Kashish - 27 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | कशिश - 27

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कशिश - 27

कशिश

सीमा असीम

(27)

अरे राघव कहाँ चले गए अभी तो वो यहाँ आने को कह रहे थे और खुद ही कहीं और चले गए ! ओहह यह राघव भी न, कितने मस्त मौला हैं किसी भी बात की कोई परवाह ही नहीं ! उनको तो अपने आप की ही फिक्र नहीं है ! उसे ही हर वक्त उनकी फिकर लगी रहती है !

और जब वो उनकी परवाह या फिकर करती है तो वो भी उनको अच्छा नहीं लगता है ! फौरन उसे कहेंगे, सुनो तुम अपना ख्याल कर लो वही बहुत है मैं अपना ख्याल खुद रख सकता हूँ !

लेकिन उसे बिल्कुल भी सही नहीं लगता जब राघव उसे अपना ख्याल तक नहीं रखने देते !

ओहह राघव तुम कहाँ चले जाते हो मुझे छोडकर, मुझे अच्छा नहीं लगता और किसी से बात करते हुए क्योंकि सिर्फ एक तुम ही तो यहाँ मेरे अपने हो और सब अनजाने अजनबी से ! आपको पता है न किसी भी अंजान से बात करना मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है ! पारुल यह सब सोच हिउ रही थी कि उसे राघव हाथ मेन प[आणि का गिलास लिए आते हुए दिखे ! वो दौड़ कर उनके पास गई, कहाँ थे आप ?

वे बिना कुछ बोले चुपचाप पानी का गिलास लिए किसी महिला के पास गए और उन्हें पकड़ा दिया !

अरे अब यह कौन है जिसे पानी पिला रहे है ? उसने मन ही मन सवाल किया !

होगा कोई जो उनका बेहद खास होगा ! मन ने मन को जवाब दे दिया !

कितने अजनबी से लगे थे राघव जो उसके अपने होकर भी उसके अपने नहीं है ! क्या उन्हें उसकी कोई फिक्र या परवाह नहीं है ! वे समझते क्यों नहीं कि वो सिर्फ उनकी है और उन्हें ही अपना मानती है ! उनसे कुछ कह भी तो नहीं सकती क्योंकि कुछ कहने का मतलब है कि खुद के लिए ही एक और सवाल खड़ा कर लेना !

मैं प्रेम करती हूँ और मेरा प्रेम सच है बाकी भगवान की मर्जी जो चाहें मेरी किस्मत में लिख दें ! कोशिश तो कर सकते हैं लेकिन किस्मत से नहीं लड़ सकते ! पर चुप भी तो नहीं रह सकते ! कितनी हुक उठती है, कितना दर्द होता है, क्या उन्हें अहसास नहीं होता है ? अब उसने देखा वे उस महिला के साथ ही खड़े हैं और न जाने क्या क्या बातें किए जा रहे हैं !

और कितनी बातें करोगे आओ मेरे पास, उसने क्यों प्रेम कर लिया ? अब वो सबका है बस उसका ही नहीं है ! सबसे बात करता है बस उससे ही बात नहीं करता है ! उसे कितना अच्छा लगता है राघब से बात करना, जी चाहता है कि वे उसके ही पास बैठे रहें और उससे ही बात करते रहें !

वे उससे ही बातें करते हुए हाल से बाहर चले गए ! ओ राघव आओ उसने ज़ोर से चीखना चाहा लेकिन उसकी आवाज उसके गले में ही घुट कर रह गयी !

कैसे इंसान हैं, जरा भी परवाह नहीं !

चलो कोई नहीं, वे जैसे भी हैं उसके अपने हैं और उसे पसंद हैं आखिर वे प्रेम में हैं और प्रेम में इंसान बच्चा बन जाता है !

काफी देर गुजर गयी पर राघव अभी तक नहीं आए थे न जाने कहाँ चले गए थे ~ कितना बुरा लग रहा था कि राघव के साथ होते हुए भी वो अकेली है राघव उसके साथ नहीं हैं ! टेबल पर हर तरह का नाश्ता लगा हुआ था लेकिन कुछ खाने का मन नहीं था ! न जाने ऐसा क्यों होता है जब मन परेशान होता है तब खाना पीना सब छूट जाता है उसके साथ तो यही होता है ! थोड़ा सा कुछ खा लेती हूँ नहीं तो राघव इसी बात पर उसकी डांट लगाने लगेंगे वैसे खाना खाना भी करीब चार घंटे के बाद लगेगा तो चाय और हल्का फुल्का कुछ स्नेक्स ले लेती हूँ !

