उत्तम पुरूष एक:
बहुत देर से मैं यहां खड़ा हूँ।बस स्टैंड से रेलवे रोड को जोड़ने वाली एक संकरी सी गली है यह।बस स्टैंड का मुख्य प्रवेश और निकास दूसरी तरफ है लेकिन क्योंकि शहर की तरफ यह गली शॉर्टकट का काम करती है इसलिए ज्यादातर सवारियां इधर से ही आती जाती हैं।मैं किसी से मिलना चाहता हूं।बहुत जरूरी काम है,यह समझ लो जीवन-मरण का प्रश्न है।पता नहीं वह आदमी मुझसे मिलेगा या नहीं।उसका नाम बताने का यहां कोई फायदा नहीं।आप उसे जानते नहीं।
उसके बारे में बात हो रही है इसलिए उसे अन्य पुरुष कह लेते हैं।
सामने राजा चौहान की कैंची धार की लंबी सी दुकान है।दुकानदार बाहर बैठकर कैंची की धार लगाने का काम करता है।करीबन 21 साल पहले मैं इस शहर में आया था।मेरी राज्य सरकार के एक कार्यालय में क्लर्क की नौकरी लगी थी।तब से यहीं हूँ।क्लर्क से हैडक्लर्क बना।अब सुपरिंटेंडेंट हूं।यह शहर छोड़कर
मैं कहीं नहीं गया।न जाने का प्लान है।
कैंची पर धार लगवाने एक बुज़ुर्ग सा शख्स आया है।शायद कोई टेलरमास्टर या उसका कारिंदा है।उसने कई तरह की कैंचियां निकाली हैं।बड़ी कैंची, मझोली कैंची, छोटी कैंची। सब कैंची लकड़ी के काउंटर पर जंचा दी गई हैं।
अब एक एक करके सब सान पर चढ़ेंगी।सारी कैंचियां पक्के चमकदार लोहे की बनी हैं।सान पर चढ़कर नई सरीखी हो जाएंगी।काम में लेते लेते इनकी धार कुंद हो गई हैं।कैंची को मालूम है कि उसे सान पर चढ़ाना जरूरी है इसके बिना उसकी उम्र नहीं बढ़ने वाली।फिर भी सान पर चढ़ते ही कड़ा विरोध प्रकट करती है।चिंगारियां छोड़ती है।
मैं गौर से एक एक कैंची की शक़्ल बदलते देख रहा हूं।इतना ध्यान से कि धार लगाने वाला भी बड़ी भेदी नज़र से मुझे देखने लगा है।शायद मैं उसे असामान्य लगने लगा हूं।
मैं अब परे देखने लगा हूं।उधर एक गोलगप्पे की स्टाल पर लड़कियों की,औरतों की बड़ी भीड़ है।लड़कियों के छज्जे थोड़े छोटे और उठान लिए हुए हैं।औरतों के छज्जे बड़े लेकिन लटके हुए है।मैं उन औरतों को खाते देख रहा हूं।इतना बड़ा मुंह खोलती हैं कि?शायद ही सामान्यत: कभी खोला हो।
एक छोटे से गोलगप्पे के लिए इतना रिस्क लेना क्या उचित है?
