Kashish - 28 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | कशिश - 28

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कशिश - 28

कशिश

सीमा असीम

(28)

हाँ उन्हें अपने दिल में बसा लेती हूँ फिर देखे वे किधर जाएंगे या जिधर भी जाएंगे मेरा दिल उनके साथ साथ चला जाएगा तब न वो अकेले और न मैं अकेली हर जगह हम एकदूसरे के साथ साथ !

अरे पारुल वहाँ क्या कर रही है आओ इधर हमलोगों का एक फोटो तो खीच दो !

हे भगवान राघव को उसकी याद भी आई तो कम के लिए ! वो मन ही मन मुस्कुराइ !

वैसे कोई अपना या बेहद खास होता है न वो कम के वक्त ही याद आता है !

जी लाइये ! उसने आगे बढ़कर उनका केमरा लिया और और एक साथ कई अलग अलग तरह कि तस्वीरें निकाल ली ! अप भी आ जाइए न आपके साथ भी एक फोटो ले लेते हैं ! उनमें से एक लड़की बोली !

राघव सिर्फ मुस्कुरा कर रह गए !

पीछे बैक मे बहुत ही सुंदर सिनरी थी एकदम नेचुरल सीन और सुंदर फोटो आ रहे थे !

वे सब लड़कियां बातें करती और हँसती हुई अपने अपने क्लास में चली गयी मैडम और एक साँवली सी लड़की जिसके नाक नक्श बेहद प्यारे थे वही पर खड़ी रही !

आपके बल बहुत सुंदर हैं ! उस लड़की ने परुकल से कहा !

अच्छा ! थंक्यू ! आपके भी तो बड़े प्यारे से बाल हैं कर्ली कर्ली ! यहाँ पर अधिकतर सभी के बाल सीधे और सिल्की हैं लेकिन आपके कुछ अलग से हैं !

जी वो मुस्कुराइ !

मुस्कान में वाकई जादुई असर होता है वो दूसरे के मन को वश में करने का हुनर जानती है कि सामने वाला भी बिना मुस्कुराए नहीं रह सकता !

चलो भाई चलना नहीं है ? राघव ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा !

एक कार में वे सब बैठ गए थे ! पारुल मैडम और वो लड़की पीछे वाली सीट पर और राघव आगे ड्राइवर के साथ में ! हालांकि राघव आगे बैठे थे लेकिन उनका ध्यान पीछे की तरफ लगा हुआ था और अपने किस्से सुनने शुरू कर दिये थे वाकई मन को मुग्ध कर देने वाली बातें करते हैं सब उनके साथ ऐसे राम जमाते हैं जैसे न जाने कब से एक दूसरे को जानते हैं ! ड्राइवर भी तो हंसने लगा था हमारे साथ उनकी हंसी की बात सुनकर !

गाड़ी बीस तीस की रफ्तार से सड़क पर चल रही थी क्योंकि बहुत कम चौड़ी सड़क और उतार चढ़ाव के कारण जौयदा तेज चला भी नहीं सकते थे ! मुझे लग रहा था कि राघव कुछ असहज से हो रहे हैं क्योंकि उन्हे तेज रफ्तार गाड़ी चलाना पसंद है !

हम लोग चुचप आसपास के खूबसूरत नजरों को देख रहे थे ! कितनी सुंदरता समाई है प्रकृति में एक एक चीज अपने आकार के अनुरूप जरा सा भी अंतर नहीं ! फोलों का रंग या पट्टियों का प्रकार सब एक सा कहीं कोई छोटा बड़ा या हल्का गहरा नहोई ! कैसे रज रज के बनाते हैं भगवान हम लोग तो दो लाइन भी खींचे तो कुछ तो अंतर जरूर ही होगा !

पहाड़ खाई नदी नाले झरने कहीं कोई कमी नहीं !

अरे भई कहाँ खो गए तुम लोग ? कुछ बोलो भी ! राघव की आवाज से पारुल की तंद्रा भंग हुई !

क्या बोले सर, आप ही अपनी बातों से हमारा मन लगाए हुए हैं !

अच्छा आप कुछ बताओ अपने घर और गाँव के बारे मे ?

सर मैं क्या बताऊँ ? एक काम करिए आप लोग कल मेरे घर आ जाइए हम आपको अपना गाँव भी घूमा देंगे ! वो लड़की थोड़ा शर्माते हुए बोली !

ठीक है यह तरकीब भी सही है हम लोग आपके घर की चाय भी पी लेंगे और और आपका गाँव भी घूम लेंगे !

