The dowry is a dangerous spark - 5 in Hindi Women Focused by Uday Veer books and stories PDF | दहेज एक विनाशकारी चिंगारी - 5

Featured Books
Categories
Share

दहेज एक विनाशकारी चिंगारी - 5

(समय शाम के 7:00 बजे सुनामी और रंजीत अपने कमरे में बैठे हुए हैं, और आपस में बातें कर रहे हैं)

सुनामी:- अच्छा हुआ जो उस मनहूस को भगा दिया यहां से, अब तू देखना, मैं कैसे धूमधाम से तेरी दूसरी शादी करवाती हूं, खन्ना साहब की बेटी शादी लायक हो गई है, दहेज भी खूब मिलेगा, में बात करती हूं उनसे, लेकिन अगर वो मनहूस कहीं वापस आ गई तो हमारा बना बनाया सारा खेल ही बिगड़ जाएगा|

रंजीत:- तू फिकर मत कर मां इस बार मैंने उसे इतनी मांग की है, कि वह अगले जन्म तक इंतजाम नहीं कर पाएगी, और अगर पैसे होंगे नहीं तो वो वापस आएगी नहीं, तुम शादी का इंतजाम करो|

(तभी कहीं से बजरंगी पंडित आप पहुंचता है)

बजरंगी:- अरे क्या बात है काकी, किसकी शादी की बात चल रही है? शायद राजू भाई की शादी की बात चल रही है, मेरी नजर में हैं कई लड़कियां, आप कहे तो किसी के घर बालों से बात चलाऊं|

सुनामी:- अरे बजरंगी हम अपने छोटे बेटे राजू की नहीं बल्कि अपने बड़े बेटे रंजीत की शादी की बात कर रहे हैं, कोई सही लड़की हो तो बताओ|

बजरंगी:- क्या? तौबा रे, अरे भगवान से तो डरो, शादीशुदा लड़के की फिर से शादी करा रहे हो, घोर अनर्थ, पाप लगेगा तुम दोनों मां-बेटे को|

रंजीत:- अबे पंडित, चल भाग यहां से मेरी मर्जी, चाहे जितनी बार शादी करूं, तेरे बाप का क्या जाता है|

(जब राजू को पता चलता है कि भाभी को भाई ने मारपीट कर घर से निकाल दिया है तो वह सोचता है कि चलो मैं भाभी को वापस बुला कर लाता हूं, इस बहाने वीर भाई से भी मिलना हो जाएगा)

(समय सुबह 11:00 बजे दरवाजे पर दस्तक होती है तो वीर दरवाजा खोलता है और जो राजू को दरवाजे पर देखता है तो गुस्से से लाल पीला हो जाता है)

वीर:- क्या करने आए हो यहां?

राजू:- वो भैया मैं भाभी.........

वीर:- आखिर क्या, चाहते क्या हो तुम लोग, तुम लोगों की भूख के चलते आखिर….. क्या नहीं दिया, मैंने तुम लोगों की सभी मांग को पूरा किया है मैंने, फिर भी तुम लोग बाज नहीं आते, तुम दहेज के लोभियों की वजह से मेरी बहन हमेशा रोती रहती है|

राजू:- भैया मैं उन जैसा नहीं हूं|

वीर:- तुम सब एक जैसे हो, अगर तुम लोगों में जरा सी भी इंसानियत बाकी होती तो मेरी बहन को यूं बार बार मायके ना आना पड़ता|

(और इसी तरह ना जाने कितनी देर तक सुनाता रहा और राजू चुपचाप सुनता रहा तभी शोर सुनकर लक्ष्मी बाहर आती है)

लक्ष्मी:- अरे आप क्या कर रहे हैं भैया? एक यही तो है, जिसकी बदौलत मैं आज तक जिंदा हूं, वरना आपकी बहन तो कब की मर चुकी होती, इस ने देवर की तरह नहीं छोटे भाई की तरह हमेशा मेरा साथ दिया है हमेशा|

(इतना सुनते ही वीर राजू को गले से लगा लेता है और अब तक जो भी बुरा भला कहा उसके लिए माफी मांगता है)

वीर:- माफ करना, अनजाने में, और गुस्से में मैंने ना जाने तुम्हें क्या क्या कह दिया|

राजू:- नहीं भैया इसकी कोई जरूरत नहीं है, बड़े भाई होने के नाते आपने जो कुछ भी कहा बिल्कुल सही कहा, बल्कि माफी तो हमें मांगनी चाहिए, कि आपकी इतनी कोशिशों के बावजूद भी, हम आपकी बहन को खुश नहीं रख पा रहे हैं|

(फिर वे लोग काफी देर तक बातें करते रहते हैं)

राजू:- भाभी आप तैयार रहना मैं आता हूं शाम को आपको लेने, अभी किसी काम से जा रहा हूं|

(शाम के समय राजू आता है और लक्ष्मी को ले जाने लगता है)

राजू:- भैया अब हमें विदा कीजिए, मैं इसलिए भाभी को लेने आया, ताकि समाज में आपका सर नीचे ना हो, और लोग ये ना कहे कि वीर की बहन अकेले ससुराल से आती है और भाई उसे वापस छोड़ने जाता है|

(वीर जेब से 10000 रुपया निकालकर राजू को देता है और कहता है, कि अपने भाई से कहना कि मैं जल्द ही रंगीन टीवी लेकर खुद आऊंगा, लक्ष्मी वीर के गले लग कर रोने लगती है)

वीर:- अरे पगली रो क्यों रही है, चुप हो जा जब तक तेरा भाई और लक्ष्मण जैसा देवर है, तेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता|

राजू:- आप चिंता ना करो भैया, जब तक मैं जिंदा हूं किसी भी मुसीबत को भाभी तक पहुंचने से पहले मुझसे टकराना होगा|

(और वीर आंखों में आंसू के साथ अपनी बहन को विदा करता है)

क्रमश:.......