इतने में ही एक औरत मुड़कर मेरी तरफ़ देख रही है।अभी उसका नम्बर नहीं आया है।
उसे सीधे मेरी और देखते पाकर मैं फिर कैंची की दुकान की तरफ़ देखने लगा हूं।
उत्तम पुरुष दो:
मेरी कैंची की धार लगाने की यह दुकान सदा से ही ऐसी नहीं थी।एक जमाना था जब मेरे दादा जी,ईश्वर उन्हें जिस भी योनि में हैं उसमें ही खुश रखे।तीनों टाइम खाना दे।मुझे मालूम है इंसान की योनि में जो भूख की दिक्कत है वह अन्य योनियों में संत्रास है।मैं सारा दिन गाय और सांडों को भूख के मारे मारा मारा फिरता देखता हूँ।उनके साथ परमात्मा ने बड़ा जुल्म किया है।इतना बड़ा पेट लगा दिया है जिसे भरने में वे दिन-रात लगे रहते हैं लेकिन ऐसा कोई रास्ता,ऐसा कोई हीला उनके लिए नहीं बनाया कि उन्हें नियत समय पर,जब भी उन्हें भूख लगे उनके पिये माकूल खाने, ठंडे पानी का इंतजाम हो।शहर में मारी मारी फिरने वाली गायों को तो मालूम ही नहीं होगा कि शहर से बाहर बड़े बड़े घास के मैदान हैं जहां उनके जैसी ही गायें दूर दूर से चराने के लिए लायी जाती हैं।
पता भी हो तो भी ये गायें ,ये सांड शहर छोड़कर न जाएं।क्योंकि ये पिछले जन्म में भी इसी शहर के निवासी थे।यह शहर मरकर पुनर्जन्म पाकर भी छूटता नहीं।
हां, तो मैं कह रहा था कि यह दुकान जब नहीं थी उस वक्त मेरे दादा जी यहीं इसी गली में साईकल पर कैंची धार लगाने का काम करते थे।सुबह सात बजे यहां पहुंचने के लिए वे पांच किलोमीटर साईकल चलाकर यहां आते थे।सात बजे से शाम को पांच बजे तक यहीं खड़े रहकर ग्राहकों का इंतजार करते थे।जैसी ही कोई ग्राहक आता।साईकल का पेडल मारकर सान को तेज घुमाते और कैंची छुआते ही चिंगारियां छूटने लगती।देखते ही देखते कैंची चमक उठती और उसकी धार इतनी तीखी हो जाती कि असावधानी से उंगली फिराते ही उंगली से खून की बूंद टपक जाती।
मेरे पिता ने यह दुकान खरीदी थी।हम लोग कैंचियों को सान पर चढ़ाने से पहले यह जान लेते हैं कि कैंची सुधर भी पाएगी या नहीं।जिस कैंची में सुधरने की गुंजाइश नहीं होती हम उसको हाथ में लेकर अलट पलट कर सब तसल्ली करके वापिस दे देते हैं और हाथ जोड़ लेते हैं।जो कैंची दवाब न झेल पाए उसे सान पर चढ़ाना ग़लत है।नुकसान चाहे ग्राहक का हो बदनामी तो हमारी भी है।यही बात इंसान पर भी लागू होती है।मेरे बिल्कुल सामने एक कैंची धार वाला पिछले साल से आ बैठा है।अव्वल तो कोई ग्राहक उसके पास जाता नहीं।जो जाता है वह असंतुष्ट ही वापिस आता है।
यह इंसान ईर्ष्या,डाह और बैर का पुतला है।यह समझता है कि रोजी हासिल करने का तरीका दुनिया में सिर्फ़ एक ही है,दूसरे के रिज़्क पर डाका डालो।इसे इतनी समझ नहीं कि ऊपरवाले ने नीयत को बरक़त दी है।हर एक को रिज़्क का अख्तियार दिया है।कोई किसी की रोटी नहीं छीन सकता,बशर्ते बंदा उसके कारनामे और कारसाजी पर पुख़्ता यकीन रखे।
प्रत्यक्षत: वह इतना भाईचारा दिखाएगा, इतना मीठा बना रहेगा।मानो उससे ज़्यादा मेरा भला चाहने वाला इस दुनिया में कोई पैदा ही नहीं हुआ है।इतने साल पुरानी हमारी खानदानी दुकान है,जिसे तीन पीढ़ी की मेहनत ने खड़ा किया है।उसकी दुकान तो अब खुली है।मेरे मुकाबले ग्राहक उसके पास तभी जाएगा जब उसकी नीयत दुरुस्त होगी।
पिछले पच्चीस एक साल से मैं नई कैंचियां भी बेचने लगा हूं।ग्राहक मांगते थे कि कहीं से कोई बढ़िया कैंची वाज़िब दाम पर मिल जाए।बाज़ार में हर तरह के दुकानदार हैं।लेकिन फिर भी वे मुझसे कैंची खरीदना पसंद करते हैं तो सिर्फ़ इसलिए कि उन्हें पता है कि राज चौहान न गलत दाम लगाएगा न गलत माल बेचेगा।
