Chhoti si bhool - 1 in Hindi Moral Stories by Vandana Gupta books and stories PDF | छोटी सी भूल ? - 1

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छोटी सी भूल ? - 1

छोटी सी भूल ?

(1)

“ ये कैसे हो सकता है ? नहीं, ये संभव नहीं, वो भी इतने साल बाद ? अपना ही प्रतिरूप. क्या ईश्वर से कोई गलती हो गयी ? एक ही उम्र के तो फिर भी एक जैसे चेहरे देखे जा सकते हैं लेकिन वो भी क्रियाकलाप में एक दूसरे से भिन्न होते हैं. ऐसे ही अपने बच्चे में ऐसा संभव है कि वो अपने पिता का आईना हो और आदतों और व्यवहार में काफी कुछ पिता से मिलता हो लेकिन यहाँ तो दोनों ही संभावनाएं धूमिल होती नज़र आ रही हैं........ एक अलग देश से, एक अलग माहौल से सम्बन्ध रखता है वो जिसका मुझसे तो कोई दूर - दूर तक सम्बन्ध हो नहीं सकता फिर क्यों मैं इतना बेचैन हूँ ? सिर्फ इतना देख कि खुद को ही देख रहा था फ्रेडी के रूप में मेरा इतना हाइपर होना सही नहीं और न ही सोचना. ईश्वर की कुदरत कब क्या गुल खिलाती है कौन जान सकता है.” खुद को तसल्ली देता मयंक सोने की कोशिश करने लगा मगर नींद ने तो आज मानो उससे तलाक ले रखा था.

ख्यालों के भंवर से जितना बचना चाहता, जितना निकलना चाहता उतना ही खुद को घिरा पाता. करवटें लेते - लेते जब बेचैनी हद से गुजर गयी तो उठ खड़ा हुआ और इन्टरनेट खोल कर बैठ गया. एक नया वेब एप्प था जिसने उसकी दुनिया ही बदल दी थी वहां हर वो सुविधा थी जो ख्यालों के घोड़ों पर लगाम लगाने को काफी थी. उसकी जीवन के हर पन्ने की कहानी, हर क्रियाकलाप वहाँ सुरक्षित था. कब सोया, कब जगा, कब काम पर गया, कब नाश्ता किया और कब किससे कहाँ मिला........और स्क्रॉल करते करते वो अपनी ज़िन्दगी के तक़रीबन २०-२२ साल पुराने पन्नों को उलटने लगा तो पूरी ज़िन्दगी उसकी आँखों के आगे नाच उठी. लम्हे जो जाने किस ब्लैक होल में समा गए थे उसके सामने चित्रित हो उठे.

उम्र यही तो थी २४ - २५ साल, जब सारी दुनिया फ़तेह करने की चाहत हुआ करती है तो वो भी उसी चाहत के घोड़े पर तो सवार था. अपनी मर्ज़ी से जीना, जो चाहे करना, एक आज़ाद परिंदे से उड़ते जाना बस उड़ते जाना ही उसका मकसद था और वो उड़ रहा था. कहीं कोई कमी नहीं थी, न कोई बंदिश तो फिर मिलना ही था आसमां.’ कर लूं दुनिया मुट्ठी में ’ का ख्वाब ही जीवन का मूलमंत्र था.

