Kashish - 30 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | कशिश - 30

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कशिश - 30

कशिश

सीमा असीम

(30)

बेटा मैं क्या करूँगा, इतने सरे सेब का ?

आप खा लीजियेगा ! वो मासूमियत से बोला !

हम्म ! राघव उसकी बात पर मुस्कुराये बिना न रह सके ! यह होती है देने की चाह !

चलो भाई, अब चलते हैं !

आज मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जो उन सेबों का मोल उस बच्चे को लौटा पाता, वाकई प्रेम का कोई भी मोल नहीं है, यह ख़रीदा नहीं जा सकता, न ही इसे माँगा जा सकता है अगर यह मिलना होता है तो कहीं न कहीं से किसी बहाने से मिल ही जाता है और सिर्फ उन्हें ही मिलता है जिनका मन साफ और निष्कपट होता है ! रस्ते भर राघव उस बच्चे के बारे में ही बात करते रहे ! वाकई आज यहाँ आना सफल हो गया ! कम संसाधनों में जीने वाले इस बच्चे ने प्रेम का निश्छल रूप साबित कर दिया था !

हाँ सच ही कहा आपने ! इतनी देर से शांत बैठी तलत ने कहा ! जीप अपने गंतव्य की तरफ दौड़ती जा रही थी और कुछ नई जीवन सीख देते हुए सबके मन प्रफुल्लित हुए जा रहे थे !

सुनो राघव यह वादियाँ, ये पहाड़, सुना है सब सुनते हैं और कही हुई बातें सब पूरी कर देते हैं ? पारुल ने यह बात मन ही मन दोहराई !

सुनो पारुल, मैं तुम्हें बताता हूँ कि यह जो पहाड़ हैं न, अगर इनसे कभी कुछ मांगों यह सबकी मांग पूरी कर देते हैं, वैसे भी हमारी जुबान पर सरस्वती का बास होता है ! तुम जो चाहते हो, वही कहो, देखना एक दिन सब पूरा हो जाएगा ! अरे यह मेरे मन की बात राघव ने कैसे सुन ली ? पारुल ने सोचा ! वो तो बस सोच ही तो रही थी ! मुंह से कोई शब्द ही नहीं निकला था !

तुम लोगों को एक बात बताऊँ ?

हाँ हाँ,,,बताइये न ? क्या कह रहे हैं ?

देखो यह जो गहरी खाइयां दिख रही हैं न, अगर जीप इन में गिरकर फंस जाए तप जीवन कितना रोमांचक होगा ?

अरे यह क्या कह रहे हैं ? जब गिर जाएंगे इन गहरी खाइयों में तो फिर जीवन बचेगा ही कब ?

वो कैसे ? सब अपनी अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए अपने हिसाब से बातें कहने लगे !

देखो न, या सोचो कि कितना रोमांचक होगा, सब कुछ खुद अपने अपने खाने की जुगाड़ करो, न खाने को सामान होगा और न ही कपडे और न बिस्तर ! एकदम आदम जीवन होगा ! किसी से बोलो किसी के पास बैठो, बतियाओ और सो जाओ !

ओफ्फो !! यह राघव भी न जाने क्या क्या सोचते और कहते रहते हैं ! अभी कह रहे थे कि जीभ पर सरस्वती का बास होता और जैसा सोचो या कहो वैसा ही होता फिर राघव खुद यह सब क्या कह रहे हैं ?

पारुल यह सोच कर ही परेशान हो गई ! हे भगवान, किसी तरह से सही सलामत पहुंचा दो यह राघव तो वाकई में एकदम से नादाँ और भोले हैं !

उतरती हुई धूप के साथ वे सब गांव गए थे और अब चढ़ती हुई धूप के समय लौट रहे थे ! पहाड़ों पर चढ़ती हुई दूप कितनी प्यारी लग रही थी ! जहां जहाँ धूप चढ़ रही थी ! वे सब जगहें एकदम से दूधिया रौशनी से नहाये जा रही थी और जहाँ धूप नहीं वे जगहें अँधेरे में डूबी हुई थी ! वैसे आसमान में कही इतने बादल और कहीं इतनी धूप ! हे ईश्वर, यह तेरी माया कोई नहीं समझ पाया है कहीं धूप और कहीं छाया है

पारुल की ईश्वर और उनकी सत्ता का बहन हो आया ! यह ईश्वरीय शक्ति ही तो है जो इतनी बड़ी अथाह प्रकृति को अपने हाथों से सजा और संवार रही है उसके हाथ स्वयं ही श्रद्धा के भाव से जुड़ गए थे ! जीप हलकी हलकी गति से चल रही थी ! २५ ३० की स्पीड से ज्यादा न तो चलाई जा सकती थी और न ही चलना चाहिए क्योंकि इतने मोड़ थे की अचानक से आ जा रहे थे ! उसी मंथर गति से चलते हुए ही जीप होटल तक पहुँच रही थी ! सामने ही होटल की बिल्डिंग दिखाई पड़ने लगी थी ! थैंक गॉड, हम पहुँच गए पारुल ने मन ही मन दोहराया !

