Jo Ghar Funke Apna - 8 in Hindi Comedy stories by Arunendra Nath Verma books and stories PDF | जो घर फूंके अपना - 8 - और बिजली सचमुच गिरी !

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जो घर फूंके अपना - 8 - और बिजली सचमुच गिरी !

जो घर फूंके अपना

8

और बिजली सचमुच गिरी !

इतना पता लगाने में कौन सी मुश्किल थी कि स्टेशन कमांडर साहेब की एक नहीं, दो-दो बेटियाँ थीं जो दिल्ली में रहकर पढाई कर रही थीं. लेकिन इसके आगे उनका विशेष विवरण नहीं मिल सका. नटराजन की मुश्कें फिर कसी गयीं तो आखीर में उसने उगल दिया कि स्टेशन कमांडर साहेब की दो बेटियाँ वास्तव में इन छुट्टियों में आनेवाली थीं. कमांडर साहेब ने नटराजन से मशविरा किया था कि उनके मनोरंजन के लिए क्या प्रबंध करना उचित होगा तो उसी ने बैडमिन्टन कोर्ट शीघ्रातिशीघ्र बनवाने का सुझाव दिया था. पिछली पोस्टिंग पर नटराजन के साथ रहे कुछ दोस्तों ने जब खुलासा किया कि वह वहाँ का बैडमिन्टन चैम्पियन रह चुका था तो सारे कुंवारे अफसर जल भुन कर ख़ाक हो गए. गौहाटी में चूँकि इनडोर बैडमिन्टन कोर्ट था नहीं और प्रायः होने वाली बारिश में खुले में खेलने में किसी को दिलचस्पी थी नहीं अतः नटराजन या किसी अन्य की इस खेल में निपुणता से कोई परिचित नहीं था. अब जब नटराजन ने पासा फेंक ही दिया था तो छिपे रुस्तम की शिनाख्त तो बैदमिन्टन कोर्ट बन जाने के बाद ही हो सकती थी. उसी शाम यूनिट कैंटीन से लगभग एक दर्जन अफसर भुनभुनाते हुए ये निराशाजनक खबर लेकर आये कि वहाँ यूनिक्स मेक का सबसे अच्छा माना जाने वाला जो अकेला बैडमिन्टन रैकेट था उसे नटराजन ने दो दिन पहले खरीद लिया था. और रैकेट मंगाए गए हैं पर नया स्टॉक आने में पंद्रह बीस दिन लग जायेंगे. इसके बाद एक अघोषित रेस शुरू हो गयी गौहाटी शहर जाकर बढ़िया रैकेट खरीदकर लाने की. अगली संध्या को जहां बैडमिन्टन कोर्ट बनाने का कार्य चल रहा था वहाँ कई सारे लोग नए-नए रैकेटों को हवा में महाभारत के योद्धाओं जैसे, गदा की मानिंद भांजते हुए दिखाई पड़े. साथ ही वे नटराजन से झगडा भी करते जा रहे थे कि वह कोर्ट जल्दी से जल्दी बनवाये ताकि वे भी प्रैक्टिस करके उसे हराने योग्य बन सकें. गौहाटी की गिनी चुनी खेल कूद के सामान की दूकानों में अच्छे क्वालिटी के रैकेट दो चार लोगों को ही मिल पाए थे. बाकी लोग जिन्हें साधारण रैकेट ही मिल पाए थे भुनभुनाते, गुर्राते हुए घूम रहे थे कि यह एक बहुत अनुचित षड्यंत्र रचा था नटराजन ने जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ेगा.

