badla us galti ka in Hindi Adventure Stories by bharat Thakur books and stories PDF | बदला उस गलती का

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बदला उस गलती का

जिस्म से बु आ रही थी उसके। लग रहा था जैसे कई महीनों से नही नहाया। चेहरा भी विक्षिप्त सा लग रहा था। बार बार मन मे विचार कौंध रहा था के आगे क्या करूँ? उसने अपनी तरफ नजर दौड़ाई। क्या हालत हो गयी है मेरी?

उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि अभी कल ही रशिया से भारत आया था अपनी बीवी को लेने। शादी के चार साल बाद भी रविन्द्र को उसकी बीवी को साथ ले जाने के लिए परमानेंट वीजा नही मिल रहा था। एक बार टूरिस्ट वीजा पर जरूर ले गया था। पर उसमे भी खर्चा इतना हो गया के अगली बार उसे उसकी बीवी मधु को ले जाने की हिम्मत न हुई। मधु,, जैसे नाम सुनते ही मस्तिष्क में मध बहने लगता है, जैसे मीठा सा स्वाद जहन में खिल उठता है ठीक वैसी ही थी मधु। रविन्द्र और मधु की शादी अर्रेंज मैरिज थी पर लोगो को हमेशा ही लगा के दोनों में एक दूसरे के प्रति जो प्रेम, लगाव और स्नेह है वो किसी पति पत्नी में कम और प्रेमी जोड़े में ज्यादा पाया जाता है। दोनों ही खुले दिमाग के नई पीढ़ी को दर्शाते हुए नौजवान थे। शादी के एक साल उपरांत ही रविन्द्र को रशिया में किसी पेट्रोलियम कंपनी में बतौर हेल्पर काम करने का आफर मिल गया।

मधु को रविन्द्र से जुदा होना बिल्कुल ही अच्छा नही लग रहा था। मधु के ससुराल में सास ससुर नही थे। मधु की भाभी, मंजुला ने ही रविन्द्र का रिश्ता मधु से करवाया था। मधु की भाभी रविन्द्र के चाचा की बेटी थी। रिश्ता पक्का होते वक़्त ही भाभी ने कह दिया था के ससुराल में मधु राज करेगी... राज..। न कोई सास और न ही कोई ससुर। न जेठ और न ही कोई देवर का कटकट। राजपाठ जाते ही मिल जाएगा मेरी नलन्द को। रविन्द्र जैसा इंजिनीयर पूरे प्रदेश में न है! देखना अपना नाम रौशन करेगा!

रविन्द्र पहले तो शादी के लिए मना करता रहा क्योंकि उसे पता था कि वो चाचा के साथ, जो उसके घर से तकरीबन दो किलोमीटर ही दूर रहते थे, न रह सकेगा। हालांकि रविन्द्र के माता- पिता की मृत्यु के पश्चात उसकी पढ़ाई लिखाई का भार उसके चाचा ने ही उठाया था पर वो उस रकम के सामने कुछ न था जो बटवारे में उसके पिता को मिलनी थी पर पिता की मृत्यु के पश्चात चाचा कुंडली मार बैठ गए। वीरेंद्र को हमेशा छोटी छोटी बात चुभती उसके चाचा की पर अपनी कम उम्र की वजह से वो कुछ न कहता। उसने कम उम्र में ही अलग रहना सीख लिया था। चाचा की जरूरत सिर्फ उसके पढ़ाई के फार्म पर हस्ताक्षर मात्र के लिए ही जरूरत थी।

मधु ने अश्रु पूर्ण तरीके से रविन्द्र को विदा किया। उसके लाख मना करने पर भी रविन्द्र नही माना और रशिया के लिए रवाना हो गया। रविन्द्र चाहता था कि वो इतना कमाए के उसके बाकी परिवारवाले उससे घोर ईर्ष्या करे। वो उन्हें बता दे कि ऊपरवाले की लाठी में कितना दम होता है। मधु एक एक दिन बड़ी मुश्किल से काटती। उसकी भाभी, मंजुला, उसे बखूभी रोज मिलती पर मधु के अकेलेपन का कोई इलाज नही था। कभी कभी तो रविन्द्र से बात करते करते हप्तों बीत जाते। मधु के लिए ऐसे जीना असहनीय हो गया। एक बारगी जरूर वो रशिया गयी थी पर रिश्तों में वो गर्माहट गायब थी। मधु को लगने लगा जैसे रविन्द्र शायद बदल रहा है।

उसकी भाभी ने मधु से किटी पार्टी में आने को कहां। पहले तो मधु ने काफी मना कर दिया पर भाभी को ज्यादा देर मना न कर सकी। मधु किटी पार्टी में गयी तो शहर की तकरीबन 20 हाउसवाइफ की छोटी सी किटी पार्टी थी। सभी उच्च घरानों से ताल्लुकात रखती। पहले तो मधु को अटपटा लगता पर भाभी के साथ वहां जाने पर जैसे उसके अकेलेपन को काटने का हल निकल आया। वीरेंद्र नही चाहता की मधु काम करे। शादी के बाद मधु ने भी वीरेंद्र की बात का सम्मान रखा। परंतु जब वीरेंद्र ही अलग रहने लगा और मधु के बार बार अकेलेपन की शिकायत करने पर उसने मधु को काम करने की सलाह दे दी।

