Mega 325 - 6 in Hindi Moral Stories by Harish Kumar Amit books and stories PDF | मेगा 325 - 6

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मेगा 325 - 6

मेगा 325

हरीश कुमार 'अमित'

(6)

मम्मी-पापा के वापिस चले जाने के एक सप्ताह बाद की बात है. शाम के समय अचानक शशांक के मन में आया कि क्यों न पापा के नए आविष्कार की गोली खाकर देखी जाए. वैसे तो पहले उसने यही सोचा हुआ था कि उस गोली को अभी दो-चार महीने संभालकर रखेगा, मगर अचानक ही उसे लगा कि उस गोली को अभी खाया जाए और देखा जाए कि फिर उसके बाद क्या-क्या हंगामे होते हैं.

गोली खाने के लिए वह अपने कमरे में गया और अलमारी खोलकर वह शीशी तलाशने लगा जिसमें उसने वह गोली रखी थी. शीशी से गोली निकालते समय उसके मन में यह बात भी आई कि कहीं इसे खाने से उसे कोई नुक्सान न पहुँचे. कहीं ऐसा न हो कि फिर उसके बाद वह हमेशा अदृश्य ही रहे और अपने असली रूप में कभी आ ही न सके.

यह सब सोचकर उसे पसीना-सा आने लगा और गोली खा लेने का उसका फैसला डाँवाडोल होने लगा. लेकिन तभी उसके मन में आया कि अभी पिछले सप्ताह ही तो उसके पापा ने भी ऐसी ही गोली खाई थी जिससे उनको तो कुछ भी नहीं हुआ था. अदृश्य होने के दो घंटे बाद बाद पापा तो बिल्कुल सही-सलामत अपने असली रूप में आ गए थे.

इस विचार से उसकी हिम्मत बढ़ी और उसने यह पक्का निश्चय कर लिया कि वह उस गोली को खा लेगा. इसके बाद उसने उस गोली को पानी के साथ निगल लिया और फिर अपनी कुर्सी पर बैठ गया.

गोली खाते ही एकाएक शशांक को लगा जैसे वह एक पल के लिए बैठे-बैठे बेहोश हो गया है. उसके बाद वह पहले की तरह सामान्य हो गया. कुर्सी पर बैठे-बैठे उसने सामने दीवार पर लगे आइने में अपना प्रतिबिम्ब देखना चाहा पर उसे वह दिखा ही नहीं.

शशांक कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और चलकर आइने के पास गया, मगर अपना प्रतिबिम्ब उसे आइने में बिल्कुल भी नज़र नहीं आया.

'इसका मतलब गोली तुरन्त असर करती है' - उसने सोचा. तभी उसके दिमाग़ में यह बात भी आई कि अब अगले दो घंटों के लिए कोई भी उसे देख नहीं पाएगा.

यह भी उसके दिमाग़ में आया कि अदृश्य होने की इस स्थिति में मेगा 325 को मजा चखाया जाए, जो उसे अक्सर परेशान करता रहता है.

वह अपने कमरे से निकला और मेगा 325 को ढूँढने लगा.

शशांक ने देखा कि मेगा 325 ड्राइंगरूम की खिड़की के पास चुपचाप खड़ा था. ऐसा लगता था जैसे उसके पास उस वक्त करने के लिए कोई काम नहीं है.

शशांक चलते-चलते उसके पास पहुँचा और उसकी एक बाँह पकड़कर ज़ोर से हिला दी. मेगा 325 को एकाएक यह समझ ही नहीं आया कि यह क्या हुआ है.

उसके बाद शशांक ने मेगा 325 की पीठ पर तबला बजाना शुरू कर दिया. मेगा 325 ने इधर-उधर सिर घुमाकर देखा, मगर उसे कोई नज़र नहीं आया.

अब शशांक ने उसका सिर पकड़कर दो-तीन बार इधर से उधर और उधर से इधर घुमा दिया. मेगा 325 को बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब हो क्या रहा है. आज तक कभी उसके साथ ये हरकतें किसी ने नहीं की थीं.

