Babul Mora - 2 in Hindi Moral Stories by Zakia Zubairi books and stories PDF | बाबुल मोरा... - 2

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बाबुल मोरा... - 2

बाबुल मोरा....

ज़किया ज़ुबैरी

(2)

सार्जेन्ट लिसा को हमदर्दी भरी नज़रों से पढता जा रहा था की कितनी गहरी चोट लगी है इसछोटी सी उम्र में। क्या यह इस दुःख से कभी उबर भी पाएगी? वह चुप चाप सुनना चाहता था लिसा के दुःख।

सार्जेन्ट की टीम वापस आ गई थी। लिसा को वहां बैठा देख कर सब अन्दर वाले कमरे में चले गए।

“लिसा, पानी पियोगी?”

“हाँ... !” लिसा ने जल्दी से कहा। उसका गला सूख़ा जा रहा था मगर समझ में नहीं आ रहा था की कहाँ रुके और पानी कब मांगे। वह तो जल्दी से जल्दी मालूम करना चाह रही थी कि सार्जेन्ट बताए कि अब आगे वह क्या कार्यवाही करेगा? उसको क्या सज़ा देगा? क्या उसके डैडी फिर से वापस आ जाएँगे? हर क़दम पर डैडी को याद कर रही थी लिसा।

सार्जेन्ट ने इस बीच अपनी टीम से भी सवाल कर लिया, “क्या रेड (छापे) से कुछ नतीजा भी निकला?”

“हाँ एक लड़का पकड़ा गया है और दो भाग गए।”

ग्राहम पार्क का रोज़ का यही तमाशा था। न मालूम कहाँ से सारे जहां के गुंडे बदमाश यहीं आकर बस गए थे और बेचारे सीधे साधे लोग इनके चक्कर में पिस रहे थे।

सार्जेन्ट ने जैसे ही पानी का गिलास लिसा के हाथ में दिया वह एक ही सांस में गटा-गट हलक़ से उतार गई। उसकी मासूम, गुलाबी शीशे की तरह चमकती गर्दन से पानी नीचे को जाता हुआ महसूस हो रहा था। उसके सूखे होंठों में कुछ तरावट आई. दांतों से होंठ काटने लगी। फिर बेचैन होकर सिर मेज़ पर रख कर आँखें बंद कर लीं।

“लिसा फिर क्या हुआ?”

लिसा ने सार्जेन्ट को सिर उठा कर देखा और आंसू बहने लगे। सार्जेन्ट ख़ामोशी से बैठा रहा। लिसा के अन्दर का दुःख बह जाने देना चाह रहा था। पानी सूखी हलक़ से नीचे उतरा तो दुःख आँखों से बह निकले .

वह मुझसे भी वैसे ही खेलना चाहता था जैसे मेरी बहनों के साथ खेलता। ज़िद करता की मैं भी उसके साथ बैठ कर फिल्म देखूं और क्रिस्प खाऊ।. मुझे ‘ओ' लेवेल्स की तैयारी करनी है कहकर मैंने हमेशा पीछा छुड़ाया। मुझे उसकी हरकतें अच्छी नहीं लगती थीं. वह एक ग़ैर-जिम्मेदार, मानसिक बीमार और ख़ुदगर्ज़ इंसान लगता था। और फिर मेरे डैड की जगह लेकर बैठ गया था। न मालूम मेरी माँ को उसमें क्या नज़र आया था। नौकरी भी नहीं करता था। मेरे डैड तो रोज़ सवेरे पैदल काम पर चले जाते। कार नैन्सी के लिए छोड़ जाते। शनीचर इतवार हम तीनों बहनों को पार्क में ले जाते या बच्चों की फिल्म दिखाने ले जाते। कभी कभी मैक्डॉनल्ड्स में भी खिलाते। ममी को शॉपिंग कराने ले जाते। हर समय कोई न कोई काम ही किया करते। घर की कोई चीज़ भी टूटती तो आप ही जोड़ लिया करते पर जब उनका अपना दिल टूटा तो हम में से कोई न जोड़ सका।”