मधु एक टूरिस्ट कंपनी में बतौर रिसेप्शनिस्ट का काम करने लगी। धीरे धीरे ऑफिस में घुल मिल गयी और वीकेंड पर किटी पार्टी में मदमस्त रहने लगी। शराब और सिगरेट की आदत उसे उसकी भाभी ने ही लगवाई। पहली बार जब भाभी ने उसे शराब पीने को कहा तो उसे आश्चर्य तो हुआ ही था पर भाभी के ग़म भी उससे छिपे हुए नही थे। शादी के इतने सालों बाद भी भाभी की कोख सुनी थी। मधु के माता पिता उसे अक्सर टोका करते पर मधु को पता था कि खोट भाभी में नही उसके भाई में थी। मधु चाहकर भी कुछ न कर पाती।

किटी पार्टी में एक बारगी जिगोलो को बुलाया गया। जिगोलो वही पुरुष होते है जो पुरुष वेश्यावृत्ति में लिप्त पाए जाते है। साल में एक दफा ऐसी पार्टी करना, उस किटी पार्टी की रस्म में था। मधु को बिल्कुल ही अच्छा न लगा पर भाभी के कहने पर उन्हें कुछ देर झेलने पर राजी हो गयी थी। जिगोलो ने तरह तरह के डांस मूव दिखाए। हर लेडी के पास जा जाकर रिझाने लगा। अपने एक एक कपड़े उतारने लगा।

"किटी पार्टी की हर महिला को ऐसी पार्टी का साल भर से इंतज़ार रहता है। इस वक़्त हम खुद को आज़ाद कर देते है। न कोई बंदिश न ही कोई लाज। मेरी जिंदगी मेरे मन मुताबिक जीने की आज़ादी। शारीरिक सुख पर सिर्फ मर्दो का ही एकाधिकार न होता।"

भाभी की ऐसी बातों से मधु किंकर्तव्यविमूढ़ थी। सामने जिगोलो अब सिर्फ अपने इन्नर वियर और टाई पहने हुए था। उसकी बॉडी लचकदार थी। उसके हर मूव पर सारी लेडीज उठ उठ कर आहे भरती। जिगोलो का सिक्स पैक रह रह कर मधु को आकर्षित कर रहा था। उसके वेस्ट लाइन के नीचे तक इन्नर खिसक गया था। मधु की निगाहें भी उस वेस्ट लाइन के नीचे और देखने के लिये उत्सुक हुए जा रही थी। मधु शराब के पैग लगाए जा रही थी। अब उसे भी पार्टी में मजा आने लगा था। वो नाच रही थी पर रविन्द्र का ख्याल आते ही उसे रशिया में हुए एक हादसे के ख्याल आ गया। कमरे में बेड के नीचे विदेशी लड़कियों के इन्नर मिले थे। कंडोम के पैकेट बिखरे दिख गए थे अलमारी के पीछे। हालांकि मधु ने रविन्द्र को इस बारे में पूछा नही था। पर मधु के मन मे शक घेर गया था। उसने अपने आप को यही समझाया के शारीरिक सुख प्राप्ति के लिए शायद रविन्द्र ने ऐसे कदम उठाए होंगे। अलग देश मे अपने बीवी से दुर आखिर कब तक कोई अपने आप को काबू में रख सकता? यही सोच मधु को भी अपने शारीरिक सुख के प्रति जागृत करने लगी।

"मधु, तुम तो मेरी जिंदगी से वाकिफ हो। तुम्हारे भैया से वो सुख न मिलता। हालांकि प्रेम करती हूं उनसे। पर साल में एक बार सिर्फ, एक बार अपने आप को लूज कर देती हूं। ताकि साल भर फिर जीने की एनर्जी पा सकू। यहां सभी हमराज है।"

इतना कहते ही भाभी अपने सोफे से उठी और नाचते हुए एक जिगोलो की टाई पकड़ते हुए हाल के पास के कमरे में चली गयी। बाकी औरते जोर जोर से चिल्लाने लगी। मधु के मन मे भी ज्वार उठने लगे। पर ज्वार शादी नाम के चट्टान से जोर जोर से टकराने लगे।

चट्टान मानो पल पल कमजोर होने लगी। सामने पल पल जिगोलो के मूव रह - रह कर दिल पर आघात पैदा कर रहे थे। आखिरकार शादी नामक चट्टान टूट ही गयी। और मधु भी धीरे धीरे लूज हो गयी या कहो सामाजिक दायरे से फ्री हो गयी। उन पलों में सही - गलत के दायरे मायने नही रखते। बस जो सामने पल है उसे जी लेना है। जोश में होश खोने वाला पल है या जोश में जीने वाला पल, इसका सही आकलन होश आने पर ही लगता है। दूसरे दिन मधु अपने आप को कोस रही थी। उसे विश्वास नही हो रहा था के नशे की हालत में उससे कितना बड़ा पाप हुआ है। गर कही रविन्द्र को पता चला तो क्या होगा? उसके घरवालों को पता चला तो क्या होगा? वो अपना मुँह कैसे छुपायेगी इस जहाँ से? और न जाने कितने ही अनगिनत सवाल दिमाग को झकझोर रहे थे। उसका दिमाग उसे इस बात मानने को विवश कर रहा था कि रात जो हुआ वो गलत हुआ। पर दिल कही न कही हल्की आवाज में ही सही, जरूर कह रहा था कि कल मैं जरा सा ही सही, पर जी गयी थोड़ी देर के लिए। दिल की आवाज को फिर दिमाग अपने तेज तर्रार बुलंद तर्क वितर्क से परास्त कर देता। बार बार इस अंतर्द्वंद की वजह से मानो मधु का सर फटा जा रहा था। बुरी तरह आक्रोशित अवस्था मे भी अपने आप को जिल्लत भरी नजरों से देख रही थी। बस थूकना ही बाकी रह गया था अपने आप पर! ये डिप्रेशन का प्रथम चरण होता है।

