Zee-Mail Express - 16 in Hindi Fiction Stories by Alka Sinha books and stories PDF | जी-मेल एक्सप्रेस - 16

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जी-मेल एक्सप्रेस - 16

जी-मेल एक्सप्रेस

अलका सिन्हा

16. बीते वक्त का जख्म

लंबे अंतराल के बावजूद दोनों के बीच कोई दूरी नहीं आई थी।

‘‘तुझमें इतना रूखापन क्यों है?’’ क्वीना उसी अंतरंगता के साथ पूछ रही थी, ‘‘क्या तू शुरू से ऐसी ही है?’’

निकिता ने बताया कि एक दिन उसने अपनी मां से किसी को यह कहते सुन लिया था कि उसके जन्म पर निकिता के पापा उसे देखने तक नहीं आए। तब वह बहुत छोटी थी। इतनी छोटी कि उसकी मां ने यह सोचा भी न होगा कि निकिता इन बातों का अर्थ भी समझ सकती थी। मगर निकिता के अबोध मन में एक तरह की उपेक्षा ने घर कर लिया। वह चाहकर भी इस बात को भुला नहीं पाई कि उसका जन्म निरर्थक है, उसकी मौजूदगी अवांछनीय है।

निकिता ने कहा कि जिसे जन्म से ही बेरुखी मिली हो, वह किसी को दे भी क्या सकती है। फिर भी, उसके स्कूल की सहेली विशाखा, उसे हंसाया करती थी, उसे पढ़ने को प्रोत्साहित करती थी।

‘‘उसकी दोस्ती मेरे लिए बहुत बड़ी नियामत थी। उसी की खातिर मैं स्कूल जाती, पढ़ाई-लिखाई करती। धीरे-धीरे मैं भूलने लगी कि मैं एक ‘अनवांटेड चाइल्ड’ हूं। तब तक भाई भी जन्म ले चुका था और अब मां-बाप को इस ओर ध्यान देने की फुरसत नहीं थी कि मैं भी अपना वजूद पहचानने लगी थी।’’

निकिता ने बताया कि उनके घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी, कमी थी तो उस विरासत को हासिल करने वाले वारिस की, जो भाई के आ जाने के बाद दूर हो गई थी।

निकिता अपनी बीती जिंदगी को दोबारा जी रही थी और क्वीना के सामने अपने भीतर की वो ग्रंथियां खोल रही थी, जो उसने कभी अपने सामने भी नहीं खोली थीं।

‘‘घर में रखी कई चीजों की तरह मेरी भी देखभाल होती रही और धीरे-धीरे मैं विशाखा के अलावा सब कुछ भूलने लगी। विशाखा तेरी ही तरह बिंदास थी। खूब मस्त, हर पल को जीने वाली, हमेशा हंसने वाली। उसका परिवार ही ऐसा था। उसके पापा बैंक में मैनेजर थे। अनेक सीमितताओं वाले उस घर में मुझे असीमित खुशियां मिलतीं। विशाखा अकसर मुझसे नाराज हो जाती कि मैं इतना कम क्यों बोलती हूं, मैं अपने मन की बात कहती क्यों नहीं।

आखिर एक रोज मैंने खूब सोच-विचारकर उसके नाम एक पत्र लिखा। लिखा कि विशाखा का मेरी जिंदगी में क्या अर्थ है, लिखा कि विशाखा हंसती है तो फूल झरते हैं... कि उसे याद कर मैं भी हंसती हूं... कभी-कभी एकांत में, शीशे के सामने बैठकर... तब एक विशाखा मेरे भीतर से बाहर निकलने लगती है, मैं खुद को पहचानने लगती हूं... खुद पर रीझने लगती हूं...’’