हाँ सही है मैं भी चलूँगी ! मैडम ने कहा !

और तू पारुल ? राघव ने पारुल से पूछा !

हाँ जी मैं भी देखना चाहती हूँ यह पहाड़ी गाँव !

बस फिर ठीक है कल के घूमने का इंतजाम हो गया ! वे मुसकुराते हुए बोले !

मैडम को शायद राघव का इस तरह से उस लड़की और पारुल से राघव का बात करना पसंद नहीं आया था तभी वे अपना मोबाइल निकाल कर उसमें से अपने परिवार वालों के पिक्स देखने लगी !

कहाँ खो गयी मैडम ? राघव ने उन्हें टोंका !

हे भगवान यह राघव भी न ! खुद को सकूँ नहीं है तो दूसरा भी सकूँ से क्यों रहे ! बस सबको यूं ही छेडते रहेंगे !

पीले रंग की शर्ट पर नैवी ब्लू कलर का कोट शूट और माइरून और ब्लू लाइनिग की टाई में उनका खिलता हुआ रंग और भी चमक रहा था ! और उनके चेहरे पर हर समय चमकती मुस्कान चेहरे को खिलाये रहती !

बहुत सोचते हो तुम लोग ! अरे भई वर्तमान में रहना सीखो ! देखो बाहर का मौसम और पराकृतिक छटाए ! यह सब तुम्हें शहर में कहाँ देखने को मिलेगी !

वाकई शहर में तो सिवाय प्रदूषण के कुछ भी नहीं है ! गाड़ियों का धुआँ और ट्रेफिक का शोर शराबा !

अप सही कह रहे हैं ! वो लड़की बोली ! एक बार मैं कालेज की तरफ से दस दिन के टूर पर दिल्ली गयी थी लेकिन वहाँ पर मेरा दो दिन में ही दिल घबरा गया ! फिर तबीयत भी खराब हो गयी तो फिर मुझे बीच में आना पड गया !

मैं हमेशा यही तो सोचती हूँ आप जैसे शहर में रहने वालों को देखकर कि कैसे रह पाते होंगे ? मैं दो चार दिन नहीं काट पाई ! उस लड़की की बात सुनकर लगा सच में यहाँ की खुली hava में जीने वाले लोग कैसे शहर की प्रदूषित वातावरण में जी पाएंगे उनका तो डैम ही घुट जाएगा उसे भी कहाँ अच्छा लगता है शहर के माहौल में बस मज़बूरी में रहना पड़ता है तभी तो जैसे ही कहीं प्राकृतिक जगह पर जाने का मौका मिलता है वो जाना छोड़ती नहीं और किसी भी तरह से घर वालों को मन कर चली ही जाती है खैर उसे ले तो वही शहर में ही रहना है यहाँ आकर दो चार दिन ही काट सकती है हमेशा तो रह नहीं सकती उसने उस लड़की को बड़े ध्यान से देखा गुलाबी रंगत वाली वो लड़की छोटी कद काठी की थी उसके घुँघरा घने बाल उसके चेहरे की सुंदरता को दुगुना कर रहे थे ! वैसे भी काळा रंग के बाल उसके चेहरे पर बहुत फब रहे थे पतली लाब सी नाक लम्बी गहरी आँखे कुल मिलकर कितनी चमक थी, मत कशिश सी कि कोई भी उसके प्रति आकर्षित हो सकता था ! ठीक है कल हम तुम्हारे घर भी आएंगे तुम अपना गाँव घुमा दोगी न, राघव ने पूछा, हाँ हाँ क्यों नहीं सर मुझे तो बेहद अच्छा लगेगा, हमारे गाँव के लोग भी बहुत खुश हो जाएंगे, सच में हाँ जी, चलो फिर ठीक है अब तो कल एक सुन्दर पर्वतीय गाँव और ग्रामीण परिवेश का आनंद लिया जाएगा, सुनो पारुल चलो अभी तुम्हें यहाँ का एक संग्रहालय गुमा कर लाता हौं, इतनी देर से उदास और अनमनी सी बैठी हुई पारुल को थोडा अच्छा लगा ! उसके चेहरे पर ख़ुशी के कुछ भाव आये, मन में अहसासों की कलियाँ चटकी पड़ी !

कुछ देर तो राघव का साथ मिलेगा! वो उनसे हंस बोल पायेगी ! अपने मन की बातें कर पायेगी ! उसके मन की ख़ुशी चेहरे पर दमकने लगी !

***