इसी जद्दोजहद में अचानक फोन बजा। मधु ने देखा तो फोन रविन्द्र का था। मधु ने अपने काँपते हुए हाथ से फोन उठाया,

"हेलो!! मधु, कैसी हो? अब तुम्हे मुझसे दूर नही रहना पड़ेगा। तुम्हारा परमानेंट वीजा आखिरकार आ ही गया और तो और कम्पनी में भी कंफर्म हो गया हूं। अब अपने परिवार को कम्पनी के खर्चे पर ला सकता हु, रशिया। अब तुमसे और दूर नही रह सकता। जान, बस, कुछ ही दिनों में आ रहा हु। हेलो, हेलो! कहा खो गयी। लगता है खुशी के मारे कुछ बोला नही जा रहा है न! मैं जानता हूं तुम्हे। अब बोलो भी यार,,"

रविन्द्र ने एक साथ अपनी बात रख दी। वही मधु के होंठ जैसे झकड़े हुए प्रतीत हो रहे थे। वो क्या कहे और क्या नही। उसे कुछ समझ नही आ रहा था। उसे लगा के वो कल रात वाली घटना बता दे। पर वही दूसरी ओर अपने शादी के टूटने के भी आसार लग रहे थे।

"हेलो, रविन्द्र!! मैं .. मैं..."

"हा,, मधु मैं जानता हूं कि तुम बहुत खुश हो। जल्द आ रहा हु, मधु। आई लव यू.. ओके बाय,, लंच टाइम खत्म अब काम शुरू,, बाय.."

मधु के आंखों से मोतियों जैसे आँसू उभर आये। वे कुछ देर आंखों में भरभराकर हौले से गालो पर अपना रास्ता ढूंढने लगे। कैसी बेवकूफ हु मैं? क्यो कल रात मेरी मति मारी गयी थी? भगवान कभी माफ नही करेगा मुझे। मधु फिर से अपने विचारों में कुढ़ती रही।

थोड़ी ही देर हुई थी कि फोन फिर बजा। इस बार व्हाट्स एप पर मैसेज आये हुए थे। मधु ने मेसेज को खोला। मेसेजेस में कुछ वीडियो आये हुए थे। वीडियो देखकर मधु के पैरों तले जमीन ही खिसक गई। ये कल रात के वीडियो थे जिसमें मधु उस जिगोलो के साथ बिस्तर पर थी। मधु को विश्वास ही नही हो रहा था कि वो जो देख रही है वो भयावह सच था जिसका पर्दाफाश अब दुनिया के सामने आने वाला था। मधु बेहद घबरा गई। वो तुरंत उस मेसेज वाले फोन को घण्टी करने लगी। पहली बार मे किसीने नही उठाया। दूसरी बार मे आवाज आई।

"हेलो, मधु,, हाऊ आर यु" बड़े ही इत्मीनान वाली आवाज प्रतीत हो रही थी।

"तुम कौन हो?? यु रास्कल!! ये वीडियो मुझे क्यो भेजा?"

"क्या बात है,, कल तो मेरे साथ बड़ी खुश थी। आज भूल भी गयी। अगर तुम सोचते हो कि मैं तुम्हे ब्लैकमेल करूँगा, तो तुम सही सोच रही हो। अगर तुम सोचोगी की मैं ये पैसो की खातिर कर रहा हु, तो तुम गलत सोच रही हो। मैं हमारे बिजनेस की बात करूंगा जिसमे मेरा फायदा तो है ही पर उसमे तुम्हारा फायदा भी छुपा हुआ है"

"क्या बकवास है ये!! ब्लैकमेल क्या है? मुझे कोई फायदा नही चाहिए यु चिट?"

