Tirupati-Meri Pahli Dakshin Yatra in Hindi Travel stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | तिरूपति--मेरी पहली दक्षिण यात्रा

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तिरूपति--मेरी पहली दक्षिण यात्रा

"तिरूपति चले"
चालीस साल रेलवे मे सेेवा के दौरान दक्षिण यात्रा का संयोग नही बन पाया।एक बार नागपुर तक जरूर जा आया था।उस समय भी नही जा पाया।जब मेरे सालेे का जबलपुर से चैैैनई तबादला हो गया था।वह वहां पॉच साल रहा।घूमने के लिए बुुुलाता रहा,लेकिन जा नही पाया।
तिरूपति के दर्शन की इच्छा वर्षोंं से थी।जब लोग बालाजी जाकर आते औऱ वहां के समाचार सुनातेे।तब यह इच्छा औऱ बलवती हो उठती।इसलिए जब मेरे मित्र पॉडे ने जब कहा,तो मै तुरन्त तैयार हो गया।
मेरा भाई कई बार वहां जा आया था।उसने मुझे वहां के बारे मे समझा दिया था।मेरा भॉजा भी वहां जा आया था।उसने तिरूपति मंदिर मे दर्शन के ऑनलाइन टिकट बुक करा दिये थे।
हम दोनों को पास की सुविधा मिलती है।हमने केरला ऐक्सप्रेस मे एसी मे सीट बुक करा ली थी।हम आठ लोग(मै,मेरी पत्नी, सलेज,पॉडे, उसकी पत्नी, बेटी औऱ दोभाई)27 अकटूबर को तिरुपति के लिए रवाना हो गये।यात्रा मे खाने के लिए नमकीन,मिठाई, फल आदि खाद्य सामग्री लेकर हम चले थे।
ट्रेन मे खाते पीते,हंसीं मजाक करते सफर का पता ही नही चला और 28 की रात दस बजे हम तिरुपति पहुंच गये थे।
आगरा से चलने से पूर्व हमने होटल मे ऑनलाइन कमरे बुक करा लिए थे।स्टेशन से बाहर आकर हमने जीप कर ली थी।पहली बार तिरुपति आये थे।होटल स्टेशन से ज्यादा दूर नही था।होटल की औपचारिकता पूरी करके हम अपने अपने कमरों मे पहुंच गये थे।
हमने दर्शन के ऑनलाइन टिकट बुक करा रखें थे।हमें दर्शन का समय तीन बजे का मिला था।29तारीख को मै औऱ पॉडे नहाकर तैयार हो गये।फिर हम दोनो पूछताछ करने तिरुपति के बस स्टैंड गये थे।पूछताछ करने पर पता चला, तिरुपति से तिरुमाला के लिए हर पॉच मिनट के बाद बस जाती है।एक तरफ का किराया53₹ है।रिटर्न टिकट93₹ का है।रिटर्न टिकट तीन दिन के लिए मान्य रहता है।लेकिन बस बसस्टैंड पर उतार देगी।
हम आठ लोग थे।मै और पॉडे वापस होटल लौट आए।होटल मैनेजर से बात की,वह बोला,"बस बसस्टेंड पर उतारेगी।वहां से मंदिर दूर है।गाडी कर ले।"
हमने गाडी वाले से बात की।उसने हजार रुपये मॉगे।लेकिन वह आठ सो रुपये पर तैयार हो गया।औरहम बोलेरो से चल पडे।रास्ते का दृश्य मनोहर था घुमावदार पहाड़ी औऱ चारो तरफ फैली हरियालीहमें दर्शन का समय तीन बजे का मिला था।हम एक बजे ही पहुंच गये थे।गाडी वाले ने हमे जिस जगह उतारा वहां से हमें ज्यादा नही चलना पडा।गेट से हमें प्रवेश दिया गया।कुछ कदम चलकर हम हॉल मे आ गये।
यहां पर हमारे जूते, मोबाइल आदि जमा करके हमें रसीद दे दी गई।हॉल मे मंदिर की तरफ से चाय नाश्ते का इन्तजाम था।सामान जमा करके हम प्रवेश द्वार पर आ गये।यहां पर हमारे टिकट, आईडी की जांच करके हमें अंदर कर दिया गया।तीन सौ रुपये के टिकट की लाईन भी लम्बी थी।प्रवेश द्वार मे जगह बडे बडे प्रतीक्षालय बने थे।हमारी लाईन के अलावा कम मूल्य के टिकट की लाईन के अलावा बिना टिकट की लाईन भी थी।इस लाईन मे भीड़ सबसे ज्यादा थी।
आगे चलकर सभी लाईनें एक हो जाती थी।इसलिए भीड़ हो जाती थी औऱ आगे बढना रोक दिया जाता था, तब प्रतीक्षालय काम आते थे।लेकिन हमें बिल्कुल नहीं रुकना पडा।हमारी लाईन धीरे धीरे आगे बढती रही।और हम तीन बजे
तिरुपति हिन्दूओ का प्रमुख तीर्थ है।यह ऑध्रप्रदेश के चितूर.जिले मे तिरुमाला की पहाड़ियों मे स्थित वेकटेशवर भगवान(बालाजी)के मंदिर की वजह से विश्व मे प्रसिद्धहै।लाईन मे लगे श्रद्धालु जोश मे भगवान वैकेटशवर के जयकारे लगा रहे थे।बडा अद्भुत, अविस्मरणीय, मनमोहक दृश्य था।हर आयु,हर वर्ग के लोग भगवान के दर्शन को आये थे।श्रवण कुमार के बारे मे किताबों मे पढा था।लेकिन वहां साक्षात दर्शन हुए थे।कई लोग बूढे मॉबाप को कंधे पीठ पर लादे थे।एक अपने अपंग भाई को लाया था।
और तीन बजे भगवान वैकेटशवर। बालाजी के प्रकाट्य स्थल पर थे।वषों पुरानी इच्छा पूरी हो गई।दर्शन के बाद बाहर निकलते समय हमें मेवो से भरपूर प्रसाद मिला था।टिकट पर हमें दो प्रसाद के लड्डू मिलने थे।हमने16लड्डू काउंटर से प्राप्त किए थे।फिर अपना सामान काउंटर से छुडाया और होटल को वापस लौट चले