क्वीना ने लिखा है कि निकिता के चेहरे पर एक प्यारी-सी चमक उतरने लगी थी, हल्की-सी खुमारी के साथ वह क्वीना की उंगली थामे उसे अपनी जिंदगी की रूमानी शामों में लिए जा रही थी।

निकिता बता रही थी कि पत्र तो उसने लिख लिया, मगर देते हुए बहुत संकोच हुआ।

‘‘हाथ बस्ते में जाता, पत्र को टटोलता, फिर खाली लौट आता। विशाखा मुझे खूब अच्छी तरह पहचानती थी, उसने नोट कर लिया। ‘क्या है तेरे बस्ते में?’ विशाखा ने पूछा था।”

क्वीना देख रही थी, निकिता का चेहरा अभी भी लाल हुए जा रहा था। निकिता ने उसे बताया कि विशाखा को लिखे पत्र के बारे में बताने पर विशाखा खिलखिला कर हंसने लगी, ‘तू तो ऐसे शरमा रही है जैसे लव लेटर लिखा हो।’ उसकी झिझक को दूर करते हुए विशाखा ने उसे आश्वस्त किया, ‘चल ठीक है, कल मैं भी तेरे लिए लव लेटर लिखकर लाऊंगी, फिर दोनों एक साथ, एक-दूसरे को देंगे।’

यह सब बताते हुए निकिता का उल्लास देखने लायक था।

वह अपने बेहतरीन पलों को जी रही थी।

हल्का-सा सुरूर इस खुशी को और बढ़ा रहा था।

क्वीना लिखती है कि आज वह महसूस कर रही थी कि पीने से ज्यादा खुशी पिलाने में होती है।

निकिता अपने आप में डूबी हुई थी, दीन-दुनिया से बेखबर... जैसे वह अपने आप से ही बात कर रही थी।

‘‘मैं खुश हो गई, मेरे मन का संकोच भी दूर हो गया। मगर मेरी किस्मत में इतनी खुशी कहां लिखी थी...’’ निकिता की आंखों से आंसू बह निकले।

निकिता ने सुबकते हुए बताया कि उस दिन घर जाते हुए जब विशाखा सड़क पार कर रही थी तब उसके सामने ही एक ट्रक लाल बत्ती लांघकर विशाखा को कुचलता हुआ निकल गया।

निकिता की एकमात्र सहेली ने उसकी आंखों के आगे ही दम तोड़ दिया।

निकिता यह सदमा बरदाश्त नहीं कर सकी। वह गहरे डिप्रेशन में चली गई। हां, उस वक्त उसने अपनी मां की आंखों में अपने लिए गहरी चिंता और घोर बेचैनी देखी। मां उसे लेकर डॉक्टरों के चक्कर लगाने लगी।

मां हर उस सामान को छुपाती फिरती, जिससे विशाखा की याद जुड़ी थी। मगर क्या-क्या छुपाती, और कहां-कहां छुपाती, वह तो निकिता के पोर-पोर में समाई थी।

डॉक्टर ने सलाह दी कि वे उसे कुछ समय के लिए कहीं और ले जाएं, किसी दूसरे शहर, जिससे माहौल बदल सके। मां ने पापा को कहीं बाहर चलने के लिए राजी करने की भरसक कोशिश की, मगर निकिता के पापा अपना काम छोड़कर कहीं जाने को तैयार न थे।

निकिता ने कहा कि उसके पापा अपनी जायदाद में से भले ही कुछ हिस्सा निकिता के लिए निकाल देते, मगर उनके समय में निकिता के लिए कोई हिस्सा नहीं था।

आखिर निकिता की मां ने दूसरा रास्ता निकाला।

उन्होंने निकिता को अपनी बड़ी बहन के पास सहारनपुर भेज दिया। उन दिनों निकिता की मौसी की बेटी भी वहीं थी, अपने पति और नवजात बच्चे के साथ।

क्वीना ने लिखा है कि निकिता यह सब बताते हुए फिर से डिप्रेशन में जाने लगी।

क्वीना डर गई कि कहीं नशा ज्यादा ही न हो जाए। वैसे भी, जो कभी न पीता हो, उसके लिए इतना भी उसके आपे से बाहर कर देने के लिए काफी था।

