Aaghaat - 32 in Hindi Women Focused by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आघात - 32

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आघात - 32

आघात

डॉ. कविता त्यागी

32

उस दिन प्रियांश और सुधांशु के विद्यालय का अवकाश था । उन दोनों ने पिता के सकारात्मक व्यवहारों से प्रभावित होकर तथा पूर्व में दिये गये पिता के वचन की याद दिलाकर अपने मम्मी-पापा के साथ छुट्टी मनाने के लिए पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम बनाया था । रणवीर ने भी इस कार्यक्रम में कोई आपत्ति नहीं की। अतः पूजा पिकनिक पर जाने की तैयारियों में जुट गयी और बच्चे भी प्रसन्नतापूर्वक तैयार होने लगे।

पूजा पिकनिक के लिए सामान व्यवस्थित कर रही थी और रणवीर स्नान कर रहा था, तभी उसके मोबाइल की घंटी घनघना उठी। कई बार घंटी बजने के पश्चात् पूजा ने रिसीव करना उचित समझा और फोन रिसीव कर लिया। पूजा ने जैसे ही हैलो-कहा, दूसरी ओर से सम्पर्क कट गया। सम्पर्क कटने पर पूजा ने रिसीव नम्बर पर अपनी दृष्टि डाली, तो वह हतप्रभ रह गयी। रिसीव नम्बर ‘प्राइवेट नम्बर’ नाम से सुरक्षित था । उस नम्बर को देखकर पूजा के चित्त में व्याकुलता हो गयी। उसने सोचा कि प्राइवेट नम्बर के विषय में रणवीर से जानकारी करे । फिर कुछ सोचकर उसने अपनी जिज्ञासा को छिपा लिया और अपने काम में व्यस्त दिखने का प्रयास करने लगी ।

पाँच मिनट पश्चात् पुनः रणवीर के मोबाइल की घंटी बजने लगी । पूजा ने यह देखकर कि इस बार भी उसी नम्बर से कॉल आयी है, जिस नम्बर से अभी पाँच मिनट पूर्व आयी थी, उसे अनदेखा कर दिया और पुनः अपने कार्य में व्यस्त दिखने का प्रयास करने लगी। मोबाइल की घंटी बजकर एक बार बन्द होकर पुनः बजने लगी थी, तब तक रणवीर कमरे में आ गया। पूजा को अपने कार्य में व्यस्त पाकर रणवीर ने अनुमान लगाया कि वह अपने कार्य की व्यस्तता के कारण मोबाइल की घंटी नहीं सुन सकी है । रणवीर ने एक बार पूजा की ओर देखकर, जैसे कि यह निश्चय कर लेना चाहता था कि पूजा उस कॉल से पूर्णतः अनभिज्ञ है, कॉल रिसीव कर ली और हैलो कहते हुए कमरे से बाहर निकल गया। दस मिनट तक मोबाइल पर बातें करने के पश्चात रणवीर ने कमरे में आकर कहा -

‘‘पूजा कितना समय और लगेगा घर से निकलने में ?’’

पूजा ने रणवीर के प्रश्न का तुरन्त कोई उत्तर नहीं दिया। उसके हृदय पर आज फिर एक अनचाहे सन्देह ने अपना प्रभुत्व स्थापित करके विकल कर दिया था। उसको विश्वास था कि वह प्राइवेट नम्बर वाणी का था । उसके इसी विश्वास ने तथा रणवीर के प्रति संचित अविश्वास ने पूजा को अति व्यथित कर दिया। वह सोचने लगी -

‘‘आज सुबह से ही दोनों बच्चे बहुत प्रसन्न है और प्रातः शीघ्र उठकर पिकनिक पर जाने के लिए तैयारी करने लगे थे । वे मधूर कल्पनाएँ करने लगे थे, क्योंकि बहुत समय के पश्चात् पूरा परिवार एक साथ प्रसन्नतापूर्वक कहीं घूमने जा रहा था। परन्तु क्या रणवीर पूरे तन-मन से बच्चों के साथ आनन्द और मौज-मस्ती कर सकेगा ? यदि वाणी का इसी प्रकार बार-बार फोन आता रहा, तो बच्चे अपने पिता के साथ पूर्ण आनन्द तथा मौज-मस्ती कैसे कर सकेंगे ? किन्तु इस समय क्या किया जा सकता है ? रणवीर से इस विषय में कोई बात करना भी तो उचित नहीं है ! यदि इस विषय में रणवीर से इस समय बात की जाएगी, तो समस्या का समाधन होना तो सम्भव नहीं है, इसके विपरीत घर का वातावरण तनावपूर्ण हो जाएगा ! ऐसा होने पर बच्चों के पिकनिक का कार्यक्रम रद्द हो जाएगा, वे मायूस हो जाएँगे ! वर्षों के पश्चात् इन्हें आज अपने माता-पिता के साथ कहीं जाने का अवसर मिला है, मैं इनसे इस अवसर को नहीं छीन सकती ! आखिर मैं इन दोनों की माँ हूँ !’’ इस प्रकार के विचार पूजा के मस्तिष्क में निरन्तर उभर रहे थे।

