रात का सूरजमुखी
मूल तमिल लेखक राजेश कुमार
हिन्दी अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा
संपादिका रितु वर्मा
तमिल लेखक राजेश कुमार
इस कहानी के मूल तमिल लेखक राजेश कुमार है। आपने 50 वर्षों में डेढ़ हजार उपन्यास लिखे और 2000 कहानियां लिखी। आपकी उपन्यास और कहानियों के पाठकों की संख्या बहुत ज्यादा है। अभी आपका नाम गिनीज बुक के लिए गया हुआ है। चाहे आपके उपन्यासों चाहे कहानियां दोनों ही एक बार शुरू कर दो खत्म किए बिना रखने की इच्छा नहीं होती उसमें एक उत्सुकता बनी रहती है। इसीलिए मैंने भी इनकी कहानियों का और उपन्यास का अनुवाद करती हूं।
रात का सूरजमुखी का सार
इस कहानी का नायक बापू का कहना है कि वह शांता को नहीं जानता और वह शादी करने के लिए लड़की देखने जाने वाला होता है तब ही एक लड़की शांता आकर कहती है कि बापू ने मुझे शादी का आश्वासन देकर धोखा दिया है | और अब लड़की देखने जा रहा है बापू का कहना था कि वह इस लड़की को जनता ही नहीं | लड़की के पास कोई फोटो या कोई सबूत भी नहीं है अब आप कहानी को पढ़ कर मालूम करे कौन सच्चा है कौन झूठा है |
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रात का सूरजमुखी !
अध्याय 1
“भाभी........!”
शक्कर के डिब्बे को ढूंढ रही कल्पना आवाज सुन कर मुड़ी | रसोई के दरवाजे पर बापू खड़ा था | कल्पना सिर झुका कर मुस्कुराई |
“क्या है ?”
“मैंने जो शर्ट-पैंट पहना है वह जंच रहा है क्या ?”
“बकवास ! इन कपड़ों को पहन कर तुम लड़की देखने जाओगे........... लोग राउड़ी जैसे सोचेंगे ! बापू तुम्हें कैसे ये मठमैला रंग पसंद आता है ?”
“मेरी तकदीर ही ऐसी है ! भाभी...... आप ही आकर सेलेक्ट करके दीजिएगा !”
“आकाश का नीले रंग का एक सफारी सूट तुम्हारे पास है......... वह कहाँ है ?”
“अलमारी में है !”
“उसे पहनो | वह सफारी पहन कर तुम्हारे चेहरे पर एक राजकुमार जैसे छवी आएगी |”
“भाभी.............! ये व्यंग्य तो मत करो..............! मेरी अम्मा जीवित रहती............. ऐसी बोलती ?”
कल्पना बापू के पास आकर उसके कान को मरोड़ने लगी |
“गुस्सा मत हो मज़ाक में बोली | जाकर सफारी पहन कर आ !”
“भाभी और देवर में यहाँ क्या खींचतान चल रही है ?” कहते हुए कल्पना के पति राघवन अंदर आए | तीस साल के राघवन के आगे का सिर हल्का सा गंजा था |
कल्पना पति को देख धीरे से मुस्कुराई |
“आपके छोटे भाई की क्या उम्र है ?”
“पच्चीस !”
“इस पच्चीस साल के बच्चे को लड़की देखने जाते समय कौन सा ड्रेस पहनना है नहीं मालूम !”
राघवन ने बापू को देखा | “क्यों रे...........! लड़की देखने जाने के लिए अभी से तैयार हो गया ? अभी पूरे तीन घंटे बाकी है ! कुछ ज्यादा ही कर रहा है..........”
कल्पना पति को देख मज़ाक से आँखों से इशारा किया | “बापू को अभी देखने वाली लड़की बहुत पसंद है !”
“इसने तो अभी लड़की को प्रत्यक्ष देखा नहीं ?”
“फोटो तो देख लिया !”
“कुछ लड़कियां फोटो में देखने से सुंदर दिखती हैं | सामने देखो तो देख नहीं सकते ! बेकार में फोटो देख कर लार मत टपकाओ ! लड़की को आमने-सामने देख............ फिर तुम्हारे फैसले को बताना ! अभी अप्पा तुम्हें बुला रहे हैं जाओ............... क्या बात है जाकर पूछो !”
