जितने भी परिवर्तन ना हो जाए परंतु मुझे ऐसा लगता है स्त्री का संघर्ष जीवन में कभी नहीं खत्म होता या खत्म होता है तो उसके जीवन रेखा खत्म होने के बाद पुरुष को हमेशा सर्वोत्तम आंका जाता है ऐसा क्यों मेरे समझ से तो बाहर है और मध्यमवर्गीय फैमिली बेटी जन्म लेना तो अपने आप में ही एक खत्म ना होने वाली चुनौती है जिसको पग पग पर संघर्ष करना पड़ता है एक ऐसी कहानी है प्रतिभा आयु में अपना बचपन खो दिया जिम्मेदारी उसे समय से पहले बड़ा बना दिया था सब ठीक चल रहा था सभी उसके जीवन में कुछ परिवर्तन हुए जैसे कि चंद रिश्तेदारों की नजर पड़ गई उन्होंने सोचा खेल के घर में सभी सीधे-साधे है इनको मूर्ख बनाकर इनका सब कुछ लूट लेते हैं एक रिश्तेदार मां को भरोसे में लेकर घर में एक कमरे में कब्जा बना लिया रहने लगी रहते रहते उसने धीरे-धीरे करके एक एक लोगों से घनिष्ठता बनाती और उनके बीच कमजोर कड़ी का पता लगाने लगी और उपेक्षित महसूस कराने लगी यह सब से प्रतिभा अनजान थी उसे कुछ महसूस हो रहा था कि कहीं से कुछ गलत हो रहा है लेकिन उसके पास विकल्प नहीं था कि वह पता कर सके क्योंकि घर में उसके इलावा कोई कमाने वाला नहीं वह बड़ी लड़की थी और उसके बाद उसकी छोटी बहन जो रिश्तेदार ने अब जो रिश्तेदार ने शरण ले ली थी उसके घर में उनकी नजर उनके घर यहां तक कि उनकी बेटियों की कमाई पर दी गई धीरे धीरे कर वह लोगों ने उसे कंगाल कर दिया तरह तरह से ठगी करते थे वह बेचारी दिन रात मसोसकर रह जाती थी परंतु समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा धीरे धीरे उसे उस रिश्तेदार की सच्चाई पता लगी और उसने ठान लिया कि इसे बाहर का रास्ता दिखा के रहेगी कुछ परिस्थितियां बनी और उसने उसे बाहर तो निकाल दिया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी उसका खामियाजा आज भी भर रही है क्योंकि उस धूर्त औरत में उसके घर में उसके रिश्तो में विष घोल चुकी थी और एक बार रिश्तो में विष घुल जाता है तो अमृत में अमृतवेल आने भी उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता उस औरत का व्यक्तिगत स्वार्थ या था की वह अपने पुत्रों का भविष्य सवार दे चाहे इसके लिए किसी का गला भी क्यों ना करना पड़े और वह ऐसा ही कर रही थी परंतु नियति के भी खेल निराले होते हैं नियति ने एक ऐसा खेल खेला की उसके स्वप्न चूर चूर हो गए उसके बच्चों का भविष्य सदा के लिए समाप्त हो गया और वह प्रतिभा की जिंदगी से भी निकल चुकी थी परंतु एक बात समझ में नहीं आती एक स्त्री होकर कैसे कोई दूसरी स्त्री के विषय में नहीं सोचता जैसे उस स्त्री को अपने बच्चे प्रिय थे वैसे ही प्रतिभा भी तो अपने माता-पिता की संतान थी उसे इतना संघर्ष करने के बाद भी अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ा और वह अपने नालायक बच्चों के भविष्य के लिए दूसरों के भविष्य से खेल रही थी मुझे तो एक ही बात समझ में आती है नियति के खेल निराले हैं अगर आज आप दूसरे के लिए गड्ढा खोज रहे हैं यह तो तय है क्यों गड्ढे में आप अवश्य गिरेंगे और उसका साथ पूरा समाज होगा इसलिए मैं कहना चाहूंगी कभी किसी के लिए गलत मत सोचो