Pariyo Ka ped - 17 in Hindi Children Stories by Arvind Kumar Sahu books and stories PDF | परियों का पेड़ - 17

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परियों का पेड़ - 17

परियों का पेड़

(17)

चलते फिरते चित्र

परी रानी ने कहा – “वही जीवंत और चलते - फिरते से दिखने वाले चलचित्र |”

“अच्छा ! जैसे हमारे यहाँ फिल्म होती है, वही न ?” – राजू ने उत्सुकता जाहिर की |

“हाँ वही | तुमने फिल्म देखी है कभी ?” - परी रानी ने पूछा |

“हाँ, हमारे स्कूल में शिक्षा विभाग की एक मोटर गाड़ी कभी – कभी आती है, जो हम बच्चों को कई तरह की फिल्में दिखाती है | लेकिन मैंने कभी शहर जाकर वहाँ के सिनेमा हाल में कोई फिल्म नहीं देखी |” – राजू ने उत्साहित होकर बताया |

परी रानी ने कहा – “हम तुम्हें यहाँ ऐसी चलचित्रावली दिखायेंगे, जो तुमको शहर के सिनेमाहाल में भी देखने को नहीं मिलेगी |”

“तो जल्दी दिखाइये, परी माँ !” – राजू उत्सुकता और बेचैनी प्रदर्शित करते हुए बोला |

- “हूँ......अभी दिखाती हूँ , लो देखो |”

परी रानी ने अपनी जादुई छड़ी को हॉल में चारों ओर घुमाया तो देखते ही देखते वहाँ हर तरफ अँधेरा छाता चला गया | अचानक हुए इस घुप्प अँधेरे से राजू सिहर गया | अब उस हॉल में हाथ को हाथ भी नहीं सुझाई दे रहा था | वह चीख पड़ा – “यह क्या हो रहा है परी माँ ?”

अँधेरे में ही जवाब आया – “घबराओ मत | शान्ति से आगे की ओर देखो |”

फिर परी रानी की उस जादुई छड़ी से एक सफ़ेद प्रकाश निकला | उससे सामने की दीवार का एक बड़ा हिस्सा एकदम झक्कास सफ़ेद नजर आने लगा | राजू चुपचाप दम साधे बैठा रहा |

उसने आगे देखा कि दोबारा फिर जादुई छड़ी से दूसरी तरह की किरणें निकली जो रंग – बिरंगी थी | ये किरणें सामने की उसी सफ़ेद पर्दे जैसी दीवार पर पड़ी थी | इन किरणों के प्रभाव से उस दीवार पर पहले अनेक रंग उभरे | फिर वह सफ़ेद पर्दा रंगीन चित्रों मे तब्दील हो गया, जो कि स्पष्ट रूप से चलते – फिरते दिख रहे थे | इसके साथ ही पार्श्व में एक अद्भुत और कर्णप्रिय संगीत भी बजने लगा था जो दृश्यावली के अनुकूल था |

सब कुछ वैसा ही था, …..जैसा कि राजू ने कभी अपने स्कूल में देखा था | लेकिन यहाँ इतने बड़े पर्दे पर यह अनोखा अनुभव पहली बार था |

राजू ने देखा | पहले उसके सामने पहाड़ों के कुछ दृश्य उभरे | चलते – फिरते घुमावदार रास्ते और पगडंडियाँ आयी | फिर सामने एक जंगल दिखाई दिया, खूब हरा भरा और आकर्षक | वहाँ के पेड़ - पौधे फूलों और फलों से लदे हुए थे | फिर उन्हीं के बीच के बीच में बसा हुआ एक गाँव दिखा, जहाँ मवेशी बंधे थे और ग्रामीण चल फिर रहे थे |

कोई पहाड़ों के ऊपर सीढ़ीदार खेतों मे काम कर रहा था | कोई सेब के बगीचों से फल तोड़कर उन्हें इकट्ठा कर रहा था | कोई बाजार में ले जाकर उन्हें बेच रहा था | राजू यह सब देखते हुए चौंक गया | बरबस ही चिल्लाया – “परी माँ ! यह तो मेरा ही गाँव है |”

परी रानी हौले से मुस्कुरा पड़ी | कहने लगी – “हाँ, और आगे तो देखो |”

राजू देखता रहा | …..फिर एक घर आया | उसके सामने एक व्यक्ति पीछे की ओर मुँह किये हुए कुल्हाड़ी से छोटे – छोटे टुकड़ों में लकड़ियाँ काट रहा था | एक महिला उन्हीं लकड़ियों को एक धारदार चाकू से तराश कर सुन्दर-सुन्दर खिलौने बना रही थी |