जैसे ही दृश्य देखा जीवंत हो गयीं घटनाएँ और पल जब ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी ने मुझे जॉब ऑफर दी थी जिसमे छह महीने वहीँ रहना था और मैं चल दिया था किला फ़तेह करने. एक नया देश, नया परिवेश बेहद आकर्षक लगा. उस पर मनचाही जॉब तो दिन भर काम और शाम को मस्ती. हमारी चार लड़कों की एक टोली हमेशा इकट्ठे रहती, जो करती इकट्ठे करती, मानो हम चारों चार जिस्म और एक जान हों. वैभव, रितेश, सनी और मैं कभी आउटिंग पर होते तो कभी किसी रेस्तरां में डिनर करते और फिर रात को तो एक - एक गिलास व्हिस्की. रोज का नियम था उसके बाद मूवीज देखना कभी थिएटर में तो कभी अपार्टमेंट में जहाँ हम रहते थे. आहा ! क्या दिन थे वो भी, सोचते - सोचते एक मुस्कराहट मयंक के चेहरे पर उभर आई और वो पल वहीँ ठिठक कर खड़ा हो गया तभी मुस्कान ने करवट बदली और अपने पास मयंक को लेटा नहीं देखा तो उठ बैठी और मयंक के पीछे आकर गले में बाहें डाल दी.

“ क्या हुआ ? अभी तक क्यों जाग रहे हो ? आज तो वैसे ही इतनी देर हो गई थी सोने में ? और फिर आज तो तुम्हें सुकूँ की नींद आनी चाहिए थी आखिर तुम्हारी बरसों की मुराद जो पूरी हो रही है तब भी जागना समझ नहीं आ रहा मयंक “, मयंक के गालों पर किस करते हुए मुस्कान ने कहा.

असहज सा हो उठा मयंक. शायद और कोई वक्त होता तो ऐसा नहीं होता बल्कि यदि मुस्कान का खुद आमंत्रण हो तो वो हमेशा उसको आदर देता था मगर आज चिंता की जाने कितनी काली लकीरों से घिरा था और किसी को कुछ कहना भी नहीं चाहता था आखिर एंजेल की ज़िन्दगी का सवाल जो था इसलिए प्यार से मुस्कान का हाथ हटाते हुए बोला, “ मुस्कान, अभी नींद नहीं आ रही, तुम जाओ सो जाओ मैं कुछ काम देख रहा था.” मगर मुस्कान भी कहाँ टलने वाली थी सो चहक उठी, “ न न, कुछ तो बात है, बताओ जल्दी से, इतना वक्त हो गया तुम्हारे साथ रहते, तुम्हारी एक - एक आदत से परिचित हूँ. बोलो किस बात की टेंशन है ? “

“ क्या फ्रेडी तुम्हें पसंद नहीं”, सोचते हुए और मयंक के चेहरे पर नज़रें गडाते हुए मुस्कान ने पूछा तो मयंक सकपका उठा और ये बात मुस्कान की अनुभवी निगाहों से छुपी नहीं रह सकीं.

“ मुझे लगा ही था क्योंकि कहाँ तो चार दिन से शोर मचा रखा था तुमने कि सब तयारी ठीक से होनी चाहिए, हमारी बेटी की ज़िन्दगी का सवाल है. देखो ये ऑस्ट्रलियन बहुत नाज़ुक होते हैं. घर का कोना - कोना साफ़ होना जरूरी है, इतनी सी भी मिटटी से छींकते फिरेंगे. एक मिनट न खुद चैन से बैठे न किसी को बैठने दिया और जैसे ही फ्रेडी आया उससे मिले उसे देखा तुम्हारे तो चेहरे का रंग ही बिगड़ गया. मयंक मैंने सब देखा और नोटिस भी किया था. तो बताओ सच - सच क्या हुआ अचानक तुम्हें ? “

मयंक आश्चर्य से मुस्कान को देखते हुए बोला, " मुस्कान, तुम व्यर्थ दिमाग लगा रही हो, ऐसा कुछ नहीं है ".

“ देखो मुझे सब पता है कोई तो ऐसी बात है जिसने तुम्हें झकझोरा है और वो बात भी मैं जानती हूँ “ जैसे ही मुस्कान ने कहा मयंक की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं और वो प्रश्नवाचक मुद्रा में उसकी ओर देखने लगा.

“ फ्रेडी का बिलकुल तुम्हारे जैसा चेहरा मोहरा होना यहाँ तक कि चाल ढाल व्यवहार और नेचर सबका मिलना ही तुम्हें बेचैन किये है.........है न ?”