पूजा किसी भी मूल्य पर अपने बच्चों को प्रसन्न और प्रपफुल्लित देखना चाहती थी। बच्चों के सुख में उसे सुख मिलता था और बच्चों के दुःखी होने पर उसे कष्ट होता था । इसलिए आज वह किसी भी अप्रिय विषय पर सोचना नहीं चाहती थी और अपने अविश्वास और सन्देह को छिपाकर मधुर-सामान्य व्यवहार करते हुए अपने संकल्प पर दृढ़ रहना चाहती थी। अगले ही क्षण वह सोचने लगी -

‘‘रणवीर का यह रूप भी तो सहज स्वीकार्य नहीं है ! रणवीर के जो प्रेम, समय और धन उसके परिवार के लिए होना चाहिए, उसका उपयोग कोई दूसरा करे और मेरे बच्चे अपने पिता के स्नेह, पिता के समय और पिता के धन का उपयोग करने से वंचित होकर अपने अनमोल बचपन का आनन्द नहीं ले सकें, यह मैं सहन नहीं करूँगी ! मुझे चुपचाप यह सब सहन नहीं करना चाहिए ! वाणी के साथ सम्बन्ध के विषय में मुझे रणवीर से बात करनी ही पडे़गी ! करनी ही चाहिए ! इस प्रकार का द्विधा-जीवन अब मैं नहीं जी सकती ! न ही मैं रणवीर को जीने दूँगी ! उसे यह स्पष्ट बताना ही होगा कि आखिर वह क्या चाहता है ? परन्तु इस समय ये सब बातें करना उचित होगा ?’’

अपने मनोमस्तिष्क में चलने वाले अन्तर्द्वन्द्व के कारण उस समय पूजा अपने बाह्य परिवेश के प्रति पूर्णरूपेण चेतनाशून्य हो गयी थी । उसके चित्त को अन्यत्र विचरते देखकर रणवीर ने कहा -

‘‘पूजा ! कहाँ खो गयी हो तुम ? अरे, भई अभी तो घर से निकले भी नहीं हैं ! लगता हैं कि तुम निकलने से पहले ही घर में बैठी-बैठी सब जगह अकेली सैर कर आयी हो ! जरा हमें भी तो बताओं, कहाँ-कहाँ की सैर की है ?

‘‘हँ-अँ ... नहीं, कुछ नहीं ! किसका फोन था ?’’

‘‘कोई खास नहीं था । बस यूँ ही एक मित्र ने फोन किया था !’’

‘‘कोई ऐसा महत्वपूर्ण कार्य तो नहीं था, जो आपके पिकनिक पर जाने के कारण बिगड़ जाए ?’’

‘‘नहीं-नहीं, उसने तो बस आज के कार्यक्रम के बारे में जानने के लिए फोन कर लिया था कि यदि मेरा अपना कोई कार्यक्रम न होता, तो उसके साथ कहीं घूमने के लिए चला जाता ! पर, आज मेरा कार्यक्रम तुम सबके साथ है, तो.........!’’

रणवीर के उत्तर ने पूजा की व्यथा को और अधिक बढ़ा दिया था। वह प्रत्युत्तर में बहुत कुछ कहना चाहती थी, किन्तु केवल इतना ही कहा -

‘‘तो आप उसके साथ चले जाइये ! आज पिकनिक पर नहीं जाएँगे, फिर किसी दिन .........!’’

‘‘नहीं-नहीं, उसके साथ तो मैं अक्सर जाता ही रहता हूँ ! आज तुम सबके साथ अपने परिवार के साथ रहकर छुट्टी का आनन्द लूँगा ! वैसे भी, जब से पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम बना है, तुम, प्रियांश और सुधांशु बहुत प्रसन्न हो ! ....... आज सब एक साथ मिलकर इतनी मस्ती करेंगे कि बच्चे सदैव याद रखेंगे, इस दिन को ! और तुम भी कभी नहीं भूल पाओगी, आज के पिकनिक को !’’