“मैंने माँ से बहुत मिन्नत की कि डैड को न छोड़े तलाक न ले पर उसपर न जाने क्या भूत सवार था की हमारा रोना पीटना भी उसकी सोच को न बदल सका। डैड बेचारे न जाने कहाँ रहने चले गए। इतनी मेहनत से उन्ही ने तो यह घर बनाया था मगर हमारे आराम की ख़ातिर उन्होंने कुर्बानी दी और नैन्सी को घर दे दिया कि हम बहनों को तकलीफ न हो। मेरे डैड जब हमसे मिलने आते तो मैं सवेरे ही से उठ कर बैठ जाती उनके इंतज़ार में। मैं उनको दूर ही से पहचान लेती क्योंकि लम्बे और हैंडसम हैं मेरे डैड। मगर अब झुक कर चलने लगे हैं शायद खाने पीने का ख्याल नहीं रखते ।” वह उदास हो गई।

“लिसा तुम्हारे पैरों में चप्पल क्यों नहीं है?”

सार्जेन्ट लिसा को उसके मुद्दे की और लाना चाहता था और लिसा मुद्दे से दूर भाग रही थी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था इतनी घिनौनी हरकत सार्जेन्ट से कैसे कहे..!!

सार्जेन्ट बात की तह तक पहुंच चुका था; लिसा को शर्मिन्दा नहीं करना चाहता था इसलिए उसे बड़े पुलिस स्टेशन में शिफ़्ट कर दिया था जो कि उस छोटी सी चौकी के क़रीब ही था। रूथ एक अनुभवी अफ़सर है। वह लिसा को संभाल लेगी। इसीलिये सार्जेन्ट ने केस पी.सी. रूथ को सौंप दिया था।

“हेलो लिसा.. मै रूथ हूँ।”

लिसा चौंकी और सीधी बैठ गई।

“लिसा फिर क्या हुआ..?” रूथ ने अपनी मीठी और दयालु आवाज़ में लिसा से आगे बात करने को कहा।

“हम सभी बिखर गए....” लिसा ने सांस को अंदर को खींचते हुए कहा।

“दोनों छोटी बहनें फ़िल को अपने साथ खेलने वाला खिलौना ही समझती रहीं। उसके साथ ख़ूब उछल कूद करती रहतीं। उन्हीं के बहाने तो मां ने फ़िल का आना जाना इस घर में शुरू करवाया था। मगर मुझे उसका इस तरह हमारे परिवार का हिस्सा बन जाना कभी भी पसन्द नहीं आया था। छुट्टी के दिन सुबह सवेरे ही से आ धमकता तो सारा दिन मेरे परिवार के साथ ही बिता देता। मेरे बाप को तो मां छुट्टी के दिन भी काम पर भेज देती ओवर टाइम करने के लिए क्योंकि परिवार बड़ा था पूंजी भी अधिक चाहिए थी। वह ख़ुद छुट्टी के दिन घर पर ही रहती। सारे सप्ताह के कपड़े धोने बाहर लॉण्डरेट में जाती। फ़िल भी उसके साथ मैले कपड़ों का थैला बना चला जाता।” लिसा को फ़िल हमेशा गन्दगी का थैला ही महसूस होता था। उसे फ़िल में कोई क्लास या बौद्धिक्ता नहीं दिखाई देती थी। वह एक खिलंदड़ा था... ग़ैर-ज़िम्मेदार... सिर्फ़ खाने के लिये जीने वाला पशु... !

लिसा सोचती माँ इसको क्यों इस तरह घर में घुसाए रहती है? कहीं माँ मेरी अरेंज्ड मैरिज के चक्कर में तो नहीं है। यह तो हमारा कल्चर नहीं है..!! मैं क्यों माँ की पसंद से शादी करूँ.! मैं तो अपने बॉय-फ़्रेण्ड को अपने डैड से सब से पहले मिलवाउगी। मैं शादी करूंगी। जैसे डैड ने की थी...पहले से किसी को पार्टनर नहीं बनाउंगी.. मैं शादी करूंगी... ऐज़ ए वर्जिन गर्ल शादी करूंगी... वही मेरा वैडिंग गिफ़्ट होगा मेरे अपने बुने हुए सपनों को...