तभी अचानक बड़े दादा जी उधर आ निकले. उन्होंने देखा कि मेगा 325 बड़ा असहज-सा हो रहा था.

तभी शशांक मेगा को दोनों हाथों से पकड़कर इस तरह गोल-गोल घुमाने लगा जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है. मेगा को इस तरह चक्कर खाते देख शशांक को बहुत ही मज़ा आ रहा था.

मेगा 325 को इस तरह गोल-गोल घूमते हुए देख बड़े दादा जी को लगा कि शायद उसकी प्रोग्रामिंग में कोई खराबी आ गई है.

''अरे, क्या हो गया मेगा 325 तुम्हें? इस तरह चक्कर क्यों खा रहे हो?'' बड़े दादा जी ने पहले मेगा 325 से ही कुछ पूछ लेना चाहा.

सामान्य अवस्था में तो मेगा 325 दूसरों की कही बातें सुनकर समझ लेता था और जहाँ ज़रूरत हो, वहाँ जवाब भी दे लेता था, मगर इस वक्त तो उसका ख़ुद का दिमाग़ बौखलाया हुआ था. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है. ऐसे में वह बड़े दादा जी को क्या जवाब देता.

मेगा 325 से कोई जवाब न पाकर बड़े दादा जी एक बार फिर पूछने लगे, ''क्या हो गया है भई तुमको? कोई भाँग-वाँग तो नहीं पी ली?''

लेकिन कुछ जवाब देने की स्थिति में मेगा 325 था ही नहीं. शशांक ने उसे और तेज़ी से गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया था.

'शायद इसकी प्रोग्रामिंग में कुछ गड़बड़ हो गई है. एक बार इसे शट डाउन करके फिर रीस्टार्ट करके देखता हूँ. शायद ठीक हो जाए. नहीं तो रोबोट इंजीनियर से बात करनी पड़ेगी. वही करेगा इसे ऑनलाइन चेक.' सोचते हुए बड़े दादा जी अपने कमरे की तरफ़ चलने लगे - मेगा को कमांड देनेवाला रिमोट लाने के लिए.

रिमोट लेकर वे वापिस ड्राइंगरूम में आए ही थे कि तभी शशांक के दिमाग़ में एक और विचार आया. उसने ज़मीन पर पड़े मनीप्लांट के एक गमले को मेगा 325 के सिर के ऊपर रख दिया. गमले के भार से मेगा 325 जैसे ज़मीन पर बैठने लगा.

यह देखकर शशांक को बड़ा मज़ा आ रहा था. उसे लग रहा था जैसे वह मेगा 325 से अपना अगला-पिछला सारा हिसाब-किताब चुकता कर रहा हो.

'कितना परेशान करता है न मुझे. अब ले मज़ा.' मन ही मन मेगा 325 से कहते हुए शशांक ने गमले को उठाकर नीचे फर्श पर रख दिया.

गमले के अपनेआप मेगा 325 के सिर पर पहुँचने और फिर वापिस ज़मीन पर आने का दृश्य देखकर बड़े दादा जी चौंक पड़े. एक बार तो उन्हें लगा कि वे कहीं कोई सपना तो नहीं देख रहे. उन्होंने अपने हाथ पर चिकोटी काटी और अपनी ज़ुबान को दाँतों के बीच दबाया. इससे उन्हें यह यक़ीन हो गया कि वे सपना नहीं देख रहे, बल्कि यह वास्तविकता है.

बड़े दादा जी को सामने देखकर शशांक के मन में आया कि क्यों न थोड़ी-सी मस्ती उनके साथ भी कर ली जाए.

पहले तो उसने बड़े दादा जी के हाथों से मेगा 325 को कंट्रोल करनेवाला रिमोट ले लिया और उसे मेज़ पर रख दिया. फिर उसके बाद उसने ड्राइंगरूम की दीवार पर लगा टी.वी. चला दिया और फिर कुछ देर बाद बन्द भी कर दिया.

बड़े दादा जी चक्कर में पड़ गए. एकबारगी तो उन्हें यह समझ ही नहीं आया कि आख़िर यह सब हो क्या रहा है.