रणवीर एक लय में कहता रहा । पूजा उन बातों को सुनकर इतनी व्यथित हो रही थी कि अपनी व्यथा और क्रोध को दबाने-छिपाने के प्रयास में अपना ओंठ चबाने लगी। उस समय अपने बच्चों के हितार्थ वह कुछ नहीं बोली, परन्तु पति के मिथ्या वचनों से वह इतनी आहत थी कि एक क्षण भी पति के सान्निध्य में व्यतीत करना उसको घाव पर नमक के समान कष्टदायक प्रतीत हो रहा था। फिर भी, अपनी पीड़ा को छिपाकर वह बच्चों के साथ चलने को तैयार थी और बहुत प्रयत्न करके स्वयं को सामान्य रखते हुए सामान्य व्यवहार कर रही थी।

पिकनिक पर जाने की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थी । पूरा परिवार घर से निकलने वाला ही था, तभी पुनः रणवीर का मोबाइल बज उठा । रणवीर ने जेब से मोबाइल निकाला और नम्बर देखकर सम्पर्क काट दिया। सम्पर्क कटने के एक क्षण पश्चात् पुनः घण्टी बजने लगी । इस बार रणवीर ने एक बार मोबाइल में नम्बर देखा और फिर पूजा के चेहरे पर दृष्टि डालकर उसके अन्तर्मन के भावों को पढ़ने का प्रयास करने लगा। रणवीर की दृष्टि का अध्ययन करके पूजा को पूर्ण विश्वास हो गया था कि फोन वाणी की ओर से आया है, इसलिए रणवीर कॉल रिसीव करने में संकोच कर रहा है । अपने विश्वास को और अधिक पुष्ट करने के लिए पूजा ने रणवीर से कहा -

‘‘रिसीव क्यो नहीं किया ? हो सकता है, किसी ने अत्यावश्यक सूचना देने या लेने के लिए फोन किया हो !’’

‘‘हाँ, रिसीव कर लेना चाहिए ! मैंने सोचा था, हमारे इतने महत्वपूर्ण समय पर व्यर्थ में ही कोई डिस्टर्ब कर रहा है ! लेकिन तुम ठीक कह रही हो, हो सकता है, किसी ने महत्वपूर्ण सूचना देने के लिए ......!’’ यह कहते हुए रणवीर ने परिवार से थोडा सा अलग होकर फोन रिसीव कर लिया और बातें करने लगा। पूजा उस कॉल के विषय में जानना चाहती थी, इसलिए बच्चों को वहीं खड़ा छोड़कर वह भी अन्दर चली गयी और छिपकर रणवीर की बातें सुनने लगी । रणवीर का वार्तालाप सुनकर पूजा को निश्चय हो गया कि मोबाइल पर आने वाली वह कॉल वाणी की ही थी । अपने इस विश्वास के साथ पूजा व्यथा से भर गयी, लेकिन अपनी पीड़ा को छिपाते हुए वह रणवीर के बाहर आने से पहले बाहर लौट आयी और वहीं खड़ी हो गयी, जहाँ रणवीर के मोबाइल पर कॉल आने के पहले खड़ी थी। जब पूजा वहाँ आकर खड़ी हुई थी, उसके कछ क्षण पश्चात् ही वहाँ रणवीर आया और बोला -

‘‘सॉरी पूजा! आज हमें पिकनिक का कार्यक्रम रद्द करना पडेगा ! आज मुझे इसी समय एक आवश्यक कार्य के लिए जाना पडे़गा !’’

पूजा से सॉरी बोलने के बाद रणवीर प्रियांश और सुधांशु की ओर घूमा -

‘‘सॉरी बेटा, मैने आज का दिन तुम सबके साथ मस्ती करते हुए गुजारने का प्रॉमिस किया था, पर मैं विवश हूँ ! कार्य इतना आवश्यक है कि मुझे तुरन्त जाना पडे़गा !.... लेकिन मैं वादा करता हूँ, अगले रविवार को हम अवश्य ही चलेंगे !’’

‘‘पापा, वादा तो आपने आज के लिए भी किया था ! इस बात की क्या गांरटी है कि अगले रविवार को आपको कोई आवश्यक कार्य नहीं होगा ! आपको सदैव कोई न कोई आवश्यक कार्य होता है !’’ प्रियांश ने मायूस होकर कहा।

अब तक पूजा अपने मनोभावों को दबाकर सामान्य रहने का प्रयत्न कर रही थी । अब तक वह चुप थी, क्योंकि वह बच्चों को वर्षों बाद मिले मौज मस्ती के अवसर को खोना नहीं चाहती थी । वह नहीं चाहती थी कि अपने बच्चों के सुख में वह किसी प्रकार भी बाधक बने या ऐसे अवसर पर उसके कारण परिवार का वातावरण नकारात्मक बने। किन्तु, अब उसके पास चुप रहने का कोई कारण नहीं था । अब वह अपने मन में दबाकर रखी गयी सारी भावनाओं को, सारे क्रोध को, अविश्वास को और सन्देह को व्यक्त कर देना चाहती थी और वाणी के विषय में रणवीर से खुलकर बात करना चाहती थी। पूजा अपने बच्चों की उपस्थिति में इस विषय पर रणवीर से बातें नहीं करना चाहती थी । अतः उसने दोनों बेटों को उनके मित्रों के साथ खेलने का निर्देश देते हुए बाहर भेज दिया और उसके बाद रणवीर से बोली -

‘‘मैं जानती हूँ, तुम्हें किस आवश्यक कार्य के लिए कहाँ जाना है ?’’

