Shaktila in Hindi Motivational Stories by Meenakshi Singh books and stories PDF | शक्तिला

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शक्तिला


आज पूरी रात ठीक से सो नहीं पाई शक्तिला, नींद आती भी कैसे ! हंसती खिलखिलाती, जीवन के उमंगों से भरपूर, वह मासूम सी लड़की कब बचपन की दहलीज लांघ कर, यौवन की सपनीली दुनिया में प्रवेश कर गई,उसे खुद भी खबर नहीं हो पाती अगर अमिताभ सर ने अपना रंग नहीं दिखाया होता।सात दिन इसी कशमकश में गुजारी उसने, द्वंद्व के समंदर में फंसकर नींद तो जैसे उससे रूठ ही चुकी थी।
माँ, जो उसके चेहरे से उसके मन को समझती है कि उनकी गुड़िया परेशान है, बार - बार पूछती रही, "कुछ तो हुआ है शक्तिला,आजकल इतनी गुमसुम सी क्यों रहती हो ?"
वो क्या जबाब देती उनको, कैसे बताती कि जिस अमिताभ सर को वो पिता तुल्य मानती थी, वो तो इंसान कहलाने के लायक भी नहीं ! उसने सोच लिया था कि वो आज की लड़की है, अपनी समस्या का समाधान खुद करेगी।जब उसने गलती ही नही की ती फिर बदनामी से क्यों डरे !
माता - पिता की इकलौती संतान शक्तिला को कुदरत ने खुले हाथ सौंदर्य प्रदान की।माँ अक्सर कहती है, मेरी बेटी साक्षात दुर्गा का रूप है।इसी कारण उसका नाम भी शक्तिला रखा गया।उसपर हर रंग खिलता था, पर खासकर उजले वस्त्र में वह सौंदर्य और सौम्यता की साक्षात देवी लगती थी।