तभी अचानक उनके दिमाग़ में यह ख़याल आया कि यह कहीं शशांक के पापा के नए आविष्कारवाली गोली का मामला तो नहीं है.

उन्होंने देखा कि टी.वी. का रिमोट जैसे हवा में स्थित था. टी.वी. अपनेआप कभी ऑन हो रहा था और कभी बन्द हो रहा था. उसकी आवाज़ भी अपनेआप ही कभी तेज़ हो जाती और कभी धीमी पड़ जाती.

यह सब देखकर उन्हें लगने लगा कि हो-न-हो यह शशांक के पापा की गोली वाला मामला ही है.

वे तुरन्त अपने कमरे में आए और शशांक के पापा को फोन लगा दिया. उसके बाद सारी बात उन्होंने शशांक के पापा को बता दी.

सारा माजरा सुनकर शशांक के पापा बोले, ''पिछले हफ्ते आपके यहाँ से वापिस मंगल ग्रह आते हुए रास्ते में अपना बैग खोलने पर ही मुझे शक हो गया था कि मेरे बैग को किसी ने छेड़ा है. अब आपकी बातें सुनकर लगता है कि यह सब मेरे नए आविष्कारवाली गोली के कारण ही है.''

''मगर तुम्हारे वाली गोली यहाँ पर किसी के पास कैसे होगी जो वह उसे खाकर अदृश्य हो जाए?'' बड़े दादा जी पूछने लगे.

तभी शशांक के पापा के दिमाग़ में कुछ कौंधा और वे बड़े दादा जी से पूछने लगे, ''शशांक कहाँ है? कहीं यह उसकी कारिस्तानी तो नहीं?''

शशांक के पापा की बात सुनकर बड़े दादा जी सोच में पड़ गए और फिर कहने लगे, ''शशांक कहीं नज़र तो नहीं आया, पर यह हो सकता है कि ये सब शरारतें वही कर रहा हो.''

''मुझे भी यही लग रहा है. वह गोली शायद उसने मेरे बैग में रखी शीशी से किसी तरह निकाल ली होगी. तभी तो मुझे लग रहा था कि मेरे बैग को छेड़ा है किसी ने.'' शशांक के पापा कह रहे थे.

''अब क्या करें राहुल. इसे रोकें कैसे? यह तो दो घंटे तक इसी तरह उत्पात मचाता रहेगा.'' बड़े दादा जी ने चिन्ताभरी आवाज़ में कहा.

''आप चिन्ता न करें दादा जी. आज ही इस गोली का असर ख़त्म करने का एक तरीक़ा मिल गया है.'' शशांक के पापा ने कहा.

''क्या तरीका है, बताओ बेटा जल्दी से.'' बड़े दादा जी अधीरता से बोले.

''अदृश्य कर देनेवाली गोली के आविष्कार पर काम करने के साथ-साथ मैं इस बात पर भी काम कर रहा था कि इसका असर कैसे ख़त्म किया जा सकता है.'' शशांक के पापा बताने लगे.

''तो बताओ न भई जल्दी बताओ, क्या तरीक़ा निकाला है तुमने?'' बड़े दादा जी की अधीरता बढ़ती जा रही थी.

''दादा जी, यह करना है कि कमरे के तापमान को बहुत कम करना है. ग्यारह डिग्री तापमान आते ही शशांक अपने असली रूप में आ जाएगा.'' शशांक के पापा ने बताया.

''पक्की बात है न?'' बड़े दादा जी ने पूछा.

''हाँ-हाँ, बिल्कुल पक्की बात है. हमने ख़ूब एक्सपेरिमेंट्स कर लिए हैं इस बारे में. आप फौरन घर का तापमान बहुत कम कर दें. मैं थोड़ी देर बाद फोन करके आपसे पूछ लूँगा कि शशांक अपने असली रूप में आ गया या नहीं.'' शशांक के पापा कहने लगे.

''ठीक है, मैं घर का तापमान कम करता हूँ.'' कहते हुए बड़े दादा जी ने फोन काट दिया.

*****