"वेट मधु, वेट! बात तो पूरी सुन लो। देखो तुम्हे शरीर की प्यास बुझानी है और हमे पैसो की। क्यो न डील करते है! हर हप्ते में बस एक रात तुम्हारी चाहिए। मैं अपने क्लाइंट को तुम्हारे पास भेजूंगा बस तुम्हे उन्हें भी खुश करना है और खुद को भी। तुम कत्तई मत सोचना के मैं तुमसे वैश्यावृत्ति करवा रहा हु। बल्कि मैं तुम्हे बिजनेस वीमेन बना रहा हु। बस हप्ते की एक रात और महीने भर की कमाई अपने जेब मे। अब अगर तुम चीखोगी, चिल्लाओगी और फोन पटक दोगी, तो ऐसी बेवकूफी करना मत। तुम्हारे पास इसके अलावा ऑप्शन नही है। इसलिए सीधे सीधे राजी हो जाओ जान, और जीवन में हर प्रकार की खुशिया ही खुशिया पाओ। मुझे ये कहते हुए हरगिज ही दुख नही होता पर मैं ना नही सुनना चाहता। वरना ये वीडियो को इंटरनेट में फैलाने में या यूं कहो वायरल करने में मुझे तनिक भी देर न लगेगी। कहो तो तुम्हारे सभी पारिवारिक मेम्बरों को भी भेज सकता हु। तुम्हारे हस्बैंड के नंबर भी ढूंढ कर उनके पास ये टेलीग्रांम भेज सकता हु। तुम जैसी हाउसवाइफ की बहुत डिमांड है। मेरे पास आ जाओ और कमाओ, खाओ और सो जाओ। विचार कर लो,, मैं तुम्हे ठीक 24 घण्टे बाद फोन करूँगा।"

मधु ने फोन काट दिया। वो पागलो जैसी यहां वहां देखे जा रही थी। बदहवासी छा गयी थी कमरे में। 'मैं अपना जिस्म नही बेच सकती। मैं कोई वैश्या नही हु।' यही शब्द उसके दिल दिमाग मे घूम रहे थे। इस वीडियो में उसकी जान अटका कर रख दी। क्या होगा अगर ये वीडियो सभी के पास पहुच जाए? वो तो शर्म से ही मर जाएगी। उसे लग रहा था कि अब उसका मरना ही सही ऑप्शन है। अब उसका दिमाग उसके इस दुनिया मे न रहने के बाद के घटनाक्रमों पर विचार कर रहा था। लोग थूकेंगे उस पर। रविन्द्र तो ऐसा व्यवहार करेगा जैसे उसे कभी जानता ही नही था। ऐसे न जाने कितने अनगिनत विचार उसके दिमाग मे उत्पन्न हो रहे थे। रात भर न सो पाई। दूसरे दिन ऑफिस से छुट्टी ले ली। वो जैसे इस चार दिवारी में थी ही नही। वो तो जैसे अनगिनत भविष्य की टोह ले रही थी। काफी सोच विचार कर मधु ने ठान ली कि वो उसके सामने झुकेगी नही। एक गलती को छुपाने के लिए दूसरी गलती कदापि नही करेगी। तटस्थ होकर उस ब्लेकमेलर का सामना करेगी। न जाने ये हिम्मत कैसे आई? पर उसने ठान लिया के वो ईजी टारगेट नही है।

दूसरे दिन ठीक उसी समय फोन आया।

"हेलो, मधु,, कैसी हो? क्या विचार किया तुमने?"

"मैं.. मैं.. डरती नही तुमसे। मैं ऐसा काम नही कर सकती।"

"मैंने पहले ही कहा था। मैं ना सुनने का आदि नही हु। तुम इसके अंजाम से वाकिफ हो न! मैं आखिरी चेतावनी दे रहा हु।"

मधु ने अपने अंदर बची खुची हिम्मत जुटाई और चीख पड़ी।
"जो करना है कर ले दलाल। मैं डरती नही।"

इतना कहकर मधु ने फोन काट दिया।

मधु ने कह तो दिया पर उसे समझ नही आ रहा था के अगर वीडियो बाहर आ गया तो वो क्या करेगी? कैसे समाज से लड़ेगी? कैसे विश्वास दिलाएगी रविन्द्र को? उसके प्यार को बरकरार कैसे रख पाएगी? मधु तक मानो, किसी भवर में फसती जा रही थी। एक तरफ कुआ एक तरफ खाई। उसे लगा के सत्य के मार्ग पर अडिग रहना ही शायद सही मार्ग हो। कई बार पढा - लिखा गया के सत्य ही सर्वोच्च कड़ी है किसी भी मुसीबत से बचने के लिए। मधु काफी सोच विचार के बाद इस निर्णय पर आई के उस ब्लेकमेलर के पहले वो ही रविन्द्र को सारी बात बता दे।

अगले दिन हिम्मत जुटा कर मधु ने रविन्द्र को फोन करने के लिए फोन उठाया ही था के घर की डोर बेल बजी। मधु ने चिटखनी से देखा कि सामने भाभी खड़ी है। उसने दरवाजा खोला। भाभी ने घर मे प्रवेश किया। भाभी के चेहरे पर चिंता के भाव सहज ही देखे जा सकते थे। हो सकता है शायद भाभी भी इसका शिकार हुई हो।

"मधु, क्या तुम्हें कोई फोन आया? आई मीन कोई वीडियो? आई मीन हमारा वीडियो? वो रात वाला.." भाभी अपनी आंखें मधु की आंखों में डाल नही पा रही थी।

"हा,, भाभी। आया था।" और मधु ने सारा किस्सा एक सांस में सुना दिया।

"मधु तुम निडर हो। तुम्हारे ससुराल में आगे पीछे कोई नही है। अगर रविन्द्र तुम्हे छोड़ भी दे तो तुम अकेले भी जी सकती हो। अकेले अपना भरण पोषण कर सकती हो। पर मैं .. मैं.. कैसे करूँ? सोच कर ही सर चकरा जाता है। मुझे तो लगता है कि मुझे उसे हा कर देनी चाहिए। मैं मेरी गृहस्थी बचा कर रखना चाहती हु। मैं सच के सहारे टिक न पाऊंगी। मैं कमजोर हु। मैं दुनिया से लड़ नही सकती।"