राजू ध्यान से देख रहा था, .....वाह ! क्या कारीगरी थी उसके हाथों में ? एकदम जीवंत | लगता था कि उसके बनाए हुए खिलौने अभी बोल पड़ेंगे | फिर वह लकड़ी काटने वाला व्यक्ति किसी को पुकारते हुए घर के भीतर चला गया |

चित्रावली चल रही थी, ……..दृश्य बदल रहा था |

भीतर एक सुंदर सी महिला रसोई में खाना बना रही थी | वह व्यक्ति हाथ धोकर बैठा ही था कि उसके सामने महिला ने थाली परोस दिया | वह व्यक्ति प्रेम पूर्वक भोजन करने लगा | भोजन के बाद वह व्यक्ति बाहर आया और एक बड़ी सी कुल्हाड़ी उठाकर जंगल की ओर चल दिया | अब राजू से रहा न गया |

वह उत्कंठा से चीखकर बोला – “परी माँ ! ये तो मेरे बापू जैसे दिखते हैं | ये कैसा जादू है ?.....और वह महिला कौन है ?”

परी रानी ने कहा –“आगे देखते जाओ | तुम्हें खुद समझ में आ जाएगा |”

राजू की नजरें फिर पर्दे पर जम गई | अब उसने देखा –

वह महिला एक छोटे से मचलते हुए बच्चे के साथ बाग की ओर जा रही थी | सेब तोड़ने के लिए उसने एक शिला पर चढ़कर लग्घी फंसाई | एक ओर पेड़ से सेब गिरे तो दूसरी ओर महिला गहरी खाई में गिरती हुई दिखी |

राजू बड़े ज़ोर से चीखते हुए पर्दे की ओर दौड़ पड़ा – “माँsssss | परी माँ! बचाओ मेरी माँ को | वह खाईं में गिरने वाली महिला मेरी माँ है |”

राजू की आवाज पूरे हाल में गूँज उठी थी | परी रानी के इशारे पर सेविकाओं ने उसे संभाला | वह बड़े – बड़े आँसुओं के साथ रो रहा था | परी रानी ने राजू को अपनी गोद में बैठा लिया | उसके आँसू पोंछते हुए बोली - “डरो नहीं, यह सिर्फ तुम्हारे अतीत की फिल्म है | आगे बहुत कुछ अच्छा भी है |”

परी रानी ने उसे समझाकर कर आगे का चलचित्र देखने को कहा |

राजू की भीगी आँखें मजबूरन फिर से पर्दे पर स्थिर हो गई | इस समय उसे बड़ी शिद्दत से अपनी असली माँ याद आ रही थी | फिल्म आगे भी चलती रही |

.......अब सामने खुला आसमान था | पूर्णिमा का गोल – गोल, बड़ा सा पीले रंग का चाँद क्षितिज से उभरना शुरू हुआ | धीरे – धीरे निकलकर पूरे पर्दे पर छाता चला गया, उसकी चमक भी पीले से सफ़ेद रंग में बदलती गयी | फिर आसमान के चप्पे – चप्पे में उसकी धवल चाँदनी फैल गई | हर तरफ उजाला जगमगा उठा था | इस चाँद के साथ ही झिलमिलाते हुए तारे भी दिखे थे, जो चारों ओर आसमान की सजावट करने के लिए फैलते चले गए |

फिर उन्हीं चाँद – तारों के बीच कुछ धुन्ध जैसे बादल छाये और उन्होंने झुंड बनाकर चहल कदमी करना शुरू किया | फिर इन बादलों के बीच से एक एक विशाल महल का दृश्य उभरा | इस महल के परिसर में एक शानदार बगीचा था, जिसमें हरियाली के बीच रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे | उन फूलों पर तितलियों जैसी सुन्दर परियाँ अठखेलियाँ कर रही थी | कुछ परियाँ राजसी ठाट - बाट के साथ इधर – उधर टहल रही थी, तो कुछ हवा में उड़कर महल की निगरानी के लिए चक्कर लगा रही थी |

महल के एक ओर भव्य और बेहद सुंदर मंदिर बना हुआ था, जहाँ भगवान बैठे हुए थे | चुपचाप और एकदम शान्त | जैसे सफ़ेद संगमरमर की सुंदर मूर्ति हों | उनके चेहरे पर एक दिव्य आभा विराजमान थी, जिससे निकलता हुआ अलौकिक प्रकाश मंदिर ही नहीं पूरे आकाश में अपनी छाप छोड़ रहा था |

