Ashwtthama ho sakta hai -12 in Hindi Fiction Stories by Vipul Patel books and stories PDF | अस्वत्थामा ( हो सकता है ) 12

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अस्वत्थामा ( हो सकता है ) 12

अपनी पूरी बात सुनाके कुमार ने वसीम खान से कहा यही है मेरी पूरी कहानी अब ईस पे आप यकीन करो या ना करो पर यही सच है । वसीम खान ने फिर उससे पूछा तो फिर किशनसिंहजी ने उस पत्थर पे जो अश्वत्थामा के बारे मे लिखा है उसकी क्या वजह है ? कुमार जवाब देते हुए बोला इस बारे मे तो मैं भी कुछ नहि जानता । क्यूँकि मे जब तक वहा था तब तक तो सर ने वहा पे ऐसा कुछ भी नहि लिखा था । वहा से मेरे भागने के बाद सायद उन्होने ये सब लिखा होगा । ईस तरह कुमार की पूरी इंकवायरी करके वसीम खान बोले अब तक की घटनाओ से तो तेरी बात पे कुछ सच्चाई मालूम पडती है । क्यूँकि तूने जीस ताम्रपत्रो का जिक्र किया है वो पुलिस के हाथ लग गए है । इसलिए ईस वक्त तो में तुम्हारी बात पे यकीन करके अपनी जाँच आगे बढ़ा रहा हूँ पर अगर मुजे मालूम हुआ की तू हमे घूमा रहा है तो फिर इसका अंजाम तू तो भुगतेगा पर तेरे साथ साथ तेरी बीबी और बच्चे को भी जेलना पडेगा समजा ? ईस तरह अपना मिजाज दिखा के वसीम खान जेल से बाहर चले गए । और अपने ओफिसरो को उस सुटकेश और अमेरिकन गोरे की तलाश करने के ऑर्डर फरमाए । उसी वक्त वहा डी.सि.पि. प्रताप चौहाण की गाडी आके खडी रही । फिर थोडी देर बाद ओफिस मे बैठ के इन्सपेक्टर वसीम खान ने सारी बाते डि.सि.पि. सर को बताई । ये सब सुन के प्रताप सर हैरान रहे गए । फिर उन्होने इन्सपेक्टर वसीम खान से पूछा अगर किशन ने उन ताम्रपत्रो को धो के उसे साफ करके उन पत्रो से वो विष हटा दीया था तो फिर उन ताम्रपत्रो पे वो प्रश्वेद विष वापस कैसे आ सकता है ? ये सुन के इन्सपेक्टर वसीम खान बोले सायद प्राचीनकाल से ही प्रश्वेद विष कही पे संभाल के रखा गया हो और ईस वक्त ये विष उस बुरखेधारी के हाथ लग गया हो ऐसा भी हो सकता है । और कई वो बुरखाधारी प्रश्वेद विष बनाने की फोर्मुला जानता भी हो सायद , ऐसा भी हो सकता है । उसी वक्त प्रताप सर के मोबाईल पे यू.पि. से ऐस.पि. अश्विन कपूर का फोन आया । उन्होंने डि.सि.पि. प्रताप चौहाण को बताया की CIA का एजंट रिचार्ड एक हफ्ते पहेले ही ये देश छोड के अपने वतन अमेरिका वापस लौटने मे कामयाब हो गया है । ये सुनके प्रताप साहब चिंतित होके बोले तो फिर तो अब उस तक पहोचना हमारे लिए बहोत मुश्किल है । ये सुनके सामने से ऐस.पि. कपुर बोले मुश्किल ही नही प्रताप , अब नामुमकिन है । फिर दोनो दोस्त थोडी देर तक फोन पे इधर उधर की बाते करते रहे और फिर दोनो ने फोन रख दिए । बाद मे वसीम खान से बात करते हुए प्रताप चौहाण बोले अब हमे उन गाव (रामनगर) वालो की बातो पे भी गौर करना चाहिए । फिर थोडी देर तक चुप बैठने के बाद अचानक आवेश मे आकर के , वसीम खान की ओर देखकर डी.सि.पी. प्रताप साहब बोले , खान अब चाहे कुछ भी करो , जितनी भी पुलिस फोर्स चाहिए लगा दो । पर अब जितनी जल्दी हो सके ये सारी गुत्थी सुलजाओ । सबसे पहेले कुछ भी करके उस बुरखाधारी का पता लगाओ । उस कमीने की वजह से मेरे दोस्त की जान गई है । अब वो ज्यादा देर तक यू ही आजाद घूमता रहे वो मुजसे बर्दास्त नही होता । ये सब सुनके इन्सपेक्टर वसीम खान अपनी खुर्शी से खडे हुए और जोश मे आके यस सर बोल के अपने ऊपरी को सैल्यूट किया और जोश के साथ बोले मे आपसे वादा करता हूँ सर , की वो बुरखाधारी अगले २४ घंटों मे जिंदा या मुर्दा आपके सामने होगा । फिर वसीम खान अपनी ओफिस से बाहर निकले और अपने ओफिसर जडेजा से गाडी निकालने को कहा । फिर दोनो पुलिस जीप मे बैठे तभी वसीम खान ने गाडी ईश्वर पटेल के घर की ओर लेने को कहा । उसने जाडेजा से कहा की ईश्वरभाई के घर से सायद हमे कोई सुराग मिल जाए जिससे हम उस बुरखाधारी का पता लगा सके । और उस कुमार ने जिस शूटकेश का जिक्र किया है वो भी सायद हमे उनके घर से मिल जाए तो ये पूरा केस सोल्व करने मे हमे आसानी हो जाएगी ।

ईश्वर भाई की मृत्यु के दूसरे ही दिन रात को १२ बजे के आसपास जगदीशभाई अपने बैड से उठे । उठने के बाद वहा सोइ हु़ई अपनी बीबी संध्या के सिर पे वो निंद से उठ ना जाए ऐसे धीरे से अपना हाथ सहेलाया और उसका माथा चूमके वो अपने कमरे से बाहर निकले । फिर अपनी माँ के कमरे मे गए । वहा भी अपनी माँ के पैरो को धीरे से छू के उसे प्रणाम करके वहा से बाहर निकल गए । फिर अपने घर से बाहर निकल के ग्राउंड मे आ गए । और फिर अपने पास रहे मोबाईल से उन्होंने ने मालती को फोन लगाया । जगदीशभाई का फोन उठा के मालती बोली क्या बात है , सर ? ईस वक्त फोन किया । जगदीशभाई बोले मालती मुजे तुमसे एक बहोत जरूरी बात बतानी है । मुजे ईश्वर के हत्यारे का पता लग गया है । ये सुनके मालती गुस्से से आकुल व्याकुल होके बोली कौन है वो निर्दय जिसने निर्दोष ईश्वर सर ........ । अपनी बात कहेती हु़ई मालती को बिच मे ही रोक के जगदीशभाई बोले ईस वक्त ये सारी बात फोन पे बताने का समय नही है हमारे पास । कातील हमारे हाथो से निकल जाए उससे पहेले उसे पकड के पुलिस के हवाले करना जरुरी है । इसीलिए तुम एक काम करो । तुम जल्दी से घर से बाहर आ जाओ मे बाहर ही तुम्हारा वेइट कर रहा हूँ । ये सुनके नाइट ड्रेस मे सज्ज मालती ने जल्दी से अपने कपडे चेंज किए और अपना पर्स उठाके के त्वरा से घर से बाहर निकली और घर को ताला लगाया । बाहर निकलते ही मालती ने देखा की जगदिशभाई अपनी कार मे बैठे बैठे उसका ही इंतजार कर रहे थे । जैसे ही मालती गाडी मे बैठी की जगदीशभाई ने गाडी दौडा दी ।

उसी रात लगभग रात के साडे तीन बजे के आसपास कमिश्नर ओफिस मे ही अपने दोस्त ईश्वर पटेल की मौत के बारे मे इंन्वेस्टीगेशेन करते करते ओफिस मे ही अपने टेबल पे माथा टेक के सो गए हुए डी.सि.पि. प्रताप चौहाण का मोबाईल बजा । उन्होंने नींद से उठके मोबाईल स्क्रीन पे देखा तो इन्सपेक्टर वसीम खान का फोन था । उन्होंने जल्दी से फोन उठाया और बोले हा , बोल खान । तभी वसीम खान ने कहा सर साबरमती रिवरफ्रंट के पास एलिस ब्रिज पे आपके दोस्त जगदिशभाई उपाध्याय की कार का एक्सिडन्ट हो गया है । ये सुन के डि.सि.पि. प्रताप की निंद अचानक से गायब हो गई । वो घबराई हु़ई आवाज मे बोले कैसे हुआ है ये हादसा ? और जगदीश ठीक तो है ना ? वसीम खान थोडी देर खामोश रहेकर बोले आइ एम सोरी सर । मुजे बताते हु़ए अफसोस हो रहा है पर जगदीशभाई और उनकी स्टाफ मेम्बर मिस मालती जी की घटना स्थल पे ही मृत्यु हो चुकी है । ये सुनके डी.सि.पि. प्रताप के सीने पे दो दिनों के अंदर ही अंदर ये दूसरा वज्रघात हुआ । एक काबिल पुलिस ओफिसर होके भी आज वो अपने आप को नही संभाल पा रहे थे ।

फिर कुछ ही देर मे डी.सि.पि प्रताप चौहाण ने घटना स्थल पे पहोच के देखा की जगदीशभाई की कार रिवरफ्रंट की पोर्च पे पूरी तरह से क्रेश होके उलटी पडी थी । उसके दोस्त जगदीश और मिस मालतीजी की डैड बॉडीओ को एक ओर लेटाया गया था । और पुलिसवाले ये सारा एरिआ कॉर्डन करने मे लगे थे । ईतनी रात होने के बावजूद भी ढेर सारे लोग और कुछ मीडिया वाले भी मौजूद थे । इन्सपेक्टर वसीम खान अपने ओफिसरो को इंस्ट्रक्शन देने में लगे थे । डी.सि.पि. साहब अपने दोस्त की लाश देख के फिर से नर्वश हो गए । तभी डी.सि.पि. सर को आए देख वसीम खान उसके पास गए और सैल्यूट किया । फिर ईस घटना के बारे मे डी.सि.पि. साहब को अवगत कराते हुए वसीम खान अपने हाथ से ओवर ब्रिज की ओर इसारा करके बोले , सर , गाडी वहा ऊपर ओवर ब्रिज पे डीवाइडर से टकरा के पलटी मार के यहा नीचे गिरी है । और ईस हादसे को देखने वाले बता रहे है की गाडी फुल स्पीड से डिवाइडर के साथ टकराई थी । और ईस जोरदार टकराव की वजह से पलट के नीचे गिरी थी । और जहा पे कार टकराई है वहा पे डिवाइडर भी लगभग टूट चुका है । फिर वसीम खान अपना तर्क लगाके बोले मेरे खयाल से ज्यादा स्पीड की वजह से जगदीशभाई अपना नियंत्रण खो बैठे होगे और कार डिवाइडर से टकरा गई होगी । ये सून के प्रतापभाई बोले, तो क्या कार जगदीश चला रहा था ? वसीम खान ने उत्तर दीया, जी हा सर । ये सुन के डी.सि.पि. प्रताप चौहाण बोले ये कैसे हो सकता है ? क्युकि जगदीश कभी भी अपनी कार ओवर लिमिट मे नही चलाता है । ये दोनो ओफिसर ऐसे बाते कर रहे थे तभी जगदीशभाई की बीबी संध्याबहेन और उसकी माँ को लेके रमण और कोमल वहा आ पहोचे । जगदिशभाई के अचेतन शरीर को देख के उसकी माँ बेहोश हो गई तभी रमणभाई ने उसे नीचे गिरने से संभाल लिया । और संध्या अपने पति की लाश की ओर जाने बिना प्राण की कोई काष्ठ की पुतली हो ऐसे अपलक नेत्रो से देखती रही । तभी उसके पास खडे कोमल बहेन उसे टटोलते हुए उसे रुलाने का प्रयास करने लगे । जैसे जैसे ईस घटना की खबर फैलति गई वैसे वैसे यूनिवर्सिटी का स्टाफ और स्टूडंटस वहा जमा होते गए । इस दौरान इन्सपेक्टर वसीम खान ने राजस्थान मे रहेते मिस मालती के भाई को फोन करके ईस घटना के बारे मे बता दीया था और वो लोग अहमदाबाद आने के लिए निकल चुके थे ।