मधु उसकी बातो को तोड़ न सकी। मधु फिर से ढीली पड़ती जा रही थी। कुछ देर पहले किया हुआ निर्णय अब धूमिल नज़र आ रहा था। कमज़ोर शब्द जैसे उसे निगल रहा था। काफी देर के बाद मधु ने भाभी के लिए चाय बनाई। गैस के पास खड़ी खड़ी मधु के मन मे काफी अंतर्द्वंद चल रहा था। वो फिर से अपने आप को उसी दोराहे पर खड़ी पा रही थी। वो भाभी के ओर दुबारा मुड़ी।

"भाभी, कैसे जी पाओगी ऐसे? अपना जिस्म बेचना और जिस्म की आग अपने तरीके से बुझाना अलग बात है। दोनों को एक ही तराजू में मत तौलना। मैं खिलाफ हु इसके। इस दलदल में मत फंसना। ये हर दिन, हर पल गर्त में ले जाएगा। मैं इसमें आपको यही सलाह दूंगी के दूर रहो इससे। सामना करो। क्या पता जीत तुम्हारी ही हो!"

पर भाभी को तो जैसे साँप सूंघ गया था। उसे मधु की बातों का कोई असर न दिख रहा था। उसे लग रहा था कि ब्लेकमेलर की बाते ज्यादा सटीक और सही है। उसने मधु से कहा,"मधु, मेरी जिंदगी तो ऐसे ही रहेगी। मेरी वजह से तुम भी इस पचड़े में गिर गयी। मैं उस ब्लेकमेलर से एक डील करती हूं। उससे कहती हूं कि वो तुम्हे छोड़ दे। बदले में मैं वही करुँगी जो वो चाहता है।"

"नही,, भाभी..."

"मधु, ना मत कहना। जब तक मैं उसके साथ रहूंगी तब तक वो तुम्हे कोई हानि नही पहुचायेगा। एक बारगी तुम रविन्द्र के पास पहुँच जाओगी, तो यहां से मुक्त हो जाओगी और तब मैं भी मुक्त हो जाऊंगी।"

मधु रो पड़ी।

"नही,, भाभी ऐसी बात मत करो। मेरे जीवन के लिए आप अपनी कुर्बानी मत दो। प्लीज,, भाभी इस दलदल में मत फंसो। मेरी बात मान लो।"

पर भाभी ने जैसे कुछ ठान लिया था। मधु को अलविदा कह अपने गंतव्य की ओर निकल पड़ी। मधु चाहकर भी भाभी को समझा न पाई। मधु फिर से विचारो के चक्रव्यूह में फस गयी।

ब्लेक मेलर को फोन आया,

"उसे ट्रेलर भेजो"

ब्लेकमेलर ने हामी भरी और एक पोर्न वेबसाइट पर वीडियो क्लिप का एक पार्ट सांझा कर दिया। क्लिप में चेहरे को ब्लर कर दिया जिससे पहचान छिप सके। उसकी लिंक मधु के फोन पर भेज दी। मधु ने लिंक को ओपन कर दिया। उसे जिसका डर था वही हों रहा था। उसने तुरंत उस लिंक को बंद किया। यकायक फ़ोन की घण्टी बजने लगी। उसी ब्लेकमेलर का फोन था।

"हेलो, मधु! देखो तुम्हारी भाभी कितनी समझदार है। एक तुम ही हो जो बेवकूफी कर रही हो। ये वीडियो का लिंक ट्रायल है। कुछ ही घण्टो में मैं ओरिजिनल वीडियो इस प्रकार की हजारो वेबसाइट पर भेज सकता हु और उसके कुछ ही घण्टो में तुम्हारे परिवार के हर शक्श के मोबाइल पर ये लिंक पहुच जाएगा। अब भी आखिरी मौका है। मान जाओ। इसमें ही सबकी भलाई और खुशहाली है। कल फोन करूँगा आखिरी बार"

मधु दोराहे पर खड़ी अपने आप को देख रही थी। दोनों ही राह असीमित काटो से भरे हुए थे। बवंडर ही बवंडर दोनों राहो पर तेज गति से उसकी ओर बढ़ रहे थे। उसे भाभी की भी फिक्र हो रही थी जिसे वो पीछे छोड़ आई थी। लग रहा था मानो इन दो राहो को छोड़ वो भाभी के साथ आ जाये। तो ये काटो वाले रास्ते स्वतः ही बुझ जायेगे। उसकी समझ अब कुछ भी निर्णय लेने में असफल सी मालूम हो रही थी। कुछ देर के लिए उसने अपने मन मे उठते हर एक ज्वर को शांत किया। आंखे मिचते हुए उसने अपने इष्ट देव का मनन किया। आंखे खोलते ही उसने अपना फोन उठाया और रविन्द्र को फोन घुमाया।

