परियों का पेड़
(12)
दरिन्दे से मुठभेड़
फिर से बुरा फँसा बेचारा राजू | लेकिन अब वह सावधान हो चुका था | उसने आगे बढ़ाये हुए कदम तत्काल पीछे खींच लिए | क्योंकि खतरे को समझे बिना आगे बढ़ते रहना कोई बहादुरी नहीं होती | राजू ने पीछे को कदम लौटाते हुए यह महसूस किया कि दोनों जलती हुई चीज किसी बिल्ली जैसे जानवर की आँखें हैं | वह आँखें अब थोड़ा आगे आ रही हैं | अब उसे तत्काल समझ में आ गया कि यह कोई जानवर ही है, जो चुपचाप, दबे पाँव आगे बढ़ रहा है | शायद उस पर हमला करने के लिए ?
अब राजू तुरन्त अपने बचाव की मुद्रा में आ गया | हो सकता है कि उसे मुक़ाबला भी करना पड़ जाय ? लेकिन मुक़ाबले के लिए कोई हथियार भी तो होना चाहिये | खाली हाथ यह कार्य बड़ा कठिन था | वह तेजी से दिमाग और आँखें दौड़ाते हुए आसपास कुछ खोजने लगा |
पीछे तो जंगल में उसके पास एक मोटा और कुछ नुकीला डंडा भी था, जिसे उसने अवसर मिलते ही अजगर की आँख में घोंप दिया था | लेकिन इस समय वह फिर से पूरी तरह निहत्था था | अब करे तो क्या करे?
राजू तेजी से दिमाग के घोड़े दौड़ाते हुए थोड़ा और पीछे हटा | पलटकर गुफा के बाहर आ गया | बाहर एकदम मद्धिम सा नाम मात्र का उजाला रह गया था | जैसे गहरी रात में छोटे – छोटे तारों से निकलने वाला उजाला होता है | उसने देखा, लकड़ियों से कुछ धुआँ उठ रहा था, लेकिन वे अब भी जलने का नाम नहीं ले रही थी |
राजू वहीं खड़ा देख और सोच ही रहा था कि उसने दोनों जलते हुए अंगारों को गुफा के भीतर से और आगे बढ़ते महसूस किया | निश्चित ही वह जो कोई भी था, बाहर की ओर आगे बढ़ रहा था | शायद राजू की ही ओर ?
अब राजू सावधान तो हो चुका था | लेकिन बिना किसी हथियार के वह नन्ही सी जान इस अनजानी मुसीबत का सामना कैसे करती? इसी बीच राजू ने उन दोनों जलते हुए अंगारों को गुफा में ऊपर की ओर उठते हुए और फिर कुछ उछलकर आगे बढ़ते हुए महसूस किया | जैसे कोई खतरनाक जानवर उस पर घात लगाकर या छलाँग मारकर हमला करने जा रहा हो |
सावधान राजू समझ चुका था कि निश्चित रूप से यह किसी चौपाये की ही छलांग थी, जो राजू पर कूदने वाली थी | राजू की जगह कोई और होता तो भय के मारे यूँ हीं बेहोश हो जाता | लेकिन राजू तो अपने लक्ष्य और अपनी परी रानी पर भरोसा करके इस खतरनाक सफर पर निकला था | वह आशान्वित भी था कि परी रानी हर स्थिति में उसकी मदद जरूर करेंगी |
........लेकिन वह एक कहावत भी अच्छी तरह समझ चुका था कि पहले अपने बल से ही व्यक्ति सबल बनता है | पहले अपना हाथ ही जगन्नाथ होता है | अचानक हुआ हमला तो स्वयं ही झेलना – बचाना पड़ता है | मदद के लिए आशान्वित होने के बावजूद स्वयं का सतर्क और मजबूत रहना बहुत जरूरी होता है | कई बार दूसरों से मदद मिलने में प्रायः देर हो जाती है | परिस्थियोंवश यह स्वाभाविक हो भी सकती है, जबकि अपना बल, साहस और सतर्कता तुरन्त काम आती है |
अतः जैसे ही वह उड़ते हुए अंगारों जैसी आँखों वाला जीव उसके नजदीक आया, राजू फुर्ती से नीचे की ओर झुकते हुए जमीन पर लेटा और दूसरी ओर को लुढ़कता चला गया | सामने वाले हमलावर को अपने शिकार से इतनी सतर्कता और चुस्ती - फुर्ती की उम्मीद शायद ही रही हो | अतः जलते हुए अंगारों जैसी आँखों वाला वह जीव अपनी ही तेज गति की झोंक में, राजू के सिर की दो फुट ऊँचाई से गुजरता हुआ दूर जा गिरा था |
