Mega 325 - 5 in Hindi Moral Stories by Harish Kumar Amit books and stories PDF | मेगा 325 - 5

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मेगा 325 - 5

मेगा 325

हरीश कुमार 'अमित'

(5)

मंगल ग्रह पर वापिस जाने से पहले मम्मी-पापा बड़े दादा जी के साथ उनके कमरे में चले गए थे - कुछ बातचीत करने के लिए. मेगा 325 भी कहीं इधर-उधर था. अब शशांक उस कमरे में अकेला था जहाँ पर उसके पापा का बैग रखा हुआ था.

अचानक शशांक के दिमाग़ में आया कि अगर उस नए आविष्कार वाली शीशी से वह एकाध गोली निकाल ले तो कैसा रहेगा. शीशी में काफी सारी गोलियाँ थीं - यह बात तो उसे तब ही पता चल गई थी जब पापा ने कुछ देर पहले वह शीशी उसे पकड़ाई थी. एकाध गोली निकाल लेने से पापा को शायद इस बात का पता भी नहीं चलेगा - वह सोच रहा था.

वह कल्पना करने लगा कि वह उस शीशी में से एक गोली निकाल लेता है और उसे कहीं छुपाकर रख देता है. फिर किसी दिन उस गोली को खाकर अदृश्य हो जाता है. उसके बाद बड़े दादू और मेगा 325 उसे सामने न पाकर बड़ा परेशान हो जाते हैं. वह उनकी परेशानी का ख़ूब मज़ा लेता है. अदृश्य होने के कारण वह चीज़ों को इधर-से-उधर रख देता है. कभी टी.वी. चला देता है, कभी बन्द कर देता है. कभी बत्तियाँ बुझाकर कमरों में पूरा अंधेरा कर देता है और कभी घर की एक-एक बत्ती को जलाकर पूरा घर जगमग कर देता है. टी.वी. की आवाज़ कभी बिल्कुल कम और कभी बहुत तेज़ कर देता है.

अपनी कल्पना में इन सारी बातों का मज़ा लेने के बाद वह इधर-उधर देखते हुए पापा के बैग के पास आकर बैठ गया. बैग को खोलकर नए आविष्कार वाली वह शीशी उसने निकाल ली और उसे खोलने की कोशिश करने लगा. उसने अन्दाज़ से पासवर्ड लगाकर उस शीशी को खोलना चाहा, पर वह नहीं ही खुली.

अचानक उसकी नज़र बैग में पड़ी एक डायरी पर पड़ी. उसने शीशी को बैग में रखकर उस डायरी को उठा लिया और उसके पन्ने पलटने लगा. डायरी में लिखी बहुत-सी बातें उसे समझ नहीं आ रही थीं. वह डायरी को बन्द करने ही वाला था कि उसकी नज़र एक पृष्ठ पर पड़ी जिस पर कुछ पासवर्ड लिखे हुए थे.

शशांक ने अन्दाज़ा लगाया कि हो सकता है जो पासवर्ड सबसे बाद में लिखा हुआ हो, वही इस शीशी का हो. पापा ने अभी पिछले दिनों ही तो इस गोली का अविष्कार किया है. उसने बैग में पड़ी शीशी को फिर से उठा लिया और डायरी में लिखे पासवर्ड की मदद से उसे खोलने की कोशिश करने लगा.

उसके अचरज की कोई सीमा न रही जब वह शीशी खुल गई. हैरानी से शशांक का मुँह खुले-का-खुला रह गया.

शशांक ने शीशी से एक गोली निकालकर अपनी कमीज़ की जेब में रख ली और उसके बाद जल्दी-जल्दी शीशी को बन्द करके बैग में वापिस उसी जगह पर रख दिया. पापा की डायरी को भी उसने बैग में बिल्कुल उसी जगह पर रख दिया जहाँ वह पड़ी थी. उसके बाद बैग को बन्द करके वह उठ खड़ा हुआ.

उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था. शीशी से गोली निकालते हुए उसे यही डर लग रहा था कि कहीं कोई उसे ऐसा करते हुए देख न ले. उसने शुक्र मनाया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

उसके बाद वह झटपट अपने कमरे की तरफ़ गया और अपनी मेज़ की दराज़ खोलकर उसने वह गोली वहाँ रख दी. गोली रखते-रखते उसके दिमाग़ में यह बात आई कि इसे कहीं अच्छी तरह छुपाकर रखना चाहिए. उसने इधर-उध नज़र दौड़ाई. संयोग से दवाई की एक खाली शीशी उसे मेज़ पर पड़ी मिल गई. उसने झपटकर उस शीशी को उठाया और उसका ढक्कन खोलकर दराज़ में रखी गोली को शीशी में डाल दिया. फिर शीशी को अच्छी तरह बन्द करके उसे अपनी अलमारी में कपड़ों के पीछे छुपा दिया.

मम्मी-पापा जानेवाले होंगे - यह सोचकर वह अपने कमरे से बाहर निकल गया.

*****