रविन्द्र को सारी बात मधु ने रुक रुक कर बता दी। मधु ने एक बारगी भी भाभी का जिक्र न किया। रविन्द्र पर मानो पहाड़ टूट गया। उसे यकीन ही नही हो रहा था कि ये सच्चाई है या भ्रम। कुछ समय तक तो वो बदहवास हो गया। अपनी चेतना लाते हुए उसने इतना ही कहा के वो कल ही आ रहा है। बाकी उसके न कहते हुए भी खामोशी ने मधु को बहुत कुछ कह दिया था। मधु ने मानो एक रास्ता आखिर चुन ही लिया था। सच का रास्ता। उसे पता था की रविन्द्र के आने के बाद उसके पारिवारिक रिश्ते टूटने के कगार तक पहुच जायेगे। पर मधु न जाने क्यो पर अपने इष्ट देव का मन ही मन जाप कर रही थी।

दूसरे ही दिन रविन्द्र घर आ गया। आते ही उसने मधु के गालो पर चाटा झड़ दिया। तत्पश्यात घर मे अपना कदम रखा। मधु इस बात के लिए पहले से ही तैयार थी। रविन्द्र ने उसे बहुत भला बुरा कहा। कोसने लगा उसे। धिक्कारने लगा। पर मधु टस से मस न हुई। वो लगातार रविन्द्र की आंखों में ओझल होता हुआ उसका प्यार देख पा रही थी। मधु की आंखों के सामने उनके हसीन पल चलचित्र समान चल रहे थे। रविन्द्र आगबबूला हो गया था। उसे लगा कि उसकी बातों का मधु पर कोई असर नही हो रहा था। आखिर रविन्द्र अपने गुस्से पर काबू न पा सका और मधु की चोटी खीचकर सिर को दीवार पर दे मारा। मधु के सर से सहसा रक्त की धार छूट गयी। रविन्द्र का गुस्सा रक्त को देखकर शांत हो गया था, पर मधु उसे घूरे जा रही थी।

"मधु, बोलो मधु, क्या कमी रह गयी थी मेरे प्यार मे? हवस की पुजारिन निकली तू? तुझसे ये आशा न थी मेरी? तूने मुझे धोखा दिया? तू अब मेरे काबिल नही!" इतना कहते ही वीरेंद्र फुट फुट कर रोने लगा।

"मैंने सारी बात बता दी। बिना छुपाये। चाहती तो छुपा सकती थी। चाहती तो तुझे कभी इस बात की भनक न लगती।"

अबकी बार रविन्द्र ने मधु की ओर देखा। मानो ललाट पर सिंदूर की भांति रक्त की लकीर खिंच आई।

मधु ने शांत चित्त मुद्रा में बोलना जारी रखा,

"रविन्द्र! ये तुझसे प्यार का ही नतीजा है की मैं तुम्हारे सामने खड़ी हु। वरना मैं कब की इस जिंदगी को रुखसत कर लेती। मैं हार न मानुगी अपने आप से। भले तुम हार मान जाओ मुझसे। उस पल होश हवास मेरे काबू में न थे। मैं भी इंसान हु जिसका अपना शरीर है। मैं ये कहकर इस बात पर पर्दा नही डाल रही हु के जो हुआ वो सही हुआ। अपितु, ये एक सबक था। एक पाठ था जिसका मुझे अनुभव मिला। इस अनुभव से मैं तुम्हारे काबिल न रही। पर एक बात बताऊ, काबिल तो तुम भी न रहे जब तुम रशिया में किसी और के साथ हमबिस्तर हुए थे।"

"ये क्या बक रही हो तुम? अब खुद के किये हुए कृत्य पर पर्दा डालकर मेरी ओर रुख कर लिया। शाबाश मधु!"

"मैं रशिया आई थी तो कबर्ड के पीछे से लड़कियों के कपड़े मिले थे। बेड के नीचे से कंडोम मिले थे। हिंदुस्तानी महिला हु इसलिए बेड के नीचे से साफ सफाई के दौरान ये सब मंजर देखने को मिला। वरना तुम्हे जहां दिखता वही साफ सफाई रखते। मैंने आजतक तुमको इस बारे में न पूछा और न ही टोका। क्यो नही टोका मैंने? क्योकि जानती हूं के भूख जब लगती है तब सामने खाना दिखता है। तब मर्यादा न सूझती, न दिखती। तब बस उस एक चक्र को पूरा करने की दौड़ सी लगती। दौड़ लगाने के बाद उस चक्र को भूलने की कोशिश करते। तुम्हारे इसी दौड़ ने तुम्हे मुझसे अलग कर दिया भावनात्मक रूप से। स्त्री, भावनाओ के सहारे ही पूरी जिंदगी जी जाती है। पर तुम पुरुष हमारी तेरहवीं पर ही दूसरी शादी रचा देते हो। तुम तो भूल गए थे मुझे पर मैं तुम्हे हर पल याद करती। उसका सिला आज मिल गया"