“अप्पा ऊपर है ? या नीचे ?”
“ऊपर ही है !”
बापू रसोई को छोड़ आगे के कमरे में आकर सीढ़ियाँ चढ़ अप्पा सुबानायकम् जिस कमरे में थे वहाँ गया |
आराम कुर्सी में लेटे हुए पढ़ने वाला चश्मा पहने टेबिल लैम्प के प्रकाश में एक पुस्तक पढ़ रहे थे | सुबानायकम् की आयु साठ साल के करीब थी | थोड़ा ढलका हुआ शरीर, माथे पर भभूति लगी हुई | उसके बीच में कुमकुम की बिंदी चमक रही थी |
“आपने बुलाया अप्पा ?”
“आ रे............... यहाँ आकर बैठ !”
बापू के सामने जो कुर्सी थी उस पर जाकर बैठा | सुबानायकम् के हाथ में जो पुस्तक थी उसे बंद कर गोदी में रखा |
“तुम्हारा नाम बापू क्यों रखा था तूझे मालूम है ?”
“हाँ मालूम है |”
“बताओ देखें !”
“महात्मा गांधी को आप बहुत सम्मान देते थे | उनका एक प्रिय नाम बापू जी था | उनके याद में आपने मुझे बापू नाम रखा !”
“अब मुझे, तुम्हारा नाम बापू क्यों रखा ऐसा लग रहा है.............” बापू ने आँखों से घूरा |
“आप क्या कह रहें है ?”
“तुम मुझसे जो मर्यादा, आदर की बात कर रहे हो सब कुछ दिखावा है बोल रहा हूँ |”
“दिखावा.........?”
“हाँ दिखावा !”
“अप्पा आज आपको क्या हुआ ?”
“सच का पता चल गया बोल रहा हूँ |”
“सच कौनसा सच ?”
“दस मिनिट पहले रजिस्ट्री से मेरे नाम का एक पत्र आया.......”
“पत्र.........?”
“हाँ”
“किसका लिखा ?”
“तुम शांता नाम की किसी को जानते हो ?”
“नहीं जानता |”
“झूठ मत बोलो !”
“कसम से ऐसा किसी को नहीं जानता !”
“कसम और खा रहे हो ? पहले इस पत्र को पढ़ो ! फिर बात करके फैसले पर आएंगे |” कह कर सुबानायकम् अपने खादी के कुर्ते के जेब में छुपा कर रखे पत्र को निकाल कर बापू के हाथ में दिया वह घबराकर उसे लेकर पढ़ने लगा |
आदरणीय और सम्माननीय श्री सुबानायकम् जी,
शांता नाम की एक अबला लड़की लिख रही हूँ | नमस्कार ,मन से और शरीर से मैं ठीक नहीं हूँ | आप उस जमाने में स्वतन्त्रता सैनानी थे इसलिए मुझे न्याय मिलेगा इस विश्वास से पत्र लिख रही हूँ |
आपका छोटा लड़का बापू अभी लड़की देख रहा है ऐसा मैंने सुना | मुझसे शादी करूंगा ऐसा उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर आपके बेटे बापू ने शपथ लिया | उसकी बात पर विश्वास करके जल्दी में उन्हें अपना शरीर सौंप दिया | नतीजा ? पेट में गर्भ | उस गर्भ को जैसे आपके बेटे ने कहा वैसे ही मैंने अबार्शन करवा लिया |
शादी की बात जब भी करूँ तो मैं अप्पा से पूछ कर बताता हूँ कह कर समय गुजारते रहे | आज मुझे बिना बताए लड़की ढूँढना शुरू कर दिया | ये किस तरह से न्याय-संगत है ये आप ही बता सकते हैं | मुझे एक अच्छा फैसला मिलेगा इस विश्वास से ये पत्र आपको लिख रही हूँ | आपके बेटे को पत्र लिखूँ तो वह कूड़ा दान में ही जाएगा मुझे पता है | आपसे मुझे जीवन मिलेगा इस विश्वास के साथ...........
शांता पत्र को पढ़कर खत्म कर बापू ने आँखें फाड़ कर देखा |
“अ........... अप्प.... अप्पा.........!”