‘‘जो बीत गया, उसे भूल जा। विशाखा तुझे खुश देखना चाहती थी, तेरी उदासी उसकी आत्मा को तकलीफ देगी...।’’ क्वीना उसे समझाते हुए रेस्तरां से बाहर ले आई।

निकिता की आवाज बहक रही थी, उस पर मदहोशी छाती जा रही थी। क्वीना उसे उसके घर तक छोड़ने गई।

क्वीना ने लिखा है कि अंधेरे में डूबा निकिता का यह फ्लैट आज बड़ा रहस्यमय लग रहा था।

निकिता ने कमरे का ताला खोलना चाहा, मगर उसके हाथ लड़खड़ा रहे थे। क्वीना ने निकिता से चाबी लेकर दरवाजा खोला और उसे भीतर ले आई।

क्वीना चाहती थी कि निकिता की खुमारी नींद में खो जाए और जागने तक उसका नशा पूरी तरह उतर जाए।

उसे कमरे में छोड़कर वह निकलने लगी कि निकिता ने जल्दी से कुंडी चढ़ा दी। खिड़कियां तो पहले ही बंद थीं, उनके परदे और भी ठीक से ढक दिए।

निकिता कुछ डरी हुई लग रही थी, ऐसे में उसे अकेले छोड़ना क्वीना को ठीक नहीं लगा, वह कुछ और देर वहीं ठहर गई। उसने महसूस किया, खौफ का एक रहस्यमयी साया निकिता पर हावी होता जा रहा है। निकिता सतर्क निगाहों से कभी बंद खिड़कियों को देखती तो कभी दरवाजों को। बालकनी के जंगले की तरफ देखते हुए निकिता सिहर उठी, जैसे कोई इस राह से भीतर घुस आएगा।

‘‘क्यों चिंता करती है, मैं हूं न तेरे साथ।’’ क्वीना ने उसे हिम्मत बंधाई।

मगर निकिता अजीब नजरों से उसे घूर रही थी, जैसे उसे पहचानती ही न हो, या फिर उसके चेहरे में किसी और को पहचानने की कोशिश कर रही हो।

निकिता का चेहरा बदलता जा रहा था, जैसे उसमें कोई दूसरी ही आत्मा प्रवेश कर रही हो...

क्वीना लिखती है कि उस पल निकिता का चेहरा बड़ा अस्वाभाविक और भयावह लग रहा था। इतना भयावह कि क्वीना खुद को कमरे में बंद पाकर डर-सा महसूस करने लगी थी।

कितनी अजीब बात है, व्यक्ति डरकर किवाड़-खिड़कियां बंद कर देता है... दुनिया-जहान से भागकर कमरे की चारदीवारी में सुरक्षित हो जाता है, मगर जब खुद को बंद पाकर भय महसूस होने लगे, तब कोई क्या करे! डर दरअसल कहीं अपने भीतर ही समाया होता है और जब नितांत एकांत में वह बाहर निकलता है तब व्यक्ति अपने ही आपसे भयभीत हो उठता है, मगर फिर वह अपने आपसे भागकर जाए भी तो कहां?

क्वीना निकिता के चेहरे पर उभरती दर्द और निराशा की लकीरों की चश्मदीद गवाह थी।

‘‘क्या हुआ निकिता? ऐसे क्यों देख रही है?’’