"ये,, ये,,,झ..झु..झूठ है। मैं ऐसा नही हु" रविन्द्र सकपकाते हुए बोला।

मधु जैसे भाँप गयी के उसने रविन्द्र के झूठ को आसानी से पकड़ लिया।

"पता है रविन्द्र तुझमे और मुझमे फर्क क्या है? मैं तुम्हारे सामने खड़ी हु अपने सच के साथ। तुम मेरे सामने खड़े हो अपने झूठ के साथ। तुमने तुम्हारे हवस की भूख मिटाने के लिए खुद को आजाद कर दिया। तुम जो चाहो करो वो तुम्हारा हक है। पर वही हम औरतो से अगर एक गलती हो जाये तो हम काबिल नही रहती। हमे दुत्कार दिया जाता है। हमे मार दिया जाता है। तुम अगर पराई स्त्री संग व्यभिचार करो, तो वो तुम्हारा पौरुष दर्शाता है। खुद को तुम अभिमानी समझते हो। एक साथ कइयों के साथ सहवास कर सकते हो। पर वही अगर कोई द्रौपदी बन जाती है तो तुम्हारे जैसे उसका चीरहरण करने लग जाते हो। उसे दुत्कारने लग जाते हो। ऐसी छोटी सोच है तुम्हारी। मैंने तो गलती की और उसका प्राइच्छित करने को तैयार हूं। पर क्या तुम हो?"

मधु की बाते मानो एक एक तीर समान रविन्द्र को चुभ रही थी। मधु बोलती जा रही थी और रविन्द्र को अपने अंदर आईना नजर आने लग गया। उसे अब गुस्सा न आ रहा था। उसे लगने लग गया के मधु से गलती अनजाने में हुई है। जबकि उससे गलती जान बूझकर हुई है। उसके बावजूद मधु ने उसे दुत्कार न दी। चाहती तो लड़ सकती थी। तलाक ले सकती थी। पर उसने ऐसा नही किया। वही दूसरी तरफ उसने मधु से गाली गलौज की। मारा पीटा और न जाने क्या क्या उसे बोल दिया! शब्द और तीर निकल जाने के बाद दुबारा नही आते।

रविन्द्र को आत्मग्लानि का एहसास हो रहा था। उसने मधु के सामने अपनी आंख नीची कर ली और माफी मांग ली। मधु ने भी अपनी गलतियों के एवज में रविन्द्र से माफी मांगी। हालांकि, विश्वास डोल गया था दोनों का एक दूसरे पर। दोनों की समान गलतियों को एक दूसरे ने एक्सेप्ट कर लिया था। नई कोशिश से फिर से जिंदगी को हरा भरा बनाने का वचन लिया। पुरानी यादों को पूरी तरह से जहन से मिटाने का निर्णय लिया। और एक दूसरे की बाहों में आ गए। रविन्द्र ने मधु की सर पर पट्टी की। मधु एकटक रविन्द्र की आंखों को देखे जा रही थी। मानो बार बार कह रही हो 'सॉरी'। रविन्द्र भी बार बार एक ही बात मन में दोहरा रहा था 'सॉरी'।

फोन की घण्टी बजी। मधु ने ब्लेकमेलर की सारी बात बता दी थी रविन्द्र को। रविन्द्र ने मधु को समझा दिया था में इस बार फोन आएगा तो किस तरह बात करनी है। इस बार फोन को स्पीकर मोड़ पर ऑन कर दिया

"हेलो, मधु,, तो क्या सोचा तुमने। साथ दोगी या खाई में गिरोगी।"

"साथ दूंगी। मैं बिजनेस वीमेन बनना चाहती हु। पर .. पर.. एक बार आखिरी बार तुमसे मेरी प्यास बुझानी है। उस रात का नशा खत्म नही हुआ है। जब इस दलदल में घुसना ही है तो जी लू मजे से।"

"फैंटास्टिक! तुम्हारे लिए तो मैं हर वक़्त रेडी हु। आज रात वही मिलते है। ठीक 9 बजे"

ब्लेकमेलर ने फोन रख दिया और अपने आका को फोन कर के खुशखबरी सुना दी।

रात के नौ बजे थे। मधु उस बंगलो में पहुच गयी जहा उसने उस जिगोलो के साथ रात बिताई थी। मधु के शिरकत करते ही सामने वही जिगोलो बैठा हुआ था। उसने मधु को अपनी तरफ आने का इशारा दिया और रिमोट से म्यूजिक ऑन कर दिया। मधु उसके करीब पहुच गयी थी। जिगोलो ने जैसे ही उसे छुआ, वैसे ही बिजली सी गति के समान रविन्द्र ने ताबड़तोड़ उस पर हमला कर दिया। इससे पहले की जिगोलो कुछ समझ पाता उसके सर पर हथोड़े के समान एक वस्तु आ गिरी। जिगोलो के सर से खून की धार छूट गयी। लगभग लगभग जिगोलो बेहोश होने ही वाला था कि रविन्द्र के सर पर जोर से किसी ने रॉड से हमला कर दिया। रविन्द्र वही बेहोश गया।

मधु अपनी भाभी मंजुला को देखते ही पहचान गयी। पर उसकी समझ मे नही आया के उसने रविन्द्र को क्यो मारा?

"भाभी!!" मधु जोर से चीखी।
"ये क्या किया आपने?"

भाभी ने जिगोलो की तरफ देखा,"नामाकूल एक काम ढंग से नही होता! बस बिस्तर के काम ही आते है तुझको"

जिगोलो लड़खड़ाते हुए अपने पैरों पर खड़ा हुआ। अपने सर को सम्हालते हुए उसने जोर से रविन्द्र की पेट पर लात दे मारी।

उस रॉड को जमीन से लगाकर मंजुला चलती हुई मधु के पास पहुची।

"क्या देख रही हो? मैं ही तो हु तुम्हारी प्यारी भाभी।"

"भाभी, ये क्या किया आपने? क्यो किया?"

