Karm Path par - 19 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 19

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कर्म पथ पर - 19




कर्म पथ पर
Chapter 19


वृंदा ने वैसे ही क्रोध से मदन को देखा।
"ये कैसा मज़ाक है मदन ? मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी।"
मदन ने बड़ी गंभीरता के साथ जवाब दिया।
"मैं इतने गंभीर विषय को मज़ाक में नहीं ले सकता हूँ।‌ मैंने जो कहा वह एकदम सच है।"
वृंदा अभी भी तमतमाई हुई थी।
"वो बिगड़ैल रईसज़ादा हमारी लड़ाई का सिपाही बनेगा ?"
"तुमने ही तो कहा था कि जो सच्चे मन से आना चाहे उसका स्वागत है। उसने भी सच्चे दिल से इस राह पर चलने का निर्णय किया है।"
"उसका दिल कैसा है ये तो उसकी हरकत ने बता दिया था। उसने ही पुलिस को मेरे बारे में जानकारी देकर उस हैमिल्टन के बंगले पर पहुँचाया था। तुम कैसे बार बार उस धूर्त के झांसे में आ जाते हो ?"
"वृंदा मैं इतना नासमझ नहीं कि कोई मुझे वरगला ले। पुलिस को खबर जय ने नहीं दी थी।"
वृंदा ने गुस्से से पूँछा,
"तो फिर किसने मेरे विक्टोरिया पार्क पहुँचने की खबर उसे दी थी।"
"उसके उस निर्देशक दोस्त इंद्र ने।"
उसकी बात सुनकर वृंदा ने आश्चर्य से पूँछा,
"तुम्हें कैसे पता ?"
"क्योंकी मैं अभी जय से ही मिल कर आ रहा हूँ। उसने मुझे बताया कि यह सब इंद्र और श्यामलाल की करतूत थी।"
"उस पर यकीन कैसे किया जा सकता है ?"
मदन ने अपनी बात बड़े ही विश्वास के साथ कहा,
"मुझे यकीन है उस पर। पहले भी मैंने उसकी आँखों में सच्चाई देखी थी। तभी तुमको उससे मिलने भेजा था। तुम्हारी गिरफ्तारी के बाद भी मैं उससे मिला था। वह उस बात से बहुत आहत था। पर मैंने उसे खूब खरी खोटी सुनाई थी। पर उसने आज मुझे अपनी बेगुनाही का सबूत दे दिया।"
मदन ने वृंदा को वो सब बताया जो जय ने उसे बताया था। सब सुनकर वृंदा कुछ शांत हुई।
कुछ ठहर कर वह बोला।
"वृंदा मुझे लगता है कि जय तुम्हें चाहता है।"
उसकी यह बात सुनकर वृंदा आवाक रह गई। उसके चेहरे के भाव देख कर मदन ने अपनी बात का स्पष्टीकरण दिया।
"तुम्हें लगता है कि मैं बहकी बहकी बातें कर रहा हूँ। पर मैं सोंच समझ कर यह बोल रहा हूँ। मैंने उसके दिल में तुम्हारे लिए पीड़ा का अनुभव किया है। वह पीड़ा सिर्फ इसलिए ही नहीं थी कि उसके कारण तुम्हें गिरफ्तार किया गया था। उसका कारण यही था कि वह तुम्हें चाहता है और तुम्हारे दुख से दुखी था।"

वृंदा अचरज से उसकी बात सुन रही थी। मदन जो कुछ भी कह रहा था वह उसके लिए एकदम नया था।
"वृंदा इंसान कभी भी बदल सकता है। यह बिल्कुल सच है।‌ जय बदल गया है। उसके इस बदलाव का कारण है तुम्हारा प्यार।"
मदन रुका। वृंदा हतप्रभ सी उसकी बात सुन रही थी।
"तुम्हारे प्यार ने उस बिगड़ैल रईसज़ादे को उसके जीवन का मकसद दे दिया है। वह अब देश व समाज के लिए कुछ करना चाहता है। यह बात उसने खुद मुझसे कही है।"
मदन चलने के लिए खड़ा हो गया।
"वृंदा आज मैं तुमसे यही कहने आया था कि जय निर्दोष है। वह बदल गया है। उसे बदलने वाली तुम हो।"