बहरहाल अगले ही दिन युद्धस्तर पर काम करके कोर्ट तैयार हो गया. नेट के खम्भों पर पांच पांच सौ वाट के बल्ब लग गए और पांच बजे ही घिर आनेवाली रात के अँधेरे में उनके प्रकाश से कोर्ट जगमगा उठा. चमकती हुई सफ़ेद टी-शर्ट और निकर पहने, कोर्ट के बाहर खड़े खिलाड़ी बेसब्री से अपनी बारी आने तक कोर्ट के अन्दर खेल रहे लोगों को धमकाने में लग गए कि खेल जल्दी ख़तम करें. इस गहमा-गहमी के बीच नटराजन जंगली मुर्गे की तरह अपना सीना फुलाए, अपने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन करके, अन्य सबकी आशाओं पर बाल्टी भर- भर के पानी फेरता रहा. उस शाम खेल रात के दस बजे तक चलता रहा जबतक कि मेस में रात्रि के भोजन बंद हो जाने का समय नहीं हो गया. कुछ लोगों ने सीनियर वेटर और कुक लोगों को रिश्वत का प्रलोभन देकर देर रात तक डिनर देने के लिए रोकना चाहा तो उन्हें उनकी अनापेक्षित हिचकिचाहट देखकर आश्चर्य हुआ. जब बाद में पता चला कि मेस सेक्रेटरी साहेब (अर्थात नटराजन) का आदेश था कि मेस में भोजन कक्ष समय की कड़क पाबंदी के साथ बंद किया जाए तो वे जल कर भुना बैगन बन गए. जहां तक इन खिलाड़ियों के खेल के स्तर का सवाल था उनमें से कई ऐसे भी थे जिन्हें देखकर लगता था कि बैडमिन्टन का रैकेट उन्होंने जीवन में पहली बार पकड़ा था. उनमे उमंग तो बहुत थी, कई दबंग भी लग रहे थे पर खेलने के ढंग का अभाव अधिकाँश के खेल में स्पष्ट था. फिर भी नटराजन के अतिरिक्त दो तीन और अच्छे खिलाड़ी निकल आये. साफ़ हो गया कि स्वयंवर इकतरफा नहीं जाएगा. उस शाम खेल समाप्त होने पर इन तीन चार की नज़रें एक दूसरे को तौलती हुई मूक चुनौती दे रही थीं कि “कल देखना बच्चू. “. अगले चार दिनों तक कोर्ट में रोज़ धूम धडाके के साथ जमकर बैडमिन्टन खेला गया. पता नहीं पी वी सिन्धु और साइना नेहवाल इतनी मेहनत और लगन के साथ ओलम्पिक खेलों के लिए अपनी तय्यारी करती हैं या नहीं जितनी ये तीन चार खिलाड़ी प्रदर्शित कर रहे थे.

इन तीन चार दिनों में जब अधिकाँश लोगों की समझ में आ गया कि इतनी जल्दी खेल सीखना और यदि सीख भी लिया तो अच्छा खेलना उनके बस की बात नहीं थी वे अचानक खिलाड़ी से दार्शनिक बन गए. इन दार्शनिकों ने जीवन के कुछ अनमोल सत्य ढूंढ निकाले जिनको क्रमवार इस तरह रखा जा सकता है:-

  • घोड़े की पिछाड़ी और बड़े अफसर की अगाडी से बचना चाहिए. जो लोग बड़े साहेब की बेटियों के चक्कर में बैडमिन्टन पर जान दिए दे रहे हैं वे ज़रूर बड़े साहेब की दुलत्ती खाकर धूल चाटेंगे.
  • कमांडर की लडकी से चक्कर चल भी गया तो जीवन भर जोरू का गुलाम बने रहना पडेगा. बीबी कभी नाराज़ हुई तो कैरियर बर्बाद करके रख देगी.
  • ऐसे में चालू रोमांस नहीं बल्कि शादी करनी पड़ेगी. फिर बड़े साहेब के रिटायर होते ही जो बाकी के लोग खार खाए बैठे होंगे वे चैन से जीने न देंगे.
  • बैडमिन्टन भी कोई खेल में खेल है? लडकियां तो बॉक्सिंग, क्रिकेट, फुटबॉल सरीखे मर्दाने खेलों के खिलाड़ियों पर मरती हैं.
  • ये साला नटराजन बड़ा बदमाश है. इससे तो बाद में निपट लेंगे.
  • बाकी के चार बिन्दुओं पर मतभेद हो सकता था पर इस आख़िरी बिंदु पर सब एकमत थे.

