कैंसर – निराशा से बचें
डा. ईश्वरमुखी को मई 2018 में 85 वर्ष की अवस्था में कैंसर हो गया। जब रोग का पता लगा वह थर्ड स्टेज पर पहुँच चुका था परंतु अब वे पूर्ण स्वस्थ्य है। रोग होने से रोग ठीक होने तक की उनकी यात्रा उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शन है जो कैंसर के नाम से ही निश्चित मृत्यु की कल्पना करने लगते है। हमारे प्रश्नो का सिलसिलेवार उत्तर देते हुए वे कहती है कि -
मानव जीवन स्वयं के शुभ कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त होता है। जीवन में सकारात्मक भाव रखते हुए सुख और दुख को सहज भाव से लेना चाहिए। स्वयं के, परिवार के, समाज के, राष्ट्र के और मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन तत्परता से करना चाहिये।
वे कैंसर से स्वस्थ्य होने के पश्चात जीवन को उसी प्रकार क्रियाशील रखना चाहती है जैसी पहले थी। बीमारी के दौरान कई बार निराशा की स्थिति बनती थी तब अपने चारों ओर दृष्टिपात करती थी और पाती थी कि मेरी स्थिति अनेक अन्य रोगियों से बेहतर हैं,यह बात बहुत सांत्वना देती थी।
पंचतत्वों से बनी इस काया में आत्मा का होना जीवन है और आत्मा का इसे छोड कर चले जाना मृत्यु है परंतु शारीरिक पीडा कम महत्वपूर्ण नही है। उस समय तो शरीर ही सब कुछ लगता है।
रोग हमारी असावधानियों का परिणाम है। ये किसी पाप का फल नही है। कुछ रोग अनुवांशिक भी होते है। उन्हें असाध्य नही मानना चाहिए। उचित उपचार और संयम का सहारा लेकर, डाक्टर पर भरोसा रखते हुए मन में सकारात्मक भाव रखना चाहिए। सदैव प्रसन्न रहें, जीवन का पूर्ण आनंद लें। परोपकार, दान, सेवा आदि को अपने जीवन का आदर्श बनायें।
इस रोग का रोगी बहुत सी विपरीत स्थितियों का सामना करता है। ऐसी स्थितियों में परिवारजनों को उसकी सेवा करना और आत्मबल बनाये रखना चाहियें। समाज का भी दायित्व है कि रोगी के आसपास निराशा का वातावरण न बनायें
85 वर्ष की अवस्था में मई 2018 के अंतिम सप्ताह में मुझे एक सप्ताह के टेस्ट के बाद बायप्सी कराने को कहा गया। दिल्ली में टेस्ट में पाया गया कि कैंसर रोग पेट में फैला था और थर्ड स्टेज पर पहुँच चुका था। पहली कीमो हुई तो तबीयत बिगड गयी और इमरजेंसी में शिफ्ट किया गया। दूसरी कीमो में कोई परेशानी नही हुई। सात बार ब्लड चढाना पडा। नवम्बर को मेरी अंतिम कीमो हुई और तब से अब तक दो बार टेस्ट हो चुके है और सब कुछ नार्मल है।
इस दौरान मुझे इंफेक्शन से बचाने के लिये अलग कमरे में रखा गया। सब लोगों से मिलने भी नही दिया जाता था । खाना ताजा और डाक्टर के निर्देशो के अनुसार दिया गया। मैं कोशिश करके प्रतिदिन 15 मिनिट व्यायाम और 15 मिनिट प्राणायाम करती रही। अब मैं बाहर आने जाने लगी हूँ। कुछ दवाइयाँ चल रही है। नियमित रूप से कच्ची हल्दी का रस शहद मिलाकर, जवारे का रस व गाजर चुकन्दर का सलाद सूप लेती हूँ। बच्चों की सेवा और प्यार से मैं स्वस्थ्य हूँ और आगे भी प्रभु से प्रार्थना है कि मुझे रोगमुक्त रखें।