Karm path par - 13 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 13

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कर्म पथ पर - 13




कर्म पथ पर
Chapter 13



मदन से मिलने के बाद से जय और भी बेचैन हो गया था। मन में उथल पुथल मची थी। इतना सब कुछ होने के बाद भी क्या वृंदा उस पर विश्वास करेगी। यदि उसने मिलने से मना कर दिया तो क्या होगा।
दरअसल जय की उलझन का कारण यह नहीं था कि वृंदा क्या निर्णय लेगी। वह तो अपने मन को ही नहीं समझ पा रहा था। आखिर क्यों उसका मन इस तरह वृंदा की तरफ आकर्षित था ? क्यों वह चाहता था कि वृंदा एक बार उससे मिल ले ? उससे मिल कर आखिर वह क्या बताना चाहता था ? ये सारे ‌प्रश्न उसे परेशान किए हुए थे।
वह सोंचता था कि यह नियति का कैसा विचित्र खेल है। उस दिन भागते हुए वृंदा उसकी ही कार से टिक कर क्यों खड़ी हुई ? उसके नाटक का विरोध करने वह विलास रंगशाला तक पहुँच गई। दो विपरीत ‌दिशाओं के राही कैसे एक जगह आकर टकरा गए।
कुछ समय पहले तक ‌जिन क्रांतिकारियों को वह हिकारत की नज़र से देखता था, आज उनसे हमदर्दी रखता है। अपनी दुनिया में खोए रहने वाले जय के दिल को अचानक रामसनेही जैसे लोगों की तकलीफें कष्ट देने लगी थीं। यह सब उस अंजान लड़की वृंदा ‌के कारण हुआ ‌था।
वह सोंचता था कि वह लड़की वृंदा उसके जीवन में इतना महत्व क्यों रखने लगी है ? कहीं वह अनजाने ही वृंदा से प्रेम तो नहीं करने लगा है ? इन दिनों जिस तरह वह उसके दिलो दिमाग में छाई रहती थी उससे तो यही आभास मिल रहा था। पर यह उसकी समझ से परे था कि जिसके साथ कभी बातचीत भी नहीं हुई, वह उससे प्यार कैसे कर सकता है।
उसने किस्से कहानियों में पढ़ा था कि प्रेम बहुत ही विचित्र वस्तु है। कब और किसके साथ हो जाए कहा नहीं जा सकता है। यह प्यार था या कुछ और पर एक बात साफ थी कि वह किसी भी तरह एक बार वृंदा से मिलना चाहता था।
जय ने महसूस किया था कि जबसे उसने विलास रंगशाला में वृंदा को गरीब आवाम की पैरवी करते देखा था, तबसे उसकी मनोदशा बदल गई थी। पहले उसे सड़क पर चलते गरीब लोग दिखाई भी नहीं पड़ते थे। उसे अपने अमीर ‌घराने में ‌पैदा होने का घमंड था। पर अब जब भी वह किसी गरीब को देखता था तो उसके ज़ेहन में यह विचार आता था कि वह कितनी सारी कठिनाइयों को सहते हुए भी खुश है। घर के नौकरों के लिए भी उसका बर्ताव बदल गया था।
जब मदन ने उसे सूचना दी कि वृंदा उससे मिलने को तैयार है तो पहले तो वह खुश हुआ। पर बाद में वह मन ही मन सोंचने लगा कि जब वह मिलेगा तो आखिर उससे बात क्या करेगा। किस तरह अपने मन की बात वह उससे ‌कह पाएगा। सबसे बड़ी बात वह उससे कहना क्या चाहता है ?
वह जानता था कि जब वृंदा उससे मिलने आएगी तो चुभती हुई निगाहों से उसे देख कर पूँछेगी,
'कहिए क्यों मिलना था आपको ?"
तब उसके लिए जवाब देना कठिन होगा। क्योंकी यह सवाल तो वह स्वयं अपने आप से करता था। फिर भी वह इस सवाल के अलग अलग जवाब सोंचता रहा। लेकिन कोई भी जवाब उसे ही संतुष्ट नहीं कर पा रहा था।
बहुत देर तक इस प्रश्न पर विचार करने के बाद उसे लगने लगा था कि सचमुच ही वह वृंदा को चाहने लगा है। तभी तो बिना किसी ठोस वजह के वह उससे मिलने को बेकरार है। वह समझ गया कि वह वृंदा से अपने प्यार का इज़हार करना चाहता है। उसे बताना चाहता है कि उसने उसके भटके हुए जीवन को एक दिशा दिखाई है। अब वह भी उसकी तरह अपना जीवन देशहित में समर्पित करना चाहता है।
उसका प्यार वृंदा की सुंदरता पर रीझ कर नहीं हुआ था। हलांकि कई मायनों में उसे सुंदर कहा जा सकता था। पर वह तो वृंदा के भीतर की आग से प्रभावित हो गया था। वह आग वह लगन जो उसके अपने अंदर नहीं थी।
जय के दिल में प्रेम की आग जल उठी थी। जिसे अब वह साफ समझ पा रहा था। अतः उसने अपने दिल की बात वृंदा को बताने का निश्चय किया था।

