू चतुराई से कहने लगा – “परी माँ ! मैं सोच रहा हूँ कि अब इन कैदी बादलों को आजाद कर दिया जाए | बेचारे कहीं और जाकर बरस जायेंगे तो किसी की प्यास बुझ जाएगी | सच में, इन्हें इनकी शरारत की इतनी ही सजा बहुत है |”

राजू की चतुराई समझ कर परी रानी भी हँस पड़ी – “चलो ठीक है | जब तुम कहते हो तो इनको आजाद कर देते है |”

परी रानी ने तुरन्त अपनी जादुई छड़ी घुमाई | सूरज की गर्मी लिए हुए कुछ किरणें आई और राजू के कपड़े झट से सूख गये | कपड़े सूखते ही झट से दोनों बादल के टुकड़े बाहर निकले और राजू को जीभ निकाल कर नटखट बच्चों की तरह चिढ़ाते हुए “बाय – बाय” बोल कर तेजी से वापस उड़ गये |

जैसे ये कह रहे हों – “लो जी ! क्या बिगाड़ लिया तुमने हमारा ? हमें कैद करना भला इतना आसान है क्या ?”

बादलों की यह बदमाशी देखकर इस बार परी रानी और बौनों के साथ ही राजू भी ठहाका लगाकर हँस पड़ा | वैसे तो राजू फिर खिसिया गया था | लेकिन प्रकट में बोला – “देखा परी माँ! दोनों बादल कैसे डरे हुए भाग निकले ? वो सोच रहे होंगे कि शायद राजू उन्हें फिर से न पकड़वा ले |”

जवाब में परी रानी फिर हँसी – “चलो जाने दो बेचारों को | आखिर तुम्हें भी तो गीले कपड़ों में अब तक उलझन होने लगी थी | है न ?”

राजू की चोरी मानो फिर से पकड़ी गई | आखिर परी माँ तो सब जानती ही है | लेकिन बच्चों में इतनी चंचलता और बात बनाने की कला भी तो जरूरी है | कोई भी माँ बच्चों की ऐसी बातों का बुरा थोड़े ही मानती है | सच पूछो तो माँ बच्चों की ऐसी बातों का ही खुलकर आनन्द उठाती है | अब इतना तो राजू भी समझता था |

सो, इस बार सबने एक साथ एक और ठहाका लगाया, जिससे पूरा परी लोक गूँज उठा |

चाँद के झूले का आनन्द उठाकर राजू वापस लौट पड़ा | वह थक चुका था |उसने परी रानी से आराम करने की इच्छा व्यक्त कर दी | अतः वे पुनः सभा कक्ष में वापस लौट आये |

परीलोक के अन्य हिस्सों में भी अब तक धूम मची हुई थी | जब सभी लोग थक गए तो फिर एक जगह उसी सभा स्थल में आकर इकट्ठे हुए | अंतिम रात्रि भोज का समय हो चुका था | खाने की मेजें सज गयी | सब बैठ चुके थे | खाना परोसा गया | सोने की थाली, चाँदी के गिलास | तरह तरह के फल, फूल, रस और अनोखे व्यंजन फिर हाजिर थे |

राजू ने आज से पहले कभी इतना सब कुछ देखा भी नहीं था | उसे यह सब देखते हुए ही अब तक दोबारा भूख लग आयी थी | सो, वह भी फटाफट खाने बैठ गया | थोड़ा – थोड़ा ही सही, खाने लगा तो खाता ही चला गया | जम कर खाया, खूब खाया | इतना खाया कि इस बार पेट फूलकर कुप्पा हो गया |

लेकिन उसका मन अब भी नहीं भरा था | यहाँ का खाना भी ऐसा जादुई था कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था | राजू अपनी भोजन की थाली को ललचाई नजरों से देखता हुआ परी रानी से बोला – “परी माँ! मुझसे अब नहीं खाया जा रहा | लेकिन छोड़ने का मन भी नहीं हो रहा | आप कहें तो मैं इसे घर ले जाऊँ | वहाँ पिताजी के साथ बैठकर आराम से खाऊंगा |”

परी रानी हँस कर बोली - “हाँ – हाँ, क्यों नहीं? तुम इसे जरूर ले जाना | मैं इसमें और भी पकवान रखवा देती हूँ | जब तुम यहाँ से जाओगे, तो ये पकवानों से भरा सोने का थाल भी तुम्हारे साथ ही पहुँच जायेगा |”