अब राजू ने अत्यंत हल्के उजाले में भी उस जीव को ध्यान से पहचान लिया था | यह लगभग पाँच फुट लम्बा, चौड़ा और भारी वजन वाला एक जंगली बिल्ली की प्रजाति का दरिन्दा अर्थात तेंदुआ था, जो काफी देर से किसी शिकार की तलाश में इस अँधेरी में गुफा में छुपा बैठा था |
राजू को याद था कि उसके गाँव में भी एक बार तेंदुओं का आतंक बरपा था | वे अक्सर गाँव में घुसकर पालतू मवेशियों को उठा ले जाते थे | एक बार कुछ ग्रामीणों को भी किसी तेंदुए ने बुरी तरह घायल कर दिया था | तब गुस्साये गाँव वालों ने घेराबंदी कर के उस तेंदुए को जाल में फँसा लिया था | उस तेंदुए को दिन में गाँव के सभी बच्चों ने देखा था | तभी से राजू जैसे बच्चे तेंदुए को अच्छी तरह पहचानने लगे थे |
बहरहाल, राजू पर हमला करने वाला तेंदुआ अपनी ही झोंक में सिर के बल गिरकर बुरी तरह चोट खा गया था | लेकिन इस चोट से अब वह और भी खूंखार हो उठा था | वह अपनी जगह से उठकर सम्भला | फिर दोबारा राजू पर हमले की तैयारी करने लगा था | राजू ने अब उन सुलगती हुई लकड़ियों की ओर बड़ी मायूसी से देखा | उसे याद आ रहा था कि ऐसी स्थिति में यदि जलती हुई लकड़ी या मशाल से जंगली जानवरों को डरा दिया जाय तो वे भाग खड़े होते हैं |
स्कूल में राजू के अध्यापक ने भी बताया था कि जंगल के सभी जानवर आग से बहुत डरते हैं | यहाँ अलाव जल रहा होता तो शायद यह तेंदुआ पास आने की हिम्मत नहीं करता | लेकिन यहाँ तो शेष बची लकड़ी संभवतः कुछ गीली थी, जिससे वो शीघ्र जलने का नाम ही नहीं ले रही थी | राजू जानता था कि अलाव की आँच में बची लकड़ियाँ उसकी गर्मी से धीरे – धीरे सूख भी रही थी, जो कुछ देर में अपने आप दहक सकती थी | लेकिन राजू के पास प्रतीक्षा के लिए समय नहीं था |
अब राजू ने बड़ी मायूसी से परी रानी को फिर याद किया | तब तक तेंदुए ने फिर से हमला बोल दिया था | अलाव के पास खड़ा राजू पहले से सतर्क था | उसने दोबारा भी बड़ी फुर्ती से गुफा के अँधेरे में छलांग मार दी थी | राजू की सावधानी के चलते तेंदुआ का अपने लक्ष्य से फिर भटकना तय था |
इसी बीच एक चमत्कार जैसी एक घटना और घटी | हवा का एक तेज झोंका आया और जाने कब से सुलगती हुई, अलाव की लकड़ियाँ एकाएक ही धू – धू करके जल उठी थी |
सचमुच राजू खुशकिस्मत था | दो क्षण पहले वह जिस बुझती हुई आग के पास खड़ा होकर वह सिर्फ धुआँ देख रहा था, अब वह अचानक ही दहक चुकी थी | लेकिन उसका प्रतिद्वंदी तेंदुआ इस मामले में बदकिस्मत था | इस बार लक्ष्य से चूका उसका मुँह सीधे इसी जलते हुए अलाव में जा घुसा था |
अचानक दहकते हुए अलाव में तेंदुए का सिर घुस जाने से अब राजू को कुछ भी करने की जरूरत नहीं थी | तेंदुआ संभलते – संभलते और तेजी से बचकर निकल भागने की कोशिश करते हुए भी, इस आग से झुलसकर बुरी तरह तिलमिला उठा था | जलने से घायल हो चुका तेंदुआ किसी तरह संभलते हुए अलाव से बाहर निकला और दर्द से बिलबिलाता हुआ तलहटी की ओर भाग निकला |
एक बार फिर खतरा टल चुका था | इस दरिन्दे के भागने से राजू को मानो नया जीवन मिला | उसकी साँसे किसी धौंकनी की तरह चल रही थी | उसे इस बार अपने आपको नियंत्रित करने में कुछ ज्यादा समय लगा | वह सोच रहा था कि ऐन मौके पर अचानक आई तेज हवा से यह आग न धधकी होती तो ? वह इस खतरनाक तेंदुए का कब तक और कैसे मुक़ाबला कर पाता ?