“ हाँ मुस्कान, मुझे समझ नहीं आ रहा ऐसा कैसे संभव है ? एक अजीब सी पहेली बन गया है वो मेरे लिए.”

“अरे, ये संसार जानते हो कितना बड़ा है और सुना है यहाँ एक इंसान के एक जैसे चेहरे वाले सात लोग होते हैं तो होगा ये भी उनमे से एक........इसमें इतना परेशान होने की क्या जरूरत है ?”

“ मानता हूँ मुस्कान एक जैसे सात लोग होते हैं लेकिन उनका व्यवहार उनकी आदतें आदि मिलना महज संयोग नहीं हो सकता. कोई तो कारण होगा. मैं तभी से बेचैन हूँ जब से उससे मिला हूँ, जाने क्यों उसे एक्सेप्ट नहीं कर पा रहा. यूँ लग रहा है मानो कोई भयानक बेबाक सच्चाई है जिससे हम अनभिज्ञ हैं और मैं नहीं चाहता मेरी एंजेल की ज़िन्दगी में कोई विस्फोट हो भविष्य में. बेशक वो उसे पसंद है और उसे एंजेल, दोनों साथ पढ़े हैं और अब साथ ही जॉब भी कर रहे हैं लेकिन फिर भी जाने क्यों मेरे अन्दर एक घबराहट सी बढती जा रही है, कोई अनहोनी हमारे दरवाज़े पर दस्तक देने को खड़ी है, मुस्कान आज के बच्चे तो माता - पिता से पूछना तो दूर बताते भी नहीं सीधे शादी करके ही मिलवाते हैं, ये तो एंजेल को जाने क्या सूझी जो उसने ऐसा किया. मैं उससे कारण जानना चाहता हूँ. तुम सो जाओ, मैं भी सोने की कोशिश करता हूँ, सुबह एंजेल से बात करेंगे”, कह मयंक बिस्तर पर आ गया और लाइट ऑफ कर दी.

अगले दिन ब्रेकफास्ट पर एंजेल उत्साहित हो फिर फ्रेडी की बात करने लगी तो मयंक को बात करने में आसानी हो गयी. वैसे भी आपस में काफी खुलापन था तो बात शुरू करने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं थी फिर भी जब एंजेल ने खुद मौका दिया तो मयंक ने फ़ौरन लपक लिया.

“ एंजेल एक बात बताओ, तुमने जब फ्रेडी को पहली बार देखा तो क्या लगा था तुम्हें ?”

“ डैड, यूँ लगा जैसे आप को यंग ऐज में देख रही होऊं. “

“ तो तुम्हें अजीब सा नहीं लगा ?”

“ हाँ लगा तो मगर धीरे - धीरे मैंने नोटिस किया उसमे तो लगभग सारे ही आपके गुण और अवगुण हैं, यहाँ तक कि कई बार मुझे धोखा हो जाता कि कहीं आप तो नहीं आ गए ऑस्ट्रेलिया. “

“ तो तुमने उसे बताया नहीं मेरे बारे में ?”

“ हाँ बताया भी और दिखाया भी, सिर्फ थोडा सा आपके और उसके रंग में ही अंतर है बाकि तो सब एक जैसा है, उसने कहा था.”

“ तो तुम क्या सोचकर उसकी तरफ बढीं ?”

“ डैड, कैसी बातें कर रहे हैं आप, आई लव हिम.”

“ आई नो माय चाइल्ड, बट, कल जैसे ही मैंने उसे देखा तो मैं कल से ही बहुत अपसेट हूँ इसलिए जानना चाहता हूँ, क्या बताने में भी तुम्हें ऐतराज है ? मैंने कुछ और थोड़े कहा है, अपनी मर्ज़ी थोड़े थोप रहा हूँ तुम पर, इट्स जस्ट ए डिस्कशन “, समझाते हुए मयंक ने कहा तो एंजेल ने समझते हुए जवाब दिया.

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