सबसे पहले तो इंसान जिस धंधे में पैसा लगाए उसमें दिल भी लगाए।न तो कोई भी काम आसान होता है,न छोटा।आप इधर से कभी निकलेंगे और मुझे कैंची पर धार लगाते देखेंगे तो विचार करेंगे कि बड़ा आसान सा काम है यह।कोई भी कर सकता है।यह तो हम जानते हैं कि इसके पीछे कितने दिनों की मेहनत और लगन है।सितार के तार पर उंगली रखकर मनमाफ़िक धुन निकाल लेना सरल है बनिस्बत इस काम के।लो आप तो सोचने लगे कि राज चौहान बड़ी बड़ी फेंक रहा है।नहीं जनाब,मैं शत प्रतिशत सच कह रहा हूं।कैंची पर धार लगाने से भी आसान काम आपको लगेगा नई कैंची बेचना।कैंची लाओ,कैंची बेचो।इतना भी आसान नहीं है भाई साहब!बाज़ार हू बहू दिखने वाले आधे से भी कम कीमत के चीनी माल से अटा पड़ा है।सयाना ग्राहक देख परख कर सौ सवाल पूछ कर तसल्ली करके खरीदता है।और नया ग्राहक सिर्फ़ चीज का दाम देखता है।
अब कैंची को ही लीजिए दस के करीब तो भारतीय ब्रांड ही होंगे।एक सौ चालीस से भी ज्यादा चीनी ?ऊंचे शौक वाला बंदा जर्मनी, जापान से इधर बात नहीं करता।
एक बुजुर्ग टैलरमास्टर इधर आ गया है।उसके हाथ मे झोला है।मुझे बिना बताए मालूम है कि उसमें कैंचियां होंगी और उनमें धार लगेगी।बूढ़ा आदमी लचेड़ी और पारखी दोनों होता है।उससे डील करना बिजली की नंगी तार पकड़कर उससे काम लेना होता है।जाने कब ऐसी बात कह दे कि जिंदगी भर का घमंड एक पल में नीचे आ जाए।
यह सामने एक आदमी सुबह से खड़ा है।शायद किसी का इंतजार कर रहा है।पढ़ा लिखा आदमी है।कपड़े भी साफ सुथरे,करीने और नफ़ासत से पहने है।शेव किया चेहरा बुझा सा है लेकिन आंखों में चमगादड़ जैसी चमक है।यह आदमी जरूर किसी फेर में है।
अगर कपड़ों से भिखारी या गरीब लगता तो मैं इसे कबका घुड़का कर चलता कर देता।इसे छेड़ना ठीक नहीं।जाने किसका रिश्तेदार निकल आए।मंत्री,बड़ा पुलिस अफसर या आई ए एस?
मैंने इसे इग्नोर करके अपने काम पर ध्यान देने की कोशिश की है।कहीं कोई कैंची ख़राब हो जाए और मुझे टैलरमास्टर की तानाकशी सुननी पड़े।
टैलरमास्टर चला गया।मुझें संतुष्टि है कि वह संतुष्ट होकर गया है।संतुष्टि एक छूत की बीमारी की तरह है एक से दूसरे को लग जाती है।डेढ़ बजा है,अभी लंच टाइम होने में आधा घंटा है।मैं नियमपूर्वक दुकान चलाने वाला आदमी हूं।दो बजे लंच करता हूं।भूख लगी हो तब भी नहीं।मैं अख़बार उठा कर पढ़ने की कोशिश करता हूं।कोई ख़ास ख़बर नहीं है।कई पन्ने बदलने के बाद कोर्ट न्यूज वाले कॉलम पर मेरी खामख्वाह निगाह पड़ गई है।छोटी छोटी बेकाम की न्यूज़ हैं।कोर्ट के नोटिस वगैरह हैं।एक कदरन
मतलब दूसरी खबरों के मुकाबले थोड़ी बड़ी न्यूज़ है।किसी घटना का जिक्र है जिससे संबंधित मुकदमा जिला
अदालत में चल रहा है।कोई कृष्ण नारंग करके व्यक्ति है उसके हवाले से ख़बर दी गयी है।उसका निर्दोष बेटा जेल में बंद है।जमानत भी नहीं हो रही।कृष्ण नारंग बता रहा है कि वह दो तीन दिन पहले ही जमानत पर जेल से बाहर आया है।उसकी पत्नी भी बेटे के साथ ही जेल में है।उनकी बहू ने उन पर दहेज़ हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कराया है।बहू बीस प्रतिशत जली हुई हालत में अस्पताल में भर्ती है।जेल जाने की वजह से उक्त कृष्ण नारंग नौकरी से सस्पेन्ड चल रहा है।
ख़बर काफ़ी विस्तार से है।मैं ख़बर पढ़ने में मग्न हो गया हूं।
"भई!एक कैंची दिखाना?"
