Masoom ganga ke sawal - 6 in Hindi Poems by Sheel Kaushik books and stories PDF | मासूम गंगा के सवाल - 6

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मासूम गंगा के सवाल - 6

मासूम गंगा के सवाल

(लघुकविता-संग्रह)

शील कौशिक

(6)

संगम स्थल

******

ऊँचे पर्वतों को लांघती

लहराती, बलखाती सखियों से गले मिल

मैदानों में पहूँचती गंगा

अनेक नामों से पुकारी जाती

सद्संस्कारी गंगा

अपनी अन्य छोटी बहनों का

थाम कर हाथ उन्हें संगिनी बना

रचती है कितने ही

देवप्रयाग, इलहाबाद जैसे

आस्था के संगम स्थलI

हिमालय का मिलन

********

हिमालय में

गोमुख से निकली गंगा

ले चलती है अपनी आँखों में बसा

उसका अकूत वैभव

सम्पूर्ण चेतना की धारा

और इस तरह

बनती है माध्यम

पृथ्वी मार्ग से

हिमालय को सागर तक

पहुंचाने काI

अनाम रिश्ता

***********

कुछ रिश्ते होते हैं

अनाम अव्यक्त

अदृश्य तारों से बँधे

कभी न खत्म होने वाले

ऐसा ही रिश्ता है

मेरा गंगा नदी से

हवा-धरा-पानी के जैसा

तभी तो पाती हूँ

सदैव उसे

अपने आस-पासI

पाप मुक्ति

*****

सब कहते हैं

गंगा में नहाने से

धुल जाते हैं पापियों के पाप

सच से मुँह मोड़ कर

डुबकी लगा कर

समझते हैं खुद को पवित्र

छल करते हैं

वे अपने आप से

पर जान-बूझ कर किये पाप

छोड़ते नहीं पीछा उम्र भरI

गंगा का आलाप

******

अक्सर मीठे स्वर में

आलापती है गंगा

आरोह-अवरोह के राग जैसे

संगीतमय होकर

गुनगुनाती है गंगा

कभी-कभी गंगा का

ऊँचे स्वर में सम्भाषण के जैसे

विस्तारपूर्वक पीड़ा से

कुछ कहते जाना

क्यों नहीं द्रवित करता हमें?