कल सुबह ताबांग चलना है सब लोग जल्दी से तैयार हो जाना ! राघव ने कल का प्लान भी बता दिया था !

कितनी रोमांचक यात्रा होगी तवान्ग की, उसने मन ही मन सोचा अभी तक तो बस पढ़ा और सुना था तवान्ग और चाइना बॉर्डर के बारे में बेहद खतरनाक और दुर्गम रास्तों को पार करके वहां तक जाया जा सकता है अरे पारुल अब तू कहाँ खो गयी उतरना नहीं है क्या ?

अरे आ गया हमारा होटल? वो चौंकते हुए बोली !

देखा जीप खड़ी हुई थी और सभी लोग उतर के जा चुके थे ! उसे शर्म का अहसास हुआ और चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी ! राघव ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और वो उनका हाथ पकड़ कर जीप से नीचे उतर गयी ! राघव के हाथ का स्पर्श मात्र से ही ख़ुशी से मन आह्लादित सा हो रहा था !

चलो भाई जल्दी से खाना वाना खाकर सो जाना क्योंकि कल तो सुबह तवांग चलना है ! बेहद खूबसूरत तवांग जिसे बौद्ध भिक्षुओं का तीर्थ स्थल भी कहा जाता है और लोग तवान्ग यात्रा बड़ी शृद्धा और भक्ति के साथ करते हैं प्रसिद्ध बौद्ध मथ को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं !

पारुल क्या सोच रही है ?

कुछ नहीं ! कल तवान्ग जायेंगे न, उसी के बारे में सोच रही थी !

अरे भाई, तो इसमें सोचने वाली क्या बात है कल दिखा ही देंगे, तुम अपनी आँखों से ही देख लेना, वे खूबसूरत नज़ारे, बर्फ के बादल और बर्फ के पहाड़, क्या सच में बर्फ के बादल होते हैं और बर्फ के पहाड़ भी ? आश्चर्य मिश्रित आवाज में पारुल ने राघव को एकटक देखते हुए पूछा !

न जाने कितने सवाल उसकी आँखों में मडराने लगे थे !

हाँ यार, सच में, मैं तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा ? भला बताओ ? राघव उसकी तरफ प्रेम से देखते हुए बोले !

सच में राघव तुम बहुत अच्छे हो,बहुत ही प्यारे, तुम सिर्फ मेरे हो और किसी के भी नहीं ! तुम सिर्फ मेरे ही रहना ! उसे खुद पर गुमान हो आया था ! की राघव जैसा प्यारा इंसान उसका है, उसका प्रेमी है और उसे अथाह प्रेम करता है वाकई राघव उसे कितना चाहता है और एक वो स्वयं है उसे परेशां किये रहती है अपनी बेवकूफी भरी बातों से ! अब नहीं करेगी, वो ऐसी बातें लेकिन वो क्या करे ? उसके पास अक्ल रह ही कहाँ गयी है अब सिर्फ प्रेम बचा रह गया है ! उसके पास प्रेम के सिवाय और कुछ भी नहीं बचा है !

आजा पारुल, चलो कमरे में चले ! यूँ ही सोचती मत रहा करो ! तुम कितनी प्यारी हो क्या तुम्हें पता भी है ? एकदम से सच्ची इंसान ! मन से एकदम किसी मासूम बच्चे की तरह पवित्र और शुद्ध !

राघव, पारुल ने जोर से पुकारने की चेष्टा की लेकिन उसकी आवाज कहीं गले में ही अटक गयी ! पागल, उसने खुद को ही डांटा जब राघव इतना करीब है कि उसे सुन सकती है बिना कुछ कहे सुने भी तो जोर से क्यों पुकारना भला ? उसकी धड़कनों में उसे अपने नाम की आवाज आती है ! जैसे मेरी धड़कने उसे ही पुकारती रहती हैं ! पारुल ने सोचा !

***