बीतते वक्त के साथ वह बड़ी होती गई और एक्कीस साल की उम्र में प्रथम श्रेणी में स्नातक उत्तीर्ण कर स्नातकोत्तर में नामांकन करवाया।यहां आकर्षक व्यक्तित्व और विद्वता के प्रतिमूर्ति अमिताभ सर उसके आदर्श थे। शक्तिला माँ से कह चुकी थी, "माँ एम. ए. का रिजल्ट आने पर मैं अमिताभ सर की निगरानी में पी. एच. डी. करूंगी। बहुत अच्छी तरह समझाते हैं वो,फिर नेट की परीक्षा उत्तीर्ण कर व्याख्याता बनुंगी और तब माँ उसकी ये कहकर माथे चुम्बन लेती कि नजर न लगे किसी की मेरी गुड़िया को।
समय बीतता रहा और उस दिन क्लास लेकर निकलते समय अमिताभ सर शक्तिला को ये कहकर निकले कि सारे पीरियड खत्म हो जाने पर तुम केबिन में आना,कुछ काम है ! शक्तिला ने जब उनके केबिन में कदम रखा तो अमिताभ सर अमृता प्रीतम की "रसीदी टिकट" पढ़ रहे थे।उसे उन्होंने साइड में रखकर एक भरपूर नजर शक्तिला पर डाली और बैठने का इशारा किया।एक गहरी सांस लेकर बोले, "बहुत दिनों से तुमसे कहना चाह रहा था शक्तिला, सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हो तुम, प्यार करता हूँ मैं तुमसे और शादी भी करना चाहता हूँ।"
उफ्फ, ये क्या सुना शक्तिला ने,पिता तुल्य अमिताभ सर, उम्र करीब चालीस साल, अविवाहित,रसिक मिजाजी के ढ़ेरों किस्से और हर बार उनका ये कहकर टाल जाना कि सफल और सुंदर इंसान के पीछे ढ़ेरों अफवाह होते ही हैं।दूसरी ओर ये एक्कीस साल की शक्तिला, उसने भी तो यही सोचा था कि सारी कही सुनी बातें अफवाह होंगी पर आज उसकी धारणा के चिथड़े उड़ रहे थे।
कल तो हद ही कर दी उन्होंने, घर पर फोन कर दिया।माँ ने फोन उठाया,बात करने के बाद शक्तिला को आवाज दी।
"किसका फोन है माँ"?
"तुम्हारे अमिताभ सर का, बहुत तारीफ करने रहे हैं तुम्हारी" ,माँ खुश होकर बोली।
"हैलो" , धीमी आवाज में शक्तिला बोली।
"मैं अभी तुमसे मिलना चाहता हूँ शक्ति..."
"नहीं, मैं कल क्लास के बाद मिलुंगी आपसे" ,बीच में ही उनकी बात काटकर फोन रख दिया उसने। इसी उहापोह में उसने सारी रात निकाल दी, तभी माँ की आवाज से, "शक्तिला उठो, काॅलेज नहीं जाना तुम्हें" , उसने बिस्तर छोड़ी और सब काम निबटाकर नियत समय पर काॅलेज पहुंची। क्लास पूरे कर अमिताभ सर से मिलने उनके कक्ष में पहुंच गई।
उसके आते ही अमिताभ सर बोले, "तुम समझती क्यों नहीं शक्तिला ? एक उज्ज्वल भविष्य है तेरे सामने और तुम्हें तुम्हारी मंजिल तक मैं पहुचाऊंगा।आज तक काफी छात्र - छात्राओं को उस मुकाम तक पहुंचाया है मैंने, ये तो जानती ही हो तुम" !
"जानती हूँ सर, तभी तो इतना सम्मान है आपका मेरे मन में। अब आपकी जो थोड़ी - बहुत इज्जत बची है मेरे दिल में, कृपया उसे मिटाइए मत, कहीं मैं अपनी सीमा रेखा न भूल जाऊं" ।
"क्या करोगी तुम ? टिक पाओगी मेरे सामने ? जानती हो, कहां तक पहुंच है मेरी " ?
"सर, क्या करूंगी वो भी बताती हूँ, पर उससे पहले एक सवाल - कितनी लड़कियां आई न आपकी जिंदगी में, उनको भी तो शादी के सब्जबाग दिखाए होंगे न आपने, तो फिर उनमें से किसी से शादी क्यों नहीं---"
"चुप, एकदम चुप, तुम्हें ये सब पूछने की हिम्मत हुई कैसे ? वो सब मेरा अतीत थी,तुम वर्तमान हो, प्यार भी करता हूं और शादी भी करना चाहता हूं तुमसे"।
"कल आप मुझे छोड़कर किसी और के पास नहीं जाएंगे, इसका क्या भरोसा ? आप जैसे इंसान----"
"तुम्हारी ये हिम्मत कि मुझसे जुबान लड़ाओ" ?
"क्या करेंगे आप ? मेरा भविष्य बरबाद करने में कोई कसर न छोड़ेंगे ? जो करना हो कर लीजिए आप, मैं चली प्रेस के सामने आपके पापों का घड़ा फोड़ने" !
" क्या तुम बदनामी से बच जाओगी" ?
"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। यही तो आखिरी हथियार है आपकी मर्दों के पास, जिसके बल पर आपकी लोग बेगुनाह नारी को घुटने पर मजबूर करते हैं। नहीं डरती मैं किसी बदनामी से.. और क्यों डरूं, जब मेरी कोई गलती ही नहीं ? आज की मजबूत लड़की हूँ मैं, जो आपके जैसे हौसले तोड़ने की कोशिश करने वाले चट्टानों कोई तोड़कर रास्ता बनाना जानती हूँ"। इतना कहकर वह सधे कदमों से बाहर निकल गई।
प्रोफेसर अमिताभ यंत्रवत खड़े रह गए और पसीने से तर बतर हो चुके अपने चेहरे कोई पोछते हुए सोचने लगे कि उनकी लड़कियों के प्रति बनी अब तक की धारणाओं का धज्जियां उड़ा गई ये लड़की !
साबित कर दिया शक्तिला ने कि हिम्मत हो तो कोई नहीं डिगा सकता किसी को भी.. और लड़की की सबसे बड़ी खूबसूरती है, मुश्किलों से लड़ने का हौसला और सही निर्णय लेने की क्षमता।आज अपने नाम को सार्थक कर लिया था उसने।

मीनाक्षी सिंह
वापी, गुजरात