क्वीना पछता रही थी कि क्यों उसने निकिता को अपना गिलास लेने दिया, उसे निकिता को संभालना होगा।

मगर वह निकिता को क्या संभालती जबकि उसके अचानक हमला बोल देने से क्वीना खुद को ही नहीं संभाल पाई थी।

‘‘तुम क्यों आए हो यहां?’’ निकिता की सांस फूलने लगी थी और जबान लड़खड़ा रही थी, ‘‘खबरदार जो मुझे हाथ लगाया... छोड़ दो मुझे... छोड़ दो... मौसीsss... मौसीsss...’’ वह पूरी ताकत से पुकार रही थी।

क्वीना स्तब्ध थी।

निकिता को जैसे दौरा पड़ गया था।

क्वीना ने निकिता को समझाना चाहा तो निकिता ने क्वीना का हाथ जोर से झटक दिया, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई मुझे हाथ लगाने की, मैं तुम्हारा खून कर दूंगी...’’ वह चीखना चाह रही थी, मगर आवाज गले में ही घुटकर टूट रही थी, जैसा अकसर सपने में चीखते हुए होता है।

क्वीना लिखती है कि यह सब देखकर उसे घबराहट तो बहुत हुई, मगर उसने हिम्मत से काम लिया।

इतना तो वह अब तक समझ ही चुकी थी कि यह निकिता के जीवन का दूसरा अध्याय था जिसका दबाव अभी भी उसके मन पर बना हुआ था। एक सहज जीवन जीने के लिए निकिता के मन से इस दबाव का दूर किया जाना जरूरी था।

कुछ सोचकर क्वीना ने बिस्तर पर पड़ा तकिया उठाकर अपने सामने रख लिया और निकिता को उकसाया कि वह अपने मन की भड़ास निकाल ले।

बस फिर क्या था, निकिता आपे से बाहर हो गई, ‘‘मैं तेरा खून पी जाऊंगी, तूने मुझे हाथ कैसे लगाया?’’

धमाधम... धमाधम... निकिता जैसे तकिये को नहीं, उस शख्स को धुने जा रही हो...

जैसे वह उसका नामोनिशान मिटा देना चाहती हो...

कुछ देर बाद निकिता थकने लगी।

क्वीना ने तय किया कि यही वक्त है जब उसके भीतर के डर को सदा के लिए खत्म किया जा सकता है।

उसने खुद को उस अनदेखे शख्स की भूमिका में प्रस्तुत कर निकिता से क्षमा याचना की, ‘‘मुझे माफ कर दो निकिता, मुझे माफ कर दो, मैं बहुत शर्मिंदा हूं खुद पर... दोबारा ऐसा कभी नहीं होगा। मैं जा रहा हूं... हमेशा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर जा रहा हूं। अगर तुमने माफ नहीं किया तो मुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी...’’

क्वीना धीरे-धीरे संवाद बोल रही थी और महसूस कर रही थी कि निकिता के चेहरे पर सुकून उतरता जा रहा था। उसका आक्रोश शिथिल पड़ता जा रहा था। देखते-ही-देखते वह निढाल होकर बिस्तर पर पड़ गई... नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया...

क्वीना लिखती है, पूरी रात वह उसके सिरहाने बैठी रही और महसूस करती रही कि जबरन और अस्वाभाविक संबंधों की पकड़ मन पर कितनी भयानक छाप छोड़ती है। ऐसे संबंध व्यक्ति की निजता पर हावी हो जाते हैं और व्यक्ति खुद भी अपने असल से अपरिचित रह जाता है। निकिता के भीतर का रूखापन, उससे उपजी उपेक्षा और जिद, आज एक नई तरह से क्वीना के सामने खड़ी थी और क्वीना बचने के बदले उनका मुकाबला कर रही थी।

क्वीना महसूस कर रही थी कि निकिता की जिंदगी में अपनेपन की कितनी कमी है। निकिता की बेरुखी, उसका अब तक का व्यवहार, उसके लिए प्यार की मांग कर रहा था। क्वीना को पूरा भरोसा था कि आज का दिन निकिता की जिंदगी को नए अर्थ देगा। वह इस अंधेरे से बाहर निकलेगी और नई सुबह का उजाला उसकी जिंदगी को उजास से भर देगा।

सुबह की पौ फटने वाली थी। क्वीना निकिता के उज्ज्वल भविष्य की अनंत कामनाओं के साथ, उसके जगने से पहले उसके फ्लैट से बाहर निकल आई।

(अगले अंक में जारी....)