“क्या है ?”
“ये शांता कौन है मुझे नहीं पता | कोई मेरे पर आरोप लगा कर दोषारोपण कर पत्र लिखा है ! इस पत्र पर विश्वास मत करो अप्पा |”
“देख रे........... इस पत्र की मैं अवहेलना नहीं कर सकता | यह शांता जो बोल रही है वह सत्य है या झूठ मुझे मालूम होना चाहिए !”
“ये तो सरासर झूठ है | कोई मेरे विरुद्ध खेल खेल रहा है !”
“उसे साबित करना तेरा काम है | तब तक तुम्हें कोई लड़की देखने जाने की जरूरत नहीं |”
“अप्पा........!”
“चिल्ला मत ! लड़की के पिता को आज का शकुन ठीक नहीं है, अगले बुधवार को लड़की देखने की रस्म रख लेंगे मैंने उन्हें बोल दिया |
“अप्पा ये ठीक नहीं ! मुझसे ईर्ष्या करने वाले किसी ने ये पत्र लिखकर डाला है उसे इतना बड़ा बनाकर आपको ऐसा नहीं करना चाहिए !”
“अरे कोई ये ! बिना नाम पते का पत्र नहीं है | ये तो रजिस्ट्री से आई है ! उस लड़की शांता का पता इसमें साफ साफ लिखा है ! मैं और तुम उस पते पर जाएंगे...... सुचमुच में शांता नाम की लड़की रहती है क्या देखेंगे ! ऐसा हुआ तो उससे पूछेंगे !”
“मैं तैयार हूँ !” बापू के ऐसे कहते समय ही कल्पना कॉफी के गिलास के साथ अंदर आई |
“मामा............ आपके कॉफी में शक्कर बिल्कुल नहीं है |” कुछ ऐसा बात शुरू करने वाली थी, उसने बापू के चेहरे को देख उसके माथे पर बल पड़ा |
“क्या है बापू...........? अप्पा से कुछ लड़ाई है क्या ? चेहरा ऐसे कैसे बना रखा है ?”
“भा.......भाभी........”
“हाँ”
“आपको इस घर में आए कितने साल हो गए ?”
“दो साल !”
“मेरे बारे में आप क्या सोचती हैं ?”
“अभी क्यों ये सब पूछ रहे हो ?”
पूछ रहा हूँ उसका जबाब दो भाभी ! मेरे बारे में आपकी क्या राय है ?”
“बहुत ही सयाना बेटा है !”
“आपके साथ मैं कितनी बार बाजार गया हूँ ? किसी लड़की को कभी घूरा है क्या ?”
“छीं....... छीं............!”
“इस घर में दो साल से रहने वाली भाभी आपको मेरे बारे में सब पता है | परंतु मुझे पैदा कर पाल-पोस कर बडा किया उन्हें मेरे बारे में पता नहीं | मुझसे ईर्ष्या करने वाले किसी ने ये पत्र डालकर झूठा दोषारोपण किया है उसे अप्पा सच मान रहे हैं |”
“पत्र ?”
“हाँ इसे पढ़कर देखो !” बापू के हाथ में जो पत्र था उसे उसने कल्पना को दिया, तो वह असमंजस की स्थिति में लेकर पढ़ने लगी | दो मिनिट में पढ़ लिया | फिर सिर को ऊपर कर बापू को घूर कर देखा |
“अरे………… भाभी ! आप भी मुझे संदेह से देख रही है ऐसा लग रहा है !”
“बापू ! इस पत्र की बातों को देख तुम्हारे ऊपर संदेह तो होता है !”
“अय्ययों...........!’
“सच बोलो ! उस लड़की शांता को तुम नहीं जानते ?”
“कसम से नहीं जानता ! मेरे किसी दुश्मन ने साजिश की है !”
कल्पना ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला तभी सीढ़ियों से चल कर आने की आवाज आई |
कामवाली बाई अन्नम...............
कल्पना ने पूछा “क्या है अन्नम ?”
“अम्मा............! साहब को मिलने एक लड़की आई है……….!”
“लड़की........?”
“हाँ........... उसका नाम शांता है !”
……………………….