“आपका बहुत – बहुत आभार परी माँ |” – राजू संतुष्टि के भाव से थाल को निहारता हुआ बोला |

“आभार किस बात का राजू ? मुझे परी माँ कहते हो और आभार भी जता रहे हो | इसका मतलब तुम मुझे अब तक पराया ही समझ रहे हो ?” – परी रानी ने प्यार से हल्की डांट लगाई तो राजू संकोच से भर गया |

हकबकाया सा बोला – “व…व.....वो, ब...ब....बात, न्...न..नहीं है परी माँ, वो तो बस यूं ही....|”

“अच्छा? तो अब तुम हमें समझा भी रहे हो, हाँ? हाँ भई ! इतने बड़े और समझदार जो हो गए हो ?”– परी रानी की इस बात पर राजू आगे भला क्या कहता ? बस, बड़ी मासूमियत से उसने परी माँ के सामने चुपचाप दोनों कान पकड़ लिए| वह भी इस अंदाज में कि परी माँ बरबस ही हँस पड़ी |

“ओहो, इस अदा पर तो मैं तो बारम्बार बलिहारी जाऊँ, अपने राजू की |” – परी रानी ने एक बार फिर राजू को गोद में उठाकर सीने से लगा लिया | भोजन के बाद अब परियों के आराम करने का समय हो रहा था |

परी रानी ने आसमान की ओर देखा | रात का अंतिम प्रहर बीतने वाला था | चाँद कब का आसमान से गायब हो चुका था | सितारों की आभा मद्धिम हो चली थी | इसका मतलब भगवान भास्कर के जागने का समय होने वाला था | कुछ ही घड़ी में सूर्य के उदय होते ही परियों का सारा माया दर्शन धरती के प्राणियों की दृष्टि से लुप्त हो जाएगा | राजू को भी यहाँ कुछ नहीं दिखेगा | धरती के किसी भी प्राणी को परियों के इस पेड़ पर सिर्फ स्त्री रूपी फल ही दिखेंगे | अतः उससे पहले ही राजू को यहाँ से विदा करना आवश्यक था |

“राजू ! तुमको भी नींद आ रही होगी, चलो अब सो जाओ |” – परी ने राजू को सुला देना ही उपयुक्त समझा | राजू ने भी स्वीकृति में सिर हिलाया | सचमुच उसकी पलकें भी नींद से भारी हो रही थी |

परी रानी ने फिर संकेत किया | कई सेविकाएँ वहाँ उपस्थित हो गयी | तब तक परी रानी की जादुई छड़ी भी घूम चुकी थी | जिससे वहाँ एक बहुत सुंदर और आरामदायक पलंग प्रकट हो गया था | परी रानी ने राजू को बड़े प्यार से उस पर लिटा दिया | राजू लेट तो गया, लेकिन उसे आराम के बजाय एक अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी |

राजू ने कसमसाकर कई बार करवट बदल कर आराम पाने की कोशिश किया किन्तु हर बार उसे निराशा ही हाथ लगी | लेकिन इसी प्रक्रिया में उसे महसूस हुआ कि कोई रूखे झाड़ जैसी वस्तु उसे बार – बार चुभ रही थी और उसके आराम में विघ्न पैदा कर रही थी | आखिर क्या थी वह वस्तु ?

राजू ने उनींदी आँखों के बावजूद जैसे ही समस्या की गहराई में जाने का प्रयास किया, उसके हाथ अपने ही शरीर की किसी खुरदुरी संरचना से टकरा गये | वास्तविकता का आभास होते ही उसकी अनचाही हँसी छूट गयी | समस्या खुद साथ लिये घूम रहा था और समाधान बिस्तर में ढूँढ़ रहा था | वास्तव में सारी समस्या उसके पंखों की वजह से थी | शरीर में उग आये नये – नये पंखों का अभ्यस्त न होने से वह बार – बार बेचैन हो रहा था | उन्हीं पंखों के कारण उसे आराम से लेटने में असुविधा हो रही थी |