मंदिर के सामने प्रांगण में एक विद्यालय चल रहा था | जहाँ अनेक परियाँ छात्राओं की तरह पंक्ति बद्ध बैठी हुई थी | सामने तिकोने स्टैण्ड पर एक श्यामपट लगा हुआ था, जिस पर कुछ शब्द अंकित थे | फिर वहाँ हाथों में एक पुस्तक और जादुई छड़ी लिये हुए एक विशेष परी आयी, जिसके सम्मान में सभी छात्राएँ उठकर खड़ी हो गई |

राजू ने उसके हाव - भाव से ये अंदाजा लगा लिया कि ये जरूर उन सबकी अध्यापिका होंगी |

चंद्रमा के प्रकाश जैसी धवल और नीले आकाश के रंग से मिलते - जुलते किनारों वाली साड़ी पहने उस अध्यापिका का चेहरा अत्यंत पवित्र आभा से जगमगा रहा था | उनके संकेत पर छात्राएँ वापस बैठ गई और वह अध्यापिका उन्हें पढ़ाने लगी | यह सब ध्यान से देखते हुए राजू एकाएक गंभीर हो गया |

फिर सुबकते हुए बोल पड़ा – “परी माँ ! वो देखो | मुझे लगता है कि वह मेरी माँ है | वहाँ भगवान के घर में, आपने मुझे ठीक ऐसा ही बताया था |”

परी रानी ने सहमति में सिर हिलाया, फिर कहने लगी – “हाँ राजू ! वह तुम्हारी माँ ही हैं | देखो, तुम्हारी माँ वहाँ भगवान के घर में नई परियों को बच्चों से प्यार करना सिखा रही हैं | मैं भी उसी कक्षा से पढ़ कर - सीख कर आई हूँ | वह बहुत अच्छी तरह अपना काम कर रही हैं | इसीलिए उनको धरती पर वापस लौटने की छुट्टी नहीं मिलती | अब तुम्हें अपनी माँ की चिंता नहीं करनी चाहिए | तुम्हारे स्कूल की अध्यापिकाएँ भी तुम्हारी माँ जैसी ही होती हैं | तुम श्रद्धा पूर्वक देखोगे तो तुम्हें उनमें भी अपनी माँ की छवि नजर आएगी | मैंने यही अनुभव कराने के लिये तुम्हें यह चल-चित्रावली दिखाई है |”

“जी परी माँ! मैं समझ गया |” – राजू ने किसी समझदार बच्चे की तरह सिर हिलाया और अपने दुपट्टे से चेहरे पर बह आये, सारे आँसू धीरे – धीरे पोंछ लिए | इसके साथ ही वह चलचित्रावली खत्म हो गयी | लेकिन राजू का मन पूर्ववत हल्का नहीं हो सका |

इसे भाँपकर परी रानी ने अपनी जादुई छड़ी दोबारा घुमा दी |

इसके बाद तत्काल उस पर्दे पर धरती के बच्चों में लोकप्रिय किरदार मोटू – पतलू के मजेदार कारनामों वाली हास्य चल चित्रावली चलने लगी | जिसे देखकर थोड़ी ही देर में राजू के चेहरे पर उसकी हँसी – खुशी वापस आ गई | जब तक इस चलचित्रावली का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, राजू पूर्ववत सामान्य और प्रसन्न दिखने लगा था |

तब परी रानी बोली – “आओ राजू ! अब तुम्हें परीलोक की सैर करवाते हैं |”

राजू चहक उठा – “अरे वाह ! अब तो मैं इसी बात का इन्तजार कर रहा था |”

परी रानी ने अपने सिंहासन से उतरकर राजू को भी अपने साथ चलने का संकेत किया तो वह खुशी से फूला न समाया | वह झट से परीरानी के साथ हो लिया |

कुछ कदम चलकर राजू जैसे ही इस राज दरबार से बाहर निकला, तो एक बार फिर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा |

इस भव्य सभा भवन से बाहर निकलते ही उसने अपने आपको किसी हरियाली से भरे शानदार शहर में खड़ा पाया | परी रानी ने बताया कि अब वह परियों के पेड़ के ऊपर बसे परीलोक के मुख्य शहर में है, जहाँ से पूरे लोक को देखा – समझा जा सकता था |

----------क्रमशः