स्वर्गिक यात्रा

************

पहाड़ की यात्रा

अपने में होती है रोमांचकारी

एक तरफ पहाड़ आसरा देता है

तो दूसरी ओर

चँवर झुलाती हैं पवित्र नदियाँ

थकान मिटाती सुगन्धित हवाएं

रिझाते हैं वन्य जीव

पहाड़ के हृदय से फूटते झरने

तब सचमुच लगता है

स्वर्ग तो यहीं हैI

आओ सँवारे गंगा को

*********

कहीं नदियों के सूखने से

सूख न जाए

जीवन की आनन्द सरिता

चलो हम कुछ नियम बनाएं

एक नई तर्ज पर

गंगा-सी सदानीरा नदियों को सँवारें

बना कर योजनाएँ-परियोजनाएं

सेहत सुधारें गंगा की

समुचित वेग बनाएं रखें

गंगा की अविरल धारा काI

मौत के घाट पर

*******

पानी ढोना

नदी का काम है

पर हमने सौंप दिया उसे

कचरा ढोने का काम

उसके जलागमों को

किया वृक्षविहीन

चौतरफा मार से

नदियों के घाटों पर

नदियों को ही हमने

पहुँचा दिया मौत के घाटI

खुद का अंत

***********

मोक्ष की प्रार्थना

करते हैं लोग गंगा मैया से

कर दिया है उसे मुक्त

अब हमने ही

अब हम भी नहीं बचने वाले

हमने स्वयं

अपने पैरों पर

मारी है कुल्हाड़ी

खोल दिए हैं रास्ते

सामूहिक अंत केI

कुछ सोचें जरा

************

कुछ सोचें जरा

गंगा की सम्मानजनक

वापिसी के लिए

वृक्षारोपण के साथ-साथ

करें जल रोपण-शोधन भी

और रखें नदी को स्वच्छ

ताकि खिलखिला सके

नदी स्वयं भी

और सबके लिए भी

लौटा लाए मुस्कुराहटेंI

जरूरी है सम्मान

*******

किसी मनचले ने

छुआ गंगा का तन

सकुचाई थी गंगा

गुस्सा आया था पापी पर

उफन कर कर लिया कैद उसे

जलमग्न हो गईं उसकी तृष्णायें

हाथ जोड़ कर प्रणाम किया

उसने गंगा को और लौट गया

नारी की गरिमा का सम्मान करना

सिखाना था जरूरीI

गरीब शब्द-कोष

*****

तुम्हें पूर्णता में लिखते समय

मन में जिज्ञासा लिए

मैं खोजती रही माँ गंगे तुम्हें

इतिहास की पुस्तकों में

जन्म से लेकर तुम्हारे नामकरण तक

तैरते रहे भ्रम

कब कोई जान पाया तुम्हें

समूची कब उतार पाया भावों में

मेरा शब्दकोश भी

कुछ हो जाता है गरीब-साI

गर्भ में दम तोड़ती

*******

मनुष्य के भूत, वर्तमान, भविष्य को

तय करने वाली गंगा

सबके श्वासों में

बसने वाली पावन गंगा

जूझ रही है स्वयं

अपने अस्तित्व के लिए

उपभोग की वस्तु बना डाला

मनुष्य की लिप्सा ने

तोड़ रही हैं तरुणाई तक पहुंचते-पहुंचते दम

कितनी ही नदियाँ उसकी संकीर्ण सोच सेI

अनूठी हस्तलिपि

********

जब भी आई तुमसे मिलने

खूब बही गंगा

तुम्हारे बहाव के साथ

न जाने कब में उतर आई

मेरी आँखों में तुम्हारी नमी

कितनों ने पूछा तुम्हारा पता

तुम्हारा हाल-चाल

हर बार आँखें भीगी रह गईं

तुम्हारे-मेरे प्रेम को लिख रही हूँ अब

एक अनूठी हस्तलिपि मेंI

सवाल ही सवाल

*****

एक सवाल मैंने किया

एक सवाल तुमने गंगा

हर सवाल का सवाल ही जवाब मिला

नदी से नाला मुझे किसने बनाया

मेरे नितांत स्वच्छ जल में

किसने जमा की गाद

हजारों बातें पूछने वाली थीं मैं

पर तुम्हारे सवालों ने

कर दिया मुझे निरुतर

थमा दी गम्भीर खामोशीI

बारिश में गंगा

************

सावन की

धारासार बारिश में

उमगती/ छलछलाती गंगा

कर लेती है धारण

अनूप रूप और रंग

करती है प्रकट आभार हृदय से

आकाश में उमड़े

घने बादलों का

तट के दोनों ओर

खड़े पेड़ों काI

बिन पानी के

************

धरती पर

सर्वपूजित गंगा

धन-धान्य से

प्रफुल्लित करती गंगा

जो परिचय है हमारी संस्कृति का

कहाँ खो गई है

हम बिन पानी के लोग

क्या बताएंगे पूछने पर

कि हम हैं कौनI

चुपके से

***********

कुछ समय के लिए ही सही

गंगा में डुबकी लगा कर

हो गया विखंडन

राग-द्वेष कलह-क्लेश की

शिलाओं का

चुपके से उतर आई

शुष्क मन-प्राण में

नदी की तरलता

भर गया आनंद से

मेरा खाली मनI

गंगा की कहानी

*****

गंगा के किनारे

मौन बैठी कुछ देर

तो माँ–दादी द्वारा बताया

गंगा का विगत सामने आया

महसूस किया वर्तमान को

और भविष्य लहराने लगा

मेरी आँखों में

उस एक क्षण में

भूत वर्तमान और भविष्य

तीनों को सुन रही थी मैं

वे आतुर थे

गंगा की कहानी बताने को

क्रमश....