Karm path par - 17 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 17

Featured Books
Categories
Share

कर्म पथ पर - 17

कर्म पथ पर
Chapter 17



अपने कमरे में पहुँच कर जय बिस्तर पर गिर गया। उसकी आँखों से लगातार आंसू बह रहे थे। जो कुछ भी वृंदा पर बीती थी, उसे जानने के बाद उसका मन बहुत विचलित हो गया था।
अब वह पछता रहा था कि क्यों उसने वृंदा से मिलने की इच्छा जताई थी। ना ही वह वृंदा से मिलने जाता और ना ही पुलिस उसे गिरफ्तार कर उस हैमिल्टन के बंगले पर ले जाती। वह बार बार अपने आप को ही धिक्कार रहा था।
कुछ देर तक उसकी ऐसी ही मनोदशा रही। वह स्वयं को ही दोष देता रहा। पर जब वह कुछ संभला तो उसने तय किया कि वह अब हर हाल में उस व्यक्ति का पता लगा कर रहेगा जिसने वृंदा को पकड़वाया। उस पुलिस इंस्पेक्टर के बारे में भी पता लगाएगा जो वृंदा को गिरफ्तार कर हैमिल्टन के बंगले पर ले गया।
वह बाहर जाने की तैयारी कर रहा था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। भोला ने आवाज़ लगाई,
"छोटे मालिक, आपको बड़े मालिक खाने के लिए बुला रहे हैं।"
जय को याद आया कि आज पापा की छुट्टी थी। छुट्टी वाले दिन वो लोग एक साथ ही दोपहर का खाना खाते थे।‌ उसने आवाज़ देकर कहा,
"तुम चलो, मैं आता हूँ।"

जय नीचे पहुँचा तो श्यामलाल डाइनिंग टेबल पर मौजूद थे। जय भी कुर्सी खींच कर बैठ गया। भोला ने उसके सामने प्लेट रख दी और खाना परोसने लगा। जय ने मना करते हुए कहा,
"मैं खुद ले लूँगा, तुम जाओ।"
भोला चला गया। जय ने बहुत थोड़ा सा खाना अपनी प्लेट में परोसा। यह देखकर श्यामलाल ने कहा,
"क्या बात है ? ठीक से खा क्यों नहीं रहे ?"
"आज तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है।"
श्यामलाल ने उसकी तरफ देखा। फिर गंभीरता से बोले,
"मैं पिछले कई दिनों से गौर कर रहा हूँ कि तुम अनमने से रहते हो। बात क्या है ? अगर तबीयत ज्यादा खराब है तो डॉक्टर को दिखाते हैं।"
"नहीं, कोई परेशानी की बात नहीं है।"
श्यामलाल ने अपना चम्मच प्लेट पर रखते हुए कहा,
"परेशानी की बात है जय। अगर जवान बेटा निरुद्देश्य अनमना सा रहे तो एक बाप को परेशानी होती है। तुमने नाटक में मन लगाना शुरू किया था तो तसल्ली हुई थी कि कुछ कर रहे हो। पर तुमने उससे भी किनारा कर लिया।"
श्यामलाल की आवाज़ में जो दर्द था उसे जय ने महसूस किया। उसने तसल्ली देते हुए कहा,
"पापा जल्दी ही आपकी शिकायत दूर हो जाएगी।"
"यदि ऐसा हुआ तो अच्छा होगा।"

उसके बाद दोनों चुपचाप खाने लगे। जय की प्लेट में जो थोड़ा सा खाना था वह खत्म हो गया था। पर वह अपने पापा के खा लेने की राह देख रहा था। भोला बीच बीच में आकर उन्हें जो चाहिए था परोस रहा था।
खाना समाप्त होने के बाद श्यामलाल बोले,
"मैं ज़रा सिविल अस्पताल जा रहा हूँ। हैमिल्टन साहब को कुछ चोटें आई हैं। ज़रा हालचाल ले आऊँ।"
जय जानता था कि हैमिल्टन के साथ क्या हुआ है। फिर भी बोला,
"क्यों ? उनके साथ कोई दुर्घटना हो गई क्या ?"
"अधिक नहीं पता। क्लब में सुना था कि उन्हें चोट लगी है और अस्पताल में भर्ती हैं।"