"क्यो किया? तू जानती नही है क्या? भोली क्यो बन रही है? तुझसे बदला लेने की फिराक में न जाने कब से थी। तेरे माता पिता की गलती ही थी कि उन्होंने अपने नपुंसक बेटे का ब्याह मुझसे कराया था। सब जानते बुझते भी मुझे इस आग में फेंक दे मारा। उसके बावजूद भी समाज मे मुझे ही बदनाम किया हुआ था। तब से मैंने कसम खा ली थी कि जिस तरह मैं पुरुष दर पुरुष भटक कर अपनी प्यास बुझा रही हु उसी प्रकार तू भी उसी यातना से गुजरे। देखे एक बार की जिंदगी कैसी हो जाती है दर दर भटकने से?"

"भाभी, ये क्या कह रही हो? मैंने क्या बिगाड़ा है आपका?"

"तेरा कसूर इतना है कि तू उस ख़ानदान की बेटी है जिससे मुझे बदला लेना है।"

जिगोलो ने रविन्द्र को पैरो से घसीटा और घसीटते हुए कमरे में ले गया।

"भाभी, आपको मुझसे बदला लेना है। मुझसे बदला लो। पर .. रविन्द्र को छोड़ दो..प्लीज.."

इतना कहते ही मधु भाभी के पैरों में फिर गयी। मंजुला ने उसे पैरो से झटक दिया और जमीन पर गिरा दिया।

वही जिगोलो ने रविन्द्र को कुर्सी पर बिठा दिया। जिगोलो रस्सी को कबर्ड में ढूंढ रहा था। वही रविन्द्र चेतन अवस्था मे आ चुका था। उसने जिगोलो को देखा वो कबर्ड में कुछ ढूंढ रहा था। रविन्द्र उठा और पीछे से जिगोलो को अपने पूरी ताकत से धक्का दे मारा। जिगोलो कबर्ड से टकरा कर नीचे गिर गया। रविन्द्र उस पर ताबड़तोड़ हमले करता रहा। उसके मुँह पर इतने मुक्के झड़ दिए कि उसके मुँह से और नाक से खून आने लग गया। उसका मुँह पहचान में नही आ रहा था। आखिर जिगोलो हार गया और बेहोश हो गया। रविन्द्र ने फुर्ती से उसे रस्सियों से बांध लिया।

जिस्म से बु आ रही थी उसके। लग रहा था जैसे कई महीनों से नही नहाया। चेहरा भी विक्षिप्त सा लग रहा था। बार बार मन मे विचार कौंध रहा था के आगे क्या करूँ? उसने अपनी तरफ नज़र दौड़ाई। क्या हालत हो गयी है मेरी?

खून से लथपथ हो गया था रविन्द्र! कमरे के बाहर उसने झांककर देखा तो मंजुला मधु के सामने रॉड लिए खड़ी थी। रविन्द्र को विश्वास हो गया था के इस सबके पीछे मंजुला ही थी। वो जिगोलो की तरफ बढा और उसके जेब से मोबाइल निकाल लिया। वही पास पड़ी एक लकड़ी के टुकड़े को रविन्द्र ने उठा लिया और धीरे से कमरे के बाहर आया।

"जितनी मानसिक शारीरिक परेशानी मुझे तुम्हारे परिवार ने दी है। उतनी किसीने नही दी। पहले तो मैं तुम्हे इस नरक में धकेलना चाहती थी। पर अब चुकी मेरा भेद खुल गया है तो अब तो तुम्हे और रविन्द्र को मरना होगा।"

"भाभी, प्लीज.. ऐसा न करो। हमे माफ कर दो। आपको जो तकलीफ हुई उसके लिए मैं अपने परिवार वालो की तरफ से माफी चाहती हु।"

मधु रो रही थी और मंजुला हँस रही थी। जरा सी आवाज आई और मंजुला ने पीछे मुड़कर देखा तो रविन्द्र के हाथ मे लकड़ी का टुकड़ा था उसने तुरंत मंजुला के सिर पर दे मारा। मंजुला वही बेहोश गयी।

थोड़ी ही देर में पुलिस आ गयी। दोनों के परिवार वाले भी आ गए। सारा माजरा सभी के समझ मे आ गया। पुलिस ने मंजुला और जिगोलो को हिरासत में ले लिया।

कुछ दिनों बाद,

रविन्द्र और मधु, एयपोर्ट पर खड़े थे। अपनी रशिया की फ्लाइट में चेक इन कर फ्लाइट के अंदर बैठ गए। जैसे जैसे फ्लाइट ने जमीन छोड़ी दोनों ने कसम खा ली कि जो कुछ भी हुआ वो उसे यही दफना कर जाना चाह रहे थे। भूलकर भी कभी उनका जिक्र न आये उनकी जुबा पर। मधु, रविन्द्र की बाहों में अपना सर रखकर एक नई जिंदगी की शुरुआत करने की कसम खा ली। वही रविन्द्र ने उसके सर पर हाथ रखकर अपनी गलतियों को दुबारा न दोहराने की कसम खा ली।

----------समाप्त--------

- भरत ठाकुर

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