मैंने सिर उठाकर देखा,सुबह से गली में खड़ा आदमी उससे कह रहा है।
मैं अखबार छोड़ उठ खड़ा हुआ हूं उसने जिधर इशारा किया है उधर टंगी हुई कैंची उठाकर उसके हाथ में दे दी है।
"काफी वजनदार है।"उसका कैंची पकड़ने का ढंग ऐसा है जैसे कोई चाकू या पेचकस पकड़ रखा हो।
वह कैंची को पकड़कर इस तरह घुमा रहा है जैसे लोग छुरा या बड़ा चाकू घुमाते हैं।
"कितने की है?"उसने कैंची वापिस काउंटर पर रख दी है।
"पांच सौ नब्बे दाम है इसका!इसके साथ यह इंचीटेप फ्री है।"
"बहुत महंगी लगा रहे हो और इंचीटेप का मैंने क्या करना है!"
वह कहता है और मुस्करा देता है,इसमें मुस्कराने जैसी कोई बात नहीं है।शायद वह कई दिन से मुस्कराया नहीं है।उसकी मुस्कराहट वाली मांसपेशियां उसके चेहरे के साथ सख़्त हो गई हैं।हल्की सी हरक़त में आती हैं।
"एक दाम है।कोई इंचीटेप ले या न ले।कंपनी की स्कीम है,हमारी नहीं।"मैंने न जाने क्यों अहृदयता दिखाई है।
"इतना भी दाम नहीं है इसका!आजकल दो तीन सौ में बढिया कैंची मिल जाती है।"वह थोड़ा हिकारत,थोड़ा व्यंग्य,थोड़ा तल्खी और थोड़ा मुस्कराहट मिलाकर तंजिया बात कहता है जो चुभती है।
मैं कैंची उठा लेता हूं।
"यह कैंची नहीं मिलती दो तीन सौ में!इसकी क्वालिटी देखी है।इसका एर्गोनोमिक डिज़ाइन है।एर्गोनोमिक समझते हैं।आप तो पढ़े लिखे हैं।"
वह परिहास की मुद्रा में मेरी तरफ़ देख रहा है।
"इसके हैंडल हाथ से डिज़ाइन करे गए हैं।हाथ को मैक्सिमम कंफर्ट मिले, इसका पूरा ख्याल रखा है कंपनी ने।ब्रास के बने हैंडल हैं ये।ये देखो।"
मैंने कैंची फिर से उसके हाथ मे दे दी है।
"आई एम इम्प्रेस्सेड!मैं मुतासिर हुआ।"
उसने व्यंग्यमिश्रित मुस्कराहट के साथ कैंची मुझे वापस दे दी है।
"कैंची की क्वालिटी से नहीं।आपकी सेल्समैनशिप से।मैंने अपने जीवन मे किसी को इतनी मेहनत से कैंची बेचते नहीं देखा।"वह हल्की सी ताली बजाकर मखौल सा उड़ाते हुए बोला।
मुझे थोड़ी चिढ़ सी हुई।गुस्सा भी आया।फिर सब्र का घूंट पीकर आगे बोलता रहा,
" ये देखिए,हैंडल को ओवल शेप में बनाया गया है।कितनी भी देर काम करो हाथ दुखेंगे नहीं।हाथ इसमें कम्फ़र्टेबल रहते हैं।"
वह गौर से देख जरूर रहा था लेकिन प्रभावित हुआ हो ऐसा नहीं लग रहा था।
"अभी आपने इनके ब्लेड को तो देखा ही नहीं है।जरा गौर करिए,ये ब्लेड कार्बन फुनर स्टील से बने हैं।(मैंने कहीं पढ़ा था,वैसे मैं कन्फर्म नहीं था कि फुनर होता है या फनर!)इन ब्लेड को इम्पोर्टेड ऑटोमेटिक मशीन पर स्पेशल टेक्निक से बनाया गया है।यह देखिए डिज़ाइन !इनको डिज़ाइन भी इस तरह से किया गया है कि ये कटाई करते हुए आपको बेस्ट रिजल्ट दें।इससे आप कागज़ काटो,कपड़ा काटो या कुछ और,हैवी ड्यूटी ब्लेड हैं ये कभी ख़राब नहीं होंगे।"मैं ग्राहक के पीछे टंगी हुई दीवार घड़ी की तरफ़ देख रहा हूं।दो बजने में पांच मिनट रह गए हैं,"बस पांच मिनट और!फिर कोशिश बंद, नहीं खरीदेगा तो न खरीदे।"
वह ब्लेड को ध्यान से देख रहा था।खासकर ब्लेड की नोक पर उसकी दृष्टि केंद्रित थी।वह उपहास करना बंद कर चुका था।शायद पंछी जाल में फंस रहा था।यही वक़्त होता है जब ग्राहक ने खरीदने का निर्णय ले लेना होता है।अगर दुकानदार थोड़ी मदद करे या दयानतदारी दिखाए तो उसे निर्णय लेने में आसानी होती है।
"इस कैंची की गारंटी कंपनी की तरफ़ से एक साल की है लेकिन मैं पांच साल की गारंटी देता हूं।जंग लग जाये,हैंडल खुल जाए।दोनों ब्लेड के बीच लगा यह नट लूज़ हो जाए, बदल कर नई कैंची दूंगा।अगर ग्राहक न बदलना चाहे तो पूरे पैसे वापिस!