अब वह पलंग पर उठ बैठा अपने दोनों पंखों को सहलाते हुए सवालिया नजरों से परी रानी की ओर देखने लगा | वह इन पंखों को पाकर खुश तो था किन्तु इनके साथ इस समय वह अपने आपको बड़ा असहज भी महसूस करने लगा था | परी रानी ने उसकी आँखों में झाँका तो तत्काल ही उसकी मनोदशा भाँप ली | अतः मुस्कराते हुए उसने अपनी जादुई छड़ी फिर से उसके शरीर पर घुमा दी |

राजू के शरीर में एक झुरझुरी सी महसूस हुई और पलक झपकते ही उसके पंख फिर से गायब हो चुके थे | परी को पता था कि राजू के लिये वैसे भी अब इन पंखों की आवश्यकता समाप्त हो चुकी थी | धरती पर ये पंख उसके साथ रह ही नहीं सकते थे | पंख गायब हो जाने से राजू को बड़ा सुकून मिला | उसने कई बार बिस्तर पर करवट बदल कर लोटपोट किया | अब वह सुकून से सो सकता था |

पंख हटने की प्रक्रिया से राजू के चेहरे पर एक अनोखी मुस्कराहट फैल गयी थी | वह बड़ी अर्थपूर्ण नजरों से परीरानी को देख रहा था | जैसे कुछ जिज्ञासा पैदा हो गयी हो | परी रानी ने भी राजू की इस जिज्ञासा को भाँपते हुए पूछा – “ क्या बात है राजू ? अभी कुछ जानना शेष रह गया है ?”

परी रानी के आत्मीय प्रश्न से राजू की जिज्ञासा उसके मस्तिष्क से निकल कर जुबान पर आ गयी | कहने लगा – “ बस एक आखिरी बात और पूछनी रह गयी है ?”

“अच्छातो वह भी पूछ डालो , अब सोच विचार कैसा ?”- परी रानी हँसी |

राजू ने गम्भीर होते हुए पूछा – “ परी माँ ! आप के परीलोक में तन और मन से भी सब इतने लोग सुन्दर हैं | आपके पास हर तरह की शक्तियाँ हैं | किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं दिखती, फिर आप लोग इस तरह धरती वासियों से छुपकर क्यों रहती हैं ?”

“ओह !” - परी रानी अचानक हुए इस प्रश्न से काफी गम्भीर हो गयी | जैसे किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो |

वह कुछ देर तक राजू के मासूम चेहरे को देखती रही फिर कहने लगी – “राजू ! हजारों साल पहले हम परियाँ भी तुम्हारी तरह धरती पर ही रहते थे | आज के मनुष्यों की तरह | हमारा विज्ञान और तकनीक आज के मनुष्यों से बहुत आगे थी | ये हमारे पंख तुम देख ही रहे हो , जो हमने तुम्हें लगाया फिर बड़ी आसानी से निकाल भी दिया | तुम्हारे मनुष्य अभी भी इस तकनीक की खोज में लगे हैं | तुमने सामूहिक उड़ान के लिये हवाई जहाज बना लिये | व्यक्तिगत उड़ान के लिये ‘हेलीकॉप्टर’ और ‘पैरा ग्लाइडर’ जैसे यंत्र भी बना लिये, किन्तु शरीर से जुड़ी हुई तितली के पंखों जैसी संरचना बनाने की तकनीक में अभी बहुत समय लगेगा |….”

“हाँ ये तो है | लेकिन आपकी जादुई छड़ी भी तो भरपूर शक्तियों की मालिक है | आप उससे जो चाहें कर सकती हैं | यह क्या है ?” – राजू ने समझदारों की तरह गर्दन हिलायी |

“वास्तव में हमारी जादुई छड़ी हमारी शक्तियों का

परी रानी आगे कहती रही – “ मनुष्यों में सबसे बुरी जो बात है वो यह है कि वे अपनी सुख शान्ति और तरक्की को बढ़ाने से ज्यादा ईर्ष्या द्वेष में अधिक विश्वास करते हैं | उन्हें दूसरों की प्रगति फूटी आँखों भी नहीं सुहाती | खुद मेहनत करके कुछ नया करने या धन कमाने के बजाय वह दूसरों से जबरन छीनने में भी परहेज नहीं करते | ऐसा हर युग में होता रहा है |…..”

राजू निशब्द सुनता रहा, सोचता रहा – “परी माँ ठीक ही कह रही होगी | उसे दुनियादारी का अधिक अनुभव होगा |”

----------क्रमशः