जय विक्टोरिया पार्क में बैठा वृंदा की प्रतीक्षा कर रहा था। करीब पाँच मिनट बाद ही वह उसके सामने खड़ी थी।
वृंदा ने तल्ख स्वर में पूँछा,
"बताइए क्यों बुलाया था आपने ?"
पहली बार वृंदा उससे सीधे मुखातिब हुई थी। जय कुछ पलों के लिए उसे देखता रहा।
"बोलिए भी। मेरे पास इतना समय नहीं है कि खड़ी रहकर आपके बोलने की राह देखती रहूँ।"
जय ने खुद को काबू कर मन ही मन अपने विचारों को व्यवस्थित किया।
"वृंदा जी, मैं आज आपसे अपने दिल की बात कहने आया हूँ।"
वृंदा ने आश्चर्य से पूँछा,
"अपने दिल की बात आप मुझे क्यों बताना चाहते हैं ?"
जय सोंच कर आया था कि उसके मन में जो कुछ भी है वह आसानी से वृंदा से कह देगा। पर अब मन में बहुत कुछ होते हुए भी वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। वह हिम्मत जुटाने के लिए बार बार इधर उधर देख रहा था।
"आप बार बार इधर उधर क्यों देख रहे हैं‌ ? जो भी कहना है जल्दी कहिए।"
जय ने अपने अंदर की हलचल पर काबू कर खुद को तैयार किया। वह अपनी बात कहने ही जा रहा था कि अचानक पुलिस वालों ने दोनों को घेर लिया।
"यू आर अंडर अरेस्ट..."
अंग्रेज़ पुलिस इंस्पेक्टर ने वृंदा से कहा।
"यू कैन लीव मिस्टर जयदेव टंडन..."
इंस्पेक्टर उसकी तरफ मुड़ कर बोला।

जय की कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हुआ‌ ? उसने वृंदा के चेहरे की तरफ देखा। उसके चेहरे पर ठगे जाने का भाव था। आँखों में जय के लिए नफरत झलक रही थी। पुलिस वृंदा को उसकी आँखों के सामने से ले गई। वह बुत की तरह खड़ा रह गया।
सबकुछ इतना अचानक हुआ कि जय कुछ समझ ही नहीं पाता। वह बहुत देर तक पार्क की बेंच पर सर झुकाए बैठा रहा। उसके मन को एक सवाल बेचैन किए हुए था।
'पुलिस को वृंदा के यहाँ होने की सूचना किसने दी?'
वह अंदाज़ नहीं लगा पा रहा था। वृंदा उससे इस पार्क में मिलने वाली है इस बात की जानकारी केवल मदन को ही थी। तो क्या मदन ने मुखबिरी की ? अपने मन में उठते इस सवाल को उसने तुरंत ही खंडित कर दिया। मदन यदि ऐसा करना चाहता तो कभी भी पुलिस को भुवनदा और वृंदा के बारे में बता सकता था।
वृंदा के चेहरे के भाव उसकी आँखों में किसी तस्वीर की तरह बस गए थे। बार बार उसके बारे में सोंच कर उसका कलेजा कट रहा था। वह तो इस उम्मीद से आया था कि अपने मन की बात उससे कहेगा। लेकिन जो हुआ उसने वृंदा की निगाहों में उसे धोखेबाज़ बना दिया।