थोड़ा रुककर धीमी आवाज़ करके मैं बोला,"
मेरी गारंटी है कि यह कैंची हजार बार इस्तेमाल करने के बाद भी नई की नई रहेगी।"
मैं अपनी बात का प्रभाव देखने के लिए रुका।वह अभी भी कैंची के ब्लेड के तीखेपन पर निगाह गड़ाए था।बार-बार ब्लेड की नोक को छू रहा था।मेरा धैर्य जवाब दे रहा था।
फिर उसने कैंची को इस तरह से पकड़ा जैसे छूरा पकड़ा जाता है और पूरे वेग से मेरी गर्दन की ऊंचाई तक इस तरह लाया कि मैं सहमकर पीछे हट गया।हवा में ही वार करने की एक्टिंग करते हुए वह जब बोला तो मेरा ध्यान उसकी आँखों की तरफ़ गया,"मैंने कौनसा हज़ार बार इस्तेमाल करनी है।एक बार ही तो करनी है,बस एक बार!"उसकी आँखों में ऐसा वहशीपन था कि मेरी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई।
"मुझे तो इस बात से मतलब है कि आप इसका दाम सही लगा लें।चार सौ दे दूं।"
मैंने उसके हाथ से कैंची ले ली।जहां से उठाई थी वहीं रख दी।उसकी तरफ़ देखा भी नहीं।दो बज गए थे,लंच टाइम हो गया था।
यह बंदा किसी गहरी खाई में था।अपराध की या संत्रास की।आखिर कैंची का एक बार इस्तेमाल करने की बात का क्या मतलब हो सकता है?मेरे दिमाग़ में जमी बर्फ़ पिघली।
ओ!यह आदमी सुबह से यहां इसी फेर में खड़ा है।हंड्रेड परसेंट!!यह किसी पर हमला करने वाला है।
"अरे आप ने तो कैंची पीछे रख दी।चलो दो, आपके दाम में ही दो।"वह हार मानते हुए बॉल रहा था।
"मैंने कैंची नहीं बेचनी।आप जाईये!दो बज गए हैं।मेरा लंच टाइम हो गया है।"मैंने उसके हाथ जोड़े।
'लंच टाइम हो गया है।यह कोई सरकारी दफ़्तर, बैंक वगैरह है?है तो कैंची की दुकान ही।"
मुझे उसके वाक्य से ज्यादा उसके कहने के ढंग से मिर्च लगी।
"दुकान है तो क्या?आदमी नियम पालन कहीं भी कर सकता है।आप जाओ, मुझे नहीं बेचनी कैंची आपको!"मैं गुस्से में अपनी आदत के विपरीत कड़वा बोल रहा था।
"पांच मिनट लगेंगे, ये दाम लो और कैंची दे दो।"वह जल्दी जल्दी पर्स में से नोट निकालने लगा।हड़बड़ी में एक लेमिनेटेड आइडेंटिटी कार्ड जैसा कुछ नीचे गिरा।उसने उस कार्ड को उठाकर काउंटर पर रख दिया।
'कृष्ण नारंग,सुपरिंटेंडेंट, संपदा विभाग,नगर निगम,गुड़गांव'
मैंने पूरा पढ़ा।
यही वक़्त था !सही फैसला करने का।
"तुझे कह दिया न, नहीं बेचनी कैंची।तू चल यहां से।दिमाग़ खराब न कर।"
मैंने पूरी ताक़त से चीखकर कहा।
"मगर,मुझे कैंची जरुर ही चाहिए।"वह अटककर बोल रहा था।उसकी शक़्ल निरीह होती जा रही थी।मुझे कहीं तरस न आ जाये।
"वो सामने दुकान है।वहां से ले लो।अच्छी भी दे देगाऔर सस्ती भी।"
मैंने सामने वाली दुकान की तरफ़ इशारा किया।वह दुकानदार इधर देख रहा था।
वह ग्राहक अपना आइडेंटिटी कार्ड उठाकर चुपचाप उधर चला गया।
