Kashish - 33 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | कशिश - 33

Featured Books
Categories
Share

कशिश - 33

कशिश

सीमा असीम

(33)

यह प्रकृति देख रही हो न, यह मेरी प्रेमिका है, सच्ची प्रेमिका,! उसके कानो में यह बात सुनाई दी जो राघव मेनका मैम को बता रहे थे ! इनको मेनका जी से बात करना कितना अच्छा लगता है न फिर मुझसे क्यों बात करते हैं शायद इनके लिए प्रेम का मतलब यही होता होगा रुलाना सतना तड़पाना ! कैसे आये इस मन को करार,! ओ चैन देने वाले जब तूने ही बेचैन कर दिया ! रह रह कर माँ की याद आने लगी न जाने क्यों हमें जब कभी किसी भी तरह की तकलीफ होती है तो माँ ही याद आती हैं सिर्फ माँ और कोई भी नहीं,,,, सुन भाई यहाँ पर कीवी के बाग़ हैं तो जरा देखते हुए चलना ! ताज़ी ताज़ी कीवी खिलवा दूंगा, तुम लोगों को ! राघव ने ड्राइवर से कहा !

हाँ ठीक है सर जी,,!

बेसुध सी पारुल कुछ आवाजें सुन रही थी और कुछ नहीं ! उफ़, यह प्रेम का दर्द बेहद कष्ट देता है और इसे कोई समझ भी नहीं सकता है क्योंकि प्रेम तो दिल का भाव है और दिल पर किसी का जोर ही नहीं है इसे किसी जोर जबरदस्ती से समझाया नहीं जा सकता है ! न इस पर ताकत का इस्तेमाल किया जा सकता है ! प्रेम की गति न्यारी है ! इन्हीं सब अंतर्द्वंदों से घिरी हुई थी तभी अचानक एक जगह पर कार के रुकने से उसकी तन्द्रा भांग हुई सोच विचार के भाव में रुकावट आयी फिर भी मन का कोना कोना दर्द से तड़प रहा था ! राघव और मेनका मैम कार से उतर कर चले गए वो कीवी का बाग था जो सड़क से थोड़ी ऊंचाई पर बना हुआ था ! आप नहीं जा रही है ? ड्राइवर ने पूछा !

नहीं भाई, मेरा मन नहीं है ! चलो इसने पूछा तो, इसे मेरा ख्याल तो आया, राघव को तो जरा भी परवाह ही नहीं है ! एक बार चलने के बारे में पूछ ही लेते लेकिन वे भला क्यों पूछेंगे उनको क्यों होने लगी मेरी परवाह ?, शायद हम अपने प्रेम से बहुत ज्यादा उम्मीदें पाल लेते हैं तभी हमें कष्ट होता है वर्ना प्रेम तो ख़ुशी देता है ! उसे दुःख दर्द से क्या लेना देना ! पारुल ने अपने मन को समझने की एक बेकार सी कोशिश की,,, तभी उसने देखा राघव दौड़ते हुए से चले आ रहे थे और उनके हाथ में कीवी थी ! वे उसे पकड़ते हुए बोले लो इसे खाओ और बताओ कैसी हैं ? तुम कीवी के बाग़ में क्यों नहीं आयी थी ?

यूँ ही मन नहीं था ! उसके मुंह से निकला !

चलो ठीक है, अब यह खाओ ! राघव ने बड़े प्रेम से फिर कहा !

ओह्ह यह कैसा प्रेम है जो पल भर में ही सरे दुःख दर्द भुला देता है और पल भर में ही ख़ुशी का संचार कर देता है !

जी यह चाहता है मेरे सनम

कि तेरे नाम की मैं एक नज्म लिखूं !

तुझे मैं प्रेम करूँ और तुझी पर मैं मर मिटूँ

लेकिन ओ बेगैरत

कैसे मैं तुझ पर अब ऐतबार करूँ ?

अब तू ही मुझे बता दे ?

मैं कैसे तुझ पर अब ऐतबार करूँ ?

हाँ हम जिसे प्रेम करते हैं उसे सच्चे दिल से चाहते हैं और फिर उसके लिए अपनी जान तक न्योछाबर कर देते हैं चाहें उसका अंजाम कुछ भी हो ! अक्सर होता यही है, हम अपने प्रेम को बांटने में ख़ुशी पाते हैं लेकिन कभी कभी हम गलत इंसान को चुन लेते हैं लेकिन हम कहाँ चुनते हैं, प्रेम हमें चुन लेता है बर्बाद करने को !, आज जब राघव की आँखों में पारुल ने अपने लिए प्यार देखा तो वो उसकी सारी गलतियों को भूल गयी उसे सिर्फ उसका प्रेम ही याद रह गया ! अक्सर हम अपने प्रेम के लिए दोष देने लगते हैं जबकि प्रेम स्वयं में ही एक गलती है ! खैर राघव ने जो कीवी खाने को दी थी उसे अपने दांतों से काटकर खानी शुरू कर दिया था ! कितना मीठा रस उसके मुंह में घुल गया ! बहुत ही मीठी कीवी है ! अनायास उसके मुंह से निकला !

अच्छा मेरी कीवी तो खट्टी है ! मेनका मैम एकदम से बोल पड़ी ! अब इन्हें कौन समझाए यह कीवी ही नहीं है बल्कि राघव के प्रेम का रस है ! वाकई राघव तुम बहुत प्यारे हो ! मैं ही तुम्हें दोष देती रही ! गलत समझती रही !

बड़ी खट्टी है यह कीवी मेनका मैंम ने जरा सा टुकड़ा चखते हुए ही थूक दिया !

अरे मेरी वाली तो बहुत मीठी है ! पारुल के यह कहते ही राघव ने नजर उठा कर उसकी तरफ बड़ी गहरी नजरों से देखा, मानों कह रहे हो, मैं लाया था तोड़कर तो खट्टी कैसे होती ! पारुल उनकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा दी और अपने हाथ में पकड़ी हुई कीवी खाने लगी वाकई बहुत ही स्वादिष्ट कीवी थी ! खाते ही मन क्या आत्मा तक तृप्त हो गयी ! सच में प्रेम से लाई गयी किसी भी चीज की बात ही अलग होती है, ! बुरा सा मुंह बनाती हुई मेनका मैम आखिर बोल ही पड़ी ! राघव क्या तुम मेरे लिए एक कीवी तोड़ कर नहीं दे सकते थे ? इसने तो मेरा सारा मुंह का स्वाद ही खट्टा कर दिया !

***