उसने मान लिया था कि हो न हो, आग को धधका देने वाला हवा का यह तेज झोंका परी रानी की प्रेरणा से ही आया था | बहरहाल, ऐसी घटनाओं से डरा – सहमा हुआ राजू अब इस खतरे से भी बचकर आश्वस्त हो चुका था |
.....और किसी दृढ़ प्रतिज्ञ, हठी अथवा जिद्दी की तरह अब वह फिर से अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने की राह खोजने लगा |
अब गुफा के अँधेरे में आगे बढ़ने के लिए उसे प्रकाश का सहारा भी मिल गया था | उसने एक जलती हुई लंबी लकड़ी उठा ली और गुफा के भीतर तेजी से चल निकला | हालांकि इस ताजा हमले से वह और ज्यादा थक चुका था | लेकिन उसकी चाहत कहें या फिर जिद कि उसके आगे बढ़ने की लालसा और भी बलवती होती जा रही थी | हालाँकि प्रकट रूप में वह परी रानी को याद करते हुए मानो यही कहना चाह रहा था कि हे परी माँ ! अब बहुत हुआ | परीक्षाएँ समाप्त करो | बस, जल्दी से लक्ष्य तक पहुँचा दो |
बहरहाल, उस गुफा में भी राजू का सफर कुछ दूर तक जारी रहा | लेकिन उस जलती लकड़ी ने अधिक देर तक उसका साथ न दिया | गुफा के भीतर ताजी हवा अर्थात ऑक्सीज़न कम मिलने से वह लकड़ी बार – बार बुझने की कोशिश कर रही थी | वहाँ की हवा में सड़ाँध और बदबू फैली हुई थी , जिसमें राजू का मन बुरी तरह विचलित हो रहा था | शायद किसी जानवर का सड़ा हुआ मृत शरीर वहाँ दुर्गंध फैला रहा था | उसने एक हाथ से जेब की रुमाल निकाली और नाक पर रख ली |
लेकिन अब उसके बुरी तरह थके हुए पाँव भी आगे बढ़ने से पूरी तरह जवाब देना चाहते थे | दर्द से हाल बे-हाल हो रहा था | फिर भी परियों के पेड़ का जाने कौन सा आकर्षण था ? जो उसे अब भी आगे बढ़ने को लगातार खींचे जा रहा था |
कुछ ही देर में जलती हुई लकड़ी भी आखिरकार बुझ गयी थी | उसके बुझते ही वहाँ पूरी तरह से अंधकार छा गया | लेकिन इतनी देर में राजू को गुफा से आगे बढ़ते जाने के मार्ग का अनुमान लग गया था |
थकावट की अति हो चुकी थी | लेकिन राजू अंधेरे में ही किसी तरह पैर घसीट – घसीट कर चलता रहा, काफी दूर तक चला | ….और आगे तक चलते रहने की कोशिश करता रहा | कई बार अँधेरे में ठोकर खाकर गिरा | उठकर संभला | फिर चल पड़ा |
नन्ही सी जान, चलते – चलते थकान का पर्याय हो गया था | भूख - प्यास और कमजोरी से लस्त – पस्त पड़ गया था | सफर की इंतिहा हो गई थी | लेकिन वह चलता गया | चलता ही गया | इतना तो चल ही गया था कि किसी प्रकार इस गुफा के रास्ते को पार करके बाहर खुली हवा में आ गया था |
लेकिन मंजिल शायद दूर ही थी | क्योंकि राजू के सामने अब भी एक और नयी बाधा मुँह बाये खड़ी हो गयी थी |
---------क्रमशः