अमूमन मैं लंच बड़े आराम से करता हूं।फर्श पर चटाई बिछाता हूं।इंडक्शन स्टोव स्टार्ट करके सब्ज़ी, चावल और रोटियां गरम करता हूं।एक छोटे जग को धोकर पानी डालकर एक काँच का गिलास चटाई पर रखता हूं।खीरे ओर प्याज़ का सलाद काटता हूं।
सलाद काटने का चाकू मंदिर जो कि दुकान के शुरू में है के नीचे वाली दराज में रहता है।उसे निकालने दुकान के अग्र भाग में गया हूं।वह आदमी फिर से गली में खड़ा है।उसके हाथ में कैंची वाला पॉलीथिन है।वह बैचैनी से इधर उधर टहल रहा है।उसका ध्यान मेरी तरफ़ नहीं है।मैं उत्सुकता और उद्विग्नता से रुककर उसे देखने लगा हूं।उसने पॉलीथीन फेंक दिया है। कैंची के उपर का पैकिंग खोल कर वहीं डाल दिया है।बड़ी ही नफ़ासत से कैंची के ब्लेड पर हाथ फिराया है। कैंची के हैंडल में बायां हाथ फंसा कर कैंची को गरदन तक उठाकर हवा में ही वार करने का दो बार अभ्यास किया है।तीसरी बार अभ्यास करते वक्त उसकी निगाह मेरी निगाह से टकराई है।उसकी आंखें वहशत से भरी हैं।वह मुझसे आठ फिट से भी कम दूरी पर है।
मेरे शरीर में भय की तरंग दौड़ गई है।मैं दुकान के अंदर घुसा और पहली निगाह दुकान की चाबी पर जा पड़ी।क्या सोचकर मैंने चाबी उठा ली।रोलिंग शटर डाउन करके दुकान बंद करके ताला लगा दिया।
गली में से उसके सामने से निकलकर बग़ैर उसकी तरफ़ देखे मैं बस स्टैंड की तरफ़ चला गया हूं।
मैंने दोपहर में दुकान कभी बंद नहीं की है।
दो घंटे तक मैं इधर उधर घूम कर टाइम पास करता रहा।सियालकोटी ढाबा की सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर रेस्टोरेंट में पहुंचा।बढ़िया थाली का आर्डर दिया।आराम से बैठ कर वेट करता रहा।थाली आई।मजे लेकर खाई।न दुकान पर जल्दी जाने की चिन्ता थी।न किसी अन्य काम की हड़बड़ी।मन की उद्विग्नता कुछ कम हो गई थी ।मगर ध्यान उस आदमी की हरकतों पर ही लगा था।क्या कुछ होने वाला था।या मैं खामख्वाह ही डर गया था।क्या मुझे पुलिस के पास जाना चाहिए?
खाना खत्म हो गया था।पैसे देकर नीचे आया और बाजार में निरुद्देश्य घूमता रहा।काफी आगे जाकर एक फेमस चाय की दुकान थी।उसकी बेंच पर बैठकर खुश्बूदार इलायची चाय का जायका लिया।
एक घंटा से ज्यादा वक्त बीत गया था।अब चलना चाहिए।
बस स्टैंड वाली गली में मेरी दुकान के आगे भीड़ लगी थी।एक चेक का कोट पहने हुए पचपन साठ साल का व्यक्ति अपनी गर्दन पर हाथ रखे चित लेटा था।उसकी गर्दन में कैंची धंसी थी।खून टपक कर सड़क पर चहबच्चा सा बना चुका था।उसकी आंखें खुली थी लेकिन प्राण पखेरू उड़ चुके थे।
मैंने अपने पास खड़े व्यक्ति की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।वह बताने लगा!