    ऐसे पहुंचे हुए उदात्त, आध्यात्मिक वातावरण में एक दिन नटराजन बहुत खुश नज़र आया. पहले तो टालता रहा पर कई बार पूछने के बाद अंत में मंद मंद मुस्कराता हुआ बोला “स्टेशन कमांडर साहेब की बेटियाँ आज दिल्ली से आ गयीं. कल शाम से वे बैडमिन्टन खेलने आयेंगी. स्टेशन कमांडर साहेब से तो बड़ा इनडोर कोर्ट बन जाने पर उदघाटन कराया जाएगा. इस खुले कोर्ट का उदघाटन उन कन्याओं से कराएंगे. ” सारे कुंवारे अफसरों के दिल की धडकनें बेतहाशा तेज़ हो गयीं. जो अच्छे खिलाड़ी साबित हुए थे उन्हें लगने लगा कि टी शर्ट के नीचे उनके सीने में दिल नहीं धड़क रहा है बल्कि गौहाटी के हट्टे-कट्टे मेढक छलांगें लगा रहे हैं. अगली संध्या को बैडमिन्टन कोर्ट पर खिलाड़ियों और दर्शनार्थियों (अर्थात बाकी के सारे अफसरों की) भीड़ लग गयी. नियत समय पर कमांडर साहेब की कार आती दिखी तो सबके मन फाईटर जेट की तरह एरोबेटिक्स करने लग गए. गाडी पर स्टेशन कमांडर का झंडा नहीं लगा था. दूर से अन्दर बैठी दो लड़कियों की झलक जैसे ही दिखी हवाओं में खुशी की लहर दौड़ गयी. कार आकर पोर्च में रुकी. नटराजन ने गर्मजोशी से आगे बढ़कर कार का दरवाज़ा खोला.

    कार से मीठे स्वर में “गुड ईवनिंग अंकल” बोलती हुई दो बच्चियां निकलीं. बड़ी लगभग बारह साल की, छोटी लगभग दस साल की. बड़ी अपनी आँखों पर बड़ा सा चश्मा लगाए अपना बड़ा होना सार्थक कर रही थी. छोटी खरगोश के जैसी प्यारी लग रही थी – अपने ऊपर वाले जबड़े के खरगोश की तरह आगे निकले हुए दो दांतों के कारण जिनकी बढ़त रोकने के लिए लोहे के तारों के ब्रेसेज़ दांतों मे फिट किये हुए थे.

    युद्ध के समय हवाई हमले की सूचना देने वाले साइरन की आवाज़ पर खंदकों मे कूदकर आश्रय लेने वाली ड्रिल जितनी तेज़ी से संपन्न होनी चाहिए उससे भी अधिक तेज़ी से सारे खिलाड़ी और दर्शक वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए. रह गया केवल नटराजन जो अगले घंटे भर तक उन बच्चियों के साथ पायजामे की तरह बैडमिन्टन खेलता रहा. “पायजामे की तरह“ से मेरा तात्पर्य यह है कि जैसे पायजामा ऊपर से एकवचन और नीचे से बहुवचन होता है वैसे ही एक कोर्ट में नटराजन अकेले खडा होकर और दूसरी तरफ वे दोनों बच्चियां भाग भाग कर खेलती रहीं. उधर रमी की टेबुल पर आज पत्ते रोज़ से भी जल्दी बँट गए. दाँव पर उस दिन रुपयों की जगह नए नए बैडमिन्टन रैकेट लगाए गए- नए होने के बावजूद अपनी आधी कीमत पर. घंटे भर बाद उन बच्चियों को विदा करके नटराजन खिसियानी मुस्कराहट लिए वापस आया तो सबने हवा में बैडमिन्टन रैकेटों को उछालकर उसका स्वागत किया. अगले पंद्रह दिनों तक नटराजन की रोज़ मशक्कत करा के वे बच्चियां वापस चली गयीं. उसके बाद बहुत जल्दी ही खुले आसमान के तले बने उस कोर्ट में जंगली झाड झंखाड़ उग आये.

    क्रमशः --------