“यस मिस लिसा जॉन्सन लेट अस डू दी जॉब..! ”

लिसा उछल पड़ी. रूथ उसे गौर से देख रही थी शायद उसके दुखों को बगैर सुने ही पढ़ लेना चाहती थी।

‘’आज कितनी गर्मी है! तापमान 30 डिग्री पहुँच गया है। मुझे भी बहुत गर्मी लग रही है।मेरे फ़्लैट के कमरे बिलकुल मुरगी के दड़बे जैसे हैं। हम तीन बहनें एक बॉक्स रूम जैसी काल कोठरी में रहती हैं। मैं सबसे बड़ी हूं। मेरा बाप हम तीनों से बहुत प्यार करता था। उसको मेरी मां ने हम सबसे अलग कर दिया। आजकल मेरा बाप बीमार है और अकेला भी है... मैं... मैं तो... ”

“लिसा बताओ यहाँ कैसे आना हुआ..?”

वह फिर सोच में पड़ गयी ... उठी और बाहर जाने लगी.

“मुझे कुछ नहीं बताना है... ”

“लिसा ऐसा नहीं करो। पोलिस हमेशा मदद करती है। पोलिस से कुछ नहीं छुपाते... तुम्हारी इज्ज़त मेरा फ़र्ज़ है।” रूथ ने प्यार से मद्धम पर गंभीर आवाज़ में कहा।

लिसा फट पड़ी... ‘’मैं ‘ओ' लेवेल्स के एक्ज़ाम्स के लिए पढ़ रही थी नैन्सी मेरी माँ काम पर गयी हुई थी बहनें स्कूल थीं, फ़िल न जाने कब घर में आ गया मुझे पता ही नहीं चला. चुपके से मेरे कमरे में दाख़िल होकर देखो यह सब क्या कर दिया...!!’’

देखिये ऑफ़िसर, वो वहशी मेरे बालों को अपने मुंह के ऊपर लपेट लपेट कर खींचने लगा। बालों को चूस चूस कर बुरी तरह गीला कर दिया। ना जाने कबसे मेरे सुनहरी बालों पर नज़र गढ़ाए बैठा था।... और फिर मेरे शरीर को सहलाने लगा और रूथ... अंत में... भेड़िये की तरह भंभोड़ कर रख दिया।... वह कांपने लगी और उसने अपने उलझे हुए लम्बे बाल गर्दन से हटाए और लाल लाल ख़ून जमे हुए निशान पूरी गर्दन पर दिखाए.... ‘जब वह निकलकर भागने लगा तो मैंने भी पीछा कर के दरवाज़े ही पर पकड़ा और दांत गाड़ दिये उसकी पीठ में मगर अभी तक चैन नहीं आ रहा है मुझे.’’“आज जो एक लड़का पकड़ा गया है उसकी गर्दन के पीछे कन्धे की नीचे भी दांत के निशान हैं पर वह बता नहीं रहा की किसने काटा... ”

“लिसा तुम फिक्र मत करो डी. एन. ए. टेस्ट से सब कुछ साबित हो जाएगा। और हां वक्त आने पर तुम्हें प्रेगनेन्सी टेस्ट भी करवाना होगा, उसे सज़ा तो पक्की है।”

“कितने वर्षों की..?”

“सज़ा का फ़ैसला कोर्ट करेगी, हम क़ानून के बारे में कुछ नहीं बोल सकते। पर जुर्म बहुत संगीन है। उसे सज़ा लम्बी होनी चाहिये, तुम अंडर-एज जो हो।”

प्रेगनेन्सी टेस्ट का सुनकर वह डर सी गई। पर यह सुनकर जैसे संतुष्ट हुई...पीले चेहरे पर थोड़ा सा रंग दिखाई देने लगा। पर एकदम से खड़ी हो गई ‘ऑफ़िसर मुझे अपने से घिन आ रही है...मैं पवित्र नहीं रही. मैं अछूत हो गई...मेरे पास से दुर्गंध आ रही है ना...? अब मैं नर्स कैसे बनूंगी... मरीज़ों को कैसे छू सकूंगी...अपनी बहनों को प्यार कैसे करुंगी...अपने डैडी को कैसे अपने दुख बताउंगी...!’

धड़ से कुरसी पर बैठ गई और मेज़ पर सिर को मारने लगी.

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