यह सोचते हुए उसने प्लेट उठाई और उसमें थोड़ी आलू की सब्जी रखी और एक हरी मटर की कचौड़ी रख ली ! यह खाना भी खाना जरूरी है चाहें मन कितना भी दुखी या परेशान क्यों न हो ! उसने जबर्दस्ती करके दो चार कौर खाये और हाथ धोकर कान्फ्रेंस रूम में आ गयी ! देखा वहाँ राघव बड़े मजे में बैठे हुए है बिना किसी भी बात की परवाह किए !

यह अचानक से क्या हो गया इनको ऐसे कैसे हो गए ! पहले तो इतनी परवाह इतनी फिक्र रहती थी ! आंखोंसे आँसू बहने लगे लाख कोशिश की लेकिन इनको तो बहाना है और गालों को चूमना है ! दिल में हूक भी तो उठती है इतनी तेज कि संभालना मुश्किल हो जाता है !

आखिर उससे रहा नहीं गया और वो उठकर राघव के पास आ गयी ! अप कहाँ थे मैं आपको इतनी देर हाल में ढूंढती रही !

क्यों ?

नाश्ते के लिए !

मैंने खा लिया था न !

ओह अच्छा !

क्या खाया आपने ?

आलू की सब्जी और पूरी !

आज यहाँ यह सब कैसे बन गया नाश्ते में !

हाँ मैं भी यही सोच रहा था !

कोई नहीं अच्छा तो था न ?

हाँ ! उसने बड़े बेमन से कहा क्योंकि उसने तो किसी तरह से निगले थे वे दो कौर स्वाद का तो कुछ पता ही नहीं चला !

राघव उठे और बाहर जाने लगे !

आप कहाँ जा रहे हो ?

मैं बाहर जा रहा हू ! आओ चलो, तुम्हें चलना है ?

हाँ !

आओ !

वो उसके पीछे पीछे इस तरह से चलने लगी मानों कोई परछाई सी हो ! वो उसकी परछाई ही तो बन गयी है ! जो हमेशा उसके आगे या पीछे चलना और रहना चाहती है ! बाहर वो मैडम और कुछ लड़कियां खड़ी आपस में बातें कर रही थी !

अरे मैडम आप यहाँ, मैं आपको अंदर देख रहा था !

यह राघव भी न उसकी परवाह और फिक्र करते हैं जिसे उनके बारे में तनिक ख्याल तक नहीं और जो उनके लिए अपनी जान भी नियोछावर कर दे उसकी नाममात्र की परवाह नहीं ! वाह रे प्रेम, वाह री दुनियाँ !

दुनियाँ बनाने वालों क्या तेरे मन में समाई तूने कहे को दुनियाँ बनाई !

उसका जी चाहा कि यह धरती थोड़ी सी जगह दे दे तो वह उसकी गोद में समा जाये या कुछ पल बैठ कर सुस्ता ले क्योंकि इस ऊंची नीची डगर पर चलते हुए कितने पाँव दुख रहे हैं दर्द से बदन टूट रहा है और आँखें किसी समंदर कि तरह से हर वक्त भरी भरी है न जाने कब और कहाँ बरस पड़ें पता ही नहीं चलता !

वह इन्हीं ख़यालों में खोयी हुई थी कि उसे कहीं बहुत दूर से राघव कि हंसी सुनाई दी !

वह अपनी तंद्रा से कुछ पल को दूर हुई तो सामने का सब कुछ साफ और स्पष्ट नजर आने लगा ! राघव बिलकुल उसके सामने ही खड़े हुए थे और साथ में मैडम और कुछ लड़कियां ! वे सब आपस में बातें कर रहे थे और खुशी से चहकते हुए खिलखिला कर हंस रहे थे ! उसका राघव है ही इतना प्यारा कि कहीं गम का नामोनिशान ही नहीं रहता ! बस खुशियाँ और मुस्कान ही बिखर जाती है ! वो भी तो उनके साथ रहती है तो हँसती है मुसकुराती है और दुनियाँ कि सबसे खुशनसीब लड़की समझती है लेकिन उसके जरा सा दूर जाने पर उदास निराश हताश और दुखी हो जाती है ! समझ ही नहीं आता कि ऐसा क्या करे कि राघब उससे फलभर को भी दूर न जाये !

***