मदन के जाने के बाद वृंदा इस नई सूचना के बारे में बहुत देर तक सोंचती रही। मदन ने जो कहा वह अविश्वसनीय ही लग रहा था। भला जय जैसे लोग किसी के प्रेम में खुद को बदल सकते हैं। बदलना तो दूर क्या उसे प्रेम का अर्थ भी समझ आता होगा। वह कैसे मान ले कि मदन ने जो अनुभव किया वह सच है ?
पर इस तरह से सोंचते सोंचते वह दूसरी तरह से सोंचने लगती। मदन का कहना था कि उसके बारे में पुलिस को खबर देने वाला जय नहीं था। सारा किया धरा उसके दोस्त इंद्र व उसके पिता श्यामलाल टंडन का था। जय तो उसकी गिरफ्तारी से बहुत दुखी था। उसने ही सारी सच्चाई का पता लगाया कि कैसे इंस्पेक्टर वॉकर ने उसे गिरफ्तार तो किया पर उसकी गिरफ्तारी दर्ज करने की जगह उसे उस भेड़िए हैमिल्टन के सुपुर्द कर दिया। इसका अर्थ हुआ कि कि वह बदल गया है।
जय ने खुद ही मदन को बताया है कि वह अपना जीवन देशहित की राह पर समर्पित करना चाहता है। यह बहुत ही अच्छी बात है।
वृंदा कोशिश कर रही थी कि जय के विचार को मन से निकाल कर वह अपना लेख लिखने में ध्यान लगाए। पर उसकी सारी कोशिश बेकार हो रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्यों इस तरह उसके दिमाग पर छा गया है।
अब तक तो वह उससे नफ़रत करती थी। उसे एक बिगड़ैल रईसज़ादे से अधिक कुछ नहीं समझती थी। फिर मदन के यह कहने के बाद कि जय बदल गया है, उससे प्यार करता है, वह उसके बारे में इतना ज्यादा क्यों सोंच रही है।
सिर्फ इसलिए कि जय का बदल जाना, अपना जीवन देशहित में समर्पित करने का विचार करना उसके लिए अविश्वसनीय है।
या फिर वह भी अनजाने ही जय को पसंद करने लगी है। यह विचार मन में आते ही वह परेशान हो गई। उसने कागज़ कलम रख दिया। कुछ देर खुले में बैठने के विचार से कमरे से निकल कर आंगन में आकर बैठ गई।
आंगन में बैठने के बाद भी उसका दिमाग जय को लेकर ही परेशान था। वह अपने मन को समझा रही थी कि उसे इस बात से क्या मतलब है कि जय अपने जीवन के साथ क्या करता है। उसे तो अपने जीवन से मतलब है।
जय को वह जानती ही कितना है। अब तक जितना भी जाना था उससे नफ़रत ही हुई थी। अब अगर वो बदल भी गया है तो उसे क्या लेना देना। उसने तो अपने जीवन की राह बहुत पहले ही तय कर ली थी। अब उसके जीवन में किसी और चीज़ का कोई स्थान नहीं।
"दीदी आज मैं भुवनदा के लिए माछ पकाऊँगा। वही लेने बाजार जा रहा हूँ। आपके लिए कौन सी तरकारी लेता आऊँ।"
बंसी की आवाज़ सुनकर वृंदा अपने ख्यालों से बाहर आई। उसकी बात का जवाब देते हुए बोली,
"मेरी चिंता मत करो। मुझे खास भूख नहीं है। बहुत हुआ तो खुद ही खिचड़ी बना लूँगी। तुम अपने और भुवनदा के लिए माछ बना लो।"
बंसी चला गया। वृंदा ने दरवाज़ा भीतर से बंद कर लिया। वह जाकर फिर से अपना लेख लिखने की कोशिश करने लगी। इस बार वह अपने मन को थिर करने में कामयाब हो गई थी।

मदन से मिलकर लौटने के बाद से ही जय अपने कमरे में बैठा आगे के जीवन की रूपरेखा बना रहा था। उसने तय कर लिया था कि जो भी हो वह अब पुराने तरीके से ज़िंदगी नहीं जिएगा। वह अब कुछ ऐसा करेगा जो उसके दिल को सुकून दे सके। जो काम देश व समाज के हित में हो। इस तरह हो सकता है कि एक दिन वह वृंदा का विश्वास जीत सके।
जबसे उसे यह पता चला था कि वृंदा के दोषी उसके पिता और इंद्र हैं तबसे उसके मन में उनके लिए एक चिढ़ सी पैदा हो गई थी।‌ बार बार उसके मन में आ रहा था कि ये कैसे लोग हैं जिनके लिए अपने स्वार्थ से बढ़ कर कुछ नहीं है। अपने थोड़े से लाभ के लिए ये लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं।
हालांकि कुछ समय पहले तक वह भी इन्हीं लोगों में शामिल था। जिसे अपने सुख सुविधा के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं पड़ता था।‌ पर अब वह बदल गया था। उसमें आए इस बदलाव का कारण वृंदा थी। उस दिन वृंदा ने जिस तरह विलास रंगशाला में देश के उन तमाम गरीब और दबे कुचले लोगों के पक्ष में बात की थी। उनके दुख दर्द को अपना दुख दर्द मानते हुए लड़ने आई थी। उसने उसे भीतर तक छू लिया था।
उसके व्यक्तित्व में जो आत्माभिमान था। बुराइयों से लड़ने की एक आग थी। उससे वह मन ही मन उसकी इज्ज़त करने लगा था। यह इज्ज़त कब प्यार में बदल गई वह जान ही नहीं पाया।‌
अब जब उसे पता चला कि किस तरह वृंदा ने बहादुरी के साथ उस वहशी हैमिल्टन का सामना किया तो उसके मन में वृंदा की नज़रों में खुद को साबित करने की इच्छा ने ज़ोर मारना शुरू कर दिया था।
पर उसे सब कुछ बहुत सावधानी से करना था। वह नहीं चाहता था कि जब तक वह अपनी चुनी हुई राह पर सही तरह से चलने ना लगे, उसके बदलाव का पता किसी को भी लगे।
जय भलीभांति जानता था कि यदि उसके पापा या इंद्र को इस बात की भनक भी लग गई कि वह अपने पुराने जीवन को छोड़कर एक नई राह पर चल पड़ा है तो वह लोग उसकी राह में रोड़े अटकाएंगे। अतः उसने तय कर लिया था कि ऊपरी तौर पर वह यही दिखाएगा कि वह वही पुराना जय है।