‘‘तुम कुछ नहीं जानती !’’

‘‘यह तुम्हारा भ्रम है कि मैं कुछ नहीं जानती हूँ ! लेकिन मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ ज्ञात है । यह भी कि अब से कुछ समय पहले, जब तुम स्नान करके बाहर आये थे, तुम्हारे मोबाइल पर वाणी की कॉल आयी थी ! मुझे यह भी ज्ञात है कि तुम अब भी उसी से बात कर रहे थे ! आज पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम रद्द करने में भी उसी की भूमिका है, भले ही अप्रत्यक्ष रूप से ही क्यों न हो !’’

‘‘अप्रत्यक्ष नहीं, प्रत्यक्ष रूप से उसी की भूमिका है ! लेकिन, पूजा, तुम्हें केवल आधी बात ज्ञात है। पूरी बात तुम्हें आज मैं बताता हूँ ! वैसे भी, मैं यह नहीं चाहता हूँ कि मेरे विषय में कोई भी बात तुम्हें किसी तीसरे व्यक्ति से पता चले !’’

‘‘अपने घटिया चरित्र पर आवरण डालने के लिए अब कौन-सी नई कहानी गढ़कर सुनाओगे ! .... और कब तक आवरण डालते रहोगे मेरे साथ किये छल पर ?’’

‘‘तीन महीने से चाहते हुए भी मैं तुम्हें बता नहीं सका था और आज मैं कोई भी आवरण डालना नहीं चाहता, बल्कि आवरण, जो मेरी गलती से पड़ा था, उसको उतारना चाहता हूँ ! बस, मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे एक बार धैर्य रखकर सुन लो !’’

‘‘सुनाइये, क्या सुनाना चाहते हैं ?’’

‘‘पूजा, तुम जानती हो कि वाणी मेरी घनिष्ठ मित्र थी । वह मेरा प्रथम प्रणय भी थी । उसने मुझे छोड़कर किसी अन्य के साथ विवाह कर लिया था, किन्तु मेरा प्रेम उसके प्रति सच्चा था एकनिष्ठ था, जिसे मेरे हृदय से पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता ! मेरे कहने का आशय है कि मेरे हृदय में आज भी उसके प्रति सद्भाव है ! तुम मेरी स्थिति को भली-भाँति समझ सकती हो ! पूजा ! तुम मुझे समझ सकती हो न ?..

‘‘तुम कहते रहो ! अब मैं तुम्हें भली-भाँति समझती हूँ !’’

‘‘पूजा, आज से लगभग तीन महीने पूर्व वाणी के पति का देहान्त हो गया था। पति की मृत्यु होते ही उसके ऊपर विपत्तियों का पहाड़-सा टूट पड़ा और वह बेचारी असहाय हो गयी। इस समय उसको एक ऐसे अवलम्ब की आवश्यकता थी, जिस पर वह पूरा विश्वास कर सके। मुझ पर वह पूर्ण विश्वास करती थी, इसलिए उसने मुझसे सहायता माँगी और मैं इन्कार नहीं कर सका !’’

‘‘तुम पर वह विश्वास करती है ? यदि यह सच है, तो तुम्हें छोड़कर किसी अन्य के साथ विवाह क्यों किया था उसने ?’’

‘‘पूजा, तब वह पैसे के पीछे पागल थी ! वह लड़का .....!’’ पूजा ने रणवीर का वाक्य बीच में काट दिया और उपेक्षापूर्ण व्यंगात्मक स्वर में बोली -

‘‘वह आज भी पैसे के लिए पागल है ! और तुम ? तुम पैसे के पीछे पागल लड़की के लिए अंधे होकर अपने परिवार, अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़कर उसके आगे-पीछे लगे फिरते रहते हो !’’

‘‘पूजा ! प्लीज, एक बार मुझे सुन लो ! बस एक बार ! मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ, कह लेने दो ! तुम्हारे सामने अपने मन की बात कहकर मेरे मन पर पड़ा हुआ सारा बोझ हल्का हो जाएगा ! मुझे थोड़ी-सी राहत मिल जाएगी !’’

‘‘कहो ! तुम अपने मन का बोझ हल्का करो !’’

इस सस्वर संवाद के पश्चात् पूजा ने अपने मन ही मन में कहा - ‘‘रणवीर, तुम कितने संवेदनाहीन हो ! अपने मन का बोझ उतारने के बहाने से मेरे मनोमस्तिष्क पर तुम कितना असह्य बोझ डाल रहे हो ? मुझे नहीं पता कि तुम्हें इसका अनुमान भी है या नहीं !’’

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com