श्यामलाल के जाने के कुछ ही देर बाद जय भी बाहर निकल गया।

जय एक बार फिर जिन लोगों से जानकारी मिल सकने की उम्मीद थी मिल रहा था। पर कोई सफलता हाथ नहीं आई थी। वह निराश हो गया था।
घर में उसने ठीक से खाया नहीं था। अब उसे भूख लग रही थी। वह बाजार में कुछ खाने के लिए गया। वह एक हलवाई की दुकान पर गया। वहाँ एक चेहरे पर उसकी नज़र पड़ी। वह चेहरा देखते ही जय पहचान गया। वह उन दो हवलदारों में से एक था जो उस दिन वृंदा को गिरफ्तार करने आए थे। जय ने उसका पीछा किया। एक सुनसान जगह पर उसने उसे रोक लिया।
"क्या बात है। मुझे क्यों रोका ?"
उस हवलदार ने गुस्से से कहा।
जय ने भी सख्त लहज़े में कहा,
"उस दिन विक्टोरिया पार्क में उस लड़की को गिरफ्तार करने तुम भी आए थे ना ?"
उस हवलदार ने धमकाते हुए कहा,
"देखो पुलिस से ना उलझो। नहीं तो महंगा पड़ेगा।"
जय ने उसे अपने पिता श्यामलाल टंडन के बारे में बताया। उनका नाम सुनकर उसके तेवर नरम पड़े।
"उस लड़की की गिरफ्तारी पुलिस विभाग में दर्ज़ नहीं है। सच सच बताओ कहाँ गई वह ? नहीं तो तुम्हें महंगा पड़ेगा।"
हवलदार घबरा गया।
"साहब हम तो छोटे लोग हैं। जो आदेश मिला कर दिया।"
"ठीक से बताओ कहाँ गई वो लड़की ?"
"इंस्पेक्टर वॉकर को आदेश मिला था कि उसकी गिरफ्तारी दर्ज़ ना करें। उस लड़की को हमने शहर के बाहर किसी बंगले में पहुँचा दिया था।"
"तुम्हें नहीं पता कि वह किसका बंगला था ?"
"हो सकता है कि इंस्पेक्टर वॉकर को मालूम हो ?"
जय को पता लग चुका था कि वृंदा को गिरफ्तार करने वाले इंस्पेक्टर का नाम वॉकर है। वह जानना चाहता था कि इंस्पेक्टर वॉकर को वृंदा के विक्टोरिया पार्क में होने की सूचना किसने दी। उसने हवलदार से पूँछा,
"वो लड़की विक्टोरिया पार्क में आने वाली है यह सूचना इंस्पेक्टर वॉकर को किसने दी ?"
हवलदार ने याद करने की कोशिश की। कुछ क्षणों के बाद बोला,
"एक साहब आए थे। नाम तो नहीं पता पर सूट बूट पहने कोई हिंदुस्तानी थे।"
हवलदार ने जय को उस शख्स का हुलिया भी बताया। हुलिया सुनकर जय के मन में इंद्र की छवि उभरी।
जय बाजार से फैरन इंद्र के घर गया। पर उसे इंद्र वहाँ मिला नहीं। वह क्लब पहुँचा तो इंद्र वहाँ भी नहीं था।
जय अपने घर लौट आया। यह सोंच कर उसके तन बदन में आग लग रही थी कि यह सब इंद्र ने किया था। वह जानता था कि इंद्र वृंदा के लिए उसके मन के भाव समझता था। फिर भी अपने स्वार्थ के लिए उसने वृंदा को मुसीबत में डाल दिया।
रात भर वह बेचैन रहा। जब भी वह सोने का प्रयास करता वृंदा का वह चेहरा उसकी आंखों में तैरने लगता जो उसने गिरफ्तारी के समय देखा था। उस समय उसके चेहरे के भाव जय के दिल को चीर गए थे।
रात भर वह सिर्फ करवटें बदलता रहा।

सुबह तैयार होकर जब वह नीचे आया तो अपने पापा के कमरे से उसे इंद्र की आवाज़ आती सुनाई पड़ी। इन दिनों इंद्र जब भी जय के घर आता था श्यामलाल से ही मिलता था।
जय दरवाज़े के बाहर खड़ा होकर उनकी बातें सुनने लगा।
"मुबारक हो चाचाजी सुना है कि राय बहादुर के खिताब के लिए आपका नाम सबसे ऊपर है।"
"हाँ जब से उस लड़की का कांटा हटा है सब ठीक हो रहा है।"
"चाचाजी इस नाचीज़ को भूलिएगा नहीं। उसे उसकी सही जगह पहुँचाने में मेरा ही हाथ था।"
"ज़रूर याद रखेंगे। तुमने तो वह किया जो जय भी नहीं कर सकता था।"

सब सुनकर जय खून खौल उठा। लेकिन उसने खुद पर काबू रखा। एकदम सामान्य बन कर वह कमरे में गया।
"मुझे मुबारकबाद सुनाई पड़ी। भई मैं भी तो जानूँ क्या बात है ?"
उसे देख इंद्र चहक कर बोला,
"चाचाजी को राय बहादुर का खिताब मिलने वाला है।"
जय ने ऐसा दिखाया कि जैसे यह खबर सुनकर वह बहुत खुश हुआ हो।
"वाह क्या अच्छी खबर है। इस बात पर तो जश्न होना चाहिए।"
इस बार श्यामलाल बोले,
"बिल्कुल होगा। हैमिल्टन साहब अगले हफ्ते तक अस्पताल से छूट जाएंगे। तब होगा जश्न।"
सब कुछ जानकर जय बहुत आहत था। पर अपने मन के भाव अभी वह किसी के सामने भी ज़ाहिर नहीं करना चाहता था।