कुन्ती हमेशा की तरह बुक्का फाड़ के रोने लगी. अम्मा ने जल्दी से सबको अन्दर किया.
’का हुआ बेटा? काय रो रईं? कछु बोलो तौ...!’
’अम्मा..... जे सुमित्रा ने करवाया सब. इसी के कारण हमें भागना पड़ा...!’
अब एक बार फिर अम्मा के अवाक होने की बारी थी.
अब एक बार फिर अम्मा के अवाक होने की बारी थी. कुन्ती ने जब अपनी करनी सुमित्रा जी पर थोप के कहानी बनाई और अम्मा को सुनाई तो उन्हें ये समझने में एक मिनट भी न लगा कि ये पूरी हरक़त कुन्ती की है और ये फिर उसी तरह सुमित्रा को फंसा रही जैसे बचपन में फंसाती थी. उन्होंने बड़ी मासूमियत से कहानी सुनाती कुन्ती की आंखों में कड़ाई से झांका और अपनी जानी-पहचानी कड़क आवाज़ में कुन्ती से पूछा-
’कुन्ती, जे बात हमाय गरे नईं उतर रई. तुम तौ जानती हौ कै सुमित्रा ऐसे परपंच नई कर सकत, कभऊं. कौनऊ चीज़ ऊये चाय जित्ती अच्छी काय न लगै, न मांग सकत, न कोऊ दे तौ लै सकत. फाड़ कैं चोरी करबौ तौ भौत दूर की बात आय. अगर हम सें ब्रह्मा जी भी जा बात कैहैं तौ हम न मानहैं, काय सें हम जानत ऊ मौड़ी हां. सो बिन्नू, ऐसी है कि उतै का भओ अब बताओ सांची-सांची नई त हम तुमाय बाऊ जी हां टेरत अब्बै हाल. उनै भी बताने तौ आय कै तुम औरें ऐसीं कर्री घाम में कुड़लत-कुड़लत काय हां भगत आईं? बौ भी बड़े के चपरासी के संगै? बड़े न आ पाये पठाबे? सो अब कओ तुम , हम सुन रय चुपचाप.’
अब अवाक होने की बारी कुन्ती की थी. मां का सुमित्रा जी पर ऐसा अटूट भरोसा!! उन्हें तो बचपन वाली अम्मा ही याद थी, जो उनकी हर शिक़ायत पर सुमित्रा की खबर लेती थी. ज ये कौन सी अम्मा है उनके सामने? यानी अम्मा भी उनकी हरक़तों को समझती हैं? उफ़्फ़!! अब अगर उन्होंने बाऊजी तक ये कहानी पहुंचाई तो कहीं इस उमर में, शादीशुदा लड़की की ही वे पिटाई न कर दें, या बड़े भैया की तरह उन्हें यहां से भी निकाल बाहर करें, तब क्या होगा? उन्हें लगा चुप्चाप सच्चाई स्वीकार कर लेने में ही भलाई है. सो फिर सुबकने की एक्टिंग करते-करते सही में आंसू बहाने में माहिर कुन्ती ने रोते-रोते पूरी सही कहानी अम्मा को बता दी, इस ताक़ीद के साथ कि अगर उन्होंने बाऊजी या बड़े भैया को ये सब बताया तो वे कुएं में कूद जायेंगीं.
कुन्ती की धमकी सुन के अम्मा माथा पीटती, चुपचाप वहां से उठ के आ गयीं. जानती थीं कि अब किसी से कुछ कहने का मतलब है कुन्ती का सही में कुएं में कूद जाना. भले ही वो पिछ्वाड़े के सूखे कुएं में कूदने का नाटक करे, लेकिन नाटक इतना ज़बरदस्त होगा कि फ़िज़ूल पूरे गांव के लिये एक नई कहानी तैयार हो जायेगी. पांडे परिवार की बहुत इज़्ज़त है गांव में और किसी भी क़ीमत पर वे ये इज़्ज़त खो नहीं सकतीं. कुन्ती की हरक़त के बारे में देर-सबेर बाऊजी और भैया को वे बता ही देंगीं, लिहाजा अभी चुप रहना ही बेहतर समझा उन्होंने.
उधर अम्मा को मुंह ही मुंह में बड़बड़ाते, माथा पीटते उठ के जाते देख कुन्ती मन ही मन मुस्कुराई. जान गयी कि उसकी धमकी काम कर गयी है. अब अम्मा किसी को नहीं बतायेंगी. वैसे भी अम्मा को मालूम हो भी गया तो कुछ नहीं. बस बाऊजी और बड़े भैया तक ये सच्चाई नहीं पहुंचनी चाहिये. मक़सद तो बड़े भैया की नज़रों में सुमित्रा को गिराने का है न, वो सफल हुआ तो अब बस